Saturday 8 April 2023

मद्रराज के अनुचरों का वध, कौरव_सेना का पलायन, भीम द्वारा इक्कीस हजार पैदलों का संहार और दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना

संजय कहते हैं _शल्य के मारे जाने पर उनके अनुयायी सात सौ रथी युधिष्ठिर से लड़ने के लिये आगे बढ़े। उस समय राजा दुर्योधन ने उन मद्रदेशीय वीरों से कहा_'इस समय पाण्डव_सेना की ओर न जाओ, न जाओ।' किन्तु उसके बारंबार मना करने पर भी वे युधिष्ठिर को मार डालने की इच्छा से उनकी सेना में घुस गये। वहां पहुंचकर उन्होंने धनुष की टंकार की और पाण्डवों के साथ युद्ध आरंभ कर दिया। उधर, अर्जुन ने सुना कि 'शल्य मारे गये और उनका प्रिय करनेवाले मद्रदेशीय महारथी धर्मराज को पीड़ित कर रहे हैं; तो वे गाण्डीव की टंकार करते हुए वहां आ पहुंचे। उस समय अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, सात्यकि, द्रौपदी के पांचों पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखंडी तथा पांचाल और सोया योद्धा युधिष्ठिर की रक्षा करने के लिये उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। इतने में ही मद्रदेशीय योद्धा वहां चिल्लाकर कहने लगे_'अरे ! वह राजा युधिष्ठिर कहां है ? उसके शूरवीर भाई भी नहीं दिखाई देते। धृष्टद्युम्न, सात्यकि, द्रौपदी के पुत्र, शिखंडी तथा अन्यान्य पांचाल महारथी कहां हैं ?' इस तरह बकवास करनेवाले उन मद्रराज के अनुचरों को द्रौपदी के महारथी पुत्रों ने मारना आरम्भ कर दिया। उस समय दुर्योधन ने उन्हें आश्वासन देते हुए पुनः मना किया, किन्तु किसी ने उसकी आज्ञा नहीं मानी। तब शकुनि ने दुर्योधन से कहा_'भारत ! तुम्हारे रहते रहते ऐसा होना कदाचित् उचित नहीं है कि मद्रराज की सेना मारी जाय और हम खड़े_खड़े तमाशा देखते रहें। यह शपथ ली जा चुकी है कि हम सब लोग एक साथ रहकर लड़ें; ऐसी दशा में शत्रुओं को अपनी सेना का संहार करते देखकर तुम क्यों सहन किते जा रहे हो ?' दुर्योधन बोला_मैं क्या करूं ? बारंबार मना करने पर भी इन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी है, सब एक साथ पाण्डव_सेना में घुस गये हैं। शकुनि ने कहा_सग्राम में आते हुए सैनिक जब क्रोध में भर जाते हैं, तो वे स्वामी की भी आज्ञा नहीं मानते; अतः इनके ऊपर क्रोध नहीं करना चाहिये; यह इनकी उपेक्षा करने का समय नहीं है। हम सब एक साथ होकर चले हैं और यत्नपूर्वक मद्रराज के सैनिकों की रक्षा करें। शकुनि के ऐसा कहने पर राजा दुर्योधन बहुत बड़ी सेना साथ ले अपने सिंहनाद से पृथ्वी को कम्पायमान_सा करता हुआ चला। उस दल में मैं भी था। उधर पाण्डवों और मद्रराज के सैनिकों में युद्ध छिड़ा हुआ था। अभी एक मुहूर्त भी नहीं बीतने पाया था कि मद्रदेशीय योद्धा पाण्डवों से हाथापाई करके मौत के मुंह में जा पड़े। हमारे पहुंचते_पहुंचते उनका सफाया हो गया। सब ओर उनके धड़_ही_धड़ दिखाई देते थे। उस समय पाण्डव हर्ष में भरकर किलकारियां मार रहे थे। उनके मरने पर हमलोगों