Sunday 9 July 2023

श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को उलाहना, भीम की प्रशंसा तथा भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध, फिर बलरामजी का आगमन और उनका स्वागत

संजय कहते हैं_महाराज ! यों कहकर दुर्योधन जब बारंबार गर्जना करने लगा, उस समय भगवान् श्रीकृष्ण कुपित होकर युधिष्ठिर से बोले_राजन् ! आपने यह कैसी दु:साहसपूर्ण बात कह डाली कि 'तुम हममें से एक को मारकर कौरवों के राजा हो जाओ।' अगर दुर्योधन अर्जुन, नकुल अथवा सहदेव अथवा आपको ही युद्ध के लिये चुन लें, तब क्या होगा ? मैं आपलोगों में इतनी शक्ति नहीं देखता कि गदायुद्ध में दुर्योधन का मुकाबला कर सकें। इसने भीमसेन का वध करने करने के लिये उनके लोहे की मूर्ति के साथ तेरह वर्षों तक गदायुद्ध का अभ्यास किया है। दुर्योधन का सामना करनेवाला इस समय भीमसेन के सिवा दूसरा कोई नहीं है, आपने फिर पहले ही के समान जूआ खेलना शुरू कर दिया ! आपका यह जूआ शकुनि के जूए से कहीं अधिक भयंकर है ! माना कि भीमसेन बलवान् और समर्थ है, परंतु राजा दुर्योधन ने अभ्यास अधिक किया है। एक ओर बलवान हो और दूसरी ओर युद्ध का अभ्यासी हो तो उनमें अभ्यास करनेवाला ही बड़ा माना जाता है। अतः महाराज! आपने अपने शत्रु को समान मार्ग पर ला दिया है। अपने को विपत्ति में फंसाया और हमलोगों की कठिनाई बढ़ा दी। भला कौन ऐसा होगा, जो सब शत्रुओं को जीत लेने के बाद जब एक ही बाकी रह जाय और वह भी संकट में पड़ा हो तो अपने हाथ में आया हुआ राज्य दांव लगाकर हार जाय, एक के साथ युद्ध की शर्त लगाकर लड़ना पसंद करें। यदि हम न्याय से युद्ध करें तो भीमसेन के विजय में भी संदेह है; क्योंकि दुर्योधन का अभ्यास इनसे अधिक है। तो भी अपने कह दिया कि ' हममें से एक को भी मार डालने पर तुम राजा बन जाओगे। यह सुनकर भीमसेन ने कहा_'मधुसूदन ! आप चिन्ता न कीजिये। आज युद्ध में दुर्योधन को मैं अवश्य मार डालूंगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। मुझे तो निश्चय ही धर्मराज की विजय दिखाई देती है। मेरी गदा दुर्योधन की गदा से डेढ़ गुना भारी है। मैं इस गदा से दुर्योधन के साथ भिड़ने का हौसला रखता हूं। आप सब लोग तमाशा देखिये, दुर्योधन की तो विसात ही क्या है, मैं देवताओं सहित तीनों लोकों के साथ युद्ध कर सकता हूं।' संजय कहते हैं_भीमसेन ने जब ऐसी बात कही तो भगवान् बड़े प्रसन्न हुए और उनकी प्रशंसा करते हुए बोले_'महाबाहो ! इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि राजा युधिष्ठिर ने तुम्हारे ही भरोसे अपने शत्रुओं को मारकर उज्जवल राज्यलक्ष्मी प्राप्त की है। धृतराष्ट्र के सब पुत्र तुम्हारे ही हाथ से मारे गये हैं। कितने ही राजे, राजकुमार और हाथी तुम्हारे द्वारा मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। कलिंग, मगन, प्राच्य, गांधार और कुरुक्षेत्र के राजाओं का भी तुमने संहार किया है इसी प्रकार आज दुर्योधन को भी मारकर तुम समुद्रसहित यह सारी पृथ्वी धर्मराज के हवाले कर दो। तुमसे भिड़ने पर पापी दुर्योधन अवश्य मारा जायेगा। देखो, तुम इसकी दोनों जांघें तोड़कर अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना।' तदनन्तर, सात्यकि ने पाण्डुनन्दन भीम की प्रशंसा की। पाण्डवों तथा पांचालों ने भी उनके प्रति सम्मान भाव प्रदर्शित किया। इसके बाद भीम ने युधिष्ठिर से कहा, 'भैया ! मैं रण में दुर्योधन के साथ लड़ना चाहता हूं, यह पापी मुझे कदापि नहीं परास्त कर सकता। मेरे हृदय में इसके प्रति बहुत दिनों से क्रोध जमा हो रहा है, उसे आज इसके ऊपर छोड़ूंगा और गदा से इसका विनाश करके आपके हृदय का कांटा निकाल दूंगा, अब आप प्रसन्न होइये। अब राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्र को मेरे हाथ से मारा गया सुनकर शकुनि की सलाह से किये हुए अपने अशुभ कर्मों को याद करेंगे। यों कहकर भीम ने गदा उठायी और इन्द्र ने जैसे वृत्रासुर को बुलाया था, वैसे ही दुर्योधन को युद्ध के लिये ललकारा। दुर्योधन उनकी ललकार न सह सका, वह तुरंत ही भीम का सामना करने के लिये उपस्थित हो गया। उस समय दुर्योधन के मन में न घबराहट थी न भय, न ग्लानि थी, न व्यथा; वह सिंह के समान निर्भय खड़ा था। उसे देखकर भीमसेन ने कहा_'दुरात्मन् ! तूने तथा राजा धृतराष्ट्र ने हमलोगों पर जो_जो अत्याचार किये थे और वारणावर्त में जो तुम्हारे द्वारा हमारा अहित किया गया, उन सबको याद कर लें। भरी सभा में तूने राजस्वला द्रौपदी को क्लेश पहुंचाया, शकुनि की सलाह लेकर राजा युधिष्ठिर को कपटपूर्वक जूए में हराया तथा निरपराध पाण्डवों पर जितने_जितने अत्याचार तूने किये, उन सबका महान् फल आज अपनी आंखों से देख ले। तेरे ही कारण हमलोगों के पितामह भीष्मजी आज शर_शैय्या पर पड़े हुए हैं। द्रोणाचार्य, कर्ण, शल्य तथा शकुनि_ये सब मारे गये हैं। तेरे भाई, पुत्र, योद्धा तथा कितने ही वीर क्षत्रिय मौत के घाट उतर चुके; अब इस वंश का नाश करने वाला सिर्फ तू ही बाकी रह गया है। आज इस गदा से तुझे भी मार डालूंगा_ इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। आज तेरा घमंड चूर्ण कर दूंगा और राज्य के लिये बढ़ी हुई लालसा भी मिटा दूंगा।' दुर्योधन बोला_वृकोदर ! बहुत बातें बनाने से क्या होगा, मेरे साथ लड़ तो सही, आज युद्ध का तेरा सारा हौसला पूरा कर दूंगा। पापी ! देखता नहीं; मैं हिमालय के शिखर के समान भारी गदा लेकर युद्ध के लिये खड़ा हुआ हूं। मेरे हाथ में गदा होने पर कौन शत्रु मुझे जीतने का साहस कर सकता है। न्यायत: युद्ध हो तो इन्द्र भी मुझे परास्त नहीं कर सकते। कुन्तीनन्दन ! व्यर्थ गर्जना न कर; तुझमें जितना बल हो उसे आज युद्ध में दिखा। संजय कहते हैं_महाराज ! भीमसेन और दुर्योधन में महाभयंकर संग्राम छिड़नेवाला था कि अपने दोनों शिष्यों के युद्ध का समाचार पाकर बलरामजी वहां आ पहुंचे। उन्हें देखकर श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों को बड़ी प्रसन्नता है। उन्होंने निकट जाकर उनका चरणस्पर्श किया और विधिवत् उनकी पूजा की। इसके बाद बलरामजी, श्रीकृष्ण, पाण्डवों तथा गदाधारी दुर्योधन को देखकर कहने लगे_'माधव ! मुझे यात्रा में निकले आज बयालीस दिन हो गये। पुष्प नक्षत्र में चला था और श्रवण नक्षत्र में यहां आया हूं। इस समय मैं अपने दोनों शिष्यों का गदायुद्ध देखना चाहता हूं_इसीलिये इधर आया हूं। तदनन्तर युधिष्ठिर ने बलरामजी को गले से लगाकर उनकी कुशल पूछी, श्रीकृष्ण और अर्जुन भी प्रणाम करके उनसे गले मिले। नकुल _सहदेव तथा द्रौपदी के पुत्रों ने भी उन्हें प्रणाम किया। फिर भीमसेन और दुर्योधन ने गदा ऊंची करके उनके प्रति सम्मान प्रकट किया। इस प्रकार सबसे सम्मानित होकर बलरामजी ने सृंजय _पाण्डवों को गले लगाया तथा सब राजाओं से कुशल समाचार पूछा। इसके बाद उन्होंने श्रीकृष्ण और सात्यकि को छाती से लगाकर उनके मस्तक सूंघे। फिर उन दोनों ने भी बड़े प्रेम से उनका पूजन किया। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने बलदेवजी से कहा_'भैया बलराम ! अब तुम इन दोनों भाइयों का महान् युद्ध देखो।' उनके ऐसा कहने पर बलरामजी महारथियों से सम्मानित और प्रसन्न होकर राजाओं के मध्य में जा बैठे। फिर तो भीम और दुर्योधन में वैर का अन्त करनेवाला रोमांचकारी युद्ध होने लगा।

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