Friday 3 July 2015

आदिपर्व-सूर्यपुत्री तपती के साथ राजा संवरण का विवाह

सूर्यपुत्री तपती के साथ राजा संवरण का विवाह

गन्धर्व के मुख से तपतीनंदन सम्बोधन सुनकर अर्जुन ने कहा, गन्धर्वराज, हमलोग तो कुन्ती के पुत्र हैं फिर तुमने तपतीनंदन क्यों कहा। गन्धर्वराज ने कहा, अर्जुन, आकाश में सर्वश्रेष्ठ ज्योति है भगवान् सूर्य, इनकी आभा स्वर्ग तक परिव्याप्त है।इनकी पुत्री का नाम था तपती। सूर्य-पुत्री तपती सावित्री की छोटी बहन थी तथा अपनी तपस्या के कारण तीनों लोकों में तपती नाम से विख्यात थी। वैसी रूपवती कन्या देवता, असुर, अप्सरा, यक्ष आदि किसी की भी नहीं थी। उन दिनों उसके योग्य कोई पुरुष नहीं था, जिसके साथ भगवान् सूर्य उसका विवाह कर सके। इसके लिये वे सर्वदा चिन्तित रहा करते थे। उन्हीं दिनों पुरुवंश में राजा ऋक्ष के पुत्र संवरण बड़े ही बलवान एवं भगवान् सूर्य के सच्चे भक्त थे। वे प्रतिदिन सूर्य को अर्ध्य देते और अहंकार के बिना भक्ति-भाव से उनकी पूजा करते। सूर्य के मन में धीरे-धीरे यह बात आने लगी कि ये मेरी पुत्री के योग्य पति होंगे। बात थी भी ऐसी ही। जैसे आकाश में सबके पूज्य और प्रकाशमान सूर्य हैं, वैसे ही पृथ्वी में संवरण थे। एक दिन की बात है। संवरण घोड़े पर चढकर पर्वत की तराइयों और जंगल में शिकार खेल रहे थे। भूख-प्यास से व्याकुल होकर उनका श्रेष्ठ घोड़ा मर गया। वे पैदल ही चलने लगे।उस समय उनकी दृष्टि एक सुन्दर कन्या पर पड़ी। एकान्त में अकेली कन्या को देखकर वे एकटक उसकी ओर निहारने लगे। उन्हे ऐसा जान पड़ा मानो सूर्य की प्रभा ही पृथ्वी पर उतर आयी हो। राजा की आँखें और मन उसी में गड़ गये, वे सबकुछ भूल गये, हिल-डुल तक नहीं सके। फिर उन्होंने कहा, सुन्दरी, तुम किसकी पुत्री हो, तुम्हारा नाम क्या है, इस निर्जन जंगल में किस उद्देश्य से विचर रही हो। तुम्हारे शरीर की अनुपम छवि से आभूषण भी चमक उठे हैं। तुम्हारे लिये मेरा मन अत्यंत चंचल और लालायित हो रहा है। राजा की बात सुनकर वह कुछ न बोली। बादल में बिजली की तरह तत्क्षण अन्तर्ध्यान हो गयी। राजा ने उसे ढूँढने की बड़ी चेष्टा की। अन्त मेंअसफल होने पर विलाप करते-करते वे निष्चेष्ट हो गये। राजा संवरण को बेहोश और धरती पर पड़ा देखकर तपती फिर वहाँ आयी और मिठासभरी बाणी में बोली, राजन्, उठिये, उठिये। आप जैसे-सत्पुरुष को अचेत होकर धरती पर नहीं लोटना चाहिये। अमृतवाणी बोली सुनकर संवरण उठ गये। उन्होंने कहा, सुन्दरी, मेरे प्राण तुम्हारे हाथ है। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता। तुम गान्धर्व-विवाह के द्वारा मुझे स्वीकार कर लो। तपती ने कहा, राजन् मेरे पिता जीवित हैं। मैं स्वयं अपने संबंध में स्वतंत्र नहीं हूँ। यदि आप सचमुच ही मुझसे प्रेम करते हैं तो मेरे पिता से कहिये। आप जैसे कुलीन, भक्तवत्सल और विश्रविश्रुत राजा को पतिरूप में स्वीकार करने में मेरी ओर से कोई आपत्ति नहीं है। आप नम्रता, नियम और तपस्या के द्वारा मेरे पिता को प्रसन्न करके मुझे माँग लीजिये। मैं भगवान् सूर्य की कन्या और विश्र्ववन्द्या सावित्री की छोटी बहन हूँ। यह कहकर तपती आकाशमार्ग से चली गयी।राजा संवरण वहीं मूर्छित हो गये। उसी समय राजा संवरण को ढूँढते-ढूँढते उनके मंत्री,अनुयायी और सैनिक आ पहुँचे। उन्होंने राजा को जगाया और अनेक उपायों से चेत में लाने की चेष्टा की। होश आने पर उन्होंने सबको लौटा दिया, केवल एक मंत्रीको अपने पास रख लिया। अब वे पवित्रता से हाथ जोड़कर ऊपर की ओर मुँह करके भगवान् सर्य की अराधना करने लगे। उन्होंने मन-ही-मन अपने पुरोहित वशिष्ठ का ध्यान किया। ठीक बारहवें दिन वशिष्ठ महर्षि आये। उन्होंने राजा संवरण के मन का हाल जानकर उन्हें आश्वासन दिया और उनके सामने ही सूर्य से मिलने के लिये चल पड़े। सूर्य के सामने जाकर उन्होंने अपना परिचय दिया और उनके स्वागत प्रश्न आदि के अनन्तर इच्छा पूर्ण करने की बात कहने पर महर्षि वशिष्ठ ने प्रणामपूर्वक कहा,भगवन्,मैं राजा संवरण के लिये आपकी कन्या तपती की याचना करता हूँ। आप उनके उज्जवल वंश धार्मिकता और नीतिज्ञता से परिचित ही हैं। मेरे विचार से वह आपकी कन्या का योग्य पति है। भगवान् सूर्य ने तत्काल उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्हीं के साथ अपनी सर्वांगसुन्दरी कन्या को संवरण के पास भेज दिया। वशिष्ठ के साथ तपती को आते देखकर संवरण अपनी प्रसन्नता का संवरण न कर सके।इस प्रकार भगवान् सर्य की अराधना और अपने पुरोहित वशिष्ठ की शक्ति से राजा संवरण ने तपती को प्राप्त किया और विधिपूर्वक पाणिग्रहण संस्कार से सम्पन्न होकर उसके साथ उसी पर्वत पर सुखपूर्वक विहार करने लगे। इस प्रकार वे बारह वर्ष तक वहीं रहे।राजकाज मंत्री पर रहा। इससे इन्द्र ने उनके राज्य में वर्षा ही बन्द कर दी। अनावृष्टि के कारण प्रजा का नाश होने लगा। ओस तक न पड़ने के कारण अन्न की पैदावार सर्वथा बन्द हो गयी।प्रजा मर्यादा छोड़कर एक-दूसरे को लूटने-पीटने लगी। तब वशिष्ठ मुनि ने अपनी तपस्या के प्रभाव से वहाँ वर्षा करवायी और तपती-संवरण को राजधानी में ले आये। इन्द्र पूर्ववत वर्षा करने लगे। पैदावार शुरु हो गयी।राजदम्पति ने सह्स्त्रों वर्ष तक सुख किया। गन्धर्वराज ने कहा, अर्जुन यही सूर्यकन्या तपती आपके पूर्वपुरुष राजा संवरण की पत्नी थीं। इन्हीं तपती से राजा कुरु का जन्म हुआ, जिससे कुरुवंश चला। उन्हीं के संबंध से मैने आपको तपतीनंदन कहा।


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