Saturday 14 October 2023

क्रोध में भरे हुए बलराम को श्रीकृष्ण का समझाना और युधिष्ठिर के साथ श्रीकृष्ण की तथा भीमसैन की बातचीत


धृतराष्ट्र ने पूछा_संजय ! जब राजा दुर्योधन अधर्मपूर्वक मारा गया, उस समय बलभद्रजी ने क्या कहा ? वे तो गदायुद्ध के विशेषज्ञ हैं, यह अन्याय देखकर चुप न रहे होंगे; अतः उन्होंने यदि कुछ किया हो तो बताओ। संजय ने कहा_महाराज ! भीमसेन ने आपके पुत्र की जांघों में प्रहार किया_यह देख महाबली बलरामजी को बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने सब राजाओं के बीच अपना हाथ ऊपर उठाकर भयंकर आर्तनाद करते हुए कहा_"भीमसेन ! तुम्हें धिक्कार है ! धिक्कार है !! बड़े अफसोस की बात है कि इस युद्ध में नाभि के नीचे के अंग में गदा का प्रहार किया गया। आज भीम ने जैसा अन्याय किया है, वह गदायुद्ध में पहले कभी नहीं देखा गया। शास्त्र ने यह निर्णय कर दिया है कि 'गदायुद्ध में नाभि से नीचे नहीं प्रहार करना चाहिये।' किन्तु यह तो मूर्ख है, शास्त्र को बिलकुल नहीं जानता, इसलिये मनमाना वर्ताव करता है।" इसके बाद उन्होंने दुर्योधन की ओर दृष्टिपात किया, उसकी दशा देख उनकी आंखें क्रोध से लाल हो गयीं; वे फिर कहने लगे_'कृष्ण ! दुर्योधन मेरे समान बलवान है, इसकी समानता करनेवाला कोई योद्धा नहीं है। आज अन्याय करके केवल दुर्योधन ही नहीं गिराया गया है, मेरा भी अपमान किया गया है। शरणागत की दुर्बलता देखकर शरण देनेवाले का तिरस्कार किया जा रहा है।' यह कहकर वे अपना हल ऊपर को उठाया भीमसेन की ओर दौड़े। यह देख श्रीकृष्ण ने बड़ी विनती और बड़े प्रयत्न के साथ अपनी दोनों भुजाओं से बलरामजी को पकड़ लिया और उन्हें शान्त करते हुए कहा_"भैया ! अपनी उन्नति छः प्रकार की होती है _अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि, अपने मित्र की वृद्धि और शत्रु के मित्र की हानि। अपने या मित्र को जब विपरीत दशा आ घेरती है, तो मन में ग्लानि होती है ही। आप जानते हैं पाण्डव हमलोगों के स्वाभाविक मित्र हैं; ये विशुद्ध पुरुषार्थ का भरोसा रखनेवाले हैं, बुआ के लड़के होने के कारण हर तरह से अपने हैं। शत्रुओं ने कपटपूर्ण वर्ताव करके पहले इन्हें बहुत कष्ट पहुंचाया है। सभामवन में भीम ने यह प्रतिज्ञा की थी कि 'मैं अपनी गदा से दुर्योधन की जांघें तोड़ डालूंगा।' प्रतिज्ञा पालन क्षत्रिय के लिये धर्म है और भीम ने उसी का पालन किया है। महर्षि मैत्रेय ने भी दुर्योधन को यह शाप दिया था कि 'भीम अपनी गदा से तेरी जांघें तोड़ डालेगा।' इस प्रकार यही होनहार थी, मैं भीम का इसमें कोई दोष नहीं देखता। इसलिये  आप अपना क्रोध शान्त कीजिये। बुआ और बहन के नाते पाण्डवों के साथ हमलोगों का यौन संबंध भी है; मित्र तो ये हैं ही। अतः इनकी उन्नति में ही हमलोगों की उन्नति है। इसलिये आप क्रोध न कीजिये।" श्रीकृष्ण की बात सुनकर धर्म को जाननेवाले बलदेवजी ने कहा_'सत्पुरुषों ने धर्म का अच्छी तरह आचरण किया है, किन्तु वह अर्थ और काम_इन दो वस्तुओं से संकुचित हो जाता है। अत्यन्त लोभी का अर्थ और अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम_ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। जो