Saturday, 2 March 2019

सात्यकि के द्वारा राजकुमार सुदर्शन का वध, कम्बोज और यवन आदि अनार्य योद्धाओं से घोर संग्राम तथा धृतराष्ट्रपुत्रों की पराजय


संजय ने कहा___राजन् ! इस प्रकार द्रोणाचार्य तथा कृतवर्मा आदि आपके वीरों को परास्त कर सात्यकि ने अपने सारथि से कहा, ‘सूत ! हमारे शत्रुओं को तो श्रीकृष्ण और अर्जुन पहले ही भष्म कर चुके हैं। हम तो इनकी पराजय में केवल निमित्तमात्र हैं और पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन के मारे हुए योद्धाओं को ही मार रहे हैं।‘ सारथि से ऐसा कहकर वह शिनिकुलभूषण सब ओर बाणों की वर्षा करता हुआ अपने शत्रुओं पर टूट पड़ा। उसे बढ़ता देख राजकुमार सुदर्शन क्रोध में भरकर सामने आया और बलात् उसे रोकने लगा। उसने सात्यकि पर सैकड़ों बाण छोड़े। परन्तु उसने उन्हें अपने पास पहुँचने से पहले ही काट डाला। इसी प्रकार सात्यकि ने सुदर्शन पर जो बाण छोड़े, वे सात्यकि के कवच को फोड़कर उसके शरीर में घुस गये। साथ ही चार बाणों से उसने सात्यकि के घोड़ों पर भी वार किया। तब सात्यकि ने बड़ी फुर्ती से अपने तीखे तीरों द्वारा सुदर्शन के चारों घोड़ों को मारकर बड़ा सिंहनाद किया। फिर एक भल्ल से सुदर्शन के सारथि का सिर काटकर एक क्षुरप्र द्वारा उसका कुण्डलमण्डित मस्तक भी धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार राजा दुर्योधन का पौत्र सुदर्शन का संहार करके सात्यकि को बड़ा हर्ष हुआ। फिर वह आपकी सेना को,अपने बाणों की बौछारों से हटाकर सबको विस्मय में डालता हुआ अर्जुन की ओर चला। मार्ग में उसके सामने जो शत्रु आता था, उसी को वह अग्नि के समान अपने बाणों में होम देता था। उसके इस अद्भुत पराक्रम की अनेकों अच्छे_अच्छे वीर प्रशंसा कर रहे थे।अब उसने अपने सारथि से कहा, ‘मालूम होता है महावीर अर्जुन यहाँ कहीं पास ही हैं; क्योंकि उनके गाण्डीव धनुष का शब्द सुनाई दे रहा है। मुझे जैसे_जैसे शकुन हो रहे हैं, उनसे यही निश्चय होता है कि ये सूर्यास्त से पहले ही जयद्रथ का वध कर देंगे। अब तुम थोड़ी देर घोड़ों को आराम कर लेने दो। फिर जिस ओर शत्रुओं की सेना है तथा जिधर दुर्योधनादि राजा एवं काम्बोज, यवन, शक, किरात, दरद, बर्बर, ताम्लिप्तक तथा अनेकों म्लेच्छ खड़े हुए हैं, उधर ही रथ ले चलना। ये सब मेरे साथ ही युद्ध करने की तैयारी में हैं। जब रथ, हाथी और घोड़ों के सहित इन सबका संहार हो जाय, तभी तुम समझना कि हमने इस दुस्तर व्यूह को पार किया है।सारथि वे कहा___वार्ष्णेय ! यदि क्रोध में भरे हुए साक्षात् परशुरामजी भी आपके सामने आ जायँ तो मुझे कोई घबराहट नहीं होगी; इस गौ के खुर के समान तुच्छ संग्राम का तो बात ही क्या है। कहिये, किस रास्ते से मैं आपको अर्जुन के पास ले चलूँ ?