Wednesday 3 May 2023

अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन की अनीति का कुपरिणाम बताया जाना तथा कौरवों की रथ सेना और गजसेना का संहार

संजय कहते हैं _तदनन्तर, कौरव_वीरों को बड़े वेग से धनुष उठाये देख अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा_" जनार्दन ! आप घोड़ों को हांकते और इस सैन्य सागर में प्रवेश कीजिये। आज मैं तीखे बाणों से शत्रुओं का अन्त कर डालूंगा। इस संग्राम के आरंभ हुए आज अठारह दिन हो गये। कौरवों के पास समुद्र जैसी अपार सेना थी, हो हमलोगों के पास आकर अब गाय के खुरकी_सी हो गयी। मुझे आशा थी कि पितामह भीष्म के मारे जाने पर दुर्योधन संधि कर लेगा, किन्तु उस मूर्ख ने ऐसा नहीं किया। भीष्म जी ने सच्ची और हितकर बात बतायी थी, किन्तु बुद्धि मारी जाने के कारण उसने उसे भी नहीं स्वीकार किया। फिर क्रमशः आचार्य द्रोण, कर्ण और विकर्ण आदि के मारे जाने के पर बहुत थोड़ी सी सेना बच रही है, तो भी युद्ध बन्द नहीं हुआ। भूरीश्रवा शल्य, शाल्व तथा अवन्ती के राजकुमार मारे गये, फिर भी इस मार_काट का अन्त हो सका। जयद्रथ, बाह्लीक, राक्षस अलआयउध, सोमदत्त, वीरवर भगदत्त, कआम्बओजरआज तथा दु:शासन की मृत्यु हो जाने पर भी यह संहार रुक न सका। भैया भीमसेन के साथ से अनेकों अक्षौहिणी पति मारे गये_यह देखकर भी लोभ या मोह के कारण लड़ाई बन्द नहीं हुई। जिसको अपने हिताहित का ज्ञान है, जो मूर्ख नहीं है, ऐसा कौन पुरुष होगा जो शत्रु को गुण, बल और वीरता में अपने से अधिक जानकर भी उससे लोहा लेने का साहस करेगा ? आपने भी पाण्डवों से सन्धि करने के विषय में उससे हितकारक वचन कहा था, किन्तु वह उनके मन में नहीं बैठा। जब आपकी ही बात पर वह ध्यान न दे सका तो दूसरे की कैसे सुन सकता था ? जिसने संधि के विषय में कहने पर भीष्म, द्रोण और विदुर की भी बात टाल दी, उसे राह पर लाने के लिये अब कौन_सी दवा है? जिसने मूर्खतावश अपने बूढ़े पिता की बात नहीं मानी, हित की बात बतानेवाली माता का अपमान किया, उसे और किसी की बात कैसे अच्छी लगेगी ? निश्चय ही दुर्योधन का जन्म इस कुल का अन्त करने के लिये हुआ है। महात्मा विदुर ने मुझसे बहुत बार कहा था कि 'दुर्योधन जीते_जी तुमलोग को राज्य का भाग नहीं देगा। सदा ही तुम्हारा बुराई किया करेगा। उसके युद्ध के सिवा और किसी प्रकार जीतना असंभव है।' 
आज ये सारी बातें सत्य जान पड़ती हैं। जिस मूर्ख ने परशुरामजी के मुख से यथार्थ और हितकर वचन सुनकर भी उसकी अवहेलना कर दी, वह तो निश्चय ही विनाश के मुख में स्थित है। दुर्योधन के जन्म लेते ही बहुतेरे सिद्ध पुरुषों ने कहा था कि 'इस दुरात्मा के कारण क्षत्रियकुल का महान् संहार होगा।' उनकी बात आज सत्य हो रही है; क्योंकि दुर्योधन के लिये ही वहां असंख्य राजाओं का संहार हुआ है। अतः: आज मैं समस्त कौरव_योद्धाओं का वध करूंगा। आप मुझे दुर्योधन की सेना में ले चलिये, जिससे उसको और उसकी सेना को मैं अपने तीखे बाणों का निशाना बना सकूं।" घोड़ों की बागडोर हाथ में लिये भगवान् श्रीकृष्ण से जब अर्जुन ने उपर्युक्त बात कही तो उन्होंने घोड़े बढ़ा दिये और निर्भय होकर शत्रुओं की सेना में प्रवेश किया। उस समय अर्जुन के सफेद घोड़े चारों ओर दिखाई पड़ते थे। फिर जैसे बादल पानी की धारा बरसाता