Friday 3 March 2023

शल्य का युधिष्ठिर और भीमसेन के साथ युद्ध, दुर्योधन द्वारा चेकितान तथा युधिष्ठिर द्वारा द्रुमसेन का वध

संजय कहते हैं_ महाराज ! उस समय सेनापति शल्य ने आपकी भागती हुई सेना को खड़ी किया और भयंकर सिंहनाद तथा धनुष की टंकार करते हुए वे शत्रुओं का सामना करने के लिये डट गये। राजा शल्य से सुरक्षित होने पर कौरव_सैनिक निश्चिंत हो उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो ग्रे और युद्ध की इच्छा से शत्रुओं की ओर बढ़ने लगे। उधर से सात्यकि, भीमसेन और नकुल_सहदेव आदि पाण्डव_योद्धा युधिष्ठिर को आगे करके चढ़ आते और जोर_जोर से सिंहनाद करने लगे। तदनन्तर अर्जुन ने भी संशप्तकों का संहार करके कौरव_सेना पर धावा किया। इसी प्रकार धृष्टद्युम्न आदि वीर भी तीखे साधकों की वर्षा करते हुए आपकी सेना पर चढ़ आये। उनकी मार पड़ने से कौरव_सैनिक मूर्छित हो गये। उन्हें दिशा और विदिशाओं का भी ज्ञान न रहा। पाण्डवों की बाणों से कौरव_सेना के मुख्य_मुख्य वीर मारे गये। ऐसे ही आपके पुत्रों ने भी पाण्डव_पक्ष के सैकड़ों और हजारों वीरों का संहार कर डाला। उस समय आपस की मार से दोनों ओर की सेनाएं अत्यंत संतप्त और व्याकुल हो उठीं। युद्ध करनेवाले सैनिक भागने लगे, हाथी चिघ्घार करने लगे। पैदल सिपाही कराहने और चिल्लाने लगे। समस्त प्राणियों का भयंकर संहार होने लगा। पाण्डव बलवान थे, वे जब प्रहार करते तो उनका निशाना कभी खाली नहीं जाता था; इसलिये कौरव_सेना बहुत कष्ट पाने लगी। आपकी सेना को क्लेश में पड़ी देख राजा शल्य उसका उद्धार करने के लिये आगे बढ़े। पाण्डव भी मद्रराज के पास पहुंचकर उन्हें तीखे बाणों से बींधने लगे। तब महाबली मद्रनरेश ने युधिष्ठिर के सामने ही सैकड़ों तीखे बाण मारकर पाण्डव_सेना का संहार आरम्भ किया। उस समय भांति_भांति के अपशकुन होने लगे। पर्वतोंसहित पृथ्वी डोलने लगी। धीरे_धीरे युद्ध का रूप भयंकर हो गया। महाबली शल्य ने द्रौपदी के सब पुत्रों को, नकुल_सहदेव को और धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा सात्यकि को बींध डाला। उन्होंने इनमें से प्रत्येक वीर को दस_दस बाण मारे। तत्पश्चात् शल्य ने बाणों की झड़ी लगा दी। फिर तो प्रभद्रक तथा सोमा क्षत्रिय हजारों की संख्या में गिरते दिखाती देने लगे। उनके सायकों की चोट खाकर कितने ही हाथी, घोड़े, पैदल और रथी योद्धा धराशाही हो गये। कितनों को मूर्छा आ गई और बहुतेरे चीखने_चिल्लाने लगे। उस समय महाबली मद्रनरेश सिंह के समान दहाड़ रहे थे। शल्य के बाणों से पीड़ित हुई पाण्डव_सेना रक्षा के लिये महाराज युधिष्ठिर के बाद भाग गयी। इस प्रकार सेना को कुचलकर वे युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगे। यह देख युधिष्ठिर ने तीक्ष्ण बाणों की वर्षा करके शल्य को आगे बढ़ने से रोक दिया। तब शल्य ने उनपर एक भयंकर बाण चलाया। वेग से छूटा हुआ वह बाण युधिष्ठिर को घायल