सात्यकि ने कहा___ आज मुझे इन मुण्डलोगों का संहार करना है। इसलिये तुम मुझे कम्बोजों की ओर ही ले चलो। गुरुवर अर्जुन से मैंने जो शस्त्रविद्या सीखी है, आज मैं उसका कौशल दिखाऊँगा। जब मैं क्रोध में भरकर चुने_चुने योद्धाओं का वध करूँगा तो दुर्योधन को यही भ्रम होगा कि इस जगत् में दो अर्जुन हैं। महात्मा पाण्डवों के प्रति मेरी जैसी प्रीति और भक्ति है, उसे इन राजाओं के सामने सहस्त्रों वीरों का संहार करते मैं प्रकट करूँगा। आज कौरवों को मेरे बलवीर्य और कृतज्ञता का पता चल जायगा। सात्यकि के ऐसा कहने पर सारथि ने बड़ी तेजी से घोड़ों को हाँका और तुरन्त ही उसे यवनों के पास पहुँचा दिया। जब उन्होंने सात्यकि को अपने सेना के समीप आया देखा तो वे बड़ी सफाई से बाणों की वर्षा करने लगे। किन्तु सात्यकि ने अपने तीखे बाणों से उनके बाण एवं अन्याय अस्त्रों को बीच में ही काट दिया और वे उसके पास तक फटक भी न सके। इसके बाद वह बाणों की वर्षा करके उनके सिर और भुजाओं को काटने लगा। वे बाण उनके लोहे और काँसे के कवचों को फोड़कर शरीर को छेदते हुए पृथ्वी पर गिरने लगे। इस प्रकार वीर सात्यकि के मारे हुए सैकड़ों म्लेच्छ प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गये। वह धनुष को कान तक खींचकर जो बाण छोड़ता था, उनसे एक_एक बार में ही पाँच_पाँच, छ:_छः, सात_सात और आठ_आठ यवनों का काम तमाम कर देता था। इस प्रकार उसने हजारों काम्बोज, शक, शबर, किरात और बर्बरों को धराशायी करके रणभूमि को माँस और रक्त से लथपथ तथा अगम्य_सी कर दिया। सात्यकि के बाणों से मरे हुए उन वीरों से सारी पृथ्वी,भर गयी। उनमें से दो,थोड़े से योद्धा बचे, वे प्राणसंकट से भयभीत होकर रणांगण से भाग गये।राजन् ! इस प्रकार काम्बोज, यवन और शकों की दुर्जय सेना को भगाकर सात्यकि आपके पुत्रों की सेना में घुस गया और उन्हें भी परास्त करके सारथि को रथ बढ़ाने का आदेश दिया। उसे अर्जुन के समीप पहुँचा देखकर आपके सैनिक और चारणलोग बड़ी प्रशंसा करने लगे। इतने में ही आपके पुत्र दुर्योधन, चित्रसेन, दुःशासन, विविंशति, शकुनि, दुःसह, दुर्मर्षण और क्रथ ने उसे पीछे से जाकर घेर लिया। पुरुषसिंह सात्यकि को इससे तनिक भी भय न हुआ और वह अर्जुन से भी बढ़कर कुशलता दिखाता हुआ उनके साथ युद्ध करने लगा। अब राजा दुर्योधन ने तीन बाणों से उसके सूत और चार से चारों घोड़ों को बींधकर सात्यकि पर पहले तीन और फिर आठ बाणों से वार किया तथा दुःशासन ने सोलह, शकुनि ने पच्चीस, चित्रसेन ने पाँच और दुःसह ने पन्द्रह बाणों से उस पर चोट की। इस पर सात्यकि ने मुस्कराते हुए उन सभी को तीन_तीन बाणों से बींध दिया। फिर शकुनि के धनुष को काटकर तीन बाणों से दुर्योधन की छाती पर वार किया तथा चित्रसेन को सौ, दुःसह को दस और दुःशासन को बीस बाणों से घायल किया। इसके बाद उसने प्रत्येक वीर के पाँच_पाँच बाण और भी मारे तथा एक भल्ल से दुर्योधन के सारथि पर प्रहार किया। इससे वह प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गया। सारथि से मारे जाने पर घोड़े हवा से बातें करने लगे और उसके रथ को संग्रामभूमि से बाहर ले गये। यह देखकर आपके अन्य पुत्र और दूसरे सैनिक भी मैदान छोड़कर भाग गये। इस प्रकार आपकी सब सेना को तितर_बितर  करके वह फिर अर्जुन के रथ की ओर ही चला। किन्तु वह कुछ ही आगे बढ़ा था कि दुर्योधन की आज्ञा से संशप्तकों के सहित वे सब योद्धा फिर लौट आये। स्वयं दुर्योधन उनके आगे था। उसके साथ तीन हजार घुड़सवार तथा शक, काम्बोज, बाह्लीक, यवन, पारद, कुलिन्द, अम्बष्ठ, पैशाच, बर्बर और पर्वतीय योद्धा हाथों में पत्थर लेकर बड़े क्रोध से सात्यकि की ओर दौड़े। दुःशासन ने ‘ इसे मार डालो’  ऐसा कहकर सबको उत्साहित किया और सात्यकि को चारों ओर से घेर लिया। इस समय हमने सात्यकि का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। वह अकेला ही बेखटके उन सब के साथ संग्राम कर रहा था तथा रथसेना, गजसेना और घुड़सवारों के सहित उन सभी अनार्यों का संहार करता जाता था। जब वे मार खाकर भागने लगे, तो उनसे दुःशासन ने कहा___’अरे ! भागते क्यों हो ? तुमलोग तो पत्थरों की मार मारने में बड़े कुशल हो, सात्यकि तो इससे सर्वथा अनभिज्ञ है। इसलिये तुम पत्थर बरसाकर इसे मार डालो।‘ यह सुनकर वे फिर सात्यकि पर टूट पड़े और हाथी के सिर के समान बड़ी_बड़ी शिलाएँ लिये उसके सामने आये। कोई उसे मार डालने के लिये गोफनियाँ लेकर सब ओर से मार्ग रोककर खड़े हो गये। उन्हें शिलायुद्ध करने की इच्छा से आया देख सात्यकि ने बाण बरसाना आरम्भ कर दिया। फिर उन्होंने जो भयंकर पाषाण वर्षा की, उसे सात्यकि ने अपने बाणों से छिन्न_भिन्न कर दिया। उन पत्थरों के रोड़ों से आपही की सेना मरने लगी और उसमें बड़ा हाहाकार होने लगा। बात_की_बात में पाँच सौ शिलाधारी वीर अपनी भुजाओं के कट जाने से प्राणहीन होकर पृथ्वी पर गिर गये।अब अनेकों व्यात्तमुख, अयोहस्त, शूलहस्त, दरद, खस लम्पाक और कुलिन्द योद्धा सात्यकि पर पत्थरों की वर्षा करने लगे। किन्तु युद्धकुशल सात्यकि ने बाणों की बौछार से उनके पत्थरों के भी टुकड़े_टुकड़े कर दिये। उनकी बजरी की चोट भौंरों के जंतु के समान जान पड़ती थी। उससे पीड़ित होकर मनुष्य, हाथी और घोड़े संग्रामभूमि में टिक न सके। जो हाथी मरने से बचे थे, वे खून से लथपथ हो गये तथा उनके मस्तकों की हड्डियाँ टूट गयीं। इसलिये वे भी अकेले सात्यकि के रथ को छोड़कर संग्रामभूमि से भाग गये। आपके जो पुत्र सात्यकि से लड़ने आये थे, वे भी उनकी मार से घबराकर द्रोणाचार्यजी की सेना में जा मिले तथा जिन रथियों को लेकर दुःशासन ने धावा किया था, वे सब भी भयभीत होकर द्रोण के रथ की ओर दौड़े।



Saturday, 23 February 2019

सात्यकि का कृतवर्मा के साथ युद्ध, जलसन्ध का वध तथा द्रोण और दुर्योधनादि धृतराष्ट्र_पुत्रों से घोर संग्राम

संजय ने कहा___राजन् ! अब आपने जो बात पूछी थी, वह सुनिये। जब कृतवर्मा ने पाण्डवों की सेना को भगा दिया तो सात्यकि बड़ी फुर्ती से उसके सामने आ गया। कृतवर्मा ने उस पर तीखे बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। इस पर सात्यकि ने बड़ी फुर्ती से उस पर एक भल्ल और चार बाण छोड़े। बाणों से उसके घोड़े नष्ट हो गये तथा भल्ल से धनुष कट गया। फिर उसने अनेकों पैने बाणों से कृतवर्मा के पृष्ठरक्षक और सारथि को भी घायल कर दिया। इस प्रकार उसे रथहीन करके महावीर सात्यकि ने अपने पैने बाणों से उसकी सेना की नाक में दम कर दिया। उस बाणवर्षा से पीड़ित होकर कृतवर्मा की सेना तितर_बितर हो गयी। तब सात्यकि आगे बढ़ा और बाणों की वर्षा करता हुआ गजसेना के साथ युद्ध करने लगा। वीरवर सात्यकि के छोड़े हुए वज्रतुल्य बाणों से व्यथित होकर लड़ाके हाथी युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगे। उनके दाँत टूट गये, शरीर लोहूलुहान हो गया, मस्तक फट गये तथा कान मुँह और सूँड छिन्न_भिन्न हो गये। उनके महावत नष्ट हो गये, पताकाएँ कटकर गिर गयीं, सवार युद्ध में काम आ गये । सात्यकि ने नाराच, वत्सदन्त, भल्ल, क्षुरप्र और अर्धचन्द्र नामक बाणों से उन्हें बहुत ही घायल कर दिया। इससे वे चिघ्घाड़ते, खून उगलते और मल_मूत्र छोड़ते इधर_उधर भागने लगे। इसी समय एक हाथी पर सवार हुआ महाबली जलसन्ध अपना धनुष घुमाता सात्यकि पर चढ़ आया। सात्यकि ने,उसके हाथी को अकस्मात् आक्रमण करते देख अपने बाणों से रोक दिया। इस पर जलसन्ध ने बाणों द्वारा सात्यकि की छाती पर वार किया। सात्यकि बाण छोड़ना चाहता ही था कि जलसन्ध ने एक नाराच से उसका धनुष काट डाला तथा पाँच बाणों से उसे भी घायल कर दिया। परंतु महाबाहु सात्यकि बहुत_से बाणों से घायल हो जाने पर भी टस_से_मस न हुआ। उसने तुरंत ही दूसरा धनुष लिया और साठ बाणों से जलसन्ध के विशाल वक्षःस्थल पर वार किया। अब जलसन्ध ने ढाल और तलवार उठायी तथा तलवार को उठाकर सात्यकि के ऊपर फेंका। वह उसके धनुष को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ी। तब सात्यकि ने दूसरा धनुष उठाया और उसकी टंकार करके एक पैने बाण से जलसन्ध को बींध दिया। फिर दो क्षुरप्र बाणों से उसने जलसन्ध की भुजाएँ काट डाले तथा तीसरे क्षुरप्र से उसका मस्तक उड़ा दिया।
जलसन्ध को मरा देखकर आपकी सेना में बड़ा हाहाकार मच गया। आपके योद्धा पीठ दिखाकर जहाँ_तहाँ भागने का प्रयत्न करने लगे। इतने में ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य द्रोण अपने घोड़ों को दौड़ाकर सात्यकि के सामने आ गये। यह देखकर प्रधान_प्रधान कौरव भी आचार्य के साथ ही उस पर टूट पड़े। अब सात्यकि पर द्रोण ने सतहत्तर, दुर्मर्षण ने बारह, दुःसह ने दस, दुःशासन ने आठ और चित्रसेन ने दो बाण छोड़े। राजा दुर्योधन तथा अन्य महारथियों ने भी भीषण बाणवर्षा करके उसे पीड़ित करना आरम्भ किया; किन्तु सात्यकि ने अलग_अलग उन सभी केबाणों का जवाब दिया। उसने द्रोण के तीन, दुःसह के नौ, विकर्ण के पच्चीस, चित्रसेन के सात, दुर्मर्षण के बारह, विविंशति के आठ, सत्यव्रत के नौ और विजय के दस बाण मारे। फिर वह दुर्योधन पर टूट पड़ा और इस पर बाणों की गहरी चोट करने लगा। दोनों में तुमुल युद्ध छिड़ गया और दोनों ही ने अपने_अपने धनुष संभालकर बाणों की वर्षा करते हुए एक_दूसरे को अदृश्य कर दिया।  दुर्योधन के बाणों ने सात्यकि को बहुत ही घायल कर दिया तथा सात्यकि ने भी अपने बाणों से आपके पुत्रों को बींध डाला। आपके दूसरे पुत्रों ने भी आवेश में भरकर सात्यकि पर बाणों की झड़ी लगा दी। किन्तु उसने प्रत्येक पर पहले पाँच_पाँच बाण छोड़कर फिर सात_सात बाणों से वार किया और फिर बड़ी फुर्ती से आठ बाणों द्वारा दुर्योधन पर चोट की। इसके पश्चात् उसने उसके धनुष और ध्वजा को काटकर गिरा दिया। फिर चार तीखे बाणों से चारों घोड़ों को मारकर एक बाण से सारथि का भी काम तमाम कर दिया। अब दुर्योधन के पैर उखड़ गये। वह भागकर चित्रसेन के रथ पर चढ़ गया। इस प्रकार अपने राजा को सात्यकि द्वारा पीड़ित होते देख सब ओर हाहाकार होने लगा। उस कोलाहल को सुनकर बड़ी फुर्ती से महारथी कृतवर्मा सात्यकि के सामने आया। उसने छब्बीस बाणों से सात्यकि को, पाँच से उसके सारथि को और चार से चारों घोड़ों को घायल कर डाला। इसपर सात्यकि ने बड़ी तेजी से उस पर अस्सी बाण छोड़े। उनकी चोट से अत्यंत घायल होकर कृतवर्मा काँप उठा। इसके बाद सात्यकि ने तिरसठ बाणों से उसके चारों घोड़ों को और सात से सारथि को बींध डाला। फिर एक अत्यन्त तेजस्वी बाण कृतवर्मा पर छोड़ा। वह उसके कवच को फोड़कर खून में लथपथ हुआ पृथ्वी पर गिर गया। उसकी चोट से कृतवर्मा का शरीर लोहूलुहान हो गया, उसके हाथ से धनुष_बाण गिर गये और वह अत्यंत पीड़ित होकर घुटनों के बल रथ की बैठक में गिर गया।
इस प्रकार कृतवर्मा को परास्त करके सात्यकि आगे बढ़ा। अब द्रोणाचार्य उसके आगे आकर बाणों की वर्षा करने लगे। उन्होंने तीन बाणों से सात्यकि के ललाट पर चोट की तथा और भी अनेक बाणों से उस पर वार किया। परंतु सात्यकि ने दो_दो बाण मारकर उन सभी को काट दिया। इस पर आचार्य ने हँसकर पहले तीस और फिर पचास बाण छोड़े। इससे सात्यकि का क्रोध भड़क उठा। उसने नौ पैने बाणों से द्रोण पर वार किया तथा उनके सामने ही सौ बाणों से उनके सारथि और ध्वजा को बींध डाला। सात्यकि की ऐसी फुर्ती देखकर आचार्य ने सत्तर बाणों से उसके सारथि को बींधकर तीन से उसके घोड़ों पर चोट की। फिर एक बाण से रथ की ध्वजा काटकर दूसरे से उसका धनुष काट डाला। इस पर सात्यकि ने एक भारी गदा उठाकर द्रोण के ऊपर छोड़ी। उसे सहसा अपने ऊपर आते देख आचार्य ने बीच में ही अनेकों बाणों से काटकर गिरा दिया।
फिर उसने दूसरा धनुष ले उससे बहुत_से बाण बरसाकर द्रोण की दाहिनी भुजा को घायल कर दिया। इससे उन्हें बड़ी पीड़ा हुई और एक अर्धचन्द्र बाण से सात्यकि का धनुष काटकर एक शक्ति से उसके सारथि को मूर्छित कर दिया। इस समय सात्यकि ने बड़ा ही अतिमानुष कर्म किया। वह द्रोणाचार्य से युद्ध करता रहा और साथ ही घोड़ों की लगाम भी संभाले रहा। फिर उसने एक बाण से द्रोण के सारथि को पृथ्वी पर गिराकर उसके घोड़ों को बाणों द्वारा इधर_उधर भगाना आरम्भ किया। वे उनके रथ को लेकर रणांगण में हजारों चक्कर काटने लगे। उस समय सभी राजा और राजकुमार कोलाहल मचाने लगे। किन्तु सात्यकि के बाणों से पीड़ित होकर आचार्य के घोड़े हवा हो गये और उन्होंने फिर उसे व्यूह के द्वार पर ही लाकर खड़ा कर दिया। आचार्य ने पाण्डव और पांचालों केप्रयत्न से अपने व्यूह को टूटा हुआ देखकर फिर सात्यकि का ओर जाने का विचार छोड़ दिया और पाण्डव और पांचालों को आगे बढ़ने से रोककर व्यूह ही रक्षा करने लगे।

Sunday, 17 February 2019

कौरवसेना के पराभव के विषय में राजा धृतराष्ट्र और संजय का संवाद तथा कृतवर्मा के पराक्रम की वर्णन

राजा धृतराष्ट्र ने कहा___ संजय ! हमारी सेना अनेक प्रकार के गुणों से सम्पन्न और सुव्यवस्थित है। उसकी व्यूहरचना भी विधिवत् की जाती है। हम सर्वदा उसका अच्छी तरह सत्कार करते रहते हैं तथा उसका  भी हमारे प्रति अच्छा भाव है। उसमें कोई बूढ़ा या बालक, अधिक दुबला या मोटा अथवा बौना पुरुष भी नहीं है। सभी सबल और स्वस्थ शरीरवाले हैं। हमने किसी को भी फुसलाकर, उपकार करके अथवा संबंध के कारण भर्ती नहीं किया। इनमें ऐसा कोई भी नहीं है, जो बिना बुलाये अथवा बेगार में पड़कर लाया गया हो। हमने अनेकों महारथी योद्धाओं को चुन_चुनकर ही भर्ती किया है तथा उनमें से किसी को यथायोग्य वेतन देकर और किन्ही को प्रिय भाषण करके संतुष्ट किया है। हमारी सेना में