Tuesday 5 April 2016

विराटपर्व----भीमसेन के हाथ जीमूत नामक मल्ल का वध

भीमसेन के हाथ जीमूत नामक मल्ल का वध
पाण्डवों को धृतराष्ट्र के पुत्रों से सदा शंका बनी रहती थी; इसलिये वे द्रौपदी की देख-रेख रखते हुए बहुत छिपकर रहते थे, मानो पुनः माता के गर्भ में निवास कर रहे हों। इस प्रकार जब तीन महीने बीत गये और चौथे महीने का आरम्भ हुआ,उस समय मत्स्यदेश में ब्रह्ममहोत्सव का बहुत बड़ा समारोह हुआ। उसमें सभी दिशाओं से हजारों पहलवान जुटे थे। वे सब-के-सब बड़े बलवान् थे और राजा उनका विशेष सम्मान किया करते थे। उनके कन्धे, कमर और ग्रीवा सिंह के समान थे; शरीर का रंग गोरा था। राजा के निकट अनेकों बार अखाड़े में विजय पायी थी। उन सब पहलवानों में भी एक सबसे बड़ा था। उसका नाम था---जीमूत। उसने अखाड़े में उतरकर एक-एक करके सबको लड़ने के लिये बुलाया; परन्तु उसे कूदते और पैंतरे बदलते देख किसी को भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं होती थी। जब सभी पहलवान उत्साहहीन और उदास हो गये, तब मत्स्यनरेश ने अपने रसोइये को उसके साथ भिड़ने की आज्ञा दी। राजा का सम्मान रखने के लिये भीमसेन ने सिंह के समान धीमी चाल चलकर रंगभूमि में प्रवेश किया; फिर उन्हें लंगोटा कसते देख वहाँ की जनता ने हर्षध्वनि की। भीमेन ने युद्ध के लिये तैयार होकर वृत्रासुर के समान महान पराक्रमी जीमूत को ललकारा। दोनो में ही लड़ने का उत्साह था, दोनो ही भयानक पराक्रम दिखानेवाले थे और दोनो के ही शरीर साठ वर्ष के मतवाले हाथी के समान ऊँचे और हृष्ट-पुष्ट थे। पहले उन दोनो ने एक दूसरे की बाँहें मिलायीं, फिर वे परस्पर जय की इच्छा से खूब उत्साह से युद्ध करने लगे। जैसे पर्वत और वज्र के टकराने से घोर शब्द होता है, उी प्रकार उनके पारस्परिक आघात से भयानक चटचट शब्द होता था। एक-दूसरे का कोई अंग जोर से दबाता तो दूसरा उसे छुड़ा लेता। दोनो अपने हाथों से मुठ्ठी बाँध परस्पर प्रहार करते।  दोनो दोनो के शरीर से गुँथ जाते और फिर धक्के देकर एक दूसरे को दूर हटा देते। कभी एक-दूसरे को पटककर जमीन पर रगड़ता तो दूसरा नीचे से ही कुलाँचकर ऊपरवाले को दूर फेंक देता।  दोनो दोनो को बलपूर्वक पीछे हटाते और मुक्कों से छाती पर चोट करते। कभी एक को दूसरा अपने कंधे पर उठा लेता और उसका मुँह नीचे कर घुमाकर पटक देता, जिससे बड़े जोर का शब्द होता। कभी परस्पर वज्रपात के समान शब्द करनेवाले चाँटों की मार होती। कभी हाथ की अँगुलियाँ फैलाकर एक-दूसरे को थप्पर मारते। कभी नखों से बकोटते। कभी पैों में उलझाकर एक-दूसरे को गिरा देते, कभी घुटने और सिर से टक्कर मारते, जिससे बिजली गिरने के समान शब्द होता। कभी प्रतिपक्षी को गोद में घसीट लाते, कभी खेल में ही उसे सामने खींच लेते, कभी दायें-बायें पैंतरे बदलते और कभी एकबारगी पीछे ढ़केलकर पटक देते थे। इस प्रकार दोनों दोनों को अपनी ओर खींचते और घुटनों से प्रहार करते थे। केवल बाहुबल, शरीरबल और प्राणबल से ही उन वीरों का भयंकर युद्ध होता रहा। किसी ने भी शस्त्र का उपयोग नहीं किया। तदनन्तर जैसे सिंह हाथी को पकड़ लेता है, उसी प्रकार भीमसेन ने उछलकर जीमूत को दोनो हाथों से पकड़ लिया और ऊपर उठाकर उसे घुमाना आरम्भ किया। उनका यह पराक्रम देखकर सभी पहलवानों और मत्स्य देश के दर्शक लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। भीम ने उसे सौ बार घुमाया, जिससे वह शिथिल और बेहोश हो गया; इसके बाद उन्होंने पृथ्वी पर पटककर उसका कचूमर निकाल डाला। इस प्रकार भीम के हाथ से उस जगत् प्रसिद्ध पहलवान को मारे जाने से राजा विराट को बड़ी खुशी हुई। इस तरह अखाड़े में बहुत से पहलवानों को मार-मारकर भीमसेन राजा विराट के स्नेहभाजन बन गये थे। जब उन्हें युदध करने के लिये अपने मान कोई पुरुष नहीं मिलता, तो हाथियों और सिंहों से लड़ा करते थे। अर्जुन भी अपने नाचने और गाने की कला से राजा तथा उनके अंतःपुर की स्त्रियों को प्रसन्न रखते थे। इसी प्रकार नकुल भी अपने द्वारा सिखलाये हुए वेग से चलनेवालों घोड़ों की तरह-तरह की चालें दिखाकर मत्स्यनरेश को संतुष्ट करते थे। सहदेव के सिखाये हुए बैलों को देखकर भी राजा बड़े प्रसन्न रहते थे। इस प्रकार सभी पाण्डव वहाँ छिपे रहकर राजा विराट का कार्य करते थे।

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