Friday 27 December 2019

घतोत्कच का पराक्रम और कर्ण की अमोघशक्ति से उसका वध

संजय कहते हैं____ महाराज ! राक्षस अलायुध का वध करके घतोत्कच मन_ही_मन बहुत प्रसन्न हुआ और आपकी सेना के सामने खड़ा हो सिंहनाद करने लगा। उसकी गर्जना सुनकर आपके योद्धाओं को बड़ा भय हुआ। इधर कर्ण पर उसके शत्रु बाण बरसाते थे और वह धैर्यपूर्वक उनके अस्त्र_ शस्त्रों का नाश करता जाता था और उसने वज्र के समान बाणों से शत्रुओं का संहार आरम्भ कर दिया। उसके सायकों से कितने ही वीरों के अंग छिन्न_ भिन्न हो गये।  किन्हीं के सारथि मारे गये और किन्हीं के घोड़े नष्ट हो गये। कर्ण के सामने किसी तरह अपना बचाव न देखकर वे योद्धा युधिष्ठिर की सेना में भाग गये। अपने योद्धाओं को कर्ण के द्वारा पराजित होकर भागते देख घतोत्कच को क्रोध हुआ और वह उत्तम रथ में बैठकर सिंह के समान दहाड़ता हुआ कर्ण का सामना करने के लिये आ पहुँचा। आते ही उसने वज्र सरीखे बाणों से कर्ण को बींध डाला। फिर दोनों ही एक दूसरे पर कर्णी, नाराच, सिलीमुख, नालीक, दण्ड, अशनि, वत्सदन्त, वाराहकर्ण, विपाट, श्रृंग तथा क्षुरप्र की वर्षा करने लगे। उनकी अस्त्रवर्षा से आकाश छा गया। महाराज ! जब कर्ण युद्ध में किसी तरह घतोत्कच से बढ़ न सका तो उसने अपना भयंकर अस्त्र प्रकट किया और उससे उसके रथ, घोड़े और सारथि को नाश कर डाला। हिडिम्बाकुमार रथहीन होते ही अन्तर्धान हो गया। उसे अदृश्य होते देख कौरव योद्धा चिल्ला_ चिल्लाकर कहने लगे____’ माया से युद्ध करनेवाला यह राक्षस जब युद्ध में स्वयं नहीं दिखायी देता तो कर्ण को कैसे नहीं मार डालेगा ?’  इतने में ही कर्ण ने सायकों के जाल से संपूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। उस समय बाणों से आकाश में अंधेरा छा गया था तो भी कोई प्राणी ऊपर से मरकर गिरा नहीं। इसके बाद हमलोगों ने अंतरिक्ष में उस राक्षस की भयंकर माया देखी। पहले वह लाल रंग के बादलों के रूप में प्रकाशित हुई, फिर जलती हुई आज के लपट के समान भयंकर दिखायी देने लगी। तत्पश्चात् उससे बिजली प्रकट हुई, उल्कापात होने लगा और हजारों दुंदुभियों के बजने के समान भयंकर आवाज होने लगी। इसके बाद बाण, शक्ति, प्रास, मूसल, फरसा, तलवार, पट्टिश, तोमर, परिघ, गदा, शूल और शताध्नियों की वृष्टि होने लगी। हजारों की संख्या में पत्थरों  की बड़ी_ बड़ी चट्टान गिरने लगीं। वज्रपात होने लगा। आग के समान प्रज्वलित चक्र गिरने लगे। कर्ण ने बाणों से उस अस्त्रवर्षा को रोकने का बड़ा प्रयत्न किया, पर उसे सफलता नहीं मिली। बाणों से आहत होकर घोड़े गिरने लगे। वज्रों की मार से हाथी धराशायी होने लगे और अन्य बहुत से अस्त्रों के प्रहार से बड़े_ बड़े महारथियों का संहार होने लगा। गिरते समय इनका महान् आर्तनाद चारों ओर फैल रहा था। घतोत्कच के छोड़े हुए नाना प्रकार के भयंकर अस्त्र_ शस्त्रों से आहत होकर दुर्योधन के सैनिक बड़ी घबराहट के साथ इधर_उधर भाग रहे थे। सब ओर हाहाकार मचा था। सभी लोग विषादमग्न और भयभीत हो गये थे। उस समय आपके पुत्र की सेना पर भयंकर मोह छा रहा था। कितने ही शूरवीरों की आँतों छितरा गयी थीं, उनके मस्तक कट गये थे और सारे अंग छिन्न_भिन्न हो रहे थे। इस दशा में वे रणभूमि में पड़े हुए थे जगह_जगह चट्टानों से कुचले हुए घोड़े और हाथी दिखायी देते थे;  रथ चकनाचूर हो गये थे।
उस समय काल का प्रेरणा से क्षत्रियों का विनाश हो रहा था। समस्त कौरव योद्धा घायल होकर भागते हुए चिल्ला_ चिल्लाकर कह रहे थे___’ कौरवों ! भागो, यह सेना नहीं है; इन्द्र आदि देवता पाण्डवों का पक्ष लेकर हमारा नाश कर रहे हैं।‘ इस प्रकार जब कौरव विपत्ति के महासागर में डूब रहे थे, उस समय सूतपुत्र कर्ण ने ही द्वीप बनकर उनकी रक्षा की। वह सारी शस्त्रवर्षा को अपनी छाती पर झेलता हुआ अकेला ही मैदान में डटा रहा। इतने में ही घतोत्कच ने कर्ण के चारों घोड़ों को लक्ष्य करके एक शतघ्नी चलायी। उसके प्रहार से घोड़ों ने धरती पर घुटने टेक दिये, उनके दाँत गिर गये, आँखें और जीभें बाहर निकल आयीं। वे भी निष्प्राण होकर गिर पड़े। घोड़ों के मर जाने पर कर्ण अपने रथ से उतर पड़ा और मन_ही_मन कुछ सोचने लगा। उस समय कौरव_योद्धा भाग रहे थे, राक्षसी माया से उसके दिव्यास्त्रों का नाश हो गया था; तो भी कर्ण घबराया नहीं। वह समयोचित कर्तव्य का विचार करने लगा। इसी समय उस भयंकर माया का प्रभाव देख समस्त कौरवों ने मिलकर कर्ण से कहा___’भाई ! अब तुम इस राक्षस का तुरंत वध करो, नहीं तो यह सभी कौरव अभी नष्ट हुए जाते हैं। भीमसेन और अर्जुन हमारा क्या कर लेंगे ? इस समय आधी रात में इस राक्षस का प्रताप बहुत बढ़ा हुआ है, अत: इसका ही नाश करो। हमलोगों में से जो इस भयंकर संग्राम से छुटकारा पा जायगा, वही सेनासहित पाण्डवों से युद्ध करेगा। इसलिये तुम इन्द्र की दी हुई शक्ति से इस भयंकर राक्षस का संहार कर डालो। कर्ण ! सभी कौरव इन्द्र के समान बलवान हैं; कहीं ऐसा न हो कि इस रात्रियुद्ध में ये सब_के_सब अपने सैनिकों सहित मारे जायँ।‘ निशीथ का समय था, राक्षस कर्ण पर निरंतर प्रहार कर रहा था, सारी सेना पर उसका आतंक छाया हुआ था; इधर कौरव वेदना से कराह कहे थे। यह सब देख_सुनकर कर्ण ने राक्षस के ऊपर शक्ति छोड़ने का विचार किया। अब उससे संग्राम में शत्रु का आघात नहीं सहा गया, उसके वध की इच्छा से कर्ण ने वह ‘वैजन्ती’ नामवाली असह्य शक्ति हाथ में ली। महाराज ! यह वही शक्ति थी, जिसे न जाने कितने वर्षों से कर्ण ने अर्जुन को मारने के लिये सुरक्षित रखा था। वह सदा उसका पूजा किया करता था। मृत्यु की  बहन अथवा लपलपाती हुई काल के जिह्वा के समान वह शक्ति कर्ण ने घतोत्कच के ऊपर चला दी। उसे देखते ही राक्षस भयभीत हो गया और विंध्याचल के समान विशाल शरीर धारण कर वहाँ से भागा।
रात्रि में प्रज्वलित हुई उस शक्ति ने राक्षस का सारी माया भष्म करके उसकी छाती में गहरी चोट की और उसे विदीर्ण करके ऊपर नक्षत्रमण्डल में समा गयी। घतोत्कच भैरवनाद करता हुआ अपने प्यारे प्राणों से हाथ धो बैठा। उस समय शक्ति के प्रहार से उसके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये थे तो भी शत्रुओं का नाश करने के लिये उसने आश्चर्यजनक रूप धारण किया। अपना शरीर पर्वत के समान बना लिया। इसके बाद वह नीचे गिरा। यद्यपि मर गया था तो भी उसने अपने पर्वताकार शरीर से कौरव_ सेना के एक भाग का संहार कर डाला। उसकी देह के नीचे एक अक्षौहिणी सेना रहकर मर गयी। इस प्रकार मरते_मरते भी उसने पाण्डवों का हितसाधन किया। माया नष्ट हुई और राक्षस मारा गया____ यह देखकर कौरव योद्धा हर्षनाद करने लगे; साथ ही शंख,भेरी, ढोल और नगाड़े भी बज उठे। कर्ण की प्रशंसा होने लगी और दुर्योधन के रथ में बैठकर उसने अपनी सेना में प्रवेश किया।

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