Thursday 2 July 2015

आदिपर्व-व्यासजी का आगमन और द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा

व्यासजी का आगमन और द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा

द्रौपदी के जन्म की कथा और उसके स्वयंवर का समाचार सुनकर पाण्डवों का मन बेचैन हो गया। उनकी व्याकुलता और द्रौपदी के प्रति प्रीति देखकर कुन्ती ने कहा कि बेटा, हमलोग बहुत दिनों से इस ब्राह्मण के घर में आनंदपूर्वक रह रहे हैं। अब यहाँ का सब-कुछ देख चुके, चलो न, तुम्हारी इच्छा हो तो पांचाल देश में चलें।युधिष्ठिर ने कहा कि यदि सब भाइयों की सम्मति हो तो चलने में क्या आपत्ति है। सबने स्वीकृति दे दी। प्रस्थान की तैयारी हुई। उसी समय व्यासजी वहाँ पर आये। उन्होने एक कथा सुनायीं। एक बड़े महात्मा ऋषि की सुन्दरी और गुणवती कन्या थी। परंतु रूपवती, गुणवती और सदाचारिणी होने पर भी पूर्वजन्मों के बुरे कर्मों के फलस्वरुप किसी ने उसे पत्नी के रुप में स्वीकार नहीं किया। इससे दुःखी होकर वह तपस्या करने लगी। उसकी उग्र तपस्या से भगवान शंकर संतुष्ट हुये। उस कन्या को भगवान् शंकर के दर्शन से और वर माँगने के लिये कहने से इतना हर्ष हुआ कि वह बार-बार कहने लगी, मैं सर्वगुणयुक्त पति चाहती हूँ। शंकरभगवान् ने कहा कि, तुझे पाँच भरतवंशी पति प्राप्त होंगे। कन्या बोली, मैं तो आपकी कृपा से एक ही पति चाहती हूँ। भगवान् शंकर ने कहा, तूने पति प्राप्त करने के लिये मुझसे पाँच बार प्रार्थना की है। मेरी बात अन्यथा नहीं हो सकती। दूसरे जन्म में तुझे पाँच ही पति प्राप्त होंगे। इस कथा को सुनाकर व्यास ने कहा, पाण्डवों वही देवरुपिणी कन्या द्रुपद की यज्ञवेदी से प्रकट हुई है। तुमलोगों के लिये विधि-विधान के अनुसार वही सर्वांगसुन्दरी कन्या निश्चित है। तुम जाकर पांचालनगर में रहो। उसे पाकर तुमलोग सुखी होओगे। इस प्रकार कहकर पाण्डवों की अनुमति से व्यासजी ने प्रस्थान किया।

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