Tuesday 18 June 2019

अर्जुन का कर्ण को फटकारना, युधिष्ठिर का अर्जन आदि से मिलना और भगवान् का स्तवन करना

संजय ने कहा___महाराज ! एक तो भीमसेन का रथ टूट गया था, दूसरे कर्ण ने उन्हें अपने वाग्वाणों से खूब पीड़ित किया; इससे वे क्रोध के वशीभूत होकर अर्जुन से बोले___’धनंजय ! सुनते हो न ? तुम्हारे सामने ही कर्ण मुझसे कहता है कि ‘अरे नपुंसक, मूढ़, पेटू, गँवार, बालक और कायर ! तू लड़ना छोड़ दे।‘ मेरे विषय में ऐसी बात मुँह से निकालने वाला मनुष्य मेरा वाक्य है; इसलिये तुम इसका वध करने के लिये मेरी बात याद रखो और ऐसा उद्योग करो, जिससे मेरा वचन मिथ्या न हो।‘ भीमसेन की बात सुनकर अर्जुन आगे बढ़े और कर्ण के निकट जाकर बोले___’पापी कर्ण ! तू आप ही अपनी तारीफ किया करता है। संग्रामभूमि में डटे हुए शूरवीरों को दो ही परिणाम प्राप्त होते हैं___ जीत या हार। आज युद्ध में सात्यकि ने तुझे रथहीन कर दिया था; तेरी इन्द्रियाँ विकल हो रही थीं, तू मौत के निकट पहुँच चुका था; तो भी तेरी मृत्यु मेरे हाथ से होने वाली है___यह सोचकर ही सात्यकि ने तुझे जीवित छोड़ दिया है; किन्तु ऐसा करके जो तूने उनके प्रति कड़वी बातें कही हैं, वह महान् पाप है। यह काम नीच पुरुषों का है। आखिर तू सूत का ही पुत्र ठहरा, तेरी समझ गँवारों की_सी  क्यों न हो ? महापराक्रमी भीमसेन के प्रति तूने जो अप्रिय बातें सुनायी हैं, वे सहन करने योग्य नहीं है। सारी सेना देख रही थी, हमारी और श्रीकृष्ण की भी उधर ही दृष्टि थी जबकि आर्य भीम ने तुझे अनेकों बार रथहीन किया था। परंतु उन्होंने तेरे लिये एक बार भी कड़ी जबान नहीं निकाली। इतने पर भी जो तूने उन्हें बहुत से कटु वचन सुनाये हैं तथा मेरी अनुपस्थिति में तुम सबने मिलकर जो सुभद्रानन्दन अभिमन्यु का वध किया है, उस अन्याय का अब तुझे शीघ्र ही फल मिलेगा। अब मैं तुझे तेरे सेवक, पुत्र और बन्धुओं सहित मार डालूँगा। युद्ध में तेरे देखते_देखते तेरे पुत्र वृषसेन का वध करूँगा। उस समय मोहवश यदि दूसरे राजा भी मेरे पास आ जायेंगे तो उनका भी संहार कर डालूँगा___ यह बात मैं अपने शस्त्रों की शपथ खाकर कहता हूँ।‘ इस प्रकार जब अर्जुन ने कर्ण के पुत्र का वध करने की प्रतिज्ञा की, उस समय रथियों ने महान् तुमुलनाद किया। वह अत्यन्त भयंकर संग्राम अभी चल ही रहा था, इतने में सूर्य अस्ताचल पर पहुँच गया। अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी थी,  अतः भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें छाती से लगाकर कहा___’विजय ! बड़े सौभाग्य की बात है कि तुमने अपनी बहुत बड़ी प्रतिज्ञा पूर्ण कर ली। यह भी बहुत अच्छा हुआ कि पापी वृद्धक्षत्र अपने पुत्र के साथ मारा गया। भारत ! कौरव_सेना के मुकाबले में आकर देवताओं का दल भी परास्त हो सकता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। अर्जुन ! मैं तो तीनों लोकों में तुम्हारे सिवा किसी दूसरे पुरुष को ऐसा नहीं देखता, जो इस सेना के साथ लोहा ले सके। तुम्हारा बल और पराक्रम रुद्र, इन्द्र और यमराज के समान है। आज अकेले तुमने जैसा पुरुषार्थ किया है, ऐसा कोई भी नहीं कर सकता। इसी प्रकार जब तुम बन्धु_बान्धवों सहित कर्ण को मार डालोगे तो तुम्हें पुनः बधाई दूँगा। अर्जुन ने कहा___’माधव ! यह तो तुम्हारी ही कृपा है, जिससे मैंने प्रतिज्ञा पूरी की। तुम जिनके स्वामी हो___ रक्षक हो, उनकी विजय होने में आश्चर्य ही क्या है ?’ अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान् धीरे_धीरे घोड़ों को हाँकते हुए चले और युद्ध का वह दारुण दृश्य अर्जुन को दिखाने लगे। वे बोले___’अर्जुन ! जो लोग युद्ध में विजय और महान् सुयश पाने की इच्छा कर रहे थे, वे ही ये शूरवीर नरेश आज तुम्हारे बाणों से मरकर पृथ्वी पर सो रहे हैं। इनके शरीर का मर्मस्थान छिन्न_भिन्न हो गया है। ये बड़ी विकलता के साथ मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। यद्यपि इनकी देह में प्राण नहीं है तो भी बदन पर गिरता हुई दीप्ति के कारण ये जीवित_से दिखाई दे रहे हैं। साथ ही इनके नाना प्रकार के अस्त्र_ शस्त्र तथा वाहन यहाँ पड़े हुए हैं, जिनसे यह रणभूमि भर गयी है। इस प्रकार संग्रामभूमि का दर्शन कराते हुए भगवान् कृष्ण ने स्वजनों के साथ अपना पांचजन्य शंख बजाया। फिर अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर के पास जा उन्हें प्रणाम करके कहा___’महाराज ! सौभाग्य की बात है कि आज शत्रु मारा गया; इसके लिये आपको बधाई है। आपके छोटे भाई ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की____यह बड़े हर्ष का विषय है।‘ यह सुनकर राजा युधिष्ठिर रथ से कूद पड़े और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन से गले लगाकर मिले। उस समय वे आनन्द के उमड़ते हुए आँसुओं से भींग रहे थे। वे बोले___’कमलनयन श्रीकृष्ण ! आपके मुख से सब प्रिय समाचार सुनकर मेरे आनन्द की सीमा नहीं है। वास्तव में अर्जुन ने यह अद्भुत काम किया है।सौभाग्य की बात है कि आज मैं आप दोनों महारथियों को प्रतिज्ञा के भार से मुक्त देख रहा हूँ। यह बहुत अच्छा हुआ कि पापी जयद्रथ मारा गया। कृष्ण ! आपके द्वारा सुरक्षित होकर पार्थ ने जो जयद्रथ वध किया है, इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। आप तो सदा सब प्रकार से हमारे प्रिय और हित के साधन में ही लगे रहते हैं। जनार्दन ! जो काम देवताओं से भी नहीं हो सकता था, उसे अर्जुन ने आपकी ही बुद्धि, बल और पराक्रम से सम्पन्न किया है। यह चराचर जगत् आपकी ही कृपा से अपने_ अपने वर्णाश्रमोचित मार्ग में स्थित हो जप होमादि कर्मों में प्रवृत होता है। पहले यह सारा दृश्य_प्रपंच एकार्णव में निमग्न___ अन्धकारमय था, आपके अनुग्रह से यह पुनः जगत् के रूप में प्रकट हुआ है। आप संपूर्ण लोकों की सृष्टि करनेवाले अविनाशी परमेश्वर हैं, आप ही इन्द्रियों के अधिष्ठाता हैं; जो आपका दर्शन पा जाते हैं, उन्हें कभी मोह नहीं होता। आप पुराण_पुरुष हैं, परम देव हैं; देवताओं के भी देवता, गुरु एवं सनातन हैं; जो लोग आपकी शरण में जाते हैं, वे तभी मोह में नहीं पड़ते। हृषिकेश ! आप आदि_अन्त से रहित, विश्वविख्यात और अविकारी देवता हैं; जो आपके भक्त हैं; वे बड़े_बड़े संकटों से पार जो जाते हैं। आप परम पुरातन पुरुष हैं, पर से भी पर हैं, आप परमेश्वर की शरण लेनेवाले भक्त को मुक्ति प्राप्त होती है। चारों वेद जिनका यश गान करते हैं, जो सभी वेदों में जाते गये हैं, उन महात्मा श्रीकृष्ण की शरण लेकर मैं अनुपम कल्याण प्राप्त करूँगा।
पुरुषोत्तम ! आप परमेश्वर हैं, ईश्वरों के ईश्वर हैं, पशु_पक्षी तथा मनुष्यों के भी ईश्वर हैं। अधिक क्या कहें___ जो सबके ईश्वर हैं, उनके भी आप ईश्वर हैं; मैं आपको नमस्कार करता हूँ। माधव ! आप ही सबकी उत्पत्ति और प्रेम के कारण हैं; सबके आत्मा हैं। आपका अभ्युदय हो। आप धनंजय के मित्र, गुरू और रक्षक हैं; आपकी शरण में जाने से मनुष्य की सुखपूर्वक उन्नति होती है। भगवन् ! प्राचीन महर्षि मार्कण्डेयजी आपके चरित्रों को जाननेवाले हैं; उन्होंने कुछ दिन पहले आपके महात्म्य और प्रभाव का वर्णन किया था। असित, देवल, महातपस्वी नारद और मेरे पितामह व्यासजी ने भी आपकी महिमा का गायन किया है। आप तेजःस्वरूप, परमब्रह्म, सत्य, महान्_तप, कल्याणमय तथा जगत् के आदि कारण हैं। आप ही ने इस स्थावर_जंगमरूप जगत् की सृष्टि की है। जगदीश्वर ! जब प्रलयकाल उपस्थित होता है, उस समय यह आदि_अंत से रहित आप परमेश्वर में लीन हो जाता है। वेदों के विद्वान आपको धाता, अजन्मा, अव्यक्त, भूतात्मा, महात्मा, अनंत तथा विश्वतोमुख आदि नामों से पुकारते हैं। आपका रहस्य गूढ़ है, आप सबके आदि कारण और इस जगत् के स्वामी हैं। आप ही परम देव, नारायण, परमात्मा और ईश्वर हैं। ज्ञानस्वरूप श्रीहरि और मुमुक्षुओं के आश्रयभूत भगवान् विष्णु भी आप ही हैं। आपके तत्व को देवता भी नहीं जानते। ऐसे सर्वगुणसम्पन्न आप परमात्मा को हमने अपना सखा बनाया है।‘ युधिष्ठिर के इस प्रकार कहने पर भगवान् श्रीकृष्ण बोले ___’धर्मराज ! आपकी उग्र तपस्या, परम धर्म, साधुता तथा सरलता से ही पापी जयद्रथ मारा गया है। संसार में शास्त्रज्ञान, बाहुबल, धैर्य, शीघ्रता, तथा अमोघ बुद्धि में कहीं कोई भी अर्जुन के समान नहीं है। इसलिये आपके छोटे भाई ने रणभूमि में शत्रुसेना का संहार करके सिंधुराज का मस्तक काट डाला है।‘
यह सुनकर युधिष्ठिर ने अर्जुन को गले लगाया और उनके बदन पर हाथ फेरकर शाबाशी देते हुए कहा___’अर्जुन ! जिसे इन्द्रसहित संपूर्ण देवता भी नहीं कर सकते थे, वह काम तूने आज कर दिखाया है। सौभाग्य का विषय यह है कि इस समय तुम्हारे सिर का भार उतर गया, जयद्रथ को मारकर तुमने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।‘ तदनन्तर, शूरवीर भीमसेन और सात्यकि ने भी धर्मराज को प्रणाम किया, उनके साथ पांचालनरेशीय राजकुमार भी थे। उन दोनों वीरों को हाथ जोड़कर खड़े हुए देख युधिष्ठिर ने उनका अभिनन्दन किया। वे बोले___’आज बड़े आनन्द की बात है कि तुम दोनों को मैं इस सैन्यरूपी सागर से  मुक्त देख रहा हूँ। तुम दोनों युद्ध में विजयी हुए। तुम्हारे मुकाबले में आकर द्रोणाचार्य और कृतवर्मा परास्त गये। अनेकों प्रकार के शस्त्रों से कम वे कर्ण को हराया और राजा शल्य को भी मार भगाया। अब तुम्हें सकुशल देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। तुमलोग मेरी आज्ञा का पालन  करते और मेरे प्रति गौरव के बन्धन में बँधे रहते हो। संग्राम में तुम्हारी कभी हार नहीं होती। तुम दोनों बिलकुल मेरे कहने के अनुरूप हो। सौभाग्य से ही आज तुम्हें जीते_जागते देख रहा हूँ। भीमसेन और सात्यकि से ऐसा कहकर धर्मराज ने उन्हें फिर गले लगाया और आनन्द के आँसू बहाने लगे। राजन् ! उस समय पाण्डवों की संपूर्ण सेना आनन्दमग्न हो गयी, फिर उसने बड़े उत्साह से युद्ध में मन लगाया।

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