Sunday 12 January 2020

युधिष्ठिर का विषाद और भगवान् कृष्ण तथा व्यासजी के द्वारा उसका निवारण

धृतराष्ट्र ने पूछा___संजय ! अब आगे की बात बताओ। घतोत्कच के मारे जाने पर कौरव_ पाण्डवों में किस प्रकार युद्ध हुआ ? संजय ने कहा___ महाराज ! कर्ण के द्वारा उस राक्षस के मारे जाने पर आपके सैनिक बड़े प्रसन्न हुए। वे ऊँचे स्वर से गर्जना करने लगे और बड़े वेग से इधर_ उधर दौड़ने लगे। उधर उस घोर अंधकारमयी रजनी में पाण्डवसेना का संहार हो रहा था, इससे राजा युधिष्ठिर का मन बहुत छोटा हो गया। वे भीमसेन से बोले___ महाबाहो !धृतराष्ट्र की सेना को रोको; मैं तो घतोत्कच के मरने से बहुत घबरा गया हूँ, मुझसे कुछ नहीं हो सकता।‘ यह कहकर वे अपने रथ पर बैठ गये। आँखों से आँसू बहने लगे। उच्छवास चलने लगा। उस पल कर्ण का पराक्रम देखकर वे अत्यंत अकील हो गये। उनको इस अवस्था में देखकर भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा___’कुन्तीनन्दन ! आप खेद न कीजिये, आपके लिये यह व्याकुलता शोभा देती। यह तो अज्ञानी मनुष्यों का काम है। उठिये और युद्ध कीजिये। इस महासंग्राम का गुरुत्तर भाग संभालिये। आप ही घबरा जायेंगे तब तो विजय मिलने में संदेह ही रहेगा।‘ श्रीकृष्ण की बात सुनकर युधिष्ठिर ने आँखें पोंछते हुए कहा___’महाबाहो ! मुझे धर्म की गति मालूम है। जो मनुष्य किसी के किये हुए उपकारों को नहीं मानता, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है। जनार्दन ! घतोत्कच अभी बालक था तो भी उसने यह जानकर कि अर्जुन स्वर्गप्राप्ति के लिये तप करने गये हैं, वन में हमलोगों की बड़ी सहायता की थी। इसी प्रकार इस महासमर में भी उसने हमारे लिये बड़ा कठिन पराक्रम किया है। वह मेरा भक्त था, मुझसे प्रेम करता था तथा मेरा भी उसपर स्नेह था। इसीलिये उसकी मृत्यु से मैं शोकसंतप्त हो रहा हूँ, रह_रहकर मूर्छा_सी आ रही है। भगवन् ! देखिये, कौरव किस प्रकार अपनी सेना को खदेड़ रहे हैं। तथा महारथी द्रोण तथा कर्ण कितने सावधान दिखायी दे रहे हैं। किस तरह हर्षनाद कर रहे हैं ? जनार्दन !  आपके और हमारे जीते_जी घतोत्कच कर्ण के हाथों से क्योंकर मारा गया ?  अर्जुन के देखते_ देखते उसकी मृत्यु हुई है। वीरवर !  अब मैं स्वयं ही कर्ण को मारने के लिये जाऊँगा।‘ यों कहकर वे अपना महान् धनुष टंकारते हुए वे बड़ी उतावली के साथ चल दिये। यह देख भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा___'ये राजा युधिष्ठिर कर्ण को मारने के लिये चले जा रहे हैं। इस समय इन्हें अकेले छोड़ देना ठीक नहीं होगा।‘ यह कहकर उन्होंने बड़ी शीघ्रता के साथ घोड़ों को हाँका और दूर पहुँचे हुए राजा को पकड़ लिया। इतने में ही भगवान् व्यासजी उनके समीप प्रकट होकर बोले____'कुन्तीनन्दन ! यह बड़े सौभाग्य की बात है कि कर्ण के साथ कई बार मुठभेड़ होने पर भी अर्जुन जीवित बच गये हैं। उसने अर्जुन को ही मारने की इच्छा से इन्द्र की दी हुई शक्ति बचा रखी थी। द्वैरथ_युद्ध में उसका सामना करने के लिये अर्जुन नहीं गये___ यह बहुत अच्छा हुआ। यदि जाते तो आज कर्ण इन पर ही उस शक्ति का प्रहार करता, ऐसी दशा में तुम और भयंकर विपत्ति में फँस जाते। सूतपुत्र के हाथ से घतोत्कच का मारा जाना जाते। सूतपुत्र के हाथ से घतोत्कच का ही मारा जाना अच्छा हुआ। काल ने ही इन्द्र की शक्ति से उसका नाश किया है__ ऐसा समझकर तुम्हें क्रोध और शोक नहीं करना चाहिये। युधिष्ठिर ! सभी प्राणियों की एक दिन यही गति होती है। इसलिए तुम चिंता छोड़कर अपने सभी भाइयों के साथ ले कौरवों का सामना करो। आज के पाँचवें दिन तुम्हारा इस पृथ्वी पर अधिकार हो जायगा। सदा धर्म का ही चिंतन करते रहो। दया, तप, दान, क्षमा और सत्य आदि सद्गुणों का प्रसन्नतापूर्वक पालन करो। जिधर धर्म होता है, उसी पक्ष की विजय होती है।' यह कहकर व्यासजी वहीं पर अन्तर्धान हो गये।

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