जनमेजय ने पुछा_ मुनिवर ! भगवान् व्यास के चले जाने पर राजा धृतराष्ट्र ने क्या किया ?
तथा महामना राजा युधिष्ठिर और कृपाचार्य आदि तीन कौरव महारथियों ने क्या किया ? इसके सिवा संजय ने भी जो कुछ कहा हो, वह मुझे सुनाने की कृपा करें। वैशम्पायनजी बोले_राजन् ! जब दुर्योधन मारा गया और सारी सेना का नाश हो गया तो संजय की दिव्यदृष्टि भी जाती रही और वह राजा धृतराष्ट्र के पास आकर कहने लगा, महाराज ! देश_देश से अनेकों राजा आकर आपके पुत्रों के साथ पितृलोक को प्रस्थान कर गये। इसलिए अब आप अपने पुत्र_पौत्र, चाचा_ताऊ आदि सभी का क्रमशः प्रेत_कर्म कराइये। संजय की यह दु:खमयी वाणी सुनकर राजा धृतराष्ट्र प्राणहीन _से होकर पृथ्वी पर गिर गये। उस समय विदुरजी ने उनसे कहा, 'भरतश्रेष्ठ ! उठाये, इस प्रकार क्यों पड़े हैं ?
शोक न कीजिये। संसार में सब जीवों की अन्त में यही गति होनी है। प्राणी न तो जन्म से पहले होते हैं और न अन्त में ही रहते हैं, केवल बीच में ही उनकी प्रतीति होती है; इसलिये इनके लिये क्या शोक किया जाय ? तथा इस युद्ध में मरे हुए जिन राजाओं के लिये आप शोक करते हैं, वे तो वस्तुत: शोक के योग्य हैंभी नहीं; क्योंकि उन सबने स्वर्गलोक प्राप्त किया है। शूरवीरों को संग्राम में शरीर त्यागने से जैसी स्वर्ग गति प्राप्त होती है, वैसी तो बड़ी_बड़ी दक्षिणाओंवाले यज्ञ करने से, तपस्या से और विद्याभ्यास से भी नहीं हो सकती। इन्होंने युद्ध में शत्रुओं का सामना करते हुए प्राण त्यागे हैं, इसलिये इनके लिये क्या शोक ? राजन् !यह बात तो मैंने पहले भी आपसे कहीं थी कि क्षत्रिय के लिये युद्ध से बढ़कर इस लोक में स्वर्गप्राप्ति का और कोई साधन नहीं है। इसलिये आप अपने मन में और शोक करना छोड़िये।' विदुरजी की यह बात सुनकर राजा धृतराष्ट्र ने रथ जोतने की आज्ञा देकर कहा, 'गान्धारी और भरतवंश की सब स्त्रियों को जल्दी ही ले आओ तथा वधू कुन्ती को साथ लेकर वहां जो दूसरी स्त्रियां हैं उन्हें भी बुला लो।' धर्मज्ञ विदुरजी से वे ऐसा कहकर रथ में सवार हुए। उस समय भी शोक के कारण वे संज्ञाशून्य_से हो रहे थे। गान्धारी का भी पुत्रशोक के कारण बुरा हाल था। पति की आज्ञा पाकर वह कुन्ती तथा दूसरी स्त्रियों के साथ उनके पास आयीं। वहां पहुंचकर वे सब अत्यन्त शोकातुर होकर एक_दूसरे से विदा लेकर आयीं और बड़े जोर से विलाप करने लगीं। इस आर्तनाद ने विदुरजी को यद्यपि उनसे भी अधिक शोकाकुल कर दिया था, तो भी उन्होंने उन्हें धीरज बंधाया और सब स्त्रियों को रथ पर चढ़ाकर नगर से बाहर आये।
शअब तो कुरुवंशियों के सभी घरों में कोलाहल मच गया तथा बूढ़े से लेकर बालक तक सभी शोकाकुल हो गये। जिन स्त्रियों पर पहले कभी देवताओं की भी दृष्टि नहीं पड़ी थी, अब पतियों के मारे जाने पर वे सामान्य पुरुषों के भी सामने आ गयीं। उन्होंने बाल खोल दिये थे, आभूषण उतार दिये थे तथा वे एक साड़ी पहने अनाथा_सी होकर रणभूमि की ओर जा रही थी।