को वहां आते देख पाण्डव_योद्धा शंखध्वनि के साथ बाणों की सनसनाहट फैलाते हुए टूट पड़े। वे विजयोल्लास से सुशोभित हो रहे थे, उनकी मार पड़ने से दुर्योधन की सेना पुनः भयभीत होकर चारों ओर भागने लगी। राजन् ! शल्य के मारे जाने से सभी कौरव हतोत्साह हो गये थे। उस समय किसी भी योद्धा की न तो सेना इकट्ठी करने की इच्छा होती थी और न तो पराक्रम दिखाने की। भीष्म, द्रोण और कर्ण के मरने पर जैसा दु:ख और भय हुआ था, वहीं भय हमलोगों पर फिर सवार हो गया। विजय की ओर से पूर्ण निराशा हो गयी। कौरवों के प्रधान_प्रधान वीर मारे जा चुके थे; इसलिये जो शेष बचे थे वे भी तीखे बाणों से घायल होकर भागने लगे। कुछ लोग घोड़ों पर चढ़कर भागे और कुछ लोग हाथियों पर। बहुतेरे रथों में ही बैठकर रफूचक्कर हो ग्रे। बेचारे योद्धा भय क मारे बड़े मारे बड़े जोर से पलायन कर रहे थे। उन सबको उत्साह खोकर भागते देखते विजयाभिलाषी पाण्डवों और पांचालों ने दूर तक उनका पीछा किया। उन वीरों के बाणों की सनसनाहट, उनका सिंह के समान दहाड़ना और शंख बजाना बड़ा भयंकर जान पड़ता था। वह सब देख_सुनकर कौरव सैनिक थर्रा उठते थे। उन्हें इस अवस्था में देखकर पाण्डव और पांचाल योद्धा आपस में कहने लगे_'आज सत्यवादी राजा युधिष्ठिर शत्रुओं पर विजय पा गये और दुर्योधन अपनी देदीप्यमान राज्यलक्ष्मी से भ्रष्ट हो गया। आज अपने पुत्र को मरा हुआ सुनकर राजा धृतराष्ट्र अत्यंत व्याकुल हो पृथ्वी पर पचार खाकर गिरें और दु:ख भोगें। आज उनकी समझ में आ जायगा कि कुन्तीनन्दन सब धनुर्धरों में श्रेष्ठ है। अब वे जी भरकर अपनी ही निन्दा करते हुए विदुरजी के सत्य और हितकारी वचनों को याद करें। आज से वे भी दास की भांति परिचर्चा में रहकर अनुभव करें कि पाण्डवों ने कितना कष्ट उठाया था ? अब अच्छी तरह जान लें कि श्रीकृष्ण की कैसी महिमा है ? और अर्जुन के धनुष की टंकार कितनी भयंकर है ? उनके अस्त्रों तथा भुजाओं में कितना बल है ? इससे भी वे पूर्ण परिचित हो जायं। अब दुर्योधन के मारे जाने पर महात्मा भीमसेन के भयंकर बल का भी उन्हें ज्ञान हो जायगा। जिनकी ओर युद्ध करनेवाले धनंजय, सात्यकि, भीमसेन, धृष्टद्युम्न,  द्रौपदी के पांच पुत्र, नकुल_सहदेव, शिखण्डी तथा स्वयं राजा युधिष्ठिर_जैसे वीर हैं, उनकी विजय कैसे न हो ? संपूर्ण जगत् के स्वामी भगवान् श्रीकृष्ण जिनके रक्षक हैं, जिन्हें धर्म का आश्रय प्राप्त है, उनकी विजय क्यों न होगी ?' इस तरह बातें करते हुए सृंजयवीर अत्यंत हर्ष में भरकर आपके सैनिकों का पीछा कर रहे थे। इसी समय अर्जुन ने रथ सेना पर धावा किया। नकुल, सहदेव और सात्यकि ने शकुनि पर चढ़ाई की। इधर, अपने सैनिकों को भीमसेन के भय से भागते देख दुर्योधन ने सारथि से कहा_'सूत ! यह  देख, पाण्डव किस तरह मेरी सेना को खदेड़ रहे हैं ? यदि संपूर्ण सेना के पीछे मैं मौजूद रहूं, तो अर्जुन मुझे लांघकर आगे बढ़ने का साहस नहीं कर सकते। इसलिये तू मेरे घोड़ों को धीरे_धीरे हांककर सेना के पिछले भाग की रक्षा करता हुआ ले चल। मेरे रहने से जब पाण्डवों का बहाव रुक जायगा, तब भागती हुई सेना फिर लौट आयेगी।' दुर्योधन का शूरवीर के योग्य वचन सुनकर सारथि ने घोड़ों को धीरे_धीरे बढ़ाया। उस समय वहां हाथी सवार, घुड़सवार और रथियों का पता नहीं था, केवल इक्कीस हजार पैदल योद्धा प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध के लिये आकर डट गये। फिर तो हर्ष में भरे हुए उन योद्धाओं और पाण्डवों में घोर घमासान युद्ध होने लगा। उस समय भीमसेन ने चतुरंगिनी सेना साथ लेकर उन वीरों का सामना किया। वे भी भीम पर ही टूट पड़े और उन्हें चारों ओर से घेरकर बाणों का प्रहार करने लगे। उन्होंने भीमसेन को कैद कर लेने की भी कोशिश की। यह देख भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ, वे रथ से कूद पड़े और हाथ में बहुत बड़ी गदा ले पांव_प्यादे ही दण्डधारी यमराज की भांति आपके सैनिकों का संहार करने लगे। उन्होंने अपनी गदा से उन इक्कीसों हजार योद्धाओं को मार गिराया। पैदलों की वह मेरी हुई सेना बड़ी भयंकर दिखाई देती थी। इसी समय युधिष्ठिर आदि ने आपके पुत्र दुर्योधन पर धावा किया। किन्तु वे उसके पास तक न पहुंच सके। उस समय दुर्योधन ने देखा कि मेरी सेना भागने का निश्चय करके अभी थोड़ी ही दूर तक गयी है; तब उसने सैनिकों को पुकारकर कहा_'अरे ! इस तरह भागने से क्या लाभ है? अब तो शत्रुओं के पास बहुत थोड़ी सेना रह गयी है तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन भी बहुत घायल हो चुके हैं; ऐसी दशा में यदि साहस करके रण में डटे रहें, तो हमारी विजय अवश्य होगी। तुम पाण्डवों के अपराध तो कर ही चुके हो, यदि विलग_विलग होकर भागोगे, तो पाण्डव पीछा करके तुम्हें अवश्य मार डालेंगे। इस प्रकार जब मरना अवश्यंभावी है, तो युद्ध में मरने से हमलोगों का कल्याण है। जब शूरवीर और कायर, सबको ही मौत मार डालती है, तो कौन ऐसा मूर्ख है, जो क्षत्रिय कहलाकर भी युद्ध से मुंह मोड़े। संग्राम में क्षत्रिय धर्म के अनुसार लड़ते_लड़ते यदि मृत्यु भी हो जाय तो वह परिणाम में सुख देनेवाली है। युद्ध के द्वारा मृत्यु को वरन करना क्षत्रिय के लिये सनातन धर्म है। यदि वह युद्ध में जीत जाय तो वहां ही सुख भोगता है और मारा गया तो परलोक में जाकर महान् बल का भागी होता है। अतः क्षत्रिय के लिये युद्ध से उत्तम कोई मार्ग नहीं है।' दुर्योधन की बात सुनकर राजाओं ने उसकी प्रशंसा की और पुनः पाण्डवों पर धावा कर दिया। पाण्डव व्यूह बनाकर खड़े थे और प्रहार करने को पहले से ही तैयार थे। कौरव सैनिकों को आते देख वे क्रोध में भर गये और उनका सामना करने के लिये आगे बैठे। अर्जुन अपने विश्वविख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए रथ पर बैठकर आपकी सेना पर टूट पड़े। नकुल_सहदेव और सात्यकि ने शकुनि पर धावा किया। इस प्रकार वे सब लोग उत्साह में भरकर अपनी सेना की ओर दौड़े।

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