Tuesday 9 July 2019

युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय, द्रोण के हाथ से शिबि का वध तथा भीम के द्वारा कलिंग, ध्रुव, जयरात, दुर्गम और दुष्कर्ण का वध

संजय कहते हैं___महाराज ! पांचाल और कौरव वीरों में परस्पर युद्ध होने लगा। सभी योद्धा एक_दूसरे को बाण, तोमर और शक्तियों से बींधकर यमलोक भेजने लगे। थोड़ी ही देर में युद्ध का रूप बड़ा भयंकर हो गया, रक्त की नदी बह चली। उस समय आपके धनुर्धर पुत्र दुर्योधन के तीखे बाणों की मार खाकर पांचाल_वीर इधर_उधर भागने लगे। उसके सायकों से पीड़ित हो पाण्डव सैनिक धराशायी होने लगे। उस समय आपके पुत्र ने जैसा पराक्रम किया, वैसा कौरव_पक्ष के किसी दूसरे वीर ने नहीं किया। दुर्योधन के द्वारा पाण्डवसेना को नष्ट होते देख पांचालवीर भीमसेन को आगे करके उसपर टूट पड़े। उसने भीमसेन को दस, नकुल_सहदेव को तीन_तीन, विराट और द्रुपद को छः_छः, शिखण्डी को सौ, धृष्टधुम्न को सत्तर, युधिष्ठिर को सात और केकय तथा चेदि देश के योद्धाओं को अनेकों तीखे बाणों से बींध डाला। फिर सात्यकि को पाँच, द्रौपदी के पुत्रों को तीन_तीन और घतोत्कच को बहुत से बाणों द्वारा बींधकर सिंहनाद किया। इसके अलावा भी सैकड़ों योद्धाओं और उनके हाथियों तो काट गिराया।
तब पाण्डवों की सेना रणभूमि से भागने लगी। यह देख राजा युधिष्ठिर क्रोध में भरकर आपके पुत्र को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर बढ़े। दुर्योधन ने तीन बाणों से धर्मराज के सारथि को घायल करके एक बाण से उसके धनुष को काट दिया। तब युधिष्ठिर ने शीघ्र ही दूसरा धनुष लेकर  दो भल्लों से दुर्योधन के भी धनुष के तीन टुकड़े कर दिये। फिर जल तीखे सायकों से उसे बींध डाला। युधिष्ठिर के छोड़े हुए बाण दुर्योधन के मर्मस्थानों रो छेदकर पृथ्वी में समा गये। तदनन्तर धर्मराज ने दुर्योधन पर एक और भयंकर बाण चलाया; उसकी चोट से दुर्योधन को मूर्छा आ गयी और वह रथ की बैठक पर लुढ़क गया। थोड़ी देर में जब होश हुआ तो उसने तुरत सुदृढ़ धनुष हाथ में ले लिया। इतने में विजयाभिलाषी पांचालवीर तुरंत दुर्योधन के पास आ पहुँचे। उन्हें आते देख आचार्य द्रोण ने दुर्योधन की रक्षा के लिये बीच में ही रोक लिया। फिर तो आपकी और शत्रुओं की सेनाओं में महान् संग्राम होने लगा।
उस समय अर्जुन, सात्यकि, युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव, सेनासहित धृष्टधुम्न, राजा विराट, केकय, मत्स्य, शाल्व तथा राजा द्रुपद ने भी द्रोणाचार्य पर धावा किया। द्रौपदी के पाँचों पुत्र और राक्षस घतोत्कच भी अपनी सेना साथ ले उन्हीं की ओर बढ़े। प्रहार करने में कुशल छः हजार पांचालों तथा प्रभद्रकों ने भी शिखण्डी को आगे रखकर. द्रोण पर ही आक्रमण किया। इस प्रकार पाण्डव_पक्ष के दूसरे_दूसरे महारथी भी एक ही साथ आचार्य द्रोण की ओर लौट पड़े। जिस समय वे शूरवीर युद्ध के लिये पहुँचे, भयंकर रात आरम्भ हो गयी थी। उस समय द्रोणाचार्य और सृंजयों में अत्यन्त भयानक युद्ध होने लगा। सारे संसार में अन्धकार छा जाने के कारण कुछ दिखाई नहीं देता था। अपने_पराये की पहचान नहीं हो पाती थी। उस प्रदोषकाल में सब लोग उन्मत्त_ से हो रहे थे। रणभूमि की धूल रक्त की धारा में सनकर बैठ गयी थी। रात्रिकाल के उस घोर युद्ध में पाण्डव और सृंजय क्रोध में भरकर एक साथ ही आचार्य द्रोण पर टूट पड़े; किन्तु आचार्य के सामने जो_जो प्रधान महारथी आये, उनमें से कुछ को तो उन्होंने यमलोक भेज दिया और बाकी सब को मार भगाया। द्रोण ने अकेले ही हजारों हाथी, दस हजार रथ, लाखों पैदल और अरबों घुड़सवार काट डाले। धृष्टधुम्न के पुत्रों तथा केकयों को भी शीघ्रगामी सायकों से घायल कर प्रेतलोक पहुँचा दिया।
