Saturday 25 February 2023

शल्य के सेनापतित्व में युद्ध का आरंभ और नकुल द्वारा कर्ण के शेष तीन पुत्रों का वध

संजय कहते हैं_महाराज ! यह रात बीत जाने पर दुर्योधन ने आपके सब सैनिकों को आज्ञा दी_'अब सब महारथी तैयार हो जायं।' राजा की आज्ञा पाकर भारी सेना कवच आदि से सुसज्जित हो गयी। बाजे बजने लगे। योद्धाओं का सिंहनाद होने लगा। उस समय मरने से बचे हुए आपके सैनिक मौत की परवा न करके रणभूमि की ओर कूच करते दिखायी देने लगे। मद्रराज शल्य को सेना का नायक बनाकर महारथियों ने संपूर्ण सेना के कई विभाग किये और सबको युद्धभूमि में यथास्थान खड़ा किया। फिर कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, शल्य शकुनि तथा अन्य राजाओं ने मिलकर यह शपथ ली कि 'हममें से कोई भी अकेला होकर पाण्डवों से न लड़ें, जो अकेला ही उनसे लड़ेगा अथवा जो किसी लड़ते हुए योद्धा को अकेला छोड़ देगा, उसे पांच महापातक और पांच उपपातक लगेंगे। इसलिये सब एक_दूसरे की रक्षा करते हुए साथ रहकर युद्ध करें।' इस प्रकार शपथ लेकर समस्त महारथियों ने मद्रराज को आगे किया और बड़ी शीघ्रता के साथ शत्रुओं पर चढ़ाई कर दी। इसी तरह पाण्डव भी सेना का व्यूह बनाकर युद्ध की इच्छा से कौरवों पर चढ़ आये। उनकी सेना क्षुब्ध हुए समुद्र की भांति गर्जना कर रही थी। पाण्डवों का सिंहनाद सुनकर आपके पुत्रों के मन में डर समा गया। तब मद्रराज शल्य ने उन्हें धीरज बंधाया और सर्वतोभद्र नामक व्यूह बनाकर पाण्डवों के ऊपर धावा किया। उस समय वे सिंधुदेश के घोड़ों से जुते हुए एक विशाल रथ पर विराजमान थे। उनके साथ मद्रदेश के वीर तथा कर्ण के अजेय पुत्र भी थे। उनके बाम भाग में त्रिगर्तों की सेना से घिरा हुआ कृतवर्मा था। दक्षिण भाग में शक और यवनों के साथ कृपाचार्य थे। तथा पृष्ठभाग में कम्बोजों को साथ लिए अश्वत्थामा मौजूद था। मध्यभाग में दुर्योधन था, जिसकी रक्षा में प्रधान_प्रधान कौरव खड़े थे। वहीं शकुनि भी था, जो घुड़सवारों की विशाल सेना से घिड़ा हुआ था। महारथी कैतव्य भी संपूर्ण सेना के साथ जा रहा था। उधर पाण्डवों ने भी मोर्चाबंदी कर रखी थी। उन्होंने अपनी सेना को तीन भागों में बांटा था; उन तीनों के अध्यक्ष थे_धृष्टधुम्न, शिखण्डी और सात्यकि। इन लोगों ने शल्य की सेना पर धावा किया। तत्पश्चात् राजा युधिष्ठिर भी शल्य का वध करने की इच्छा से अपनी सेना के साथ उन्हीं पर जा चढ़े। अर्जुन ने कृतवर्मा और संशप्तकों पर चढ़ाई की। भीमसेन और सोमकों का कृपाचार्य पर धावा हुआ। नकुल_सहदेव ने शकुनि तथा उलूक पर आक्रमण किया। इसी प्रकार आपके पक्ष के कई हजार सैनिक भी पाण्डवों पर जा चढ़े।
धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! भीष्म, द्रोण तथा कर्ण के मारे जाने के पश्चात् मेरे पुत्रों तथा पाण्डवों के पास कितनी_कितनी सेना बच गयी थी ? संजय ने कहा_महाराज ! शल्य के सेनापतित्व में जब हमलोग युद्ध के लिये उपस्थित हुए थे, उस समय हमारे पास ग्यारह हजार रथ, दस हजार सात सौ हजार हाथी, दो लाख घोड़े तथा तीन करोड़ पैदल थे और पाण्डव के छः हजार रथ, छः हजार हाथी, दस हजार घोड़े तथा एक करोड़ पैदल मौजूद थे। बस, इतनी ही सेना बच गयी थी और यही और यही युद्ध के लिये उपस्थित थीं। प्रात:काल सूर्योदय होते ही दोनों ओर के योद्धा एक_दूसरे को मार डालने की इच्छा से आगे बढ़े।   फिर तो दोनों दलों में अत्यंत भयंकर युद्ध छिड़ गया। हज़ारों घुड़सवार, पैदल, रथी और हाथी सवार पराक्रम दिखाते हुए एक_दूसरे से भिड़ गये। महाराज ! पाण्डवों की मार पड़ने से आपकी सेना जहां_की_तहां बेहोश हो_होकर गिरने लगी। भीमसेन और अर्जुन ने आपके सैनिकों को मूर्छित करके शंख बजाये और सिंहनाद करने लगे। इसी समय धृष्टद्युम्न तथा शिखण्डी ने धर्मराज को आगे करके शल्य पर धावा किया। माद्रीकुमार नकुल और सहदेव भी आपकी सेना पर टूट पड़े। फिर पाण्डवों ने कौरव_सेना को अपने बाणों से बहुत घायल कर दिया। अब कौरव_वाहिनी आपके पुत्रों के देखते_देखते चारों ओर भागने लगी। सबको अपनी_अपनी जान बचाने की फिक्र पड़ गयी। लोगों ने अपने प्यारे पुत्रों और भाइयों को छोड़ दिया; पितामहों और मामाओं की परवा न की, भांजों तथा अन्य संबंधियों का भी ख्याल नहीं किया। सब अपने घोड़ों और हाथियों को जल्दी_जल्दी हांकते हुए भाग खड़े हुए।
सेना को इस तरह भागती देख प्रतापी मद्रराज ने अपने सारथि से कहा_'मेरे घोड़ों को शीघ्रता पूर्वक आगे बढ़ाओ और जहां ये राजा युधिष्ठिर खड़े हैं, वहीं मुझे ले चलो। आज संग्राम में ये मेरे सामने ठहर नहीं सकते।' सेनापति की आज्ञा से सारथि ने उनके रथ को राजा युधिष्ठिर के पास पहुंचा दिया। वहां पहुंचकर बड़े वेग से आक्रमण करती हुई पाण्डवों की विशाल सेना को शल्य ने अकेले ही रोक लिया। उस समय महाराज को समरभूमि में डटे हुए देख भागने वाले कौरव योद्धा भी मृत्यु की परवा न करके लौट आये। इसी बीच में नकुल ने चित्रसेन पर धावा किया। वे दोनों योद्धा एक_दूसरे पर बाणों की वर्षा करने लगे। दोनों ही अस्त्र विद्या के ज्ञाता, बलवान् और रथ द्वारा युद्ध करने में प्रवीण थे। दोनों एक_दूसरे का वध करने के लिये प्रयत्नशील होकर परस्पर प्रहार करने का अवसर ढूंढ़ रहे थे। इतने में ही चित्रसेन ने एक भल्ल मारकर नकुल का धनुष काट दिया। फिर तीन बाणों से उसके ललाट को बींधकर अनेकों तेज किये हुए बाणों से उसके घोड़ों को यमलोक भेज दिया। जब धनुष कटा और रथ टूट गया तो वीरवर नकुल ढ़ाल तलवार लेकर रथ से उतर पड़ा। अब उसने पैदल ही चित्रसेन पर आक्रमण किया। उस समय चित्रसेन उसके ऊपर बाणों की बौछार करने लगा। किन्तु नकुल बिचित्र प्रकार से युद्ध करने वाला था, उसने चित्रसेन के बाणों को ढाल पर ही रोककर नष्ट कर दिया तथा संपूर्ण सेना के सामने ही चित्रसेन के रथ पर चढ़कर उसने उसके कुण्डल और मुकुट से सुशोभित मस्तक को धड़ से अलग कर दिया।  चित्रसेन का मस्तक रथ के पिछले भाग में गिर पड़ा। उसको मरा हुआ देख पाण्डव_महारथी सिंहनाद कटकपंरने लगे किन्तु कर्ण के महारथी पुत्र सुषेण और सत्यसेन तीखे बाणों की वर्षा करते हुए नकुल पर टूट पड़े। उनके बाणों से नकुल का सारा शरीर बिंध गया, तो भी वह नया धनुष ले दूसरे रथ पर सवार हो क्रोध में भरे हुए यमराज की भांति समय में डट गया। अब वे दोनों भाई नकुल के रथ के टुकड़े_टुकड़े कर डालने की चेष्टा में लगे। यह देख नकुल ने हंसते_हंसते चार बाणों से सत्यसेन के चारों घोड़ों को मार गिराया। फिर एक नारायण मारकर उसका धनुष भी काट डाला। तब सत्यसेन ने दूसरा धनुष और दूसरा रथ लेकर अपने भाई पर ही धावा किया और बाणों की झड़ी लगाकर उसे सब ओर से ढक दिया। नकुल ने भी उनके बाणों को रोककर दो दो बाणों से दोनों को अलग_अलग बींध डाला। फिर उन दोनों ने भी नकुल को घायल किया और तीखे साधकों से उसके सारथि को भी बिंध डाला। अब सत्यसेन ने दो पृथक्_पृथक् बाण मारकर नकुल का धनुष और उसके रथ का हरसा काट डाला। तब नकुल ने रथशक्ति हाथ में ली और बहुत ऊंचे उठाकर सत्यसेन पर दे मारी। उसकी चोट से सत्यसेन की छाती के सैकड़ों टुकड़े हो गयेऔर वह प्राचीन होकर जमीन पर जा पड़ा। भाई को मरा देख सुषेण क्रोध में भर गया और नकुल के ऊपर बाणों की वृष्टि करने लगा। उसने चार सायकों से नकुल के चारों घोड़ों को मार डाला, पांच से रथ की ध्वजा काट दी और तीन से सारथि को भी यमलोक पठा दिया। नकुल को रथहीन देख द्रौपदीकुमार सुतसोम दौड़कर वहां आ पहुंचा। कुल उसके रथ पर बैठ गया और दूसरा धनुष लेकर सुषेण से युद्ध करने लगा। तदनन्तर सुषेण ने नकुल को तीन और सुतसोम को उसकी भुजाओं तथा छाती में बीस बाण मारे। तब तो नकुल ने क्रोध में भरकर बाणों की मार से सुषेण को सब ओर से ढंक दिया और एक अर्धचन्द्राकार बात से उसका मस्तक काट गिराया। यह देख कौरव सेना भयभीत होकर भागने लगी।

No comments:

Post a Comment