Thursday 9 March 2023

राजा शल्य का पराक्रम, अर्जुन_अश्त्थामा का युद्ध तथा राजा सुरथ का वध

संजय कहते हैं_महाराज ! मद्रराज शल्य जब युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगे, उस समय सात्यकि, भीमसेन, नकुल और सहदेव ने आकर शल्य को घेर लिया और उन्हें बींधना आरंभ कर दिया। भीमसेन ने शल्य को पहले एक और फिर सात बाणों से घायल किया। सात्यकि ने उन्हें सौ बाण मारकर सिंह के समान गर्जना की। नकुल ने पांच और सहदेव ने सात बाणों से शल्य को भींचकर पुनः सात सायकों से घायल किया। इन महारथियों से पीड़ित होकर भी शूरवीर शल्य रण में डटे रहे। उन्होंने सात्यकि को पच्चीस भीमसेन को छिहत्तर और नकुल को सात बाणों से बींध दिया। इसके बाद सहदेव के बाण सहित धनुष को काटकर उसे इक्कीस सायकों से घायल किया। सहदेव ने भी दूसरा थनुष लेकर मामाजी को पांच बाण मारे। फिर एक बाण से उनके सारथि को घायल किया, इसके बाद पुनः तीन बाण मारकर शल्य को पीड़ित कर दिया। तदनन्तर भीमसेन ने सत्तर, सात्यकि ने नौ तथा धर्मराज ने साठ बाण मारे। फिर शल्य ने भी प्रत्येक को पांच_पांच बाण मारकर बींध डाला। तब सात्यकि ने क्रोध में भरकर शल्य पर तोमर का प्रहार किया। इस प्रकार पांच वीरों के चलाते हुए पांच अस्त्र एक ही साथ शल्य की ओर छूटे, किन्तु शल्य ने अपने शस्त्रों से मारकर उन सबको पीछे हटा दिया और सिंह के समान गर्जना की। शत्रु की यह गर्जना सात्यकि से नहीं सही गयी। उन्होंने दो बाणों से मद्रराज को और तीन से उनके सारथि को बींध डाला। तब शल्य ने क्रोध में भरकर पाण्डव_पक्ष के उन सभी महारथियों को दस_दस बाण मारे। इस प्रकार शल्य के द्वारा बाधा पाकर वे महारथी अब उनके सामने नहीं ठहर सके। महाराज का यह पराक्रम देखकर दुर्योधन ने समझ लिया कि अब पाण्डव, पांचाल और सृंजय_वीर मरे हुए के ही समान है। तदनन्तर, धर्मराज ने एक क्षुरप्र के द्वारा शल्य के चक्र रक्षक को मार डाला। यह देख शल्य ने बाणों की झड़ी लगाकर पाण्डव_सैनिकों को आच्छादित कर दिया। उस समय राजा युधिष्ठिर सोचने लगे कि 'आज के युद्ध में मैं भगवान श्रीकृष्ण की कही हुई ( शल्य को मार डालने की ) बात कैसे पूर्ण कर सकता हूं ? कहीं ऐसा न हो कि मद्रराज क्रोध में भरकर मेरी सारी सेना का संहार कर डालें ?' वे इस प्रकार विचार कर ही रहे थे कि घोड़े, हाथी तथा रथियों की सेना के साथ पाण्डव_सैनिक वहां आ पहुंचे और महाराज को सब ओर से पीड़ित करने लगे। किन्तु मद्रराज शल्य ने पाण्डवों द्वारा की हुई अस्त्र वर्षा को शान्त कर दिया। इसके बाद हम लोगों ने राजा शल्य की बाणवृष्टि देखी। उनके बाम आसमान से खिलती हुई टिड्डियों के समान जान पड़ते थे। उस समय आकाश सायकों से ठसाठस भर गया था तथा घना अन्धकार छा जाने के कारण पाण्डवों की या हमारे पक्ष की कोई भी वस्तु सूझ नहीं पड़ती थी। मद्रराज की बाण_वर्षा से पाण्डव_सेना विचलित होती देख सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। युधिष्ठिर तथा भीमसेन आदि महारथी यद्यपि बहुत अधिक घायल हो चुके थे, तो भी वे उस युद्ध में शल्य को छोड़कर न जा सके। वे लड़ते ही रहे। दूसरी ओर, अश्वत्थामा तथा उसके पीछे चलने