Thursday 26 September 2019

भीमसेन द्वारा दुर्योधन की, कर्ण के द्वारा सहदेव की, शल्य के द्वारा विराट की और शतानीक द्वारा चित्रसेन की पराजय

संजय कहते हैं___भीमसेन युद्ध करते हुए द्रोणाचार्य के रथ की ओर बढ़ रहे थे, तबतक दुर्योधन ने उन्हें बाणों से बींध डाला। यह देख भीम ने भी उसे दस बाणों से घायल किया। तब दुर्योधन ने पुनः बीस बाण मारकर उन्हें बींध डाला। भीमसेन ने दस बाणों से उसके धनुष और ध्वजा काट दिये, फिर नब्बे बाण मारकर उसे खूब घायल किया। चोट खाकर दुर्योधन क्रोध से जल उठा और दूसरा धनुष लेकर उसने तीखे बाणों से भीम को अच्छी तरह पीड़ित किया। फिर क्षुरप्र से उसका धनुष काटकर पुनः दस बाणों ले उन्हें घायल कर दिया।
भीम ने दूसरा धनुष लिया, किन्तु दुर्योधन ने उसे भी काट डाला। इसी प्रकार तीसरा, चौथा, पाँचवाँ धनुष भी कट गया। जो_जो धनुष भीम हाथ में लेते उस_उसको आपका पुत्र काट गिराता था। तब भीम ने दुर्योधन के ऊपर एक शक्ति फेंकी, किन्तु उसने उसके भी तीन टुकड़े कर दिये। इसके बाद भीम ने बहुत बड़ी गदा हाथ में ली और बड़े वेग से घुमाकर दुर्योधन के रथ पर फेंकी। उसने आपके पुत्र के रथ को भी चकनाचूर कर दिया। दुर्योधन भीम के डर से पहले ही भागकर नन्दक के रथ पर चढ़ गया था। उस समय भीमसेन कौरवों का तिरस्कार करते हुए बड़े जोर से सिंहनाद कर रहे थे और आपके सैनिकों में हाहाकार मचा हुआ था।दूसरी ओर द्रोण का सामना करने की इच्छा से सहदेव बढ़ा आ रहा था, उसे कर्ण ने रोका। सहदेव ने कर्ण को नौ बाणों से घायल करके फिर दस बाण और मारे। तब कर्ण ने भी सहदेव को सौ बाणों से बींधकर तुरंत बदला चुकाया और उसके चढ़े हुए धनुष को भी काट डाला। माद्रीनन्दन ने तुरंत दूसरा धनुष लेकर कर्ण को बीस बाण मारे। कर्ण ने उसके घोड़ों को मारकर सारथि को भी यमलोक भेज दिया। रथहीन हो जाने पर सहदेव ने ढाल तलवार हाथ में ली, किन्तु कर्ण ने तीखे बाण मारकर उसके भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। तब क्रोध में भरकर सहदेव ने एक बहुत भारी भयंकर गदा कर्ण के रथ पर फेंका, परन्तु कर्ण ने बाणों से मारकर उसे भी गिरा दिया। यह देख उसने शक्ति का प्रहार किया, किन्तु कर्ण ने उसे भी काट दिया। अब सहदेव रथ से नीचे कूद पड़ा और रथ का पहिया हाथ में लेकर उसे कर्ण पर दे मारा। उस चक्र को सहसा अपने ऊपर आते देख सूतपुत्र ने हजारों बाण मारकर उसके भी टुकड़े_ टुकड़े कर डाले। तब माद्रीकुमार ईषादण्ड, धुरा, मरे हुए हाथियों के अंग तथा मरे हुए घोड़ों और मनुष्यों की लाशों उठा_उठाकर कर्ण को मारने लगा, पर उसने सबको अपने बाणों से काट गिराया। फिर तो सहदेव अपने को शास्त्रहीन समझकर युद्ध त्यागकर चल दिया, कर्ण ने उसके पीछे भागकर हँसते हुए कहा___’ओ चंचल ! आज से तू अपने से बड़े रथियों के साथ युद्ध न करना।