Sunday 19 March 2023

शल्य का पराक्रम तथा शल्य के साथ युधिष्ठिर का युद्ध



संजय कहते हैं_महाराज ! एक ओर दुर्योधन और धृष्टद्युम्न में महान् संग्राम छिड़ा था, जिनमें बाणों और शक्तियों का ही अधिक प्रहार हो रहा था। दोनों ही ओर से सायकों की सहस्त्रों धाराएं बरस रही थीं। पहले दुर्योधन ने ही धृष्टद्युम्न को पांच बाण मारे, तब धृष्टद्युम्न ने भी सत्तर बाण मारकर दुर्योधन को विशेष पीड़ा पहुंचाती। यह देख उसके भाइयों ने बहुत बड़ी सेना के साथ आकर धृष्टद्युम्न को चारों ओर से घेर लिया। गिर जाने पर भी वह अस्त्र संचालन में अपने हाथों की फुर्ती दिखाता हुआ युद्ध में निर्भय विचर रहा था। दूसरी ओर शिखण्डी अपने साथ प्रभद्रकों की सेना लेकर कृपाचार्य और कृतवर्मा से युद्ध कर रहा था। वहां भी प्राणों की बाजी लगाकर भयंकर संग्राम हो रहा था। इधर, राजा शल्य बाणों की झड़ी लगाकर सात्यकि तथा भीमसेन सहित समस्त पाण्डवों को पीड़ित कर रहे थे। साथ ही वे नकुल और सहदेव से भी भिड़े हुए थे। जब शल्य अपने बाणों से पाण्डव महारथियों को आहत कर रहे थे, उस समय उन्हें कोई अपना रक्षक नहीं दिखाती देता था।इसी समय शूरवीर नकुल ने अपने मामा ( शल्य ) पर बड़े वेग से धावा किया और बाणों की वर्षा से उन्हें आच्छादित कर दिया। फिर हंसते_हंसते उसने दस बाणों से उसने शल्य की छाती छेद डाली। अपने भांजे के द्वारा पीड़ित होकर  शल्य भी उसे तीखे बाणों का निशाना बनाने लगे। यह देखकर राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, सात्यकि और माद्री नन्दन सहदेव शल्य पर टूट पड़े। सेनापति शल्य ने तुरंत ही उन सबका सामना किया। उन्होंने युधिष्ठिर को तीन, भीमसेन को पांच, सात्यकि को सौ और सहदेव को तीन बाणों से बींध डाला।इसके बाद मद्रराज ने क्षुरप्र मारकर नकुल के धनुष को काट दिया। तब नकुल ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर शल्य के रथ को बाणों से भर दिया। साथ ही, युधिष्ठिर और सहदेव ने भी उनकी छाती में दस_दस बाण मारे। फिर भीमसेन ने साठ और सात्यकि ने दस साधकों से उन्हें घायल कर दिया। अब मद्रराज ने क्रोध में भरकर सात्यकि को पहले नौ और फिर सत्तर बाणों से बींध डाला। इसके बाद उसके धनुष को काटकर रथ के घोड़ों को भी मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात् उन्होंने नकुल, सहदेव, भीमसेन और युधिष्ठिर को भी दस बाणों से घायल किया। इस महान् संग्राम में मैंने शल्य का अद्भुत पराक्रम देखा; वे अकेले ही पाण्डवों के समस्त योद्धाओं के साथ युद्ध कर रहे थे।तदनन्तर वे युधिष्ठिर के बहुत निकट आ गये और उन्हें अपने बाणों से पीड़ित करके पुनः भीम पर टूट पड़े। उस समय राजा शल्य की फुर्ती तथा अस्त्र_संचालन की कुशलता देखकर आपके तथा शत्रु पक्ष के योद्धाओं ने उनकी बहुत प्रशंसा की। शल्य के बाणों से अत्यंत घायल होकर जब पाण्डव योद्धा बहुत कष्ट पाने लगे तो युधिष्ठिर के पुकारने और मना करने पर भी वे युद्ध का मैदान छोड़कर भाग चले।  इससे धर्मराज को बड़ा अमर्ष हुआ, उन्होंने निश्चय कर लिया कि मेरी विजय हो या मृत्यु, युद्ध अवश्य करूंगा।'