Wednesday 11 October 2023

भीम के प्रहार से दुर्योधन की जंघाओं का टूटना, भीमद्वारा दुर्योधन का तिरस्कार और युधिष्ठिर का विलाप

संजय कहते हैं_भगवान् श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर अर्जुन भीमसेन के देखते _देखते अपनी बायीं जंघा ठोंकने लगे। भीम ने उनका संकेत समझ लिया। फिर वे गदा लिये अनेकों प्रकार के पैंतरे बदलते हुए रणभूमि में विचरने लगे। उस समय शत्रु को चकमा देने के लिये दायें_बायें तथा वक्रगति से घूम रहे थे। इस तरह आपका पुत्र भी भीम को मार डालने की इच्छा से बड़ी फुर्ती के साथ तरह_तरह की चालें दिखा रहा था। दोनों ही चन्दन और अगर से चर्चित हुई अपनी भयंकर गदाएं  घुमाते हुए आपस के वैर का अंत कर डालना चाहते थे। जब उनकी गदाएं टकरातीं तो आग की लपटें निकलने लगती थीं। और उनसे वज्रपात के समान भयंकर आवाज होती थी। लड़ते_लड़ते जब तक जाते तो दोनों ही घड़ी भर विश्राम करते और फिर गदा उठाकर एक_दूसरे से भिड़ जाते थे। गदा के भयंकर प्रहार से दोनो के शरीर जर्जर हो रहे थे, दोनों ही खून में लथपथ थे। उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था मानो हिमालय पर ढ़ाक के दो वृक्ष फूले हुए हों। अर्जुन ने भीम को जो इशारा किया, उसे दुर्योधन भी कुछ_कुछ समझ गया था; इसलिये वह सहसा उनके पास से दूर हट गया। जब वह निकट था, उसी समय भीम ने बड़े वेग से उसपर गदा चलायी; किन्तु वह अपने स्थान से एकाएक हट गया, इसलिये गदा उसे न लगकर जमीन पर आ पड़ी। इस करार उनके प्रहार को बचाकर दुर्योधन ने भीम पर स्वयं गदा का वार किया। भीमसेन को गहरी चोट लगी। उनके शरीर से खून की धारा बह चली और वे मूर्छित_से हो गये। किंतु दुर्योधन को उनकी मूर्छा का पता न चला; क्योंकि भीम अत्यन्त वेदना सहकर भी अपने शरीर को संभाले हुए थे। दुर्योधन ने यहीं समझा कि अब भीमसेन प्रहार करेंगे, इसलिये उसने उनके ऊपर पुनः प्रहार नहीं किया, वह अपने बचाव की फ़िक्र में पड़ गया। थोड़ी ही देर में जब भीमसेन पूरी तरह संभल गये तो उन्होंने दुर्योधन पर बड़े वेग से आक्रमण किया। उन्हें क्रोध में भरकर आते देख दुर्योधन ने पुनः उनके प्रहार को व्यर्थ करने का विचार किया और अवस्थान नामक दांव खेल भीम को धोखे में डालने के लिये ऊपर उछल जाना चाहा। भीमसेन उसका मनोभाव ताड़ गये थे; इसलिये सिंह के समान गर्जना करके उसके ऊपर टूट पड़े। अब वह कूदना ही चाहता था कि भीम ने उसकी जांघों पर बड़े वेग से गदा मारी। उस वज्र सरीखी गदा ने आपके पुत्र की दोनों जांघें तोड़ डालीं और वह आर्तनाद करता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। जो एक दिन संपूर्ण राजाओं का राजा था, उस वीरवर दुर्योधन के गिरते ही बड़े जोर की आंधी चली, बिजली कौंधने लगी। धूल की वर्षा शुरु हो गयी तथा वृक्षों और पर्वतओंसहइत सारी पृथ्वी कांप उठी। धूल के साथ रक्त की वर्षा भी होने लगी। आकाश में यक्षों, राक्षसों तथा पिशाचों कोलाहल सुनाई देने लगा। बहुत _से हाथ पैरों वाले भयंकर कबंध नाचने लगे। कुओं और तालाबों में खून उफनने लगा। नदियां अपने उद्गम की ओर बहने लगीं। स्त्रियों में पुरुषों का तथा पुरुषों में स्त्रियों का_सा भाव आ गया। इस करार नाना प्रकार के अद्भुत उत्पात दिखाई देने लगे। देवता, गन्धर्व, अप्सराएं, सिद्ध तथा चारण लोग आपके दोनों पुत्रों के अद्भुत संग्राम की चर्चा करते हुए जहां से आये थे वहीं चले गये।
