Thursday 12 September 2019

• दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन, कृतवर्मा का पराक्रम, सात्यकि द्वारा भूरिका वध और घतोत्कच के साथ अश्त्थामा का युद्ध

संजय कहते हैं___महाराज ! जो स्थान पहले धूल और अन्धकार से,आच्छन्न हो रहा था, वह दीपों के प्रकाश से आलोकित हो उठा। रत्नजटित सोने की दीवटों पर सुगन्धित तेल से भरे हुए हजारों दीपक जगमगा रहे थे। जैसे असंख्य नक्षत्रों से आकाश सुशोभित होता है, उसी प्रकार उन दीपमालाओं से उस रणभूमि की शोभा हो रही थी। उस समय हाथी पर सवार हाथीसवारों से और घुड़सवार घुड़सवारों से भिड़ गये। रथियों का रथियों के साथ मुकाबला होने लगा। सेना का भयंकर संहार आरम्भ हो गया। अर्जुन बड़ी फुर्ती के साथ राजाओं का वध करते हुए कौरवसेना का विनाश करने लगे। धृतराष्ट्र ने पूछा___ संजय ! जब अर्जुन क्रोध में भरकर दुर्योधन की सेना में घुसे, उस समय उसने क्या करने का विचार किया ? कौन_कौन वीर अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़े ? आचार्य द्रोण जब युद्ध कर रहे थे, उस समय कौन_कौन उनके पृष्ठभाग की रक्षा करते थे ? कौन उनके आगे थे ? और कौन दायें_बायें पहियों की रक्षा में नियुक्त थे ? ये सब बातें मुझे बताओ ?
संजय ने कहा___ महाराज ! उस रात दुर्योधन ने आचार्य द्रोण की सलाह लेकर अपने भाइयों तथा कर्ण, वृषसेन, मद्रराज शल्य, दुर्धर्ष, दीर्घबाहु तथा उन सबके अनुचरों से कहा___'तुम सबलोग पूर्ण सावधान रहकर पराक्रम करते हुए पीछे रहकर आचार्य द्रोण की रक्षा करो। कृतवर्मा दक्षिण पहिये की और कर्ण उत्तरवाले पहिये की रक्षा करें। इसके बाद त्रिगर्तदेश के महारथी वीरों में से जो मरने से बचे हुए थे, उन सबको आपके पुत्र ने आचार्य के आगे रहने की आज्ञा दी और कहा___’वीरों ! आचार्य द्रोण बड़ी सावधानी के साथ युद्ध कर रहे हैं; पाण्डव भी बड़ी तत्परता के साथ उनका सामना करते हैं। अतः तुमलोग सावधान रहकर आचार्य की महारथी धृष्टधुम्न से रक्षा करो। पाण्डवों की सेना में धृष्टधुम्न के सिवा और कोई योद्धा मुझे ऐसा नहीं दिखायी देता, जो द्रोण ले लोहा ले सके। अतः इस समय आचार्य की रक्षा ही हमारे लिये सबसे बढ़कर काम है। सुरक्षित रहने पर आचार्य अवश्य ही पाण्डवों, सृंजयों और सोमकों का नाश कर डालेंगे; फिर अश्त्थामा धृष्टधुम्न को नष्ट कर देगा, कर्ण अर्जुन को परास्त करेगा और युद्ध की दीक्षा लेकर मैं भीमसेन पर विजय पाऊँगा। इनके मरने पर बाकी पाण्डव बलहीन हो जायेंगे, फिर तो उन्हें मेरे सभी योद्धा नष्ट कर सकते हैं। इस प्रकार सुदीर्घ क्लर्क के लिये मेरी विजय की संभावना स्पष्ट ही दिखायी दे रही है। यह कहकर दुर्योधन ने सेना को युद्ध करने की आज्ञा दी। फिर तो परस्पर विजय पाने की इच्छा से दोनों सेनाओं में घोर संग्राम होने लगा। उस समय अर्जुन कौरव_सेना को और कौरव अर्जुन को भाँति_भाँति के अस्त्र_ शस्त्रों से पीड़ा देने लगे। रात्रि का वह युद्ध इतना भयानक था कि वैसा उसके पहले न कभी देखा गया और न सुना ही गया था। उधर राजा युधिष्ठिर ने पाण्डवों, पांचालों और सोमकों को आज्ञा दी कि ‘तुम सब लोग द्रोण का वध करने के लिये उनपर एकबारगी टूट पड़ो।