Monday 18 September 2023

बलरामजी की सलाह से सबका समन्तपंचक में जाना तथा वहां भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध का आरंभ

वैशम्पायनजी कहते हैं_राजा जनमेजय ! इस प्रकार होनेवाले उस तुमुलयुद्ध की बात सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दु:ख हुआ और उन्होंने संजय से पूछा _'सूत ! गदायुद्ध के समय बलरामजी को उपस्थित देख मेरे पुत्र ने भीमसेन के साथ किस प्रकार युद्ध किया?' संजय ने कहा_महाराज ! बलरामजी को वहां उपस्थित देख दुर्योधन को बड़ी खुशी हुई। राजा युधिष्ठिर तो उन्हें देखते ही खड़े हो गये और बड़ी प्रसन्नता के साथ उनका पूजन करके बैठने को आसन दे कुसल_समाचार पूछने लगे। तब बलरामजी ने उनसे कहा_'राजन् ! मैंने ऋषियों के मुंह से सुना है कि कुरुक्षेत्र बड़ा पवित्र तीर्थ है, वह स्वर्ग प्रदान करनेवाला है, देवता, ऋषि तथा महात्मा, ब्राह्मण सदा उसका सेवन करते हैं, वहां युद्ध करके प्राण त्यागनेवाले मनुष्य निश्चय ही स्वर्ग में इन्द्र के साथ निवास करेंगे। इसलिए हमलोग यहां से समन्तपंचक क्षेत्र में चलें, वह देवलोक में प्रजापति की उत्तर वेदी की नाम से विख्यात है। वह त्रिभुवन का अत्यन्त पवित्र एवं सनातन तीर्थ है, वहां युद्ध करने से जिसकी मृत्यु होगी, वह अवश्य ही स्वर्गलोक में जायगा।' 'बहुत अच्छा' कहकर युधिष्ठिर ने बलरामजी की आज्ञा स्वीकार की और समन्तपंचक क्षेत्र की ओर चल दिये। राजा दुर्योधन भी हाथ में बहुत बड़ी गदा ले पाण्डवों के साथ पैदल ही चला। उस समय शंखनाद होने लगा, भेरियां बज उठीं और शूरवीरों के सिंहनाद से संपूर्ण दिशाएं भर गयीं। तत्पश्चात् वे लोग कुरुक्षेत्र की सीमा में आये, फिर पश्चिम की ओर आगे बढ़कर सरस्वती के दक्षिण किनारे पर जीत एक उत्तम तीर्थ में पहुंचे। वहीं स्थान उन्हें युद्ध के लिये पसंद आया। फिर तो भीमसेन कवच पहनकर हाथ में बड़ी नोकवाली गदा ले युद्ध के लिये तैयार हो गये। दुर्योधन भीअ सिर पर टोप लगाये सोने का कवच बांधे भीम के सामने डट गया। फिर दोनों भाई क्रोध में भरकर एक_दूसरे को देखने लगे। दुर्योधन की आंखें लाल हो रही थीं। उसने भीमसेन की ओर देखकर अपनी गदा संभाली और उन्हें ललकारा। भीम ने भी गदा ऊंची करके दुर्योधन को ललकारा। दोनों ही क्रोध में भरे थे। दोनों की गाथाएं ऊपर को उठी थीं और दोनों ही भयंकर पराक्रम दिखाने वाले थे। उस समय वे राम_रावण और बालि सुग्रीव के समान जान पड़ते थे। तदनन्तर, दुर्योधन ने केकय, सृंजय और पांचालों तथा श्रीकृष्ण, बलराम एवं अपने भाइयों के साथ खड़े हुए युधिष्ठिर से कहा_'मेरा भीमसेन के साथ जो युद्ध ठहरा हुआ है, उसको आप सब लोग पास ही बैठकर देखिये।' दुर्योधन की इस राय को सबने पसंद किया। फिर सब लोग बैठ गये। चारों ओर राजाओं की मंडली बैठी और बीच में भगवान् बलराम विराजमान हुए; क्योंकि सबलओग उनका सम्मान करते थे।वैशम्पायनजी कहते हैं _यह प्रसंग सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दु:ख हुआ, उन्होंने संजय से कहा_'सूत ! जिसका परिणाम इतना दु:कंद होता है, उस मानव_जन्म को धिक्कार है ! मेरा पुत्र ग्यारह अक्षौहिणी सेना का मालिक था, उसने सब राजाओं पर हुक्म चलाया, सारी पृथ्वी का अकेले उपभोग किया, किन्तु अन्त में यह हालत हुई कि गदा हाथ में लेकर उसे पैदल ही युद्ध में जाना पड़ा ! इसे प्रारब्ध के सिवा और क्या कहा जा सकता ?'