है, उसी प्रकार अर्जुन बाणों की बौछार करने लगे। उनके छोड़े हुए बाण योद्धाओं के कवच फाड़कर वज्र के समान चोट करते हुए धरती पर गिर जाते थे। उनके द्वारा कितने ही मनुष्यों, घोड़े, हाथियों और प्राणों से हाथ धोना पड़ा। अर्जुन के बाणों पर उनका नाम खुदा हुआ था, उनके चलिये हुए वैसे बाणों से मानो सारा जगत् आच्छादित हो गया। जैसे धधकती हुई आग घास की ढ़ेरी को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन भी शत्रु सैनिकों को भस्म करने लगे। वे मनुष्य, घोड़ा अथवा हाथी पर दुबारा बाण नहीं छोड़ते थे, उनके एक ही बात से सबका काम तमाम हो जाता था। अनेकों प्रकार के सायकों की वर्षा करके उन्होंने अकेले ही आपके पुत्र की सेना का संहार कर डाला।
यद्यपि कौरव_योद्धा रण में पीठ नहीं दिखानेवाले शूरवीर थे और पूरी शक्ति लगाकर लड़ रहे थे, तो भी अर्जुन ने अपने गाण्डीव से उनके विजय के संकल्प को व्यर्थ कर दिया। धनंजय के वाणी वज्र के समान असह्य और तेजस्वी थे; उनकी मार पड़ने से आपकी सेना साहस को बैठे और दुर्योधन के देखते _देखते रणभूमि से भाग चली। उस समय कोई पिता को पुकारते थे, कोई सहायकों को। कुछ लोग अपने भाई _बन्धु और सम्बन्धितों को जहां_के_तहां छोड़कर भाग गये। बहुत _से महारथी पार्थ के बाणों से अत्यंत घायल हो जाने के कारण मूर्छित हो रणभूमि में पड़े_पड़े उच्छ्वास ले रहे थे। उनको दूसरे लोग रथ पर चढ़ाकर घड़ी_दो_घड़ी आश्वासन देते थे। कुछ लोग उन घायलों को वैसे ही छोड़कर आपके पुर के आज्ञा का पालन करते हुए युद्ध  के लिये चले जाते थे। बहुतेरे योद्धा स्वयं पानी पीकर घोड़ों की भी थकावट दूर करते, उसके बाद कवच पहनकर लड़ने जाते थे। कुछ लोग अपने भाइयों, पुत्रों अथवा पिताओं को धीरज दे दे उन्हें छावनी में ही छोड़कर युद्ध के लिये निकल पड़ते थे। कोई_कोई अपने रथ को रण_सामग्री से सजाकर पाण्डव_सेना में प्रवेश करते थे। इस प्रकार कौरव_पक्ष के योद्धाओं ने पाण्डव_सेना पर चढ़ाई करके धृष्टद्युम्न के साथ युद्ध छेड़ दिया। उधर से धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और शतानीक_ये लोग आपकी रथ सेना का सामना करने लगे। उस समय धृष्टद्युम्न को बड़ा क्रोध हुआ। वह अपनी विशाल सेना के साथ आपके सैनिकों का संहार करने को तैयार हो गया। यह देख आपके पुत्र ने उसके ऊपर नाना प्रकार के बाणों की झड़ी लगा दी। तब धृष्टद्युम्न ने भी नाराच, अर्धनाराच और वत्सदन्त आदि शीघ्रगामी बाणों से दुर्योधन की भुजाओं और छाती पर प्रहार किया। धृष्टद्युम्न आपके पुत्र के प्रहार से पहले बहुत घायल हो चुका था, इसलिये उसने दुर्योधन को बींध कर  उसके चारों घोड़ों को भी मौत के घाट उतार दिया; फिर एक भल्ल मारकर उसके सारथि का मस्तक भी धड़ से अलग कर दिया। अब दुर्योधन दूसरे घोड़े की पीठ पर चढ़कर शकुनि के पास भाग गया। इस प्रकार जब रथ सेना का संहार हो गया, उस सइस प्रकार जब रथ सेना का संहार हो गया, उस समय हमारे पक्ष के तीन हजार हाथी सवारों ने आकर पांचों पाण्डवों को चारों ओर से घेर लिया। भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं; वे अर्जुन पर्वताकार गजराजों से गिरकर उन्हें अपने तीखे नाराचों का निशाना बनाने लगे। वहां हमने देखा, उनके एक ही बाण से विदीर्ण होकर बड़े _बड़े गजराज