Friday 19 May 2023

शकुनि और उलूक का वध

संजय कहते हैं _महाराज ! उपर्युक्त संग्राम जब आरम्भ हुआ, उस समय शकुनि ने सहदेव पर धावा किया। सहदेव ने भी सउबलपउत्र पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। शकुनि के साथ उसका पुत्र उलूक भी था, उसने भीमसेन को दस बाणों से बींध डाला। साथ ही शकुनि ने भी भीमसेन को तीन बाणों से घायल करके सहदेव पर नब्बे बाणों की वर्षा की। उस समय दोनों ओर के योद्धाओं द्वारा की हुई बाणों की बौछार से संपूर्ण दिशाएं आच्छादित हो गयीं। क्रोध में भरे हुए भीम और सहदेव दोनों वीर संग्राम में भयंकर संहार मचाते हुए विचर रहे थे। उनके सैकड़ों बाणों से ढंकी हुई आपकी सेना अंधकारपूर्ण आकाश की भांति दिखायी पड़ती थी। इस प्रकार लड़ते_लड़ते जब कौरवों के पास बहुत थोड़ी सी सेना रह गयी तो पाण्डव _योद्धा हर्ष में भरकर बड़े उत्साह से उन्हें यमलोक पहुंचाने लगे। इसी समय शकुनि ने सहदेव के मस्तक पर प्यास का प्रहार किया और सहदेव मूर्छित _सा होकर रथ की बैठक में बैठ गया
 उसकी यह अवस्था देख प्रतापी भीम ने क्रोध में भरकर शकुनि की सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया और नाराचों से मारकर सैकड़ों एवं हजारों सैनिकों का संहार कर डाला। इसके बाद उन्होंने बड़े जोर से सिंहनाद किया, जिसे सुनकर हाथी और घोड़ों सहित समस्त सैनिक थर्रा उठे। डर के मारे वे सहसा भाग चले। उन्हें भागते देख राजा दुर्योधन ने कहा_'अरे पापियों ! लौट आओ, भागने से क्या लाभ होगा ? जो वीर लड़ाई में पीठ न दिखाकर प्राण_त्याग करता है, वह संसार में कीर्ति पाता है और परलोक में उत्तम सुख भोगता है।' उसके ऐसा कहने पर शकुनि के सिपाही मोर की परवाह न करके पुनः पाण्डवों पर टूट पड़े। यह देख पाण्डव योद्धा भी उनका सामना करने को आगे बढ़े। इतने में भी सहदेव ने भी स्वस्थ होकर शकुनि को दस बाणों से बींध डाला और तीन बाणों से उसके घोड़ों को घायल करके हंसते-हंसते उसका धनुष भी काट दिया। शकुनि ने दूसरा धनुष लेकर सहदेव को साफ और भीमसेन को सात बाण मारे। इसी तरह उलूक ने भी भीम को सात और सहदेव को सत्तर बाणों से घायल कर डाला। तब भीमसेन ने उसे तेज किये हुए सायकों से बींध दिया और शकुनि को भी चौंसठ बाण मारकर उसके पार्श्वरक्षकों को तीन_तीन बाणों का निशाना बनाया। भीम के नाराचों से आहत हुए योद्धा क्रोध में भरकर सहदेव के ऊपर बाणों की बौछार करने लगे। तब सहदेव ने एक भल्ल मारकर अपने सामने आये हुए उलूक का मस्तक काट डाला। उसकी लाश जमीन पर गिर पड़ी। बेटे की मृत्यु देखकर शकुनि को विदुरजी की बात याद आ गयी। उसका गला भर आया, उच्छ्वास चलने लगा और वह अपनी आंखों में आंसू भरकर दो घड़ी तक चिंता में डूबा रहा। इसके बाद सहदेव के सामने जाकर उसने तीन बाण मारे, किन्तु सहदेव ने उसे अपने सायकों से का गिराया और शकुनि के धनुष के भी टुकड़े _टुकड़े कर डाले। तब