संजय ने कहा_महाराज ! आपके पुत्र ने मेघ के समान गर्जना करके जब भीम को युद्ध के लिये ललकारा, उस समय अनेकों भयंकर उत्पात होने लगे। बिजली की गड़गड़ाहट के साथ आंधी चलने लगी। धूल की वर्षा शुरु हो गयी और चारों दिशाओं में अंधकार छा गया। आकाश से सैकड़ों उल्काएं टूट_टूटकर गिरने लगीं। बिना अमावस्या के ही सूर्य पर ग्रहण लग गया। वृक्षों तथा वनों के साथ धरती डोलने लगी। पर्वतों के शिखर टूट_टूटकर जमीन पर पड़ने लगे। कुओं के पानी में बाढ़ आ गयी। किसी का शरीर नहीं दिखायी देता तो भी देहधारीकी_सी आवाजें सुनायी पड़ती थीं।
इन सब अपशकुनों को देखकर भीमसेन ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा_'भैया ! आपके हृदय में जो कांटा सकता रहता है, उसे आज निकाल फेंकूंगा। इस पापी को गदा से मारकर इसके शरीर के टुकड़े_टुकड़े कर डालूंगा। अब यह पुनः हस्तिनापुर में नहीं प्रवेश करने पायगा। इस दुष्ट ने मेरे बिछौने पर सांप छोड़ा, भोजन में विष मिलाया, प्रमाणकोटि में ले जाकर मुझे पानी में गिरवाया, लाक्षाभवन में जलाने का प्रयत्न किया, सभा में हंसी उड़ायी, हमलोगों का सर्वस्व छीना तथा इसी के कारण हमें वनवास एवं अज्ञातवास का कष्ट भोगना पड़ा। आज सबका बदला चुकाकर मैं उन दु:खों से छुटकारा पा जाऊंगा। इसे मारकर अपने आत्मा का ऋण चुकाऊंगा। इस दुष्ट की आयु पूरी हो गयी है। अब इसे माता_पिता का दर्शन भी नहीं मिलेगा। आज यह कउलकलंक अपने राज्य, लक्ष्मी तथा प्राणों से हाथ धोकर सदा के लिये जमीन पर सो जायगा।' यह कहकर महापराक्रमी भीमसेन गदा ले युद्ध के लिये डट गये और दुर्योधन को पुकारने लगे। दुर्योधन ने भी गदा ऊंची की, यह देख भीमसेन पुनः क्रोध में भरकर बोले_'दुर्योधन ! वारणाव्रत में राजा धृतराष्ट्र ने और तूने जो पाप किये थे, उन्हें आज याद कर ले। तूने भरी सभा में राजस्वला द्रौपदी को जो क्लेश पहुंचाया, जूए के समय तूने और शकुनि ने मिलकर जो राजा युधिष्ठिर के साथ वंचना की_उन सबका बदला चुकाऊंगा। खुशी की बात यह है कि आज तू सामने दिखाई  दे रहा है। तेरे ही कारण पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, कर्ण तथा शल्य जैसे वीर मारे गये। तेरे भाई तथा और भी बहुत _से क्षत्रिय यमलोक पहुंच गये। सबसे पहले वैर की आग लगानेवाला शकुनि और द्रौपदी को दु:ख देनेवाला प्रतिकारी भी चल बसा, अब तू ही रह गया है, इसलिये तुझे भी इस गदा से मौत के घाट उतारूंगा_इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।' राजन् ! भीमसेन ने ये बातें बड़े जोर से कहीं थीं, इन्हें सुनकर आपके पुत्र ने बेधड़क जवाब दिया_'वृकोदर ! इतनी शेखी बघारने से क्या होगा ? चुपचाप लड़ाई कर, आज तेरा युद्ध का सारा हौसला मिटाये देता हूं। दुर्योधन को तू दूसरे साधारण लोगों के समान मत समझ, यह तेरे_जैसे किसी भी मनुष्य की धमकी से नहीं डरता। मैं तो इसे सौभाग्य समझता हूं, मेरे मन में बहुत दिनों से यह इच्छा थी कि तेरे साथ गदायुद्ध होता, सो आज देवताओं ने उसे पूर्ण कर दिया। अब बहुत बड़बड़ाने से कोई लाभ नहीं है, पराक्रम के द्वारा अपनी वाणी को सत्य करके दिखा; विलम्ब न कर।'
दुर्योधन की बात सुनकर सबने उसकी बड़ी प्रशंसा की और भीमसेन गदा उठाकर बड़े वेग से  उसकी ओर दौड़े। दुर्योधन ने भी गर्जना करते हुए आगे बढ़कर उनका सामना किया। फिर दोनों दो सांडों की तरह एक_दूसरे से भिड़ गये। प्रहार_पर_प्रहार होने लगा। उस समय गदा की चोट पड़ने पर वज्रपात के समान भयंकर आवाज होती थी। दोनों खून से नहा उठे। उनके रक्तरंजित शरीर खिले हुए ढ़ाकी के वृक्षों_जैसे दिखाई देने लगे। लड़ते_लड़ते दोनों ही थक गये, फिर दोनों ने घड़ीभर विश्राम किया। इसके बाद दोनों ही अपनी_अपनी गलाएं उठाकर आपस में युद्ध करने लगे।

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