संजय कहते हैं_महाराज ! आपके पुत्र को इस प्रकार भूमि पर पड़ा देख पाण्डवों तथा सोमकों को बड़ी प्रसन्नता हुई। तदनन्तर, प्रतापी भीमसेन दुर्योधन के पास जाकर बोले_'अरे मूर्ख ! पहले भरी सभा में तूने जो एकवस्त्रा द्रौपदी की हंसी उड़ाई थी और हमलोगों को बैल कहकर अपमानित किया था,उस उपहास का फल आज भोग ले।' यों कहकर उन्होंने बातें पैर से दुर्योधन के मुकुट को ठुकरा दिया और उसके सिर को भी पैर से दबाकर रगड़ डाला। उसके बाद जो कुछ-कुछ कहा, वह भी सुनिये_'हमलोगों ने शत्रुओं कोअ दबाने के लिये छल_कपट से काम नहीं लिया, आग में जलाकर कोशिश नहीं की, न जुआ खेला, न कोई धोखाधड़ी की, न जुआ खेला, न और कोई धोखा_धड़ी; केवल अपने बाहुबल के भरोसे दुश्मनों को पछाड़ा है। ऐसा कहकर भीमसेन खूब हंसे; फिर युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा सृंजय से धीरे धीरे बोले_'आपलोग देखते हैं न ? जो रजस्वला अवस्था में द्रौपदी को सभा के भीतर घसीट लाए थे और जिन्होंने उसे नंगी करने का प्रयत्न किया था, वे धृतराष्ट्र के सभी पुत्र पाण्डवों के हाथ से मारे गये। यह द्रुपद कुमारी की तपस्या का फल है। जिन्होंने हमें तेलहीन तिल के समान सारहीन एवं नपुंसक कहा था, उन सबको सेवकों तथा सम्बन्धियोंसहित मौर के घाट उतार दिया गया।' इसके बाद भीम ने दुर्योधन के कंधे पर रखी हुई गदा ले ली और कपटी कहकर पुनः उसके मस्तक को अपने बायें पैर से दबाया। किन्तु उनके इस वर्ताव को धर्मात्मा सोमकों ने पसंद नहीं किया। उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भी उनसे कहा_'भैया भीम ! तुमने अपने वैर का बदला ले लिया, तुम्हारी प्रतिज्ञा भी पूरी हो गयी; अब तो शान्त हो जाओ। दुर्योधन के मस्तक को पैर से न ठुकराओ, धर्म का उल्लंघन न करो। एक दिन यह ग्यारह अक्षौहिणी सेना का स्वामी था और अपना कुटुम्बी रहा है; अतः पैर से इसका स्पर्श नहीं करना चाहिये। इसके भाई और मंत्री मारे गये, सेना भी नष्ट हो गयी और स्वयं भी युद्ध में मारा गया; अतः यह सब प्रकार से सोचनीय है, दया का पात्र है, इसकी हंसी नहीं उड़ानी चाहिये। सोचो तो, इसकी संतानें नष्ट हो गयीं, अब इसे पिण्ड देनेवाला भी कोई न रहा। इसके सिवा अपना भाई ही तो है, क्या इसके साथ यह वर्ताव उचित था ? इसे पैरों से ठुकराकर तुमने न्याय नहीं किया है। भीमसेन ! तुम्हें तो लोग धार्मिक बताते हैं, फिर तुम क्यों राजा का अपमान करते हो ?'भीमसेन से ऐसा कहकर दुर्योधन युधिष्ठिर के निकट गये और बहुत दु:ख प्रगट करते हुए गद्गद् कण्ठ से बोले_'तात ! तुम हमलोगों पर क्रोध न करना, अपने लिये भी शोक न करना; क्योंकि सब प्राणियों को अपने पूर्वजन्म में किये हुए कर्मों का भयंकर परिणाम भोगना पड़ता है। तुमने अपने ही अपराध से इतना बड़ा संकट मोर लिया है। लोभ, मद और मूर्खता के कारण मित्रों, भाइयों, चाचाओं, पुत्रों तथा पौत्रों को मरवाकर अन्त में तुम स्वयं भी मौत के मुख में जा पड़े। तुम्हारे ही अपराध से हमें तुम्हारे महारथी भाइयों तथा अन्य कुटुम्बी का वध करना पड़ा है। वास्तव में प्रारब्ध को कोई टाल नहीं सकता। भैया ! तुम्हें अपने आत्मा के कल्याण के विषय में शोक नहीं करना चाहिये; तुम्हारी मृत्यु इतनी उत्तम हुई है, जिसकी दूसरे लोग इच्छा करते हैं। इस समय तो हम ही लोग सब तरह से शोक के योग्य हो गये; क्योंकि अब हमें अपने प्यारे बन्धुओं के वियोग में बड़े दुःख के साथ जीवन बिताना होगा। जब भाइयों, पुत्रों और पौत्रों की विधवा स्त्रियां शोक में डूबीं हुई हमारे सामने आयेंगी, उस समय हम कैसे उनकी ओर देख सकेंगे ? राजन् ! तुमने तो अकेले स्वर्ग की राह ली है, निश्चय ही तुम्हें स्वर्ग में स्थान मिलेगा।' यह कहकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर शोक से आतुर हो गये और लम्बी_लम्बी सांसें भरते हुए देर तक विलाप करते रहे।








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