शकुनि ने सहदेव के ऊपर तलवार का वार किया, किन्तु उसने हंसते-हंसते उस तलवार के भी दो टुकड़े कर दिये। अब शकुनि ने गदा चलायी, पर उसका वार खाली चला गया, वह जमीन पर जा पड़ी। इससे उसका क्रोध बहुत बढ़ गया और उसने एक भयंकर शक्ति सहदेव के ऊपर छोड़ी; किन्तु सहदेव ने बाण मारकर उसके भी तीन टुकड़े कर डाले। इस प्रकार जब शक्ति भी नष्ट हो गयी और शकुनि भयभीत हो गया तो आपके सैनिकों पर भी आतंक छा गया। वे सब_के_सब शकुनि के साथ भाग चले। उस समय पाण्डव जो_जोर से सिंहनाद करने लगे। प्रायः सभी कौरव_योद्धा रण से पीठ दिखाकर भाग गये। शकुनि को भी सिसकता देख सहदेव ने सोचा 'यह मेरा हिस्सा बाकी रह गया है_ इसका नाश मुझे करना है।' यह विचारकर अपना महान् धनुष टंकारते हुए उसने शकुनि का पीछा किया और तेज किये हुए बाण मारकर उसे अत्यंत घायल कर दिया और कहने लगा, 'मूर्ख शकुनि! तू क्षत्रियधर्म में स्थित होकर युद्ध कर, पराक्रम दिखाकर पुरुषत्व का परिचय दे। उस दिन सभा में पासा फेंकते समय तो तू खुश हो रहा था, उसका फल आज अपनी आंखों से देख। जिन दुरात्माओं ने पहले हमलोगों का उपहास किया था, वे सब मारे जा चुके हैं, केवल कुलांगार दुर्योधन और उसका मामा तू बाकी रह गया है। आज तेरा मस्तक अवश्य काट डालूंगा।' यह कहकर सहदेव ने शकुनि को दस और उसके घोड़ों को चार बाण मारे, फिर उसका छत्र, ध्वजा और धनुष काटकर उन्होंने सिंह के समान गर्जना की तथा अनेकों सायकों का प्रहार करके उसके मर्मस्थानों को बींध डाला। इससे शकुनि को बड़ा क्रोध हुआ। वह सहदेव को मार डालने की इच्छा से दोनों हाथों में प्रकाश लेकर उसपर टूट पड़ा। सहदेव ने शकुनि के उठाये हुए प्राश को तथा उसे पकड़नेवाली उसकी दोनों गोलाकार भुजाओं को तीन भल्ल मारकर एक ही साथ काट डाला। फिर बड़े जोर से गर्जना की। तदनन्तर, खूब सावधानी के साथ एक मजबूत लोहे का भल्ल धनुष पर चढ़ाया और उसके प्रहार से शकुनि का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसकी मस्तकसहित लाश जमीन पर गिर पड़ी। शकुनि की यह दशा देख आपके योद्धा डरके मारे अपना साहस को बैठे। उनका मुंह सूख गया, चेतना जाती रही। और वे भयभीत होकर अपने_अपने हथियार लिये चारों दिशाओं में भागने लगे। गाण्डीव की टंकार सुनकर वे अधमरे हो रहे थे, किसी का रथ टूटा था, किसी के घोड़े मर गये थे और किन्हीं के हाथी ही मौत के मुंह में जा चुके थे। ये सब लोग पांव प्यादे सही भाग रहे थे। इस प्रकार शकुनि के मारे जाने से भगवान् श्रीकृष्ण के साथ ही समस्त पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए। वे अपने योद्धाओं का हर्ष और उत्साह बढ़ाते हुए शंख बजाने लगे। सभी लोग सहदेव के इस कर्म की प्रशंसा करते हुए कहते हुए कहने लगे, 'वीरवर ! तुमने इस कपटी और दुरात्मा शकुनि को पुत्र सहित मार डाला, यह बड़ा अच्छा हुआ।

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