Sunday 8 December 2019

भीमसेन के साथ अलायुध का युद्ध तथा घतोत्कच के हाथ से अलायुध का वध

संजय कहते हैं___ राजन् ! इस प्रकार कर्ण और घतोत्कच का युद्ध हो ही रहा था कि अलायुध नामवाला एक राक्षस पूर्वकालीन वैर का स्मरण करके अपनी बड़ी भारी सेना के साथ दुर्योधन के पास आया और युद्ध की लालसा से बोला___’ महाराज ! आपको तो मालूम ही होगा कि भीमसेन ने हमारे बान्धव हिडिम्बा, बकासुर और किर्मीर का वध कर डाला है। इसलिये आज हम स्वयं ही घतोत्कच का वध करेंगे और श्रीकृष्ण और पाण्डवों को अनुचरोंसहित मारकर खा जायँगे। आप अपनी सेना को पीछे हटा लीजिये। आज पाण्डवों के साथ हम राक्षसों का युद्ध होगा।‘ उसकी बात सुनकर दुर्योधन को बड़ी खुशी हुई। उसने अपने बन्धुओं के साथ ही उससे कहा___’भाई ! तुम्हें तो तुम्हारी सेनासहित आगे रखेंगे और साथ रहकर हम स्वयं भी शत्रुओं के साथ लड़ेंगे। मेरे योद्धाओं के हृदय में वैर की आग जल रही है, वे चैन से बैठेंगे नहीं।‘ ‘अच्छा ऐसा ही हो’ यह कहकर राक्षसराज अलायुध राक्षसों को लेकर बड़ी उतावली के साथ युद्ध के लिये चला। घतोत्कच के पास जैसा तेजस्वी रथ था, वैसा ही अलायुध के पास भी था। उसकी भी घरघराहट अनुपम थी, उसपर भी रीछ का चमड़ा मढ़ा हुआ था। लम्बाई_चौड़ाई भी वही चार सौ हाथ की थी। वैसे ही हाथी के समान मोटेताजे सौ घोड़े जुते हुए थे। उसका धनुष भी बहुत बड़ा था, जिसकी प्रत्यंचा सुदृढ़ थी। उसके बाण भी रथ के धुरे के समान मोटे और लम्बे थे। वह भी वैसा ही वीर था, जैसा घतोत्कच; किन्तु रूप में वह घतोत्कच की अपेक्षा सुन्दर था। महाराज ! अलायुध के आने से कौरवों को बड़ी प्रसन्नता हुई। मानो समुद्र में डूबते हुए को जहाज मिल गया हो। उन्होंने अपना नया जन्म हुआ समझा। उस समय कर्ण और घतोत्कच में अलौकिक युद्ध चल रहा था। द्रोण, अश्त्थामा और कृपाचार्य आदि घतोत्कच के पुरुषार्थ को देखकर थर्रा उठे थे। सबके मन में घबराहट थी, सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ था। सारी सेना कर्ण के जीवन से निराश हो चुकी थी। दुर्योधन ने देखा कि कर्ण बड़ी विपत्ति में फँस गया है तो उसने अलायुध को बुलाकर कहा.___’यह कर्ण घतोत्कच के साथ भिड़ा हुआ है और युद्ध में जहाँतक इसकी शक्ति है महान् पराक्रम दिखा रहा है। वीरवर ! तुम्हारी जैसी इच्छा थी, उसके अनुसार ही इस संग्राम में घतोत्कच को तुम्हारे हिस्से में कर दिया गया है; अब तुम पुरुषार्थ करके इसका नाश करो। यह पापी अपने मायाबल का आश्रय लेकर पहले ही कहीं कर्ण को मार न डाले___इसका खयाल रखना।‘ दुर्योधन के ऐसा कहने पर अलायुध ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर घतोत्कच पर धावा किया। भीमसेन के पुत्र ने जब अपने शत्रु को सामने आते देखा तो कर्ण को छोड़ दिया और उसी को बाणों के प्रहार से पीड़ित करने लगा। फिर दोनों राक्षस क्रोध में भरकर एक_ दूसरे से भिड़ गये। भीमसेन ने देखा कि घतोत्कच अलायुध के चंगुल में फँस गया है और वे अपने तेजस्वी रथ पर बैठे बाणवृष्टि करते हुए वहाँ आ पहुँचे। यह देख अलायुध ने घतोत्कच को छोड़कर भीमसेन को ललकारा और उसके साथी राक्षस भी अनेक प्रकार के अस्त्र_ शस्त्र लेकर भीमसेन पर ही टूट पड़े।
जब बहुत_से राक्षस बाणों से बींधने लगे तो महाबली भीम ने भी प्रत्येक को पाँच_पाँच तीखे बाण मारकर सबको घायल कर दिया। भीम के साथ युद्ध करनेवाले क्रूर राक्षस उनकी मार से पीड़ित हो भयंकर चीत्कार करते हुए दसों दिशाओं में भागने लगे। यह देख अलायुध भीमसेन की ओर बड़े वेग से दौड़ा और उनपर बाणों की वृष्टि करने लगा। उसने भीमसेन के छोड़े हुए कितने ही बाण काट डाले और कितनों को ही हाथ में पकड़ लिया। भीम ने पुनः उसके ऊपर बाण बरसाये, किन्तु उसने अपने तीखे सायकों से मारकर उन्हें भी पुनः व्यर्थ कर डाला। फिर उसने भीम के धनुष के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये, घोड़ों और सारथि का भी काम तमाम कर दिया। घोड़ों और सारथि के मर जाने पर भीमसेन ने रथ से उतरकर भयंकर गर्जना की और उस राक्षस पर बड़ी भारी गदा का प्रहार किया। अलायुध ने गदा से ही उस गदा को मार गिराया। तब भीम ने दूसरी गदा हाथ में ली  और उस राक्षस के साथ उनका तुमुल युद्ध होने लगा। उस समय एक दूसरे पर गदा के आघात से जो भयंकर शब्द होता था, उससे पृथ्वी काँप उठती थी। थोड़ी ही देर में गदा फेंककर दोनों मुक्के मारते हुए लड़ने लगे। उनके मुक्कों की आवाज से बिजली कड़कने की आवाज_सी होती थी। इस तरह युद्ध करते_ करते दोनों अत्यन्त क्रोध में भर गये और रथ, पहिये, जुए, धुरे तथा अन्य उपकरणों में से जो भी निकट दिखायी देता था, उसे ही उठा_उठाकर एक_दूसरे को,मारने लगे। दोनों के शरीर से रक्तधारा बह रही थी। भगवान् श्रीकृष्ण ने जब यह अवस्था देखी तो उन्होंने भीमसेन की रक्षा के लिये घतोत्कच से कहा___’महाबाहो ! देखो, तुम्हारे सामने ही सब सेना के देखते_ देखते अलायुध ने भीम को अपने चंगुल में फँसा लिया है। इसलिये पहले राक्षसराज अलायुध का ही वध करो, फिर कर्ण को मारना। श्रीकृष्ण की बात सुनकर घतोत्कच कर्ण को छोड़ अलायुध से ही जा भिड़ा। फिर तो उस रात्रि के समय उन दोनों राक्षसों में तुमुल युद्ध होने लगा। अलायुध क्रोध में भरा हुआ था, उसने एक बहुत बड़ी परिघ लेकर घतोत्कच के मस्तक पर दे मारा। उससे घतोत्कच को तनिक मूर्छा_सी आ गयी, किन्तु उस बलवान् ने अपने को संभाल लिया और अलायुध के ऊपर एक बहुत बड़ी गदा चलायी। वेग से फेंकी हुई उस गदा ने अलायुध के घोड़े, सारथि और रथ का चूरन बना डाला। अलायुध राक्षसी माया का आश्रय ले उछलकर आकाश में उड़ गया। उसके ऊपर जाते ही खून की वर्षा होने लगी। आकाश में मेघों की काली घटा छा गयी, बिजली चमकने लगी, कड़ाके की आवाज के साथ वज्रपात होने लगा। उस महासमर में बड़े जोर का कड़कड़ाहट फैल गयी। उसकी माया देखकर घतोत्कच भी आकाश में उड़ गया और दूसरी माया रचकर उसने अलायुध की माया का नाश कर दिया। यह देख अलायुध घतोत्कच के ऊपर पत्थरों का वर्षा करने लगा। किन्तु घतोत्कच ने अपने बाणों की बौछार से उन पत्थरों को नष्ट कर डाला। फिर दोनों ही दोनों पर नाना प्रकार के आयुधों की वर्षा करने लगे। लोहे के परिघ, शूल, गदा, मूसल, मुगदर, तलवार, तोमर प्रास, कम्पन, नाराच, भाला, बाण, चक्र, फरसा, लोहे की गोलियाँ, भिन्दीपाल, गोशीर्ष और उलूखन आदि अस्त्र_ शस्त्रों से तथा पृथ्वी से उखाड़े हुए शमी, बरगद, पाकर, पीपल और सेमर आदि बड़े_बड़े वृक्षों से वे परस्पर प्रहार करने लगे। नाना प्रकार के पर्वतों के शिखर लेकर भी वे एक_दूसरे को मारते थे। उन दोनों राक्षसों का युद्ध पूर्वकालीन बाली और सुग्रीव के युद्ध की तरह रोमांच कर रहा था। दोनों ने दौड़कर एक_दूसरे की चोटी पकड ली, फिर भुजाओं से लड़ते हुए गुत्थमगुत्थ हो गये। इसी समय घतोत्कच ने अलायुध को बलपूर्वक पकड़ लिया और बड़े वेग से घुमाकर जमीन पर दे मारा। फिर उसके कुण्डलमण्डित मस्तक को काटकर उसने भयंकर गर्जना की और उसे दुर्योधन के सामने फेंक दिया। अलायुध को मारा गया देख दुर्योधन अपनी सेना के साथ ही अत्यन्त व्याकुल हो उठा।

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