इस प्रकार द्रोणाचार्य को शत्रुसेना का संहार करते देख प्रतापी राजा शिबि अत्यन्त क्रोध में भरे हुए उनके मुकाबले में आ डटे। पाण्डवसेना के महारथी को आते देख द्रोण ने जल बाण मारकर उन्हें घायल किया; राजा शिबि ने भी तुरंत बदला लिया, उन्होंने तीस बाणों ले द्रोण को घायल करके एक भल्ल से उनके सारथि को भी मार गिराया। तब द्रोण ने उनके घोड़ों और सारथि को मार डाला तथा शिबि के मुकुटमण्डित सिर को भी धर से अलग कर दिया। इतने में दुर्योधन ने द्रोण के लिये तुरंत दूसरा सारथि भेजा। उसने आकर यह घोड़ों की बागडोर हाथ में ले ली और शत्रुओं पर धावा किया।
इधर कलिंगराज का पुत्र अपनी सेना के साथ भीमसेन पर टूट पड़ा। भीमसेन ने पहले उसके पिता कलिंगराज को  मार डाला था, इससे उनके ऊपर  उस राजकुमार का क्रोध बहुत बढ़ा हुआ था। उसने भीम को पहले पाँच बाणों से घायल करके फिर सात बाणों से बींध डाला। इसके बाद उसके सारथि विशोक को भी तीन बाण मारकर एक बाण से उनके रथ की ध्वजा काट डाली। तब तो भीमसेन के क्रोध की सीमा न रही, वे अपने रथ से कूदकर उसी के रथ पर चढ़ गये और उस क्रोध में भरे हुए कलिंगवीरों को बड़े जोर से मुक्का मारा। पाण्डुनन्दन भीम अत्यन्त बली थे, उनके मुक्के की चोट से उसकी हड्डी_हड्डी छितरा गयी। उसकी यह दुर्गति कर्ण तथा उसके भाईयों से नहीं सही गयी, उन्होंने जहरीले साँप की तरह तीखे बाणों से भीमसेन को बींधना आरम्भ किया। तब भीमसेन उसके रथ को छोड़कर ध्रुव के रथ पर चढ़ गये।
ध्रुव भी निरन्तर उनकी ओर बाण चला रहा था; महाबली भीम ने उसको भी मुक्के से मार डाला। फिर वे उसके रथ पर चढ़े और सिंहनाद करके उसे बायें हाथ से एक चाँटा लगाया। इस प्रकार कर्ण के सामने ही उन्होंने उसे भी मार डाला। तब कर्ण ने भीमसेन के ऊपर एक सुवर्णमयी शक्ति का प्रहार किया।, किन्तु भीम ने हँसते_हँसते उसे हाथ में पकड़ लिया और फिर उसी को कर्ण पर दे मारा। कर्ण की ओर आती हुई उस शक्ति को शकुनि ने बाण से काट गिराया। इस प्रकार अद्भुत पराक्रमी भीम ने यह महान् पुरुषार्थ करके पुनः अपने रथ पर आरूढ़ होकर आपकी सेना पर धावा किया। क्रोध में भरे हुए यमराज की भाँति भीम को आते देख आपके पुत्रों ने बाण मारकर आगे बढ़ने से रोक दिया और बाणवर्षा से उन्हें आच्छादित कर दिया। यह देख भीम ने अपने बाणों से दुर्मद के सारथि और घोड़ों को यमलोक पहुँचा दिया। दुर्मद दुष्कर्ण के रथ पर जा चढ़ा।
अब एक ही रथ पर बैठे हुए दोनों भाइयों ने भीम पर धावा किया और उन्हें तीखे बाणों से बींधने लगे। तब भीमसेन ने कर्ण, अश्त्थामा, दुर्योधन,कृपाचार्य, सोमदत्त और बाह्लीक के देखते_देखते दुर्मद और दुष्कर्ण के रथ को सात से मारकर पृथ्वी में धँसा दिया। फिर आपके उन दोनों पुत्रों को मुक्के से मार_मारकर कचूमर निकाल डाला और बड़े जोर से गर्जना की। उस समय कौरव_सेना में हाहाकार मच गया। भीम की ओर देखकर राजालोग कहते थे___’ये भीम नहीं, भीम के रूप में साक्षात् भगवान् रुद्र हैं, जो कौरवों से युद्ध कर रहे हैं।‘ महाराज ! यों कहकर सब राजा भागने लगे। सबके होश उड़ गये थे, वे सभी सवारियों को तेजी से भगाये लिये जाते थे। उस समय दो आदमी एक साथ नहीं दौड़ते थे, सब अकेले ही भाग रहे थे।
इस तरह उस प्रदोषकाल में भीम ने कौरवसेना का भलीभाँति संहार किया। इससे नकुल, सहदेव, द्रुपद, विराट, केकय और राजा युधिष्ठिर को बजा प्रसन्नता हुई वे भीमसेन की प्रशंसा करने लगे।

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