‘इस प्रकार ताना देकर कर्ण पाण्डवों और पांचालों की सेना की ओर चला गया। उस समय सहदेव मृत्यु के निकट पहुँच चुका था, कर्ण चाहता तो उसे मार डालता। किन्तु कुन्ती को दिये हुए वरदान को याद कर उसने सहदेव का वध नहीं किया। सहदेव का मन बहुत उदास हो गया था; वह कर्ण के बाणों से तो पीड़ित था ही, उसके वाग्बाणों से भी उसके दिल को काफी चोट पहुँची थी। इसलिये उसे जीवन से वैराग्य_ सा हो गया। वह बड़ी तेजी के साथ जाकर पांचालकुमार जनमेजय के रथ पर बैठ गया। इसी प्रकार द्रोण का मुकाबला करने के लिये राजा विराट भी अपनी सेना के साथ आ रहे थे, उन्हें बीच में ही रोककर मद्रराज शल्य ने बाणवर्षा से ढक दिया। उन्होंने बड़ी फुर्ती के साथ राजा विराट को सौ बाण मारे। यह देख विराट ने भी तुरंत बदला लिया; उन्होंने पहले नौ, फिर तिहत्तर, इसके बाद सौ बाण मारकर शल्य को घायल किया। फिर मद्रराज ने उनके रथ के चारों घोड़ों को मारकर दो बाणों से सारथि और ध्वजा को भी काट गिराया। तब राजा विराट रथ से कूद पड़े और धनुष चढ़ाकर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। अपने भाई को रथहीन देख शतानीक रथ लेकर उनकी सहायता में आ पहुँचा। उसे आते देख मद्रराज ने बहुत_से बाण मारकर यमलोक में पहुँचा दिया।
अपने वीर बन्धु के मारे जाने पर महारथी विराट तुरंत ही अपने रथ में बैठ गये और क्रोध से आँखें फेरकर ऐसी बाणवर्षा करने लगे, जिससे शल्य का रथ आच्छादित जो गया। तब मद्रराज ने सेनापति विराट की छाती में बड़े जोर से बाण मारा। वे उसकी चोट नहीं संभाल सके, मूर्छित होकर रथ की बैठक में गिर पड़े। यह देख उनका सारथि उन्हें रणभूमि से दूर हटा ले गया।‘ इधर शल्य सैकड़ों बाण बरसाकर विराट की सेना का संहार करने लगे, इससे वह वाहिनी उस रात्रिकाल में भागने लगी। उसे भागते देख भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन, जहाँ राजा शल्य थे, उधर ही चल पड़े; किन्तु राक्षस अलम्बुष ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बीच में ही रोक लिया। यह देख अर्जुन ने चार तीखे बाण मारकर उसे बींध डाला। तब अलम्बुष भयभीत होकर भाग गया। उसे परास्त कर अर्जुन तुरंत द्रोण के निकट पहुँचे और पैदल, हाथीसवार तथा घुड़सवारों पर बाणसमूहों की वृष्टि करने लगे। उनकी मार से कौरवसैनिक आँधी में उखाड़े हुए वृक्ष की भाँति धराशायी होने लगे। महाराज ! अर्जुन ने जब इस प्रकार संहार आरंभ किया तो आपके पुत्र की संपूर्ण सेना में भगदड़ मच गयी। एक ओर नकुलपुत्र शतानीक अपने शराग्नि से कौरवसेना को भष्म करता हुआ आ रहा था, उसे आपके पुत्र चित्रसेन ने रोका। शतानीक ने चित्रसेन को पाँच बाण मारे। चित्रसेन ने भी शतानीक को दस बाण मारकर बदला चुकाया। तब नकुलपुत्र ने चित्रसेन की छाती में अत्यन्त तीखे नौ बाण मारकर उसके शरीर का कवच काट गिराया। फिर अनेकों तीक्ष्ण सायकों से उसकी रथ की ध्वजा और धनुष को भी काट डाला। चित्रसेन ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर शतानीक को नौ बाण मारे। महाबली शतानीक ने भी उसके चारों घोड़ों और सारथि को मार डाला। फिर एक अर्धचन्द्राकार बाण मारकर उसके रत्मण्डित धनुष को भी काट दिया। धनुष कट गया, घोड़े और सारथि मारे गये___ इससे रथहीन हुआ चित्रसेन तुरंत भागकर कृतवर्मा के रथ पर जा चढ़ा।

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