ऐसा योद्धा एक भी नहीं है, जिसे थोड़ा वेतन मिलता हो,अथवा वेतन मिलता ही न हो। मैंने, मेरे पुत्रों ने तथा हमारे बन्धु_बान्धवों ने सभी का दान, मान और आसनादि से सत्कार किया है। किन्तु फिर भी श्रीकृष्ण और अर्जुन सही_सलामत हमारी सेना में घुस गये, कोई उनका बाल भी बाँका नहीं कर सका। यहाँ तक कि सात्यकि ने भी उन्हें कुचल डाला। इसमें भाग्य के सिवा और किसे दोष दिया जाय। अच्छा, जब दुर्योधन ने अर्जुन को जयद्रथ के सामने खड़ा देखा और सात्यकि को निर्भयता से अपनी सेना में घुसते पाया, तो उसने उस समय पर अपना क्या कर्तव्य निश्चय किया ? मैं तो यही समझता हूँ कि अर्जुन और सात्यकि को अपनी सेना लाँघते और कौरव योद्धाओं को युद्धस्थल से भागते देखकर मेरे पुत्र  बड़ी चिन्ता में पड़ गये होंगे। इस समय सात्यकि के सहित श्रीकृष्ण और अर्जुन के अपनी सेना में प्रवेश की बात सुनकर मैं भी बड़ी घबराहट में पड़ गया हूँ। अच्छा, जब द्रोणाचार्य  ने पाण्डवों को व्यूह के द्वार पर रोक लिया तो वहाँ उनके साथ किस प्रकार युद्ध हुआ___यह सुनाओ और यह भी बताओ कि अर्जुन ने सिंधुराज जयद्रथ का वध करने के लिये क्या उपाय किया ? संजय ने कहा___राजन् ! यह सारी विपत्ति आपके अपराधसेे ही आयी है; इसलिये अन्य साधारण पुरुषों के समान आप इसके लिये चिन्ता न करें। पहले जब आपके बुद्धिमान सुहृद् विदुर आदि ने कहा था कि आप पाण्डवों को राज्य से च्युत न करें, तो आपने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। जो पुरुष अपने हितैषी सुहृदों की बात पर ध्यान नहीं देता, वह भारी आपत्ति में पड़कर आपही की तरह चिंता किया करता है। श्रीकृष्ण ने भी सन्धि के लिये आपसे बहुत प्रार्थना की थी; किन्तु आपसे उनका भी मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ। इससे आपकी गुणहीनता, पुत्रों के प्रति पक्षपात, धर्म पर अविश्वास, पाण्डवों के प्रति मत्सर और कुटिल भाव जानकर तथा आपके मुख से बहुत_सी बेबसीकी_सी बातें सुनकर ही सर्वलोकेश्वर श्रीकृष्ण ने कौरव_पाण्डव में यह भारी युद्ध खड़ा किया है। यह भीषण संहार आपके ही अपराध से हो रहा है। मुझे तो आगे_पीछे या मध्य में भी आपका कोई पुण्यकृत्य दिखायी नहीं देता। मेरे विचार से तो इस पराजय की जड़ आप ही हैं। अतः आप सावधान होकर जिस प्रकार यह भीषण संग्राम हुआ था, वह सुनिये।
जब सत्यपराक्रमी सात्यकि आपकी सेना में घुस गया तो भीमसेन आदि पाण्डववीर भी आपके सैनिकों पर टूट पड़े। उन्हें बड़े क्रोध से धावा करते देख महारथी कृतवर्मा ने अकेले ही आगे बढ़ने से रोक दिया। इस समय हमने कृतवर्मा का बड़ा ही अद्भुत पराक्रम देखा। सारे पाण्डव मिलकर भी युद्ध में उसे नीचा न दिखा सके। तब महाबाहु भीम ने तीन, सहदेव ने बीस, धर्मराज ने पाँच, नकुल ने सौ, धृष्टधुम्न ने तीन और द्रौपदी के पुत्रों ने सात_सात बाणों से घायल किया तथा विराट, द्रुपद और शिखण्डी ने पाँच_पाँच बाण मारकर फिर बीस बाणों से उस पर और भी वार किया। कृतवर्मा ने इन सभी को पाँच_पाँच बाणों से बींधकर भीमसेन पर सात बाण छोड़े तथा उसके धनुष और ध्वजा को काटकर रथ से नीचे गिरा दिया।