धराशायी हो रहे हैं। दूसरी ओर महाबली भीमसेन भी अपने रथ से कूदे और बहुत बड़ी गदा हाथ में लेकर दण्डधारी यमराज की भांति उन हाथियों पर टूट पड़े। उन्हें गदा हाथ में लिये देख आपके सैनिक थर्रा उठे, उनका मल_मूत्र निकल पड़ा और सबपर उद्वेग छा गया। भीम की गदा के आघात से हाथियों के कुम्भस्थल फूट जाते और वे धूल में भरे हुए इधर_उधर भागते देखें जाते थे। कितने ही हाथी गदा की चोट से आहत हो चिग्घाड़ कर गिर पड़ते थे। गजसेना की यह दुर्दशा देखकर आपके सारे सैनिक भय से कांप उठे। इस प्रकार युधिष्ठिर और नकुल_सहदेव भी आपके हाथी सवारों को यमलोक भेज रहे थे। हमारे पक्ष के तीन हजार हाथी सवारों ने आकर पांचों पाण्डवों को चारों ओर से घेर लिया। भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं; वे अर्जुन पर्वताकार गजराजों से गिरकर उन्हें अपने तीखे नाराचों का निशाना बनाने लगे। वहां हमने देखा, उनके एक ही बाण से विदीर्ण होकर बड़े _बड़े गजराज धराशायी हो रहे हैं। दूसरी ओर महाबली भीमसेन भी अपने रथ से कूदे और बहुत बड़ी गदा हाथ में लेकर दण्डधारी यमराज की भांति उन हाथियों पर टूट पड़े। उन्हें गदा हाथ में लिये देख आपके सैनिक थर्रा उठे, उनका मल_मूत्र निकल पड़ा और सबपर उद्वेग छा गया। भीम की गदा के आघात से हाथियों के कुम्भस्थल फूट जाते और वे धूल में भरे हुए इधर_उधर भागते देखें जाते थे। कितने ही हाथी गदा की चोट से आहत हो चिग्घाड़ कर गिर पड़ते थे। गजसेना की यह दुर्दशा देखकर आपके सारे सैनिक भय से कांप उठे। इस प्रकार युधिष्ठिर और नकुल_सहदेव भी आपके हाथी सवारों को यमलोक भेज रहे थे। इसी समय अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा ने रथ सेना में दुर्योधन को ढ़ूंढ़ा, जब वह नहीं मिला, तो उन्होंने वहां खड़े हुए क्षत्रियों से पूछा_'राजा दुर्योधन कहां गये ?' उत्तर मिला_'सारथि के मारे जाने पर वे पांचालराज की दुर्धर्ष सेना का सामना करना छोड़ शकुनि के पास चले गये हैं। तब वे तीनों वीर पांचालराज की उस दुर्धर्ष सेना का व्यूह तोड़कर शकुनि के पास जा पहुंचे। उनके चले जाने पर पाण्डवपक्ष के योद्धा आपके सैनिकों का संहार करते हुए उनपर चढ़ आये। उन्हें आक्रमण करते देख हमारे पक्ष के बहुत _से योद्धा जीवन से निराश हो गये। उनका चेहरा फीका पड़ गया। उनके अस्त्र_शस्त्र कम हो गये थे और चारों ओर से घिर भी गये थे। उनकी यह दशा देख मैं अन्य चार महारथियों को साथ लेकर प्राणों की परवाह न करके पांचालों की सेना से युद्ध करने लगा। किन्तु अर्जुन के बाणों से पीड़ित हो जाने के कारण वहां से हम पांचों को भागना पड़ा। तब सेनासहित धृष्टद्युम्न के साथ हमारी मुठभेड़ हुई; किन्तु द्रुपद कुमार ने हम सब लोगों को परास्त कर दिया। वहां से भागकर हम दूसरी ओर आये तो महारथी सात्यकि दिखाई पड़ा। वह बिलकुल पास आ गया था। मुझे देखते ही उसने चार सौ रथियों के साथ धावा कर दिया। धृष्टद्युम्न के चंगुल से किसी तरह निकला तो सात्यकि की सेना में आ फंसा। थोड़ी देर तक वहां बड़ा भयंकर संग्राम हुआ। सात्यकि ने मेरी सारी युद्ध सामग्री नष्ट कर दी और मुझे भी पकड़ लिया। इतने में भीमसेन की गदा और अर्जुन के नाराचों से वहां सारी गजसेना का संहार हो गया। 

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