मनुष्य काम से धर्म और अर्थ को, अर्थ से धर्म और काम को तथा धर्म से काम और अर्थ को हानि न पहुंचाकर धर्म, अर्थ अथवा काम_इन तीनों का सेवन करता है, वहीं अत्यन्त सुख का भागी होता है। भीमसेन ने तो धर्म को हानि पहुंचाकर इन सबको विकृत कर डाला है। श्रीकृष्ण ने कहा_'भैया ! संसार के सबलओग आपको क्रोध रहित और धर्मात्मा समझते हैं; इसलिये शान्त हो जाइये, क्रोध न कीजिये। समझ लीजिये कि कलयुग आ गया। भीम की प्रतिज्ञा को भी भुला न दीजिये। पाण्डवों को वैर और प्रतिज्ञा के ऋण से मुक्त होने दीजिये। संजय कहते हैं_श्रीकृष्ण की बात सुनकर बलदेवजी को बहुत संतोष नहीं हुआ, उन्होंने राजाओं की सभा में फिर से कहा_'धर्मात्मा राजा दुर्योधन को अधर्मपूर्वक मारने के कारण भीमसेन संसार में कपटपूर्ण युद्ध करनेवाला कहा जायगा। दुर्योधन सरलता से युद्ध कर रहा था, उस अवस्था में वह मारा गया है; अतः: वह सनातन सद्गति को प्राप्त करेगा।'  यह कहकर रोहिणीनन्दन बलरामजी द्वारका को चल दिये। उनके चले जाने से पांचाल, वृष्णि तथा पाण्डव वीर उदास हो गये। युधिष्ठिर भी बहुत दुःखी थे, वे नीचे मुंह किये चिंता में मग्न हो रहे थे। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा_'धर्मराज ! आप चुप होकर अधर्म का अनुमोदन क्यों कर रहे हैं? दुर्योधन के भाई और सहायक मर चुके हैं, बेचारा बेहोश होकर गिरा हुआ है; ऐसी दशा में भीम इसके मस्तक को पैरों से ठुकरा रहे हैं और आप धर्मज्ञ होकर चुपचाप तमाशा देखते हैं ! क्यों ऐसा हो रहा है ? युधिष्ठिर ने कहा_कृष्ण ! भीमसेन ने क्रोध में भरकर जो इसके मस्तक को पैरों से ठुकराया है, यह मुझे भी अच्छा नहीं लगा है। अपने कुल का संहार हो जाने से मैं खुश नहीं हूं। किंतु क्या करूं ? धृतराष्ट्र के पुत्रों ने सदा ही हमें अपने कपटजाल का शिकार बनाया, कटु वचन सुनाये और वनवास दिया; भीमसेन के हृदय में इन सब बातों के लिये बड़ा दु:ख था, यही सोचकर मैंने उसके इस काम की उपेक्षा की है। धर्मराज के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने बड़े कष्ट से कहा_'अच्छा, ऐसा ही सही।' राजन् ! आपके पुत्र को मारकर भीमसेन बहुत प्रसन्न हुए थे। उन्होंने युधिष्ठिर के सामने खड़े हो हाथ जोड़कर प्रणाम किया और विजयोल्लास के साथ कहा _'महाराज ! आज यह संपूर्ण पृथ्वी आपकी हो गयी। इसके कांटे दूर हुए तथा यह मंगलमयी हो गयी। अब आप अपने धर्म का पालन करते हुए इसका शासन कीजिये। कपट से प्रेम करनेवाले जिस मनुष्य ने कपट करके ही वैर की नींव डाली थी, वह मारा जाकर पृथ्वी पर पड़ा हुआ है। जिन्होंने आपसे कटु वचन कहे थे वे दु:शासन, कर्ण तथा शकुनि भी नष्ट हो गये। अब सारा राज्य आपका है।' युधिष्ठिर ने कहा_सौभाग्य की बात है कि राजा दुर्योधन मारा गया और आपस के वैर का अंत हो गया। श्रीकृष्ण की सलाह के अनुसार चलकर हमने पृथ्वी पर विजय पायी। अच्छा हुआ कि तुम माता की ऋण से उऋण हो गये और अपना क्रोध भी तुमने शान्त कर लिया। शत्रु मरा और तुम्हारी विजय हुई, यह कितने आनन्द की बात है !


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