इसके बाद उसने क्रोध में भरकर बड़ी तेजी से सत्तर बाणों द्वारा उसकी छाती पर चोट की। कृतवर्मा के बाणों से अत्यंत घायल हो जाने से वे काँपने लगे तथा अचेत_से हो गये; थोड़ी देर बाद जब होश हुआ तो भीमसेन ने उसकी छाती में पाँच बाण मारे। इससे कृतवर्मा के सब अंग लोहूलुहान हो गये। तब उसने क्रोध में भरकर तीन बाणों से भीमसेन पर वार किया तथा अन्य सब महारथियों को भी तीन_तीन बाणों से बींध दिया। इस पर उन सबने भी उसपर सात_सात बाण छोड़े। कृतवर्मा ने एक क्षुरप्र बाण से शिखण्डी का धनुष काट दिया। इससे कुपित होकर शिखण्डी ने ढाल_तलवार उठा ली तथा तलवार को घुमाकर कृतवर्मा के रथ पर फेंका। वह उसके धनुष और बाण को काटकर पृथ्वी पर जा पड़ी। कृतवर्मा ने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर प्रत्येक पाण्डव को तान_तीन बाणों से बींध दिया तथा शिखण्डी को आठ बाणों से घायल कर डाला। शिखण्डी ने भी दूसरा धनुष लेकर अपने तीखे बाणों से कृतवर्मा को रोक दिया। इससे क्रोध में भरकर वह शिखण्डी के ऊपर टूट पड़ा। इस समय अपने पैने बाणों से एक_दूसरे को व्यथित करते हुए वे महारथी प्रलयकालीन सूर्योंकेे समान जान पड़ते थे। कृतवर्मा ने महारथी शिखण्डी पर तिहत्तर  बाणों से वार करके फिर उसे सात बाणों द्वारा घायल कर डाला। इससे वह मूर्छित हो गया और उसके हाथ से धनुष_बाण गिर गये। यह देखकर उसका सारथि बड़ी फुर्ती से रथ को रणांगण के बाहर ले गया। शिखण्डी को रथ के पिछले भाग में अचेत पड़ा देखकर अन्य पाण्डववीरों ने कृतवर्मा को अपने रथों से घेर लिया; किन्तु इस समय कृतवर्मा ने बड़ा ही अद्भुत पराक्रम दिखाया। उसने अकेले ही उन सब वीरों को उनकी सेना के सहित परास्त कर दिया। पाण्डवों को जीतकर उसने पांचाल, सृंजय और केकयवीरों के भी दाँत खट्टे कर दिये। अन्त में कृतवर्मा की बाणवर्षा से व्यथित होकर वे सभी महारथी युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गये।

सात्यकि का कौरवसेना में प्रवेश

संजय ने कहा___राजन् ! जब सात्यकि युद्ध करने के लिये आपकी सेना में घुसा तो अपनी सेना के सहित महाराज युधिष्ठिर ने सात्यकि का पीछा करते हुए द्रोणाचार्यजी को रोकने के लिये उनके रथ पर आक्रमण किया। उस समय रणोन्मत्त धृष्टधुम्न और राजा वसुदान ने पाण्डवों की सेना को पुकारकर कहा, ‘अरे ! आओ, आओ, जल्दी दौड़ो। शत्रुओं पर चोट करो, जिससे कि सात्यकि सहज ही में आगे बढ जायँ। देखो, अनेकों महारथी इन्हें परास्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं।‘ ऐसा कहते हुए अनेकों महारथी बड़े वेग से हमारे ऊपर टूट पड़े तथा उन्हें पीछे हटाने के विचार से हमने उन पर आक्रमण किया। इसी समय सात्यकि के रथ की ओर बड़ा कोलाहल होने लगा। उस महारथी के बाणों की बौछार से आपके पुत्र की सेना के सैकड़ों टुकड़े हो गये और वह तितर_बितर हो इधर_उधर भागने लगी। उसके छिन्न_भिन्न होते ही सात्यकि ने सेना के मुहाने पर खड़े हुए सात वीरों को मार डाला। इसके बाद और भी अनेकों राजाओं को अपने अग्निसदृश बाणों से यमराज के घर भेज दिया। वह एक बाण से सैकड़ों वीरों को,और सैकड़ों बाणों से एक_एक वीर को बींध देता था। जिस प्रकार पशुपति पशुओं का संहार करते हैं, उसी प्रकार वह हाथीसवार और हाथियों को, घुड़सवार और घोड़ों को तथा सारथि और घोड़ोंके सहित रथों को चौपट कर रहा था। इस प्रकार फुर्तीले