Sunday, 23 April 2023

दोनों सेनाओं का घोर संग्राम और शकुनि का कूट_युद्ध

संजय कहते हैं_महाराज ! इस प्रकार यह घोर संग्राम चल ही रहा था कि पाण्डवों ने आपकी सेना में भगदड़ डाल दी। उस समय आपका पुत्र दुर्योधन बड़ी कोशिश से अपने सैनिकों को रोककर पाण्डव_सेना से युद्ध करने लगा। इधर, राजा युधिष्ठिर ने तीन बाणों से कृपाचार्य को बींधकर चार से कृतवर्मा के घोड़ों को मार डाला। तब कृपाचार्य को तो अश्वत्थामा ने अपने रथ पर बिठाकर अन्यत्र पहुंचा दिया; किन्तु कृपाचार्य उनका सामना करते रहे। उन्होंने युधिष्ठिर को आठ बाणों से बींध दिया। तदनन्तर, दुर्योधन ने सात सौ रथियों को राजा युधिष्ठिर का सामना करने के लिये भेजा। इन रथियों पर युधिष्ठिर ने चारों ओर से इतनी बाणवर्षा की कि वे अदृश्य हो गये। उनकी यह करतूत शिखण्डी आदि महारथियों से नहीं सही गयी। वे अपने _अपने रथों पर बैठकर युधिष्ठिर की रक्षा के लिये वहां पहुंचे। फिर कौरव तथा पाण्डव योद्धाओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया, पानी की तरह खून बहाया जाने लगा, यमलोक की आबादी बढ़ने लगी। उस समय पांचालों और पाण्डवों ने दुर्योधन के भेजे हुए उन सात सौ रथियों को मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात् पाण्डवों के साथ आपके पुत्र ने महान् युद्ध छेड़ा, वैसा पहले कभी न देखा गया और न सुना ही गया था। चारों ओर मर्यादा तोड़कर लड़ाई हो रही थी। दोनों ओर के योद्धा बेतरह मारे जा रहे थे। इस समय शकुनि ने कौरव_योद्धाओं से कहा_'वीरों ! तुमलोग सामने से युद्ध करो और मैं पीछे से पाण्डवों का संहार करता हूं।' इस सलाह के अनुसार जब हमलोग पीछे की ओर बढ़े तो मद्रदेश के योद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर किलकारियां भरने लगे। इतने में ही पाण्डव फिर हमारे सामने आये और धनुष टंकारते हुए हमलोगों पर बाण बरसाने लगे। थोड़ी ही देर में मद्रराज की सेना मारी गयी_यह देख दुर्योधन की सेना फिर पीट दिखाकर भागने लगी। तब शकुनि ने कहा_'पापियों ! तुम्हारे भागने से क्या होगा ? लौटकर युद्ध करो।' उस समय शकुनि के पास दस हजार घुड़सवारों की सेना मौजूद थी। उसी को लेकर वह पाण्डव_सेना के पिछले भाग की ओर गया और सब मिलकर बाणों की वर्षा करने लगे। इस आक्रमण से पाण्डवों की विशाल सेना का मोर्चा टूट गया, वह तितर_बितर हो गयी। राजा युधिष्ठिर ने अपनी सेना की यह अवस्था देख सहदेव से कहा_'भैया ! जरा उस मूर्ख शकुनि को तो देखो, वह पीछे की ओर से पंप अपने झ प्रहार करके पाण्डव_सेना का संहार कर रहा है। अब तुम द्रौपदी के पुत्रों को साथ लेकर जाओ और शकुनि को मार डालो। तब तक मैं पांचालों के साथ रहकर कौरवों की रथ_सेना को भस्म करता हूं। धर्मराज की आज्ञा पाकर सात सौ हाथी सवार, पांच हजार घुड़सवार, तीन हजार पैदल, द्रौपदी के पांचों पुत्र तथा महाबली सहदेव_इन सबने शकुनि पर धावा किया। इस समय पीछे की ओर से आक्रमण करके पाण्डव_सैनिकों का संहार कर रहा था। इन योद्धाओं ने पहुंचकर शकुनि की सेना के बहुत_से घुड़सवारों को मार डाला। तब शकुनि थोड़ी ही देर तक सामना कर मरने से बचे हुए छः हजार घुड़सवारों