Tuesday 28 March 2023

शल्य का वध

संजय कहते हैं_तदनन्तर, महाराज शल्य मेघ के समान बाणों की वर्षा करने लगे। वे सात्यकि को दस, भीमसेन को तीन तथा सहदेव को भी तीन बाणों से घायल करके युधिष्ठिर को पीड़ित करने लगे। शल्य ने धर्मराज की छाती में सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी बाण का प्रहार किया। तब युधिष्ठिर ने भी सावधानी के साथ बाण मारकर मद्रराज को बींध डाला। उसकी चोट खाकर वे मूर्छित हो गये। फिर थोड़ी ही देर बाद जब उन्हें चेत हुआ तो उन्होंने युधिष्ठिर को सौ बाण मारे। अब युधिष्ठिर ने भी नौ सायकों से शल्य की छाती छेद डाली और छः बाण मारकर उनका कवच भी काट दिया। यह देख महाराज शल्य ने दो सायकों से युधिष्ठिर के धनुष के दो टुकड़े कर दिये। तब युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और शल्य को सब ओर से बींध डाला। शल्य ने नौ बाण मारकर युधिष्ठिर और भीमसेन के कवच काट दिये और उनकी भुजाओं को भी विदीर्ण कर डाला फिर शल्य ने एक क्षुराकार बाण से युधिष्ठिर का धनुष काट डाला और कृपाचार्य ने उनके सारथि को यमलोक भेज दिया। इतना ही नहीं, शल्य ने उनके चारों घोड़ों को भी मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात् उन्होंने युधिष्ठिर के सैनिकों का संहार आरम्भ किया। राजा युधिष्ठिर की ऐसी अवस्था देख भीमसेन ने बड़े वेग से बाण मारकर शल्य का धनुष काट डाला और दो सायकों से स्वयं उन्हें भी विशेष चोट पहुंचायी। फिर एक बाण से उनके सारथि का सिर अलग करके चारों घोड़ों को भी यमलोक पहुंचा दिया। उस समय मद्रराज शल्य हाथ में ढ़ाल_तलवार लिये रथ से कूद पड़े और नकुल के रथ की ईषा ( हरसा ) काटकर राजा युधिष्ठिर की ओर दौड़े। राजा शल्य को युधिष्ठिर के ऊपर धावा करते देख धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पुत्र, शिखंडी तथा सात्यकि सहसा उनपर टूट पड़े। तदनन्तर, भीमसेन ने नौ बाणों से शल्य की ढाल के टुकड़े_टुकड़े कर दिये और एक भल्ल मारकर उनकी तलवार भी काट डाली। फिर अत्यंत हर्ष में भरकर आपकी सेना में विचरते हुए वे जोर_जोर से सिंहनाद करने लगे। उनकी भयंकर गर्जना सुनकर खून से लथपथ हुई आपकी सेना मूर्छित_सी हो गयी, उसे दिशाओं का भी ज्ञान न रहा। तत्पश्चात् शल्य युधिष्ठिर की ओर बढ़े और तत्पश्चात् शल्य युधिष्ठिर की ओर बढ़े और युधिष्ठिर शल्य की ओर। युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के कथनानुसार मन_ही_मन शल्य का वध का निश्चय किया और रत्नजड़ित सुवर्णमय दण्डधारी एक शक्ति हाथ में ली। फिर क्रोध से जलती हुई आंखें उठाकर उसने मद्रराज की ओर देखा। उस समय मद्रराज शल्य धर्मराज की दृष्टि पड़ने से भस्म नहीं हो गये_यही सबसे बड़े आश्चर्य की बात मालूम हुई। तदनन्तर, युधिष्ठिर ने उस दमकती हुई भयंकर शक्ति को मद्रराज के ऊपर बड़े वेग से चलाया; जोर से फेंकने के कारण उससे आग की चिंनगारियां छूटने लगीं। पाण्डवों ने चन्दन, माला और उत्तम आसन आदि के द्वारा सदा ही उस शक्ति की पूजा की थी, वह प्रलयकालीन अग्नि के समान प्रज्वलित तथा अथर्वा अंगिरा द्वारा उत्पन्न हुई कृत्या के समान भयंकर थी। उसमें जलचर, थलचर और नभचर जीवों को भी नष्ट करने की शक्ति थी। विश्वकर्मा ने ब्रह्मचरादि नियमों का पालन करके उसका निर्माण किया था, वह ब्रह्मद्रोहियों का विरोध करनेवाली और लक्ष्यभेदन में अचूक थी। बल और प्रयत्न के द्वारा उसका वेग बहुत बढ़ गया था। युधिष्ठिर ने उसे भयंकर मंत्रों से अभिमंत्रित करके यत्न के साथ अपने शत्रु मद्रराज पर छोड़ा था। एक तो वह पूरा बल लगाकर छोड़ी गरी थी, दूसरे उसकी शक्ति को रोकना किसी के लिये भी असम्भव था, तो भी उसकी चोट सहने के लिये मद्रराज शल्य गरज उठे। किन्तु वह शक्ति उनकी छाती छेद थी हुई शरीर के मर्मस्थानों को विदीर्ण कर पृथ्वी में समा गई और राजा का विशाल यश भी अपने साथ ही लेती गयीउनका सारा अंग छिन्न_भिन्न हो गया और वे लोहूलुहान होकर पृथ्वी का आलिंगन करते हुए_से गिर पड़े।