सात्यकि ने बाणों की झड़ी लगा दी थी, उस समय आपके सैनिकों में से किसी को भी उसके सामने जाने का साहस नहीं होता था। उसकी बाणवर्षा से घायल होकर वे ऐसे डर गये कि उसे देखते ही मैदान छोड़कर भागने लगे। सात्यकि के तेज से वेे ऐसे चक्कर में पड़ गये कि उस अकेले को ही अनेक रूपों में देखने लगे। वे जिधर जाते थे, उधर ही उन्हें सात्यकि दिखायी देता था। इस प्रकार आपके बहुत_से सैनिकों को मारकर और सेना को अत्यन्त छिन्न_भिन्न करके वह उसमें घुस गया। फिर जिस मार्ग से अर्जुन गये थे, उसी से उसने भी जाने का विचार किया। किन्तु इतने में ही द्रोण ने उसे आगे बढ़ने से रोका और पाँच मर्मभेदी बाणों से घायल कर दिया। इस पर सात्यकि ने भी आचार्य पर सात तीखे बाणों की चोट की। तब द्रोण ने सारथि और घोड़ों के सहित सात्यकि पर छः बाण छोड़े। आचार्य का यह पराक्रम सात्यकि सह न सका। उसने भीषण सिंहनाद करते हुए उन्हें क्रमशः दस, छः और आठ बाणों से घायल कर दिया। इसके बाद दस बाण छोड़े तथा एक से उनके सारथि को, चार से चारों घोड़ों को और एक से उनकी ध्वजा को बींध दिया। इस पर द्रोण ने बड़ी फुर्ती से टिड्डीदल के समान बाणों की वर्षा करके उसे सारथि, रथ, ध्वजा और घोड़ों के सहित एकदम ढक दिया। तब आचार्य ने कहा, ‘अरे ! तेरा गुरु तो कायरों की तरह मेरे सामने से युद्ध करना छोड़कर भाग गया था। मैं तो युद्ध में लगा हुआ था, इतने ही में वह मेरी प्रदक्षिणा करने लगा। अब तू यदि मेरे साथ युद्ध करता रहा तो जीता बचकर नहीं जा सकेगा।‘ सात्यकि ने कहा___’ब्रह्मन् ! आपका कल्याण हो। मैं तो धर्मराज की आज्ञा से अर्जुन के पास ही जा रहा हूँ। इसलिये यहाँ मेरा समय नष्ट नहीं होना चाहिये।  शिष्यों तो सर्वदा अपने गुरुओं के मार्ग का ही अनुकरण करते आये हैं। अतः जिस प्रकार मेरे गुरुजी गये हैं, उसी प्रकार मैं भी अभी जाता हूँ।‘
राजन् ! ऐसा कहकर सात्यकि द्रोणाचार्यजी को छोड़कर तुरंत ही वहाँ से चल दिया। उसे बढ़ते देख आचार्य को बड़ा क्रोध हुआ और वे अनेकों बाण छोड़ते हुए उसके पीछे दौड़े। किन्तु सात्यकि पीछे न लौटा। वह अपने पैने बाणों से कर्ण की विशाल वाहिनी को बींधकर कौरवों की अपार सेना में घुस गया। जब सेना इधर_उधर भागने लगी और सात्यकि उसके भीतर घुस गया तो कृतवर्मा ने उसे घूरा। उसे सामने आया देख सात्यकि ने चार बाणों से उसके चारों घोड़ों को घायल कर दिया और फिर सोलह बाणों से उसकी छाती पर वार किया  इसपर कृतवर्मा ने कुपित होकर सात्यकि की छाती में वत्सदन्त नाम का एक बाण मारा। वह उसके कवच और शरीर को छेदकर खून से लथपथ हो पृथ्वी में घुस गया। फिर उसने अनेकों बाणों से सात्यकि के धनुष और बाण भी काट डाले। सात्यकि ने तुरंत ही दूसरा धनुष चढ़ाया और उससे सहस्त्रों बाण छोड़कर कृतवर्मा और उसके रथ को बिलकुल ढक दिया। फिर एक भल्ल से उसके सारथि का सिर भी उड़ा दिया। सारथि न रहने से घोड़े भाग उठे। इससे कृतवर्मा भी घबराहट में पड़ गया। किन्तु थोड़ी ही देर में सावधान होकर उसने स्वयं ही घोड़ों की बागडोर संभाल ली और निर्भयतापूर्वक शत्रुओं को संतप्त करने लगा। इतने में ही सात्यकि कृतवर्मा की सेना से निकलकर काम्बोजसेना की ओर बढ़ गया। वहाँ भी अनेकों वीरों ने उसे आगे बढ़ने से रोका।