के साथ भाग गया। तदनन्तर पाण्डव_सेना भी अपने बचे हुए सवारों के साथ लौट चली। द्रौपदी के पुत्र मतवाले हाथियों की सेना लेकर धृष्टद्युम्न के पास जा पहुंचे। शेष योद्धा भी जब इधर_उधर बैठ गये तो शकुनि धृष्टद्युम्न की सेना के पार्श्व भाग में आकर बाणवर्षा करने लगा। फिर तो आपके और शत्रुओं के सैनिक प्राणों के मोह छोड़कर घोर युद्ध करने लगे। सौ_सौ, हजार_हजार योद्धा एक साथ रणभूमि में गिरने लगे। तलवारों से कटे हुए मस्तक जब धरती पर गिरते थे तो ताड़ के फलों के गिरने की_सी धमाकों की_सी आवाज होती थी। कटे हुए शरीरों, आयुधों सहित भुजाओं और जंघाओं के गिरने का घोर शब्द सुनाई पड़ता था। इस युद्ध का वेग जब कुछ कम हुआ तो थोड़े से बचे हुए घुड़सवारों के साथ शकुनि पुनः पाण्डव_सेना पर टूट पड़ा। पाण्डवों ने भी फुर्ती दिखायी और पैदल, घुड़सवार तथा हाथी सवारों को साथ लेकर उसपर धावा कर दिया। पाण्डव विजय के इच्छुक थे, उन्होंने मण्डल बनाकर शकुनि को चारों ओर से घेरे लिया और उसे बाणों से बींधना आरंभ कर दिया। यह देख आपकी सेना के घुड़सवार, हाथीसवार, रथी और पैदल भी पाण्डवों की ओर दौड़े। उस समय जिनके शस्त्र क्षीण हो गये थे, ऐसे बहुत_से पैदल योद्धा लातों और घूसों से एक_दूसरे को मारकर धराशायी होने लगे। पाण्डव योद्धाओं ने जब अधिकांश सेना का संहार कर डाला तो शकुनि शेष सात सौ घुड़सवारों को साथ ले तुरंत दुर्योधन की सेना में पहुंचा और क्षत्रियों से पूछने लगा_'राजा कहां है ? योद्धाओं ने उत्तर दिया 'जहां से यह मेघ की गर्जना के समान तुमुल आवाज आ रही है, वहीं कुराज खड़े हैं, आप शीघ्रतापूर्वक जाइये, वहीं वे मिल जायेंगे।'
उसके ऐसा कहने पर शकुनि, जहां वीरों से घिरा हुआ दुर्योधन खड़ा था, वहीं गया। रथियों के बीच में राजा दुर्योधन को देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई और वह सब सैनिकों का हर्ष बढ़ाता हुआ दुर्योधन से कहने लगा_'राजन् ! मैंने पाण्डव _पक्ष के घुड़सवारों को परास्त कर दिया, अब तुम भी इस रथ सेना का संहार कर डालो, क्योंकि प्राण त्यागे बिना युधिष्ठिर हमारे वश में नहीं आ सकते। इनके द्वारा सुरक्षित रथ सेना का नाश हो जाने पर हम हाथियों और पैदलों का भी सफाया कर डालेंगे।शकुनि की बात सुनकर आपके सैनिक पुनः पाण्डव_सेना पर टूट पड़े। सबने धनुष उठाया और तर्कों का मुंह खोल दिया। कुछ ही देर में शूरवीरों के सिंहनाद के साथ ही उनके धनुष की भयंकर टंकारें सुनायी देने लगीं।

Saturday, 15 April 2023

शाल्व का वध, सात्यकि और कृतवर्मा का युद्ध तथा दुर्योधन का पराक्रम

संजय कहते हैं_तदनन्दर म्लेच्छों का राजा शाल्व क्रोध में भरकर पाण्डव_सेना पर चढ़ आया। वह ऐरावत के समान एक पर्वताकार गजराज पर बैठा हुआ था। उसने इन्द्र_वज्र के समान अत्यंत भयंकर बाणों से पाण्डवों को बींधना आरम्भ किया। उसके बाण छोड़ने और सैनिकों को यमलोक पहुंचने में कितनी देर लगती है, इसे कौरव या पाण्डव कोई भी नहीं जान सके। म्लेच्छ राज का वह हाथी यद्यपि अकेला ही रणभूमि में विचर रहा था, तो भी पाण्डव, सृंजय और सोमक उसे हजारों की संख्या में देखते थे, सब ओर वहीं वह नजर आता था। वह शत्रुओं की सेना को चारों ओर भगाने लगा। योद्धा अत्यंत भयभीत हो जाने के कारण अब समरभूमि में ठहर नहीं सके। आपस में ही धक्के खाकर कुचले जाने लगे। हाथी के वेग को न सहने के कारण पाण्डवों की वह विशाल वाहिनी तितर_बितर हो चारों दिशाओं में भाग गयी।
यह देख आपके प्रधान_प्रधान योद्धा म्लेच्छराज की प्रशंसा करते हुए गर्जने और शंख बजाने लगे। उनका शंखनाद सेनापति धृष्टद्युम्न से नहीं सहा गया। वह बड़ी उतावली के साथ हाथी की ओर बढ़ा। उसे आते देख शाल्व ने द्रुपद पुत्र का  वध करने के लिये हाथी को उसी ओर दौड़ाया। तब धृष्टद्युम्न ने तीन भयंकर नारायणों से हाथी को बींध डाला, उसके कुम्भस्थल को लक्ष्य करके उसने पांच सौ नाराच और मारे। हाथी उन प्रहारों से घायल होकर पीछे की ओर भागा, किन्तु शाल्व ने सहसा उसे लौटाकर धृष्टद्युम्न के रथ की ओर बढ़ा दिया। नागराज को पुनः अपनी ओर आता देख धृष्टद्युम्न भय से घबरा गया और हाथ में गदा ले बड़े वेग के साथ रथ से कूद पड़ा। इतने में हाथी ने रथ के पास पहुंचकर घोड़ों और सारथि को कुचल डाला; फिर जोर_जोर से गर्जना करते हुए उसने रथ को सूंड़ से उठाकर जमीन पर पटक दिया। उस समय पांचालराजकुमार को शाल्व के हाथी से पीड़ित देख भीमसेन, शिखण्डी और सात्यकि सहसा उसके पास दौड़े आये। आते ही उन्होंने अपने बाणों से हाथी का वेग रोक दिया। उन महारथियों के द्वारा अपनी प्रगति रुक जाने से हाथी विचलित हो उठा; इसी समय राजा वाल्व ने बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उसके हाथों की मार खाकर पाण्डव रथी इधर_उधर भागने लगे। वाल्व का यह पराक्रम देख पांचालों और सृंजयों ने हाहाकार करते हुए उसके गजराज को चारों ओर से घेर लिया। तदनन्तर धृष्टद्युम्न ने बड़े वेग से धावा किया।  और उस पर्वताकार हाथी के ऊपर गदा की चोट करके उसे बहुत घायल किया। उस आघात से हाथी का कुम्भस्थल फट गया और वह चिग्घाड़ कर मुख से रक्त वमन करता हुआ धराशायी हो गया। इतने में ही सात्यकि ने एक तीक्ष्ण भल्ल से वाल्व का सिर धड़ से अलग कर दिया। तब वह म्लेच्छराज उस नागराज के साथ ही धरती पर गिर पड़ा। शाल्व के मारे जाने पर आपकी सेना का व्यूह टूट गया_सब सैनिक तितर_बितर हो गये। यह देख महारथी कृतवर्मा ने आगे बढ़कर शत्रुओं की सेना को रोक दिया। उसे रणभूमि में डटा हुआ देखकर आपके भागे हुए सैनिक भी लौट आये। उस समय प्राणों की भी परवाह न करके लौटे हुए कौरवों का पाण्डवों के साथ घोर युद्ध होने लगा। कृतवर्मा की युद्धकला आश्चर्यजनक थी। अकेला होने पर भी उसने समस्त पाण्डव_सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। कौरव हर्ष में भरकर सिंहनाद करने लगे। उनकी गर्जना सुनकर पांचाल योद्धा थर्रा उठे। इतने में महाबाहु सात्यकि वहां आ पहुंचा। आते ही उसे राजा क्षेमधूर्ति से मुठभेड़ हुई। सात्यकि ने सात बाण मारकर उन्हें तत्काल यमलोक पहुंचा दिया।
यह देख कृतवर्मा ने बड़े वेग से सात्यकि पर धावा किया। फिर दोनों महारथी एक_दूसरे से भिड़ गये। थोड़ी ही देर में उस युद्ध ने बड़ा भयंकर रूप धारण किया। अब पाण्डव और पांचाल योद्धा दूर खड़े होकर दर्शक की भांति तमाशा देखने लगे। कृतवर्मा ने चार तीखे बाणों से सात्यकि के चारों घोड़ों को बींध डाला। इससे सात्यकि को बड़ा क्रोध हुआ, उसने भी आठ सायकों से कृतवर्मा को घायल कर दिया। तब कृतवर्मा ने सात्यकि को तीन बाणों से आहत करके एक बाण से उसका धनुष काट दिया। सात्यकि ने कटे हुए धनुष को फेंककर दूसरा उठाया और कृतवर्मा के पास पहुंचकर दस बाणों से उसके सारथि तथा घोड़ों को मौत के घाट उतार दिया; फिर रथ की ध्वजा भी काट डाली। अब कृतवर्मा के क्रोध की सीमा न रही, उसने सात्यकि को मार डालने की इच्छा से उसपर शूल का प्रहार किया; किन्तु सात्यकि ने अपने तीखे बाणों से उस शूल को चकनाचूर कर दिया। कृतवर्मा हक्का_बक्का सा हो देखता रह गया।
कृतवर्मा को इस अवस्था में पड़ा देख कृपाचार्य दौड़े आये और उसे अपने रथ में बिठाकर रणभूमि से दूर हटा ले गये। सात्यकि रण में डटा रहा और कृतवर्मा रथहीन हो गया_यह देख दुर्योधन की सेना में फिर से भगदड़ पड़ी। परन्तु उस समय इतनी दूर उड़ रही थी कि कुछ दिखाई नहीं पड़ता था; इसलिये आपके सैनिकों का भागना शत्रुओं को नहीं विदित हो सका। सबके भागने पर दुर्योधन वहां डटा रहा। वह बड़े वेग से शत्रुओं पर टूट पड़ा और अकेला होने पर भी समस्त पाण्डव_योद्धाओं को उसने आगे बढ़ने से रोक दिया। यही नहीं, उसने शिखण्डी, द्रौपदी के पुत्र, केकय, सोमक तथा सृंजय_इन सब योद्धाओं को अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया। शत्रु_पक्ष का एक भी घोड़ा, हाथी, रथ या मनुष्य ऐसा नहीं था, जो दुर्योधन के बाणों से अछूता बचा हो। जैसे धूल से सारी सेना ढकी हुई थी, वैसे ही उसके बाणों से भी ढकी दिखाई देती थी। उस समय दुर्योधन ने सारी पृथ्वी को बाणमयी कर दिया था। आपके या शत्रु पक्ष के हजारों योद्धाओं में वह एक ही मर्द था। उस युद्ध में आपके पुत्र का अद्भुत पराक्रम देखा गया_समस्त पाण्डव एक साथ मिलकर भी उसे पीछे नहीं हटा सके। उसने युधिष्ठिर को सौ, भीमसेन को सत्तर, सहदेव को पांच, नकुल को चौंसठ, धृष्टद्युम्न को पांच, द्रौपदी के पुत्रों को पांच तथा सात्यकि को तीन बाणों से घायल कर दिया। साथ ही एक भल्ल मारकर उसने सहदेव के धनुष भी काट डाला। सहदेव ने वह कटा हुआ धनुष फेंक दिया और दूसरा विशाल धनुष हाथ में लेकर दुर्योधन पर धावा किया। उसने दस बाण मारकर दुर्योधन को बींध डाला। तत्पश्चात् नकुल ने नौ, सात्यकि ने एक, द्रौपदी के पुत्रों ने छिहत्तर, धर्मराज ने पांच और भीमसेन ने अस्सी बाण मारकर उसे फिर पीड़ा पहुंचायी। इस प्रकार चारों ओर से बाणों की बौछार होने पर भी दुर्योधन ने पीछे पैर नहीं हटाया। उस समय उसकी फुर्ती, उसकी सफाई तथा उसकी वीरता सब सीमातीत दिखाई पड़ती थी। इसी समय शकुनि ने युधिष्ठिर के चारों घोड़ों को मार डाला और उन्हें भी बाणों से पीड़ित किया। तब सहदेव राजा को अपने रथ पर बिठाकर रणभूमि से दूर हटा ले गया। थोड़ी ही देर में दूसरे रथ पर सवार होकर युधिष्ठिर पुनः आ पहुंचे और उन्होंने शकुनि को पहले नौ बाण मारकर फिर पांच बाणों से बींध डाला। इसके बाद वे बड़े जोर से गर्जना करने लगे। उधर उलूक चारों ओर बाण की बौछार करता हुआ नकुल पर जा चढ़ा। तब नकुल ने भी बाणों की बड़ी भारी वर्षा की और शकुनि पुत्र उलूक को चारों ओर से ढक दिया। दूसरी ओर कृपाचार्य ने क्रोध में भरकर बाणों की मार से द्रौपदी के पुत्रों को घायल कर दिया। तब वे भी कृपाचार्य को अपने सायकों से पीड़ित करने लगे। इस प्रकार उनमें विचित्र युद्ध होने लगा। उस समय हाथी हाथियों से, घोड़े घोड़ों से और रथी रथियों से भिड़ गये। पैदलों का पैदलों के साथ मुकाबला होने लगा। फिर तो बड़ा ही भयंकर और घमासान युद्ध छिड़ गया। एक_दूसरे का सामना करते हुए सभी योद्धा गरजने और शस्त्रों का प्रहार करने लगे।

Saturday, 8 April 2023

मद्रराज के अनुचरों का वध, कौरव_सेना का पलायन, भीम द्वारा इक्कीस हजार पैदलों का संहार और दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना

संजय कहते हैं _शल्य के मारे जाने पर उनके अनुयायी सात सौ रथी युधिष्ठिर से लड़ने के लिये आगे बढ़े। उस समय राजा दुर्योधन ने उन मद्रदेशीय वीरों से कहा_'इस समय पाण्डव_सेना की ओर न जाओ, न जाओ।' किन्तु उसके बारंबार मना करने पर भी वे युधिष्ठिर को मार डालने की इच्छा से उनकी सेना में घुस गये। वहां पहुंचकर उन्होंने धनुष की टंकार की और पाण्डवों के साथ युद्ध आरंभ कर दिया। उधर, अर्जुन ने सुना कि 'शल्य मारे गये और उनका प्रिय करनेवाले मद्रदेशीय महारथी धर्मराज को पीड़ित कर रहे हैं; तो वे गाण्डीव की टंकार करते हुए वहां आ पहुंचे। उस समय अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, सात्यकि, द्रौपदी के पांचों पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी तथा पांचाल और सोया योद्धा युधिष्ठिर की रक्षा करने के लिये उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। इतने में ही मद्रदेशीय योद्धा वहां चिल्लाकर कहने लगे_'अरे ! वह राजा युधिष्ठिर कहां है ? उसके शूरवीर भाई भी नहीं दिखाई देते। धृष्टद्युम्न, सात्यकि, द्रौपदी के पुत्र, शिखंडी तथा अन्यान्य पांचाल महारथी कहां हैं ?' इस तरह बकवास करनेवाले उन मद्रराज के अनुचरों को द्रौपदी के महारथी पुत्रों ने मारना आरम्भ कर दिया। उस समय दुर्योधन ने उन्हें आश्वासन देते हुए पुनः मना किया, किन्तु किसी ने उसकी आज्ञा नहीं मानी। तब शकुनि ने दुर्योधन से कहा_'भारत ! तुम्हारे रहते रहते ऐसा होना कदाचित् उचित नहीं है कि मद्रराज की सेना मारी जाय और हम खड़े_खड़े तमाशा देखते रहें। यह शपथ ली जा चुकी है कि हम सब लोग एक साथ रहकर लड़ें; ऐसी दशा में शत्रुओं को अपनी सेना का संहार करते देखकर तुम क्यों सहन किते जा रहे हो ?' दुर्योधन बोला_मैं क्या करूं ? बारंबार मना करने पर भी इन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी है, सब एक साथ पाण्डव_सेना में घुस गये हैं। शकुनि ने कहा_सग्राम में आते हुए सैनिक जब क्रोध में भर जाते हैं, तो वे स्वामी की भी आज्ञा नहीं मानते; अतः इनके ऊपर क्रोध नहीं करना चाहिये; यह इनकी उपेक्षा करने का समय नहीं है। हम सब एक साथ होकर चले हैं और यत्नपूर्वक मद्रराज के सैनिकों की रक्षा करें। शकुनि के ऐसा कहने पर राजा दुर्योधन बहुत बड़ी सेना साथ ले अपने सिंहनाद से पृथ्वी को कम्पायमान_सा करता हुआ चला। उस दल में मैं भी था। उधर पाण्डवों और मद्रराज के सैनिकों में युद्ध छिड़ा हुआ था। अभी एक मुहूर्त भी नहीं बीतने पाया था कि मद्रदेशीय योद्धा पाण्डवों से हाथापाई करके मौत के मुंह में जा पड़े। हमारे पहुंचते_पहुंचते उनका सफाया हो गया। सब ओर उनके धड़_ही_धड़ दिखाई देते थे। उस समय पाण्डव हर्ष में भरकर किलकारियां मार रहे थे। उनके मरने पर हमलोगों को वहां आते देख पाण्डव_योद्धा शंखध्वनि के साथ बाणों की सनसनाहट फैलाते हुए टूट पड़े। वे विजयोल्लास से सुशोभित हो रहे थे, उनकी मार पड़ने से दुर्योधन की सेना पुनः भयभीत होकर चारों ओर भागने लगी। राजन् ! शल्य के मारे जाने से सभी कौरव हतोत्साह हो गये थे। उस समय किसी भी योद्धा की न तो सेना इकट्ठी करने की इच्छा होती थी और न तो पराक्रम दिखाने की। भीष्म, द्रोण और कर्ण के मरने पर जैसा दु:ख और भय हुआ था, वहीं भय हमलोगों पर फिर सवार हो गया। विजय की ओर से पूर्ण निराशा हो गयी। कौरवों के प्रधान_प्रधान वीर मारे जा चुके थे; इसलिये जो शेष बचे थे वे भी तीखे बाणों से घायल होकर भागने लगे। कुछ लोग घोड़ों पर चढ़कर भागे और कुछ लोग हाथियों पर। बहुतेरे रथों में ही बैठकर रफूचक्कर हो ग्रे। बेचारे योद्धा भय क मारे बड़े मारे बड़े जोर से पलायन कर रहे थे। उन सबको उत्साह खोकर भागते देखते विजयाभिलाषी पाण्डवों और पांचालों ने दूर तक उनका पीछा किया। उन वीरों के बाणों की सनसनाहट, उनका सिंह के समान दहाड़ना और शंख बजाना बड़ा भयंकर जान पड़ता था। वह सब देख_सुनकर कौरव सैनिक थर्रा उठते थे। उन्हें इस अवस्था में देखकर पाण्डव और पांचाल योद्धा आपस में कहने लगे_'आज सत्यवादी राजा युधिष्ठिर शत्रुओं पर विजय पा गये और दुर्योधन अपनी देदीप्यमान राज्यलक्ष्मी से भ्रष्ट हो गया। आज अपने पुत्र को मरा हुआ सुनकर राजा धृतराष्ट्र अत्यंत व्याकुल हो पृथ्वी पर पचार खाकर गिरें और दु:ख भोगें। आज उनकी समझ में आ जायगा कि कुन्तीनन्दन सब धनुर्धरों में श्रेष्ठ है। अब वे जी भरकर अपनी ही निन्दा करते हुए विदुरजी के सत्य और हितकारी वचनों को याद करें। आज से वे भी दास की भांति परिचर्चा में रहकर अनुभव करें कि पाण्डवों ने कितना कष्ट उठाया था ? अब अच्छी तरह जान लें कि श्रीकृष्ण की कैसी महिमा है ? और अर्जुन के धनुष की टंकार कितनी भयंकर है ? उनके अस्त्रों तथा भुजाओं में कितना बल है ? इससे भी वे पूर्ण परिचित हो जायं। अब दुर्योधन के मारे जाने पर महात्मा भीमसेन के भयंकर बल का भी उन्हें ज्ञान हो जायगा। जिनकी ओर युद्ध करनेवाले धनंजय, सात्यकि, भीमसेन, धृष्टद्युम्न,  द्रौपदी के पांच पुत्र, नकुल_सहदेव, शिखण्डी तथा स्वयं राजा युधिष्ठिर_जैसे वीर हैं, उनकी विजय कैसे न हो ? संपूर्ण जगत् के स्वामी भगवान् श्रीकृष्ण जिनके रक्षक हैं, जिन्हें धर्म का आश्रय प्राप्त है, उनकी विजय क्यों न होगी ?' इस तरह बातें करते हुए सृंजयवीर अत्यंत हर्ष में भरकर आपके सैनिकों का पीछा कर रहे थे। इसी समय अर्जुन ने रथ सेना पर धावा किया। नकुल, सहदेव और सात्यकि ने शकुनि पर चढ़ाई की। इधर, अपने सैनिकों को भीमसेन के भय से भागते देख दुर्योधन ने सारथि से कहा_'सूत ! यह  देख, पाण्डव किस तरह मेरी सेना को खदेड़ रहे हैं ? यदि संपूर्ण सेना के पीछे मैं मौजूद रहूं, तो अर्जुन मुझे लांघकर आगे बढ़ने का साहस नहीं कर सकते। इसलिये तू मेरे घोड़ों को धीरे_धीरे हांककर सेना के पिछले भाग की रक्षा करता हुआ ले चल। मेरे रहने से जब पाण्डवों का बहाव रुक जायगा, तब भागती हुई सेना फिर लौट आयेगी।' दुर्योधन का शूरवीर के योग्य वचन सुनकर सारथि ने घोड़ों को धीरे_धीरे बढ़ाया। उस समय वहां हाथी सवार, घुड़सवार और रथियों का पता नहीं था, केवल इक्कीस हजार पैदल योद्धा प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध के लिये आकर डट गये। फिर तो हर्ष में भरे हुए उन योद्धाओं और पाण्डवों में घोर घमासान युद्ध होने लगा। उस समय भीमसेन ने चतुरंगिनी सेना साथ लेकर उन वीरों का सामना किया। वे भी भीम पर ही टूट पड़े और उन्हें चारों ओर से घेरकर बाणों का प्रहार करने लगे। उन्होंने भीमसेन को कैद कर लेने की भी कोशिश की। यह देख भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ, वे रथ से कूद पड़े और हाथ में बहुत बड़ी गदा ले पांव_प्यादे ही दण्डधारी यमराज की भांति आपके सैनिकों का संहार करने लगे। उन्होंने अपनी गदा से उन इक्कीसों हजार योद्धाओं को मार गिराया। पैदलों की वह मेरी हुई सेना बड़ी भयंकर दिखाई देती थी। इसी समय युधिष्ठिर आदि ने आपके पुत्र दुर्योधन पर धावा किया। किन्तु वे उसके पास तक न पहुंच सके। उस समय दुर्योधन ने देखा कि मेरी सेना भागने का निश्चय करके अभी थोड़ी ही दूर तक गयी है; तब उसने सैनिकों को पुकारकर कहा_'अरे ! इस तरह भागने से क्या लाभ है? अब तो शत्रुओं के पास बहुत थोड़ी सेना रह गयी है तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन भी बहुत घायल हो चुके हैं; ऐसी दशा में यदि साहस करके रण में डटे रहें, तो हमारी विजय अवश्य होगी। तुम पाण्डवों के अपराध तो कर ही चुके हो, यदि विलग_विलग होकर भागोगे, तो पाण्डव पीछा करके तुम्हें अवश्य मार डालेंगे। इस प्रकार जब मरना अवश्यंभावी है, तो युद्ध में मरने से हमलोगों का कल्याण है। जब शूरवीर और कायर, सबको ही मौत मार डालती है, तो कौन ऐसा मूर्ख है, जो क्षत्रिय कहलाकर भी युद्ध से मुंह मोड़े। संग्राम में क्षत्रिय धर्म के अनुसार लड़ते_लड़ते यदि मृत्यु भी हो जाय तो वह परिणाम में सुख देनेवाली है। युद्ध के द्वारा मृत्यु को वरन करना क्षत्रिय के लिये सनातन धर्म है। यदि वह युद्ध में जीत जाय तो वहां ही सुख भोगता है और मारा गया तो परलोक में जाकर महान् बल का भागी होता है। अतः क्षत्रिय के लिये युद्ध से उत्तम कोई मार्ग नहीं है।' दुर्योधन की बात सुनकर राजाओं ने उसकी प्रशंसा की और पुनः पाण्डवों पर धावा कर दिया। पाण्डव व्यूह बनाकर खड़े थे और प्रहार करने को पहले से ही तैयार थे। कौरव सैनिकों को आते देख वे क्रोध में भर गये और उनका सामना करने के लिये आगे बैठे। अर्जुन अपने विश्वविख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए रथ पर बैठकर आपकी सेना पर टूट पड़े। नकुल_सहदेव और सात्यकि ने शकुनि पर धावा किया। इस प्रकार वे सब लोग उत्साह में भरकर अपनी सेना की ओर दौड़े।