अर्जुन के साथ कर्ण और अश्त्थामा का युद्ध तथा उनकी पराजय
तदनन्तर अश्त्थामा ने
अर्जुन के ऊपर धावा किया। जैसे मेघ पानी बरसाता है, उसी प्रकार उसके धनुष से वाणों
की वृष्टि होने लगी। उसका वेग वायु के समान प्रचण्ड था, तो भी अर्जुन ने सामना करके
उसे रोक दिया और उसके घोड़ों को अपने वाणों से मारकर अधमरा कर दिया। घायल हो जाने के
कारण उन्हें दिशा का भान न रहा। महाबली अश्त्थामा ने अर्जुन की जरा सी असावधानी देख
एक वाण मारा और उसके धनुष की प्रत्यंचा काट दी। उसके इस अलौकिक कर्म देखकर देवताओं
ने प्रशंसा की और द्रोण, भीष्म, कर्ण तथा कृपाचार्य ने भी साधुवाद दिया। तत्पश्चात्
अश्त्थामा ने अपना श्रेष्ठ धनुष तानकर अर्जुन की छाती में कई वाण मारे। अर्जुन खिलखिलाकर
हँस पड़ा और उसने गाण्डीव को बलपूर्वक झुकाकर तुरंत ही उसपर नयी प्रत्ंचा चढ़ा दी। फिर
उन दोनो में रोमांचकारी युद्ध आरंभ हो गया। दोनो ही शूरवीर थे; इसलिये अपने सर्पाकार
प्रज्जवलित बाणों से वे एक-दूसरे पर चोट करने लगे। महात्म अर्जुन के पास दो दिव्य तरकस
थे, जिसमें कभी बाणों की कमी नहीं होती थी; इसलिये वह युद्ध में पर्वत के समान अचल
था। इधर अश्त्थामा जल्दी-जल्दी प्रहार कर रहा था, इसलिये उसके बाण समाप्त हो गये; अतः
उसकी अपेक्षा अर्जुन का जोर अधिक रहा। यह देखकर कर्ण ने अपने धनुष की टंकार की, उसकी
आवाज सुनकर जब अर्जुन ने उधर देखा तो कर्ण पर उसकी दृष्टि पड़ी। देखते ही अर्जुन क्रोध
में भर गया और कर्ण को मार डालने की इच्छा से आँखें फाड़-फाड़कर उसकी ओर देखने लगा। फिर
अश्त्थामा को छोड़कर उसने सहसा कर्ण पर धावा किया और निकट जाकर कहा---'कर्ण ! तू सभा
में जो बहुत डींग हाँकता था कि युद्ध में मेरे समान कोई है ही नहीं, उसे सत्य करके
दिखाने का आज यह अवसर प्राप्त हुआ है। मुझसे मुकाबला हुए बिना ही तू बड़ी-बड़ी बातें
बना चुका है, आज इन कौरवों के बीच मेरे साथ युद्ध करके उसको सत्य सिद्ध कर। याद है,
सभा के बीच दुष्टलोग द्रौपदी को कष्ट पहुँचा रहे थे और तू तमाशा देख रहा था ? आज उस
अन्याय का फल भोग। उन दिनों धर्म के बन्धन में बँधे रहने के कारण मैने सबकुछ सहन कर
लिया था, किन्तु आज उस क्रोध का फल इस युद्ध में मेरी विजय के रूप में तू देख।' कर्ण ने कहा---अर्जुन ! तू जो कहता है, उसे करके दिखा। बातें बहुत बढ़-बढ़कर
बनाता है; पर काम जो तूने किया है, वह किसी से छिपा नहीं है। पहले जो कुछ तूने सहन
किया है, उसमें तेरी असमर्थता ही कारण थी। हाँ, आज से यदि देखूँगा, तो तेरा पराक्रम
भी मान लूँगा। और मुझसे लड़ने की जो तेरी इच्छा है, यह तो अभी-अभी हुई है; पुरानी नहीं
जान पड़ती। अच्छा, आज तू मेरे साथ युद्ध कर और मेरा बल भी देख। अर्जुन ने कहा---राधापुत्र
! अभी थोड़ी ही देर हुई, तू मेरे सामने युद्ध से भाग गया था; इसलिये तेरी जान बच गयी,
केवल तेरा छोटा भाई ही मारा गया। भला, तेरे सिवा दूसरा कौन मनुष्य होगा, जो अपने भाई
को मरवाकर युद्ध छोड़कर भाग भी जाय और सत्पुरुषों के सामने खड़ा होकर ऐसी बातें भी बनावें।
ऐसा कहकर अर्जुन ने कर्ण के ऊपर कवच को भी छिन्न-भिन्न कर देनेवाले बाणों का प्रहार
करने लगा। कर्ण भी बाणों की वृष्टि करता हुआ मुकाबले में डट गया। अर्जुन ने पृथक्-पृथक्
बाण मारकर कर्ण के घोड़ों को बींध डाला, इससे उसकी बँधी हुई मुट्ठी खुल गयी। तत्पश्चात्
महाबाहु अर्जुन ने कर्ण के धनुष को काट दिया। धनुष कट जाने पर उसने शक्ति का प्रहार
किया; किन्तु अर्जुन ने बाणों से उसके भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। यह देख कर्ण के अनुगामी
योद्धाओं ने एक साथ अ्जुन पर आक्रमण किया; परन्तु गण्डीव से छूटे हुए बाणों द्वारा
वे सब-के-सब यमलोक के अतिथि हो गये। इसके बाद अर्जुन ने कान तक धनुष खींचकर कई तीखे
बाणों से कर्ण के घोड़ों को बींध डाला। घायल हुए घोड़े पृथ्वी पर गिरकर मर गये। फिर अर्जुन
ने एक तेजस्वी बाण कर्ण की छाती में मारा। वह बाण कवच को भेदकर उसके शरीर में घुस गया।
कर्ण बेहोश हो गया, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया। भीतर-ही-भीतर पीड़ा सहता हुआ
वह युदद्ध छोड़कर उत्तर दिशा की ओर भाग गया। महारथी अर्जुन तथा उत्तर उच्च स्वर से गर्जना
करने लगे।
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