फिर तो वे अपने पुरुषार्थ का भरोसा करके शल्य को बाणों से पीड़ित करने लगे तथा भगवान् श्रीकृष्ण तथा अपने सब भाइयों को बुलाकर बोले_'मैं अपने मन की बात बताता हूं। मेरे पहियों की रक्षा करनेवाले माद्री कुमार नकुल और सहदेव अब क्षत्रिय धर्म को सामने रखकर अपने मामा से अच्छी तरह लड़ें; या तो शल्य मुझे आज मार डालेंगे या मैं ही उनका वध करूंगा। मेरी इस बात को तुमलोग सत्य समझो। इस समय पहियों की रक्षा करें और धृष्टद्युम्न बातें की। अर्जुन पृष्ठभाग की रक्षा में रहें और भीमसेन मेरे आगे_आगे चलें। ऐसी व्यवस्था हो जाने पर मैं इस महासमर में शल्य से अधिक प्रबल हो जाऊंगा।'राजा की आज्ञा पाकर सबने वैसा ही किया; क्योंकि सभी उनका प्रिय करनेवाले थे। फिर तो पाण्डव सेना में बड़ा उत्साह छा गया। पांचाल, सोमक तथा मत्स्यदेशीय वीर अत्यन्त हर्ष में भर गये। युधिष्ठिर ने 'विजय अथवा मृत्यु की प्रतिज्ञा करके मद्रराज पर चढ़ाई की। उस समय शंख और भेरियां बजने लगीं। पांचाल योद्धा सिंहनाद करते हुए मद्रराज पर टूट पड़े। परन्तु आपके पुत्र दुर्योधन तथा मद्रराज शल्य ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। अब शल्य युधिष्ठिर पर बाणों की बौछार करने लगे। दुर्योधन भी सहायकों की वर्षा करता हुआ अपनी अस्त्र विद्या का परिचय देने लगा।उस समय भीमसेन दुर्योधन से भिड़ गये। धृष्टद्युम्न, सात्यकि, नकुल और सहदेव ने शकुनि आदि वीरों का सामना किया। फिर तो घमासान युद्ध होने लगा। दुर्योधन ने भीमसेन की ध्वजा काट दी। उनके धनुष के टुकड़े_टुकड़े कर डाले। अब भीमसेन ने शक्ति का प्रहार करके दुर्योधन की छाती छेद डाली। वह मूर्छित होकर रथ की बैठक में गिर पड़ा। दुर्योधन के मोहाच्छन्न हो जाने पर भीम ने क्षुरप्र से उसके सारथि का सिर धड़ से अलग कर दिया। सारथि के मरते ही उसके घोड़े जोर से भागे, उस समय हाहाकार मच गया। अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा आपके पुत्र को बचाने के लिये दौड़े।उधर, युधिष्ठिर तेज किये हुए भल्लों से हजारों कौरव योद्धाओं का संहार करने लगे।वे जिस सेना की ओर जाते उसी को बाणों से मार गिराते थे। घोड़े, सारथि, ध्वजा और रथ के सहित रथियों का, घुड़सवारों सहित घोड़ों का तथा हजारों पैदलों का उन्होंने सफाया कर डाला। फिर चारों ओर बाणों की झड़ी लगाते हुए वे मद्रराज शल्य की ओर दौड़े।इसी बीच में शल्य ने युधिष्ठिर को सौ बाण मारे और उनका धनुष भी काट दिया। तब युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष लेकर शल्य को तीन सौ बाणों से बींध डाला और क्षुरप्र मारकर उनके धनुष को भी खण्डित कर दिया। फिर वे दो बाणों से उनके पार्श्वरक्षक तथा सारथि को भी मौत के घाट उतारकर एक भल्ल से उनके रथ की ध्वजा काट दी। यह देखकर दुर्योधन की सेना में भगदड़ पड़ गयी। मद्रराज को इस दुर्बलता में पड़े देख अश्वत्थामा दौड़ा आया और उन्हें अपने रथ में बिठाकर तेजी से भाग गया। उस समय युधिष्ठिर सिंह के समान गर्जना करने लगे और मद्रराज शल्य विधिपूर्वक सजाते हुए दूसरे रथ पर बैठकर  पुनः उनका सामना करने आ गये। शल्य के रथ पर निशाना बेधनेवाली मशीन भी थी, जिसे देखते ही शत्रुओं के रोंगटे खड़े हो जाते थे।

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