Saturday 30 September 2023

भीम और दुर्योधन का भयंकर गदायुद्ध

संजय कहते हैं_महाराज ! उन दोनों भाइयों में जब पुनः भिड़ंत हुई तो दोनों _ही_दोनों के चूकने का अवसर देखते हुए पैंतरे बदलने लगे। दोनों की गाएं यमदंड और वज्र के समान भयंकर दिखाई देती थीं। भीमसेन जब अपनी गदा को घुमाकर प्रहार करते, उस समय उसकी भयंकर आवाज एक मुहूर्त तक गूंजती रहती थी। यह देखकर दुर्योधन को बड़ा विस्मय होता था। नाना प्रकार के पैंतरे दिखाकर चारों ओर चक्कर लगाते हुए भीमसेन की उस समय अपूर्व शोभा हो रही थी।दोनों एक_दूसरे से भिड़कर अपनी_अपनी बचाव का प्रयत्न करते थे। तरह_तरह के पैंतरे बदलना, चक्कर देना, शत्रु पर प्रहार करना, उसके प्रहार को बचाना या रोकना तथा आगे बढ़कर पीछे हटना, वेग से शत्रु पर धावा करना, उसके प्रयत्न को निष्फल कर देना, सावधानीपूर्वक एक स्थान पर खड़ा होना, सामने आते ही शत्रु से युद्ध छेड़ना, प्रहार के लिये चारों ओर घूमना, शत्रु को घूमने से रोकना, नीचे से कूदकर शत्रु का वार बचाना, तिरछी गति से उछलकर प्रहार से बचना, पास जाकर और दूर हटकर शत्रु के ऊपर प्रहार करना_इत्यादि बहुत -सी क्रियाएं दिखाते हुए दोनों लड़ रहे थे। दोनों ही प्रहार करते हुए एक_दूसरे को चकमा देने की कोशिश करते थे। युद्ध का खेल दिखाते हुए सहसा गदआओं की चोट कर बैठते थे। इस प्रकार उनमें इन्द्र और वृत्रासुर की भांति भयंकर युद्ध चल रहा था। दोनों ही अपने _अपने मण्डल में खड़े थे। दायें मण्डल में दुर्योधन भीमसेन की पसली में गदा मारी, परन्तु भीमसेन ने उसके प्रहार को कुछ भी न गिनकर यमदण्ड के समान भयंकर गदा घुमायी और उसे दुर्योधन पर दे मारा। यह देख दुर्योधन ने भी भयंकर गदा उठाकर पुनः भीमसेन पर प्रहार किया। गदा प्रहार करते समय बड़े जोर का शब्द होता और आग की चिनगारियां छूटने लगती थीं। दुर्योधन भी अपने युद्ध कौशल का परिचय देता हुआ भीमसेन से अधिक शोभा पाने लगा। भीमसेन भी बड़े वेग से गदा घुमाने लगे। इतने में आपका पुत्र दुर्योधन युद्ध के की पैंतरे दिखाता हुआ भीम पर टूट पड़ा। भीम ने भी क्रोध में भरकर उसकी गदा पर आघात किया। दोनों गदआओं के टकराने की भयानक आवाज हुई, चिनगारियां छूटने लगीं। भीमसेन ने बड़े वेग से गदा छोड़ी थी, वह ज्यों ही नीचे गिरी, वहां की धरती कांपी उठी। यह देख दुर्योधन ने भीमसेन के मस्तक पर गदा का प्रहार किया किन्तु भीमसेन तनिक भी घबराये नहीं _यह एक अद्भुत बात थी। तत्पश्चात् भीमसेन ने आपके पुत्र पर बड़ी भारी गदा चलायी, किन्तु दुर्योधन फुर्ती से इधर_उधर होकर उस प्रहार को बचा गया। इससे लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। अब उसने भीमसेन की छाती पर गदा मारी, उसकी चोट से भीम को मूर्छा आ गयी और एक क्षण तक उन्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान तक न रहा। किन्तु थोड़ी ही देर में उन्होंने अपने को संभाल लिया और दुर्योधन की पसली में बड़े जोर से गदा मारी। उस प्रहार से व्याकुल हो आपका पुत्र जमीन पर घुटने टेककर बैठ गया। उसे इस अवस्था में देखकर सृंजय ने हर्षध्वनि की। तब दुर्योधन क्रोध से जल उठा और महान् सर्प की भांति हुंकारें भरने लगा। उसने भीमसेन की ओर इस तरह देखा, मानो उन्हें भष्म कर डालेगा। उनकी