Tuesday 3 May 2016

विराटपर्व---कौरवों की चढ़ाई, उत्तर का वृहनल्ला को सारथि बनाकर युद्ध में जाना और कौरव सेना को देखकर डर से भागना

कौरवों की चढ़ाई, उत्तर का वृहनल्ला को सारथि बनाकर युद्ध में जाना और कौरव सेना को देखकर डर से भागना
जब मत्स्यराज विराट गौओं को छुड़ाने के लिये त्रिगर्त की ओर गये तो दुर्योधन भी मौका देखकर अपने मंत्रियों के सहित विराटनगर पर चढ़ आया। भीष्म, द्रोण, कर्ण, कृप, अश्त्थामा, शकुनि, दुःशासन, विविंशति, विकर्ण, चित्रसेन, दुर्मुख, दुःशल तथा और भी अनेकों महारथी दुर्योधन के साथ थे। ये सब कौरव वीर विराