Saturday 15 April 2023

शाल्व का वध, सात्यकि और कृतवर्मा का युद्ध तथा दुर्योधन का पराक्रम

संजय कहते हैं_तदनन्दर म्लेच्छों का राजा शाल्व क्रोध में भरकर पाण्डव_सेना पर चढ़ आया। वह ऐरावत के समान एक पर्वताकार गजराज पर बैठा हुआ था। उसने इन्द्र_वज्र के समान अत्यंत भयंकर बाणों से पाण्डवों को बींधना आरम्भ किया। उसके बाण छोड़ने और सैनिकों को यमलोक पहुंचने में कितनी देर लगती है, इसे कौरव या पाण्डव कोई भी नहीं जान सके। म्लेच्छ राज का वह हाथी यद्यपि अकेला ही रणभूमि में विचर रहा था, तो भी पाण्डव, सृंजय और सोमक उसे हजारों की संख्या में देखते थे, सब ओर वहीं वह नजर आता था। वह शत्रुओं की सेना को चारों ओर भगाने लगा। योद्धा अत्यंत भयभीत हो जाने के कारण अब समरभूमि में ठहर नहीं सके। आपस में ही धक्के खाकर कुचले जाने लगे। हाथी के वेग को न सहने के कारण पाण्डवों की वह विशाल वाहिनी तितर_बितर हो चारों दिशाओं में भाग गयी।
यह देख आपके प्रधान_प्रधान योद्धा म्लेच्छराज की प्रशंसा करते हुए गर्जने और शंख बजाने लगे। उनका शंखनाद सेनापति धृष्टद्युम्न से नहीं सहा गया। वह बड़ी उतावली के साथ हाथी की ओर बढ़ा। उसे आते देख शाल्व ने द्रुपद पुत्र का  वध करने के लिये हाथी को उसी ओर दौड़ाया। तब धृष्टद्युम्न ने तीन भयंकर नारायणों से हाथी को बींध डाला, उसके कुम्भस्थल को लक्ष्य करके उसने पांच सौ नाराच और मारे। हाथी उन प्रहारों से घायल होकर पीछे की ओर भागा, किन्तु शाल्व ने सहसा उसे लौटाकर धृष्टद्युम्न के रथ की ओर बढ़ा दिया। नागराज को पुनः अपनी ओर आता देख धृष्टद्युम्न भय से घबरा गया और हाथ में गदा ले बड़े वेग के साथ रथ से कूद पड़ा। इतने में हाथी ने रथ के पास पहुंचकर घोड़ों और सारथि को कुचल डाला; फिर जोर_जोर से गर्जना करते हुए उसने रथ को सूंड़ से उठाकर जमीन पर पटक दिया। उस समय पांचालराजकुमार को शाल्व के हाथी से पीड़ित देख भीमसेन, शिखण्डी और सात्यकि सहसा उसके पास दौड़े आये। आते ही उन्होंने अपने बाणों से हाथी का वेग रोक दिया। उन महारथियों के द्वारा अपनी प्रगति रुक जाने से हाथी विचलित हो उठा; इसी समय राजा वाल्व ने बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उसके हाथों की मार खाकर पाण्डव रथी इधर_उधर भागने लगे। वाल्व का यह पराक्रम देख पांचालों और सृंजयों ने हाहाकार करते हुए उसके गजराज को चारों ओर से घेर लिया। तदनन्तर धृष्टद्युम्न ने बड़े वेग से धावा किया।  और उस पर्वताकार हाथी के ऊपर गदा की चोट करके उसे बहुत घायल किया। उस आघात से हाथी का कुम्भस्थल फट गया और वह चिग्घाड़ कर मुख से रक्त वमन करता हुआ धराशायी हो गया। इतने में ही सात्यकि ने एक तीक्ष्ण भल्ल से वाल्व का सिर धड़ से अलग कर दिया। तब वह म्लेच्छराज उस नागराज के साथ ही धरती पर गिर पड़ा। शाल्व के मारे जाने पर आपकी सेना का व्यूह टूट गया_सब सैनिक तितर_बितर हो गये। यह देख महारथी कृतवर्मा ने आगे बढ़कर शत्रुओं की सेना को रोक दिया। उसे रणभूमि में डटा हुआ देखकर आपके भागे हुए सैनिक भी लौट आये। उस समय प्राणों की भी परवाह न करके लौटे हुए कौरवों का पाण्डवों के साथ घोर युद्ध होने लगा। कृतवर्मा की युद्धकला आश्चर्यजनक थी। अकेला होने पर भी उसने समस्त पाण्डव_सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। कौरव हर्ष में भरकर सिंहनाद करने लगे। उनकी गर्जना सुनकर पांचाल योद्धा थर्रा उठे। इतने में महाबाहु सात्यकि वहां आ पहुंचा। आते ही उसे राजा क्षेमधूर्ति से मुठभेड़ हुई। सात्यकि ने सात बाण मारकर उन्हें तत्काल यमलोक पहुंचा दिया।
यह देख कृतवर्मा ने बड़े वेग से सात्यकि पर धावा किया। फिर दोनों महारथी एक_दूसरे से भिड़ गये। थोड़ी ही देर में उस युद्ध ने बड़ा भयंकर रूप धारण किया। अब पाण्डव और पांचाल योद्धा दूर खड़े होकर दर्शक की भांति तमाशा देखने लगे। कृतवर्मा ने चार तीखे बाणों से सात्यकि के चारों घोड़ों को बींध डाला। इससे सात्यकि को बड़ा क्रोध हुआ, उसने भी आठ सायकों से कृतवर्मा को घायल कर दिया। तब कृतवर्मा ने सात्यकि को तीन बाणों से आहत करके एक बाण से उसका धनुष काट दिया। सात्यकि ने कटे हुए धनुष को फेंककर दूसरा उठाया और कृतवर्मा के पास पहुंचकर दस बाणों से उसके सारथि तथा घोड़ों को मौत के घाट उतार दिया; फिर रथ की ध्वजा भी काट डाली। अब कृतवर्मा के क्रोध की सीमा न रही, उसने सात्यकि को मार डालने की इच्छा से उसपर शूल का प्रहार किया; किन्तु सात्यकि ने अपने तीखे बाणों से उस शूल को चकनाचूर कर दिया। कृतवर्मा हक्का_बक्का सा हो देखता रह गया।
कृतवर्मा को इस अवस्था में पड़ा देख कृपाचार्य दौड़े आये और उसे अपने रथ में बिठाकर रणभूमि से दूर हटा ले गये। सात्यकि रण में डटा रहा और कृतवर्मा रथहीन हो गया_यह देख दुर्योधन की सेना में फिर से भगदड़ पड़ी। परन्तु उस समय इतनी दूर उड़ रही थी कि कुछ दिखाई नहीं पड़ता था; इसलिये आपके सैनिकों का भागना शत्रुओं को नहीं विदित हो सका। सबके भागने पर दुर्योधन वहां डटा रहा। वह बड़े वेग से शत्रुओं पर टूट पड़ा और अकेला होने पर भी समस्त पाण्डव_योद्धाओं को उसने आगे बढ़ने से रोक दिया। यही नहीं, उसने शिखण्डी, द्रौपदी के पुत्र, केकय, सोमक तथा सृंजय_इन सब योद्धाओं को अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया। शत्रु_पक्ष का एक भी घोड़ा, हाथी, रथ या मनुष्य ऐसा नहीं था, जो दुर्योधन के बाणों से अछूता बचा हो। जैसे धूल से सारी सेना ढकी हुई थी, वैसे ही उसके बाणों से भी ढकी दिखाई देती थी। उस समय दुर्योधन ने सारी पृथ्वी को बाणमयी कर दिया था। आपके या शत्रु पक्ष के हजारों योद्धाओं में वह एक ही मर्द था। उस युद्ध में आपके पुत्र का अद्भुत पराक्रम देखा गया_समस्त पाण्डव एक साथ मिलकर भी उसे पीछे नहीं हटा सके। उसने युधिष्ठिर को सौ, भीमसेन को सत्तर, सहदेव को पांच, नकुल को चौंसठ, धृष्टद्युम्न को पांच, द्रौपदी के पुत्रों को पांच तथा सात्यकि को तीन बाणों से घायल कर दिया। साथ ही एक भल्ल मारकर उसने सहदेव के धनुष भी काट डाला। सहदेव ने वह कटा हुआ धनुष फेंक दिया और दूसरा विशाल धनुष हाथ में लेकर दुर्योधन पर धावा किया। उसने दस बाण मारकर दुर्योधन को बींध डाला। तत्पश्चात् नकुल ने नौ, सात्यकि ने एक, द्रौपदी के पुत्रों ने छिहत्तर, धर्मराज ने पांच और भीमसेन ने अस्सी बाण मारकर उसे फिर पीड़ा पहुंचायी। इस प्रकार चारों ओर से बाणों की बौछार होने पर भी दुर्योधन ने पीछे पैर नहीं हटाया। उस समय उसकी फुर्ती, उसकी सफाई तथा उसकी वीरता सब सीमातीत दिखाई पड़ती थी। इसी समय शकुनि ने युधिष्ठिर के चारों घोड़ों को मार डाला और उन्हें भी बाणों से पीड़ित किया। तब सहदेव राजा को अपने रथ पर बिठाकर रणभूमि से दूर हटा ले गया। थोड़ी ही देर में दूसरे रथ पर सवार होकर युधिष्ठिर पुनः आ पहुंचे और उन्होंने शकुनि को पहले नौ बाण मारकर फिर पांच बाणों से बींध डाला। इसके बाद वे बड़े जोर से गर्जना करने लगे। उधर उलूक चारों ओर बाण की बौछार करता हुआ नकुल पर जा चढ़ा। तब नकुल ने भी बाणों की बड़ी भारी वर्षा की और शकुनि पुत्र उलूक को चारों ओर से ढक दिया। दूसरी ओर कृपाचार्य ने क्रोध में भरकर बाणों की मार से द्रौपदी के पुत्रों को घायल कर दिया। तब वे भी कृपाचार्य को अपने सायकों से पीड़ित करने लगे। इस प्रकार उनमें विचित्र युद्ध होने लगा। उस समय हाथी हाथियों से, घोड़े घोड़ों से और रथी रथियों से भिड़ गये। पैदलों का पैदलों के साथ मुकाबला होने लगा। फिर तो बड़ा ही भयंकर और घमासान युद्ध छिड़ गया। एक_दूसरे का सामना करते हुए सभी योद्धा गरजने और शस्त्रों का प्रहार करने लगे।

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