खोपड़ी कुचल डालने के लिये वह हाथ में गदा लिये उनकी ओर दौड़ा। पास पहुंचकर उसने भीम के ललाट पर गदा का आघात किया। किन्तु भीम पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े रहे, इस प्रहार का उनपर कोई असर नहीं हुआ। तदनन्तर, उन्होंने भी दुर्योधन के ऊपर अपनी लोहमयी गदा का प्रहार किया। उसकी चोट से आपके पुत्र की नस_नस ढ़ीली हो गयी। वह कांपता हुआ पृथ्वी पर जा पड़ा। यह देख पाण्डव हर्ष में भरकर सिंहनाद करने लगे। कुछ ही देर में जब दुर्योधन को होश हुआ तो वह उछलकर खड़ा हो गया और एक सुशिक्षित योद्धा की भांति रणभूमि में विचरने लगा। घूमते _घूमते मौका पाकर उसने सामने खड़े हुए भीमसेन को गदा मारा। उसकी चोट खाकर उनका सारा शरीर शिथिल हो गया और वे धरती पर घूमने लगे। भीम को गिराकर दुर्योधन दहाड़ने लगा। उसकी गदा के आघात से भीम के कवच के चिथड़े उड़ गये थे।  उनकी ऐसी अवस्था देख पाण्डवों को बड़ा भय हुआ। किन्तु एक ही मुहूर्त में भीम की चेतना पुनः लौट आयी। उन्होंने खून से भीगे हुए अपने मुख को पोंछा और धैर्य धारण करके आंखें खोलीं। फिर बलपूर्वक अपने को संभालकर वे खड़े हो गये। उन दोनों के युद्ध को बढ़ता देख अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से कहा_'जनार्दन ! इन दोनों वीरों में आप किसको बड़ा मानते हैं; किस्में कौन_सा गुण अधिक है ? यह मुझे बताइये।' भगवान् बोले_'शिक्षा तो इन दोनों को एक_सी मिली है, किन्तु भीमसेन बल में अधिक है और अभ्यास तथा प्रयत्न में दुर्योधन बढ़ा _चढ़ा है। यदि भीमसेन धर्मपूर्वक युद्ध करेंगे तो नहीं जीत सकते; इन्होंने जूए के समय यह प्रतिज्ञा की है कि 'मैं युद्ध मेंं गदा मारकर दुर्योधन की जांघें तोड़ डालूंगा।' आज ये उस प्रतिज्ञा का पालन करें। अर्जुन ! मैं फिर भी यह कहें बिना नहीं रह सकता कि धर्मराज के कारण हमलोगों पर पुनः भय आ पहुंचा है। बहुत प्रयास करके भीष्म आदि कौरव_वीरों को मारकर हमें विजय और यश आदि की प्राप्ति हुई थी, किन्तु युधिष्ठिर ने उस विजय को फिर से संदेह में डाल दिया है। एक की हार_जीत से सबकी हार_जीत की शर्त लगाकर इन्होंने जो इस भयंकर युद्ध को जूए का दांव बना डाला, वह इनकी बड़ी भारी मूर्खता है। दुर्योधन युद्ध की कला जानता है, वीर है और एक निश्चय पर डटा हुआ है। इस विषय में शुक्राचार्य का कहा हुआ एक श्लोक सुनने में आता है, जिसमें नीति का तत्व भरा हुआ है, मैं उसका भावार्थ तुम्हें सुना रहा हूं_'युद्ध में मरने से बचे हुए शत्रु यदि प्राण बचाने के लिये भाग जायं और फिर युद्ध के लिये लौटें तो उनसे डरते रहना चाहिये; क्योंकि वे एक निश्चय पर पहुंचे हुए होते हैं। ( उस समय वे मृत्यु से भी नहीं डरते ) जो जीवन की आशा छोड़कर साहसपूर्वक युद्ध में कूद पड़ें, उनके सामने इन्द्र भी ठहर नहीं सकते।' दुर्योधन की सेना मारी गयी थी, वह परास्त हो गया था और अब राज्य मिलने की आशा न होने के कारण वह वन में चला जाना चाहता था, इसलिये भागकर पोखरे में छिपा था। ऐसे हताश शत्रु को कौन बुद्धिमान युद्ध के लिये आमंत्रित करेगा ? अब तो मुझे यह भी संदेह होने लगा है कि 'कहीं दुर्योधन हमलोगों के जीते हुए राज्य को फिर न हथिआ ले।'








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