वाले त्रिगर्त देश के महारथियों ने बहुत_से बाण मारकर अर्जुन को घायल किया। तब धनंजय ने तीन बाणों से द्रोण कुमार को और दो_दो बाणों से अन्य महारथियों को बींध डाला। तत्पश्चात् उन्होंने पुनः बाण बरसाना आरंभ किया। इससे आपके पक्ष के योद्धा बहुत घायल हो गये। इसके बाद उन्होंने भी इतनी बाणवर्षा की कि अर्जुन के रथ की बैठक थोड़ी ही देर में भर गयी। श्रीकृष्ण और अर्जुन के सारे अंग बाणों से बींध गये महाराज ! उस समय आपके योद्धाओं ने अर्जुन की जो दशा की, वैसी न तो पहले देखी गयी और न सुनी ही गयी थी। उनके रथ में सब ओर से विचित्र पंखों वाले बाण धंसे हुए थे। तदनन्तर अर्जुन भी आपकी सेना पर बाण_वर्षा करने लगे। उनके नामाक्षरों से अंकित बाणों की मार खाते हुए कौरव_सैनिकों को सबकुछ अर्जुनमय ही प्रतीत होने लगा। अर्जुन रूपी आग आपके योद्धा रूपी ईंधनों को बड़े वेग से भस्म करने लगी। साधकों की चोट से बचाने के लिये जिनपर लोहे के आवरण पड़े थे, ऐसे_ऐसे दो हजार रथों का अर्जुन ने विध्वंस कर डाला। जैसे प्रलयकालीन अग्नि इस चराचर जगत् को दुग्ध करके धूमरहित होकर दमकने लगती है, उसी प्रकार पार्थ भी शत्रुओं का संहार करके देदीप्यमान हो रहे थे। पाण्डु नन्दन का यह पराक्रम देख अश्वत्थामा ने सामने आकर उन्हें आगे बढ़ने से रोका। फिर तो उन दोनों में भीषण बाणवर्षा होने लगी और बहुत देर तक एक_सा ही युद्ध चलता रहा। फिर अश्वत्थामा ने बारह बाणों से अर्जुन को और दस से श्रीकृष्ण को बींध डाला। तब अर्जुन ने भी हंसकर गाण्डीव के टंकार की और बाणों से गुरुपुष्य की पूजा करके उसके घोड़ों और सारथि को मार डाला। अब अश्वत्थामा ने उसी रथ पर खड़ा हो एक लोहे का मूसल लेकर उसे अर्जुन पर दे मारा, किन्तु अर्जुन ने सहसा उसके साथ टुकड़े कर डाले। यह देख द्रोण कुमार ने कुपित हो अर्जुन पर एक भयंकर परिघ का प्रहार किया; परन्तु पार्थ ने पांच बाण मारकर उसके भी टुकड़े_टुकड़े कर डाले। साथ ही तीन भल्लों से द्रोण कुमार को खूब घायल किया। अर्जुन के प्रहार से अत्यंत आहत हो जाने पर भी द्रोण कुमार को घबराहट नहीं हुई, वह अपने पुरुषार्थ का भरोसा करके रण में डटा रहा और पांचाल देश के महारथी सुरत पर बाणों को सही वर्षा करने लगा। सुरत भी अश्वत्थामा की ओर दौड़ा और उसके ऊपर बाणों की बौछार करने लगा। यह देख अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध हुआ, उसकी भौंहों में तीन जगह बल पड़ गये। अब उसने धनुष पर कालदण्ड के समान भयंकर नारायण चढ़ाया और उसे सुरथ को लक्ष्य करके छोड़ दिया। वह नारायण सुरत की छाती छेदकर भीतर घुस गया और सुरत प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। वीरवर सुरत के मारे जाने पर अश्वत्थामा उसी के रथ पर जा बैठा और संशप्तकों की सेना साथ लेकर अर्जुन से युद्ध करने लगा। दुपहरी का वक्त था, उस समय अर्जुन का शत्रुओं के साथ महान् संग्राम हुआ जो जो यमलोक की आबादी बढ़ाने वाला था। वहां कौरव योद्धाओं का पराक्रम देखकर तथा उनके साथ जो अर्जुन अकेले ही युद्ध कर रहे थे, इसको लक्ष्य करके हमलोगों को बड़ा आश्चर्य हो रहा था।



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