पहले जिन्हें अपने सखियों के सामने भी एक साड़ी पहनकर निकलने में संकोच होता था, इस समय वही अपने सास_ससुरों के सामने इस दिन वेष में चल रहीं थीं। ऐसी हजारों स्त्रियों ने रुदन करते हुए राजा धृतराष्ट्र को घेर रखा था। उनके साथ अत्यन्त व्याकुल होकर वे रणक्षेत्र की ओर चले। बाकी आपकी सारी सेना नष्ट हो गयी। इस प्रकार वे हस्तिनापुर से एक ही कोस की दूरी पर पहुंचे होंगे कि उन्हें कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा_ये तीनों महारथी मिले। राजा धृतराष्ट्र को देखते ही उनका हृदय भर आया और आंखों में आंसू भरकर लम्बी_लम्बी सांसें लेकर कहने लगे, ' भरतश्रेष्ठ ! दुर्योधन की सेना में केवल हम तीन ही बचे हैं। बाकी आपकी सारी सेना नष्ट हो गयी।' इसके बाद कृपाचार्य ने गान्धारी से कहा, 'गान्धारी ! तुम्हारे पुत्रों ने निर्भय होकर युद्ध किया है और अनेकों शत्रुओं को रणभूमि में सुलाया है। इस प्रकार अनेकों वीरोचित कर्म करते हुए ही वे संग्राम में काम आए हैं। अब वे तेजोमय शरीर धारण करके स्वर्ग में देवताओं के समान विहार करते हैं। तुम्हारे शूरवीर पुत्रों में से ऐसा कोई भी नहीं था, जो युद्ध से पीठ दिखाते हुए मारा गया हो। हमारे प्राचीन ऋषियों ने शस्त्र से मारना जाना क्षत्रियों के लिये परमगति का कारण बताया है। इसलिये तुम उनके लिये शोक मत करो। एक बात और है, उनके शत्रु पाण्डव लोग चैन से रहे हों_ऐसी बात भी नहीं है। अश्वत्थामा आदि हम तीन महारथियों ने जो काम किया है, वह भी सुन लो। जिस समय हमने सुना कि भीमसेन ने अधर्म पूर्वक तुम्हारे पुत्र दुर्योधन को मारा है तो हम पाण्डवों के नींद में बेहोश हुए शिविर में घुस गये और वहां भीषण मार_काट मचा दी। इस प्रकार हमने धृष्टद्युम्नादि सभीफकंआआअ पांचालों को तथा द्रुपद और द्रौपदी के पुत्रों को मार डाला है। इस तरह तुम्हारे पुत्र के शत्रुओं का संहार करके हम भागे जा रहे हैं, क्योंकि हम तीन ही पाण्डवों के सामने संग्राम में नहीं ठहर सकेंगे। पाण्डव बड़े शूरवीर और महान् धनुर्धर हैं। इस समय अपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार पाकर वे क्रोध में भरकर हमारे पैरों के चिह्न देखते हुए इस वैर का बदला चुकाने के लिये बड़ी तेजी से हमारा पीछा करेंगे। उन सबका संहार करके अब हमारी यह हिम्मत नहीं है कि पाण्डवों का सामना कर सकें। इसलिये रानी ! तुम हमें यहां से जाने की आज्ञा दो और अपने मन को शोकाकुल मत करो। राजन् ! आप भी हमें जाने की आज्ञा दीजिये और क्षात्रधर्म पर विचार करके अच्छी तरह धैर्य धारण कीजिये।
राजा धृतराष्ट्र से ऐसा कहकर कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा _तीनों ने बड़ी तेजी से गंगाजी की ओर अपने घोड़े बढ़ाये। कुछ दूर निकल जाने पर वे तीनों महारथी आपस में सलाह करके अलग_अलग रास्तों से चले गये। कृपाचार्य हस्तिनापुर की ओर चल दिये, कृतवर्मा अपने देश की ओर चला गया और अश्वत्थामा ने व्यासाश्रम की राह ली।
इस प्रकार महात्मा पाण्डवों का अपराध करने के कारण भयभीत होकर वे तीनों वीर एक_दूसरे की ओर देखते हुए भिन्न-भिन्न स्थानों को चले गये। इसके कुछ ही देर बाद पाण्डवों ने अश्वत्थामा के पास पहुंचकर उसे अपने पराक्रम से संग्राम में परास्त किया था।