करके पृथ्वी पर जा पड़ा। अब भीमसेन को क्रोध चढ़ा। उन्होंने शल्य को सात बाण मारकर बिंधा डाला। इसी तरह सहदेव ने पांच और नकुल ने दस बाणों से उन्हें घायल किया। द्रौपदी के पुत्रों ने भी बड़े वेग से उनपर बाणों की वृष्टि की। पर यह आप परशल्य को बाणवर्षा से पीड़ित होते देख कृतवर्मा, कृपाचार्य, उलूक, शकुनि, अश्वत्थामा तथा आपके पुत्र_ये सब एकत्रित होकर उनकी रक्षा करने लगे। कृतवर्मा ने तीन बाणों से भीमसेन को बींध डाला। फिर बाणों की बौछार से धृष्टद्युम्न को घायल कर दिया। शकुनि ने द्रौपदी के पुत्रों का तथा अश्वत्थामा ने नकुल_सहदेव का सामना किया। दुर्योधन श्रीकृष्ण और अर्जुन के मुकाबले में खड़ा हुआ और अपने बाणों से उन दोनों को बींधने लगा। इस प्रकार आपके पक्ष के योद्धाओं और शत्रुओं में सैकड़ों द्वन्द युद्ध हुए। सभी भयंकर और विचित्र थे। तदनन्तर, महाराज शल्य ने सहदेव के घोड़ों को मार डाला। तब सहदेव ने भी तलवार उठाती और शल्य के पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया। उधर अश्वत्थामा ने किंचित् मुस्कराकर द्रौपदी के पुत्रों में से प्रत्येक को दस_दस बाण मारे और कृतवर्मा ने भीमसेन के घोड़ों को यमलोक पठा दिया। घोड़ों के मरने पर भीमसेन रथ से उतर पड़े और हाथ में कालदण्ड के समान गदा लेकर उन्होंने कृतवर्मा के घोड़ों तथा रथ की धज्जियां उड़ाई दीं। कृतवर्मा उस रथ से कूदकर भाग गया।
इधर, शल्य भी सोमक और पाण्डव_योद्धा का संहार करते_करते तीखे बाणों से युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगे। यह देख भीमसेन वज्र के समान गदा लिये शल्य पर टूट पड़े और उनके चारों घोड़ों को मार गिराया। तब शल्य ने कुपित होकर भीमसेन की छाती में तोमर से प्रहार किया। और अ इससे उनका कवच कट गया और तोमर से छाती छिद गई। किन्तु भीमसेन इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने वही तोमर अपनी छाती से निकालकर मद्रराज के सारथि की छाती पर दे मारा। उसके प्रहार से सारथि का मर्म विदीर्ण हो गया और वह रक्त वमन करता हुआ राजा के सामने ही गिर पड़ा। मद्रराज रथ छोड़कर दूर हट गये और लोहे की गदा हाथ में लेकर अविचल भाव से खड़े हो गये। भीमसेन भी बहुत जल्दी गदा लेकर शल्य पर टूट पड़े। महाराज ! संसार में मद्रराज शल्य अथवा यदुनंदन बलराम जी के सिवा दूसरा ऐसा कोई योद्धा नहीं है, जो गदाधारी भीम का वेग सह सके। इसी तरह शल्य का वेग भी भीमसेन के सिवा दूसरा कोई सह नहीं सकता था। उन दोनों में युद्ध छिड़ गया। मद्रराज ने अपनी गदा से भीमसेन की गदा पर चोट की तो वह प्रज्वलित_सी हो उठी, उससे आग की लपटे निकलने लगीं। इस प्रकार भीमसेन की गदा के आघात से शल्य की गदा भी अंगारे बरसाने लगी_यह देख सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। गदा की मार से एक ही क्षण में दोनो के शरीर घायल हो गये, दोनों ही लोहूलुहान हो उठे। मद्रराज की गदा से बातें और दायें