‘ राजा की आज्ञा पाकर वे पांचाल और सृंजय आदि क्षत्रिय भैरव_नाद करते हुए द्रोण पर चढ़ आये। उस समय कृतवर्मा ने युधिष्ठिर को और भूरि ने सात्यकि को रोका। सहदेव का कर्ण ने और भीमसेन का दुर्योधन ने सामना किया। शकुनि ने नकुल को आगे बढ़ने से रोका। शिखण्डी का कृपाचार्य ने और प्रतिविन्ध्य का दुःशासन ने मुकाबला किया। सैकड़ों प्रकार की माया जाननेवाले राक्षस घतोत्कच को अश्त्थामा ने रोका। इसी प्रकार द्रोण को पकड़ने के लिये आते हुए महारथी  वृषसेन ने सामना किया। मद्रराज शल्य ने विराट का वारण किया। नकुलनन्दन शतानीक भी द्रोण की ओर बढ़ा आ रहा था, उसे चित्रसेन ने बाण मारकर रोक दिया। महारथी अर्जुन का राक्षसराज अलम्बुष ने मुकाबला किया। तदनन्तर आचार्य द्रोण ने शत्रुसेना का संहार आरम्भ किया, किन्तु पांचालराजकुमार धृष्टधुम्न ने वहाँ पहुँचकर बाधा उपस्थित की तथा पाण्डवों का ओर से जो दूसरे_दूसरे महारथी लड़ने को आये, उन्हें आपके महारथियों ने अपने पराक्रम से रोक दिया। कृतवर्मा ने जब युधिष्ठिर को रोका तो उन्होंने उसे पहले पाँच, फिर बीस बाणों से मारकर बींध दिया। इससे कृतवर्मा क्रोध में भर गया और एक भल्ल मारकर उसने धर्मराज का धनुष काट दिया, फिर सात बाणों से मारकर बींध दिया। युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर कृतवर्मा की भुजाओं तथा छाती में दस बाण मारे। उनकी चोट से वह काँप उठा और रोष में भरकर उसने सात बाणों से उन्हें खूब घायल किया। तब युधिष्ठिर ने,उसके धनुष और दास्ताने काट गिराये, फिर उसके ऊपर पाँच तीखे भल्लों से प्रहार किया। वे भल्ल उसका बहुमूल्य कवच छेदकर पृथ्वी में समा गये।
कृतवर्मा ने पलक मारते ही दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर को सात तथा उनके सारथि को नौ बाणों से बींध डाला। यह देख युधिष्ठिर ने उसके ऊपर शक्ति छोड़ी। वह शक्ति कृतवर्मा की दाहिनी बाँह छेदकर धरती में समा गयी। तब कृतवर्मा ने आधे ही निमेष में युधिष्ठिर के घोड़ों और सारथि को मारकर उन्हें रथहीन कर दिया। अब उन्होंने ढाल और तलवार हाथ में ली, किन्तु कृतवर्मा ने उन्हें भी काट गिराया। फिर उसने सौ बाण मारकर उसके कवच को छिन्न_भिन्न कर डाला। इस प्रकार जब धनुष कटा, कवच भी छिन्न_भिन्न हुआ तो उसके बाणों के प्रहार से पीड़ित होकर युधिष्ठिर वहाँ से भाग गये। तब कृतवर्मा द्रोणाचार्य के रथ के पहिया की रक्षा करने लगा। महाराज ! भूरि ने महारथी सात्यकि का सामना किया। इससे सात्यकि ने क्रोध में भरकर पाँच तीक्ष्ण बाणों से उसकी छाती में घाव कर दिया, उससे रक्त की धारा बहने लगी। तब भूरि ने भी सात्यकि की दोनों भुजाओं के बीच दस बाण मारे। यह देख सात्यकि ने हँसते_ हँसते ही भूरि के धनुष को काट दिया, फिर उसकी छाती में नौ बाण मारकर उसे घायल करके एक भल्ल मारकर उसका धनुष भी काट दिया। अब तो सात्यकि के क्रोध की सीमा न रही, उसने एक प्रचण्ड वेगवाली शक्ति से पुनः भूरि की छाती पर प्रहार किया। उस शक्ति ने उसके अंगों को चीर डाला और वह प्राणहीन होकर रथ से नीचे गिर पड़ा। उसे मारा गया देख महारथी अश्त्थामा ने बड़े वेग से सात्यकि पर धावा किया और उसके ऊपर बाणों की झड़ी लगा दी। यह देख महारथी घतोत्कच घोर गर्जना करता हुआ अश्त्थामा के ऊपर टूट पड़ा और रथ के धुरे के समान स्थूल बाणों की वृष्टि करने लगा। उसने वज्र तथा अशनि के समान देदीप्यमान बाण, क्षुरप्र, अर्धचन्द्र, नाराच, शिलिमुख, बाराहकर्ण, मालती और विकर्ण आदि  अस्त्रों की झड़ी लगा दी। यह देख अश्त्थामा ने दिव्यास्त्रों से अभिमन्त्रित किये हुए बाणों की वर्षा आरम्भ की। फिर तो घतोत्कच और अश्त्थामा में घोर युद्ध होने लगा; उस समय रात्रि का अन्धकार खूब गाढ़ा हो चुका था। घतोत्कच ने अश्त्थामा की छाती में दस बाण मारे, उनकी चोट से उसका सारा शरीर काँप उठा और मूर्छित होकर रथ के ध्वजा के सहारे बैठ गया। थोड़ी देर में जब उसे जोश हुआ तो उसने यमदण्ड के समान एक भयंकर बाण घतोत्कच के ऊपर छोड़ा। वह बाण उसकी छाती छेदकर पृथ्वी में घुस गया और घतोत्कच मूर्छित होकर रथ की बैठक में गिर पड़ा। उसे बेहोश देखकर सारथि तुरंत रणभूमि से बाहर ले गया।

No comments:

Post a Comment