युधिष्ठिर शल्य की ओर। युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के कथनानुसार मन_ही_मन शल्य का वध का निश्चय किया और रत्नजड़ित सुवर्णमय दण्डधारी एक शक्ति हाथ में ली। फिर क्रोध से जलती हुई आंखें उठाकर उसने मद्रराज की ओर देखा। उस समय मद्रराज शल्य धर्मराज की दृष्टि पड़ने से भस्म नहीं हो गये_यही सबसे बड़े आश्चर्य की बात मालूम हुई। तदनन्तर, युधिष्ठिर ने उस दमकती हुई भयंकर शक्ति को मद्रराज के ऊपर बड़े वेग से चलाया; जोर से फेंकने के कारण उससे आग की चिंनगारियां छूटने लगीं। पाण्डवों ने चन्दन, माला और उत्तम आसन आदि के द्वारा सदा ही उस शक्ति की पूजा की थी, वह प्रलयकालीन अग्नि के समान प्रज्वलित तथा अथर्वा अंगिरा द्वारा उत्पन्न हुई कृत्या के समान भयंकर थी। उसमें जलचर, थलचर और नभचर जीवों को भी नष्ट करने की शक्ति थी। विश्वकर्मा ने ब्रह्मचरादि नियमों का पालन करके उसका निर्माण किया था, वह ब्रह्मद्रोहियों का विरोध करनेवाली और लक्ष्यभेदन में अचूक थी। बल और प्रयत्न के द्वारा उसका वेग बहुत बढ़ गया था। युधिष्ठिर ने उसे भयंकर मंत्रों से अभिमंत्रित करके यत्न के साथ अपने शत्रु मद्रराज पर छोड़ा था। एक तो वह पूरा बल लगाकर छोड़ी गरी थी, दूसरे उसकी शक्ति को रोकना किसी के लिये भी असम्भव था, तो भी उसकी चोट सहने के लिये मद्रराज शल्य गरज उठे। किन्तु वह शक्ति उनकी छाती छेद थी हुई शरीर के मर्मस्थानों को विदीर्ण कर पृथ्वी में समा गई और राजा का विशाल यश भी अपने साथ ही लेती गयीउनका सारा अंग छिन्न_भिन्न हो गया और वे लोहूलुहान होकर पृथ्वी का आलिंगन करते हुए_से गिर पड़े।तदनन्तर, राजा युधिष्ठिर ने धनुष उठाया और तेज किते हुए भल्लों से एक ही क्षण में बहुत_से शत्रुओं का नाश कर डाला। उनके बाणों से आच्छादित होने के कारण आपके सैनिकों ने आंखें मीच लीं और आपस में ही एक_दूसरे को घायल करके वे बहुत कष्ट पाने लगे। उस समय उनके शरीरों से खून की धाराएं बह रही थीं और वे अपने अस्त्र_शस्त्र खोकर जीवन से हाथ धो रहे थे। मद्रराज का एक छोटा भाई था, जो अभी नवयुवक था, वह सभी गुणों में अपने भाई की बराबरी करता था। शल्य के मारे जाने पर वह पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर पर चढ़ आया और बड़ी शीघ्रता के साथ नाराचों का निशाना बनाने लगा। तब धर्मराज ने उसे छः बाणों से बींध डाला और दो क्षुराकार सायकों से उसके धनुष तथा ध्वजा को भी काट गिराया। फिर एक तेज किये हुए भल्ल के द्वारा उन्होंने उसका मस्तक काट लिया। तब खून से रंगा हुआ उसका धड़ रथ से नीचे गिर पड़ा। यह देखकर कौरव_सेना में भगदड़ पड़ गयी। उस समय सात्यकि भागते हुए कौरवों पर बाण बरसाने लगा, किन्तु कृतवर्मा ने वहां पहुंचकर उसे आगे बढ़ने से रोक लिया। अब वे ही दोनों एक_दूसरे पर बाणों की बौछार करने लगे। कृतवर्मा ने दस बाणों से सात्यकि को और तीन से उसके घोड़ों को घायल कर दिया; फिर एक बाण मारकर उसके धनुष को काट डाला। सात्यकि ने उसे फेंककर दूसरा धनुष उठाया और कृतवर्मा की छाती में दब बाण मारे; फिर अनेकों भल्लों के प्रहार से उसके रथ और जूए की ईषा को काट डाला। यही नहीं, उसके घोड़ों, पार्श्व रक्षकों तथा सारथि को भी मौत के घाट उतार दिया। कृतवर्मा को रथहीन देख कृपाचार्य ने उसे अपने रथ पर बिठा लिया और दूर हटा लें गये। अब दुर्योधन की सेना फिर भागने लगी। पाण्डवों को वेग से आते  और अपनी सेना को भागते देख दुर्योधन ने अकेले ही समस्त पाण्डवों को रोका। वह रथ पर बैठे हुए पाण्डुपुत्रोंपर, धृष्टद्युम्न पर और अनर्थ देश के राजा पर बाणों की वर्षा करने लगा। जैसे मरणधर्मा मनुष्य अपनी मौत को नहीं टाल सकते, उसी प्रकार ये पाण्डव महारथी दुर्योधन को नहीं लांघ सके। इसी बीच में कृतवर्मा भी दूसरे रथ पर बैठकर वहां आ पहुंचा। तब युधिष्ठिर ने चार बाणों से कृतवर्मा के चारों घोड़ों को यमलोक पहुंचा दिया और तेज किये हुए छः भल्लों से कृपाचार्य को भी घायल किया। घोड़े मारे जाने से कृतवर्मा रथहीन हो गया_यह देख अश्वत्थामा अपने रथ पर बिठाकर युधिष्ठिर से दूर हटा ले गया। महाराज ! आप और आपके पुत्र के अन्याय से इस प्रकार शेष युद्ध हुआ था। युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के मारे जाने पर सब पाण्डव प्रसन्न हो शंख बजाने लगे। सबने राजा युधिष्ठिर की भूरि भूरि प्रशंसा की। नाना प्रकार के बाजे बजाते ग्रे, जिससे चारों ओर की पृथ्वी गूंज उठी।

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