Saturday 20 October 2018

भयभीत हुए जयद्रथ को द्रोण का आश्वासन तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन का बातचीत

संजय कहते हैं___महाराज ! दूसरों ने आकर जयद्रथ से अर्जुन की प्रतिज्ञा कह सुनायी। सुनते ही जयद्रथ शोक से विह्वल हो गया। बहुत सोच_विचारकर वह राजाओं की सभा में गया और वहाँ रोने_ विलखने लगा। अर्जुन से डर जाने के कारण उसने लजाते_ लजाते कहा___राजाओं ! पाण्डवों की हर्षध्वनि सुनकर मुझे बड़ा भय हो रहा है। मरणासन्न मनुष्य की भाँति मेरा शरीर शिथिल हो गया है। निश्चय ही अर्जुन ने मेरा वध करने की प्रतिज्ञा की है, तभी तो शोक के समय भी  पाण्डव हर्ष मना रहे हैं। यदि ऐसा बात है तो अर्जुन की प्रतिज्ञा को देवता, गन्धर्व, असुर, नाग और राक्षस भी अन्यथा नहीं कर सकते; फिर नरेशों की तो बात ही क्या है ? अतः आपलोगों का भला हो, मुझे यहाँ से जाने की,आज्ञा दीजिये। मैं जाकर ऐसी जगह छिप जाऊँगा, जहाँ पाण्डव मुझे देख नहीं सकेंगे। जयद्रथ को इस प्रकार भय से व्याकुल हो विलाप करते देख राजा दुर्योधन ने कहा____पुरुषश्रेष्ठ ! तुम इतने भयभीत न होओ। युद्ध में संपूर्ण क्षत्रिय वीरों के कहने पर तुम्हें कौन पा सकता है ? मैं कर्ण, चित्रसेन, विविंशति, भूरिश्रवा, शल, शल्य, वृषसेन, पुरुमित्र, जय, भोज, सुदक्षिण, सत्यव्रत, विकर्ण, दुर्मुख, दुःशासन, सुबाहु, कलिंगराज, विन्द, अनुविन्द, द्रोण, अश्त्थामा, शकुनि___ये तथा और भी बहुत से राजालोग अपनी_अपनी सेना के साथ तुम्हारी रक्षा के लिये चलेंगे। तुम अपने,मन की चिंता दूर कर दो। सिन्धुराज ! तुम स्वयं भी तो श्रेष्ठ महारथी हो, शूरवीर हो, फिर पाण्डवों से डरते क्यों हो ?  मेरी सारी सेना तुम्हारी रक्षा के लिये सावधान रहेगी, तुम अपना,भय निकाल दो।‘
राजन् ! आपके पुत्र ने जब इस प्रकार आश्वासन दिया तब जयद्रथ उसको साथ लेकर रात्रि में द्रोणाचार्य के पास गया। आचार्य के चरणों में प्रणाम कर उसने पूछा____’भगवन् ! दूर का लक्ष्य बेधने में, हाथ की फुर्ती में तथा दृढ़ निशाना मारने में कौन बड़ा है___मैं या अर्जुन ? द्रोणाचार्य ने कहा___तात ! यद्यपि तुम्हारे और अर्जुन के हम एक ही आचार्य हैं, तथापि अभ्यास और क्लेश सहने के कारण अर्जुन तुमसे बढ़े_चढ़े हैं। तो भी तुम्हें उनसे डरना नहीं चाहिये; क्योंकि मैं तुम्हारा रक्षक हूँ। मेरी भुजाएँ जिसकी रक्षा करती हों, उस पर देवताओं का जोर भी नहीं चल सकता। मैं ऐसा व्यूह बनाऊँगा, जिसमें अर्जुन पहुँच ही नहीं सकेंगे। इसलिये डरो मत, खूब उत्साह ये युद्ध करो। तुम्हारे जैसे वीर को तो मृत्यु का डर होना ही नहीं चाहिये; क्योंकि तपस्वी लोग तप करने पर जिन लोकों तो पाते हैं, क्षत्रिय धर्म का आश्रय लेने वाले वीर  पुरुष उन्हें अनायास पा जाते हैं। इस प्रकार आश्वासन मिलने पर जयद्रथ का भय दूर हुआ और उसने युद्ध करने का विचार किया। उस समय आपकी सेना में भी हर्ष_ध्वनि होने लगी। अर्जुन ने जब जयद्रथ_वध की प्रतिज्ञा कर ली, उसके बाद भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा___’धनन्जय ! तुमने न तो भाइयों की सम्मति ली और न मुझसे ही सलाह पूछी, फिर भी लोगों को सुनकर जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा कर डाली___यह तुम्हारा दु: साहस है ! क्या इससे सब लोग हमारी हँसी नहीं उड़ावेंगे ? मैंने कौरवों की छावनी में अपने गुप्तचर भेजे थे, वे सभी आकर वहाँ की समाचार बता गये हैं। जब तुमने सिंधुराज के वध की प्रतिज्ञा की थी, उस समय यहाँ रणभेरी बजी थी और सिंहनाद किया गया था। उसकी आवाज कौरवों ने सुनी, उन्हें तुम्हारी प्रतिज्ञा मालूम हो गयी। इससे दुर्योधन के मंत्री उदास और भयभीत हो गये। जयद्रथ भी बहुत दुःखी हुआ और राजसभा में जाकर दुर्योधन से बोला___’राजन् ! अर्जुन मुझे ही अपने पुत्र का घालक मानता है, इसलिये उसने अपनी सेना के बीच खड़े होकर मुझे मार डालने की प्रतिज्ञा की है। यह सव्यसाची की प्रतिज्ञा है; इसे देवता, गन्धर्व, असुर, नाग, और राक्षस भी अन्यथा नहीं कर सकते; तुम्हारी सेना में  मुझे ऐसा कोई धनुर्धर नहीं दिखायी देता, जो महायुद्ध में अपने अस्त्रों से अर्जुन के अस्त्रों का निवारण कर सके। मेरा तो ऐसा विश्वास है कि श्रीकृष्ण की सहायता पाकर अर्जुन देवताओंसहित तीनों लोकों को नष्ट कर सकता है। इसलिये मैं यहाँ से चले जाने की आज्ञा चाहता हूँ। अथवा यदि तुम ठीक समझो अश्त्थामा और द्रोणाचार्य से मेरी रक्षा का आश्वासन दिलाओ।‘ अब दुर्योधन ने स्वयं जाकर द्रोणाचार्य से बहुत प्रार्थना की है। जयद्रथ की रक्षा का पूरा प्रबंध कर लिया गया है, रथ भी सजा लिये गये हैं। कल के युद्ध में कर्ण, भूरिश्रवा, वृषसेन, कृपाचार्य और शल्य___ये छः महारथी आगे रहेंगे द्रोणाचार्य ने ऐसा व्यूह बनाया है, जिसका अगला आशा भाग शकट के आकार का है और पिछला कमल के समान। कमलव्यूह के मध्य की कर्णिका के बीच सूची_व्यूह के पास जयद्रथ खड़ा होगा और बाकी सभी वीर चारों ओर से उसकी रक्षा में रहेंगे। ये ऊपर बताये हुए छः महारथी धनुष, बाण, पराक्रम और शारीरिक बल में दुःसह हैं। इनमें से एक_एक के पराक्रम का विचार करो। जब ये छः एक साथ होंगे, उस समय इनका जीतना सहज नहीं होगा। अब अपने हित का खयाल रखकर कार्य सिद्ध करने के लिये मैं राजनीतिज्ञ मंत्रियों और हितैषियों से चलकर सलाह करूँगा।‘
  ब्राह्मण में सत्य, साधुओं में नम्रता और यज्ञों में लक्ष्मी का होना जैसे निश्चित है, उसी प्रकार जहाँ नारायण हों वहाँ विजय भी निश्चित है। कल सँवारा होते ही मेरा रथ तैयार हो जाय, ऐसा प्रबंध कर लीजिये; क्योंकि हमलोगों पर बहुत भारी काम आ पड़ा है।

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