भाग में अच्छी तरह चोट खाने पर भी महाबाहु भीमसेन  भी विचलित नहीं हुए। पर्वत के समान स्थिर भाव से खड़े रहे। इसी तरह भीम की गदाका बारंबार आघात होने पर भी शल्य को जरा भी घबराहट नहीं हुई। वे दोनों जब एक_दूसरे पर गदा का प्रहार करते थे, उस समय चारों दिशाओं में वज्रपात के समान आवाज सुनायी देती थी। उन दोनों का पराक्रम अलौकिक था। वे लड़ते_लड़ते आठ कदम आगे बढ़ आते और लोहे के डंडे उठाकर एक_दूसरे को मारने लगे। उस समय परस्पर प्रहार करते हुए दोनों वीर मण्डलाकार विचरने और अपना_अपना विशेष कौसल प्रदर्शित करते थे। इसके बाद वे पुनः गदाएं उठाकर परस्पर प्रहार करने लगे। इस तरह लड़ते_लड़ते जब अच्छी तरह घायल हो गये तब दोनों एक ही साथ रणभूमि में गिर पड़े। उस समय दोनों पक्षों की सेनाओं में हाहाकार मच गया। भीम और शल्य_ दोनों के मर्मस्थानों में गहरी चोट लगी थीं, इसलिये दोनों ही अत्यंत व्याकुल हो गये थे।
इतने में ही कृपाचार्य आये और शल्य को अपने रथ में बिठाकर तुरंत रणभूमि से बाहर ले गये। इधर भीमसेन पलक मारते_मारते होश में आकर उठ खड़े हुए और गदा हाथ में ले मद्रराज को युद्ध के लिये ललकारने लगे तब आपके सैनिक नाना प्रकार के अस्त्र_शस्त्र लेकर पाण्डव_सेना पर टूट पड़े। आपकी सेना को आगे बढ़ते देखकर पाण्डव_योद्धा भी सिंहनाद करते हुए दुर्योधन आदि कौरवों पर चढ़ आये। उस समय आपके पुत्र ने एक प्राश मारकर चेकितान की छाती चीर डाली, वह खून से नहा उठा और प्राणहीन होकर रथ की बैठक में गिर पड़ा। यह देख पाण्डव महारथी आपकी सेना पर बाणवर्षा करने लगे तथा कृपाचार्य, कृतवर्मा और शकुनि_ये मद्रराज को आगे करके धर्मराज युधिष्ठिर से युद्ध करने लगे। शल्य ने युधिष्ठिर को मार डालने की इच्छा से उन्हें तीखे बाणों से बींध डाला। तब युधिष्ठिर ने भी मुस्कुराते हुए चौदह नारायण हाथ में लिये और उनसे शल्य के मर्मस्थानों को बींध डाला। अब शल्य क्रोध में भर गये। उन्होंने राजा युधिष्ठिर की प्रगति रोक दी और अनेकों बाणों से उन्हें घायल कर दिया, युधिष्ठिर ने भी तेज किये हुए सहायकों से शल्य को घायल किया; फिर चन्द्रसेन को सत्ताइस और उनके सारथि को नौ बाणों से घायल करके द्रुमसेन को चौसठ बाणों से मार डाला।
चक्र रक्षक के मारे जाने पर शल्य ने पच्चीस चेदि योद्धाओं का सफाया कर डाला; फिर सात्यकि को पच्चीस, भीमसेन को पांच तथा नकुल_सहदेव को सौ बाणों से घायल कर डाला।   राजा शल्य जब इस प्रकार रणभूमि में विचर रहे थे, उस समय उनके ऊपर युधिष्ठिर ने अनेकों तीक्ष्ण बाणों का प्रहार किया। साथ ही उनके रथ की ध्वजा भी काट दी। ध्वजा गिरी हुई देख शल्य को बड़ा क्रोध हुआ और वे शत्रुओं पर बाणों की बौछार करने लगे। उन्होंने सात्यकि, भीम, नकुल और सहदेव_ इनमें से हरेक को पांच_पांच बाणों से घायल कर दिया। फिर युधिष्ठिर की छाती पर बाणों का जाल_सा फैलाकर उन्हें खूब पीड़ित किया।




No comments:

Post a Comment