Saturday 28 December 2019

घतोत्कच की मृत्यु से भगवान् की प्रसन्नता तथा पाण्डवहितैषी भगवान् के द्वारा कर्ण का बुद्धिमोह

संजय कहते हैं___ घतोत्कच के मारे जाने से समस्त पाण्डव शोकमग्न हो गये। सबकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। किन्तु वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को बड़ी खुशी थी, वे आनन्द में डूब रहे थे। उन्होंने बड़े जोर से सिंहनाद किया और हर्ष से झूमकर नाचने लगे। फिर अर्जुन को गले लगाकर उनकी पीठ ठोकी और बार बार गर्जना की। भगवान् को इतना प्रसन्न जान अर्जुन बोले___’मधुसूदन ! आज आपको बेमौके इतनी खुशी क्यों हो रही है ? घतोत्कच के मारे जाने से हमारे लिये शोक का अवसर उपस्थित हुआ है, सारी सेना विमुख होकर भाग रही है। हमलोग भी बहुत घबरा गये हैं तो भी आप प्रसन्न हैं। इसका कोई छोटा_मोटा कारण नहीं हो सकता। जनार्दन !  बताइये, क्या वजह है इस प्रसन्नता की ? यदि बहुत छिपाने की बात न हो तो अवश्य बता दीजिये। मेरा धैर्य टूटा जा रहा है।भगवान् श्रीकृष्ण बोले____ धनंजय ! मेरे लिये सचमुच ही बड़े आनन्द का अवसर आया है। कारण सुनना चाहते हो ? सुनो। तुम जानते हो कर्ण ने घतोत्कच को मारा है; पर मैं कहता हूँ इन्द्र की दी हुई शक्ति को निष्फल करके ( एक प्रकार से ) घतोत्कच ने ही कर्ण को मार डाला है। अब तुम कर्ण को मरा हुआ ही समझो। संसार में कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जो कर्ण के हाथ में शक्ति रहने पर उसके सामने ठहर सकता और यदि उसके पास कवच और कुण्डल भी होते, तब तो वह देवताओंसहित तीनों लोकों को भी जीत सकता था। उस अवस्था में इन्द्र, कुबेर, वरुण अथवा यमराज भी युद्ध में उसका सामना नहीं कर सकते थे। हम और तुम सुदर्शनचक्र और गाण्डीव लेकर भी उसे जीतने में असमर्थ हो जाते।तुम्हारा ही हित करने के लिये इन्द्र ने छल से उसे कुण्डल और कवच से हीन कर दिया। उनके बदले में जबसे इन्द्र ने उसे अमोघ शक्ति दे दी थी, तबसे वह सदा तुमको मरा हुआ ही मानता था। आज यद्यपि उसका ये सारा चीजें नहीं हो रहीं तो भी तुम्हारे सिवा दूसरे किसी से वह नहीं मारा जा सकता। कर्ण ब्राह्मणों का भक्त, सत्यवादी, तपस्वी, व्रतधारी और शत्रुओं पर भी दया करनेवाला है; इसलिये वह वृष ( धर्म ) कहलाता है। संपूर्ण देवता चारों ओर से कर्ण पर बाणों की वर्षा करें और दैत्य उसपर मांस और रक्त उछालें तो भी वे उसे जीत नहीं सकते। कवच, कुण्डल तथा इन्द्र की दी हुई शक्ति से वंचित हो जाने के कारण आज कर्ण साधारण मनुष्य_ सा हो गया है; तो भी उसे मारने का एक ही उपाय है।जब उसकी कोई कमजोरी दिखायी दे, वह असावधान हो और रथ का पहिया फँस जाने से संकट में पड़ा हो, ऐसे समय में मेरे संकेत पर ध्यान देने पर सावधानी के साथ इसे मार डालना। तुम्हारे हित के लिये ही मैंने जरासन्ध_ शिशुपाल आदि को एक_एक करके मरवा डाला है तथा हिडिम्बा, किर्मीर, वक, अलायुध आदि राक्षसों को मैंने ही मरवाया है। जरासन्ध और शिशुपाल आदि यदि पहले ही नहीं मारे गये होते तो इस समय बड़े भयंकर सिद्ध होते। दुर्योधन अपनी सहायता के लिये उनसे अवश्य ही प्रार्थना करता और वे हमसे सर्वदा द्वेष रखने के कारण सर्वदा कौरवों का पक्ष लेते ही। दुर्योधन का सहारा लेकर वे संपूर्ण पृथ्वी को जीत लेते। जिन उपायों से मैंने उन्हें नष्ट किया है, उनको सुनो।एक समय की बात है___ युद्ध में रोहिणीनन्दन बलदेवजी ने जरासन्ध राजा तिरस्कार किया। इससे क्रोध में भरकर उसने हमलोगों को मारने के लिये उसने सर्वसंहारिणी गदा का प्रहार किया। उस गदा को अपने ऊपर आते देख भैया बलराम ने उसका नाश करने के लिये स्थूणाकर्ण नाम का अस्त्र प्रयोग किया। उस अस्त्र के वेग से प्रतिहत होकर वह गदा पृथ्वी पर गिर पड़ी, गिरते ही धरती में दरार पड़ गये और पर्वत हिल उठे। जिस स्थान पर गदा गिरी, वहाँ जरा नामक एक भयंकर राक्षसी रहती थी। गदा के आघात से वह अपने पुत्र और बान्धवोंसहित मारी गयी।  जरासन्ध अलग_अलग दो टुकड़ों के रूप में पैदा हुआ था; उन टुकड़ों को इसी जरा नामवाली राक्षसी ने जोड़कर जीवित किया था, इसी से इसका नाम जरासन्ध हुआ। उसके दो ही प्रधान सहारे थे___ गदा और जरा। इन दोनों से वह हीन हो गया था, इसीसेे भीमसेन तुम्हारे सामने उसका वध कर सके। इसी प्रकार तुम्हारा हित करने के लिये ही एकलव्य का अंगूठा अलग करवा दिया। चेदिराज शिशुपाल को तुम्हारे सामने ही मार डाला। उसे भी देवता तथा असुर संग्रामों में नहीं जीत सकते थे। उनका तथा अन्य देवद्रोहियों का नाश करने के लिये ही मेरा अवतार हुआ है।हिडिम्बासुर, वक और किर्मीर___ ये रावण के समान बली तथा ब्राह्मणों और यज्ञ से द्वेष रखनेवाले थे। लोक_ कल्याण के लिये ही इन्हें भीमसेन से मरवा डाला। इसी प्रकार घतोत्कच के हाथ से अलायुध का नाश कराया और कर्ण के द्वारा शक्ति प्रहार करवाकर घतोत्कच का भी काम तमाम किया। यदि इस महासमर में कर्ण अपनी शक्ति के द्वारा घतोत्कच को नहीं मार डालता तो मुझे उसका वध करना पड़ता।
इसके द्वारा तुमलोगों का प्रिय कार्य कराना था, इसीलिये मैंने पहले ही इसका वध नहीं किया। घतोत्कच ब्राह्मणों का द्वेषी और यज्ञों का नाश करनेवाला था। वह पापात्मा धर्म का लोप कर रहा था, इसी से इस प्रकार इसका विनाश करवाया है। जो धर्म का लोप करनेवाले हैं, वे सभी मेरे वध्य हैं। मैंने धर्म स्थापना के लिये प्रतिज्ञा कर ली है। जहाँ वेद, सत्य, दम्य, पवित्रता, धर्म, लज्जा, श्री, धैर्य और क्षमा का वास है, वहाँ मैं सदा ही क्रीडा किया करता हूँ। यह बात मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ। अब तुम्हें कर्ण का नाश करने के विषय में विषाद नहीं करना चाहिये। मैं वह उपाय जाऊँगा, जिससे तुम कर्ण को और भीमसेन दुर्योधन को मार सकेंगे। इस समय तो दूसरी ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। तुम्हारी सेना चारों ओर भाग रही है और कौरव_सैनिक तक_तककर मार रहे हैं।
धृतराष्ट्र ने पूछा___ संजय ! यदि कर्ण की शक्ति एक ही वीर का वध करके निष्फल हो जानेवाली थी तो उसने सबको छोड़कर अर्जुन पर ही उसका प्रहार क्यों नहीं किया ? अर्जुन के मारे जाने पर समस्त पाण्डव और सृंजय अपने_ आप नष्ट हो जाते। यदि कहो अर्जुन सूतपुत्र लड़ने नहीं आये तो उसे स्वयं ही उनकी तलाश करनी चाहिये थी। अर्जुन की तो यह प्रतिज्ञा है कि ‘ युद्ध के लिये ललकारने पर पीछे पैर नहीं हटा सकता।‘
संजय ने कहा___महाराज ! भगवान् श्रीकृष्ण की बुद्धि हमलोगों से बड़ी है। वे जानते थे कि कर्ण अपनी शक्ति से अर्जुन को मारना चाहता है। इसीलिये उन्होंने कर्ण के साथ द्वैरथ_ युद्ध में राक्षसराज घतोत्कच को नियुक्त किया। ऐसे_ऐसे अनेकों उपायों से भगवान् अर्जुन की रक्षा करते आ रहे हैं। विशेषतः कर्ण की अमोघ शक्ति से उन्होंने ही अर्जुन की रक्षा की है, नहीं तो वह अवश्य ही उनका नाश कर डालती। धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! कर्ण भी तो बड़ा बुद्धिमान है, उसने स्वयं भी अर्जुन पर अबतक उस शक्ति का प्रहार क्यों नहीं किया ? तुम भी तो बड़े समझदार हो, तुमने ही कर्ण को यह बात क्यों नहीं बुझा दी ?संजय ने कहा___ महाराज ! प्रतिदिन रात्रि में दुर्योधन, शकुनि, मैं और दुःशासन___ ये सब लोग कर्ण से प्रार्थना करते थे कि ‘भाई ! कल के युद्ध में तुम सारी सेना को छोड़कर पहले अर्जुन को ही मार डालना। फिर तो हमलोग पाण्डवों और पांचालों पर दास की भाँति शासन करेंगे। यदि ऐसा न हो तो तुम श्रीकृष्ण को ही मार डालो, क्योंकि वे ही पाण्डवों के बल हैं, वे ही रक्षक हैं और वे ही उनके सहारे हैं।
राजन् ! यदि कर्ण श्रीकृष्ण को मार डालता तो निःसंदेह आज सारी पृथ्वी उसके वश में हो जाती। उसने भी उनपर शक्ति_ प्रहार का विचार किया था; पर युद्ध में भगवान् श्रीकृष्ण के निकट जाते ही उसपर ऐसा मोह छा जाता कि यह बात भूल जाती थी। उधर से भगवान् सदा ही बड़े_ बड़े महारथियों को कर्ण से लड़ने भेजा करते थे, वे निरंतर इसी फिक्र में लगे रहते थे कि कैसे कर्ण की शक्ति को व्यर्थ कर दूँ। महाराज ! जो कर्ण से अर्जुन की इस प्रकार रक्षा करते थे, वे अपनी रक्षा क्यों नहीं करते? तीनों लोकों में कोई भी ऐसा पुरुष नहीं है, जो जनार्दन पर विजय पा सके। घतोत्कच के मारे जाने पर सात्यकि ने भी भगवान् कृष्ण से यही प्रश्न किया था कि ‘भगवन् ! जब कर्ण ने वह अमोघ शक्ति अर्जुन पर ही छोड़ने का निश्चय किया था तो अबतक उनपर छोड़ी क्यों नहीं ?’ भगवान् श्रीकृष्ण बोले___ दुर्योधन, दु:शासन, शकुनि और जयद्रथ___ ये सब मिलकर यही सलाह दिया करते थे कि ‘ कर्ण ! तुम अर्जुन के सिवा दूसरे किसी पर शक्ति का प्रयोग न करना। उनके मारे जाने पर पाण्डव और सृंजय स्वयं ही नष्ट हो जायँगे।‘ युयुधान ! कर्ण भी उनसे ऐसा ही करने की प्रतिज्ञा कर चुका था, उसके हृदय में सदा अर्जुन का वध करने का विचार रहा भी करता था, परन्तु मैं ही उसे मोह में डाल देता था। यही कारण है, जिससे उसने अर्जुन पर शक्ति का प्रहार नहीं किया। सात्यके ! वह शक्ति अर्जुन के लिये मृत्युरूप है__ यह सोच_सोचकर मुझे रात में नींद नहीं आती थी। अब वह घतोत्कच पर पड़ने से व्यर्थ हो गयी___ यह देखकर मैं ऐसा समझता हूँ कि अर्जुन मौत के मुख से छूट गये। मैं युद्ध में अर्जुन की रक्षा करना जितना आवश्यक समझता हूँ उतनी पिता, माता, तुम जैसे भाइयों और अपने प्राणों की भी रक्षा आवश्यक नहीं मानता। तीनों लोकों के राज्य की अपेक्षा भी यदि कोई दुर्लभ वस्तु हो तो उसे भी मैं अर्जुन के बिना नहीं चाहता। इसीलिये आज अर्जुन मानो मरकर जी उठे हैं, ऐसा समझकर मुझे बड़ा आनन्द हो रहा है। यही वजह है कि इस रात्रि में मैंने राक्षस को ही कर्ण से लड़ने के लिये भेजा था; उसके सिवा दूसरा कोई कर्ण को नहीं दबा सकता था। महाराज ! अर्जुन का प्रिय और हित करने में निरंतर लगे रहनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण ने सात्यकि के पूछने पर यही उत्तर दिया था।
धृतराष्ट्र ने कहा___ संजय ! इसमें कर्ण, दुर्योधन और शकुनि का तथा सबसे बढ़कर तुम्हारा अन्याय है। तुम सब लोगों को मालूम था कि वह शक्ति केवल एक वीर को मार सकती है, इन्द्र आदि देवता भी उसकी चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते। तो भी कर्ण ने उसे श्रीकृष्ण अथवा अर्जुन पर क्यों नहीं  छोड़ा ? ( तुमलोग युद्ध के समय क्यों नहीं याद दिलाते थे? ) संजय बोले___ महाराज ! हमलोग तो रोज ही रात में उसे ऐसा करने की सलाह देते थे, पर प्रात:काल होते ही दैववश कर्ण की तथा दूसरे योद्धाओं की भी बुद्धि मारी जाती थी। हाथ में शक्ति के रहते हुए भी जो उसने श्रीकृष्ण या अर्जुन को उससे नहीं मारा, इसमें मैं देव को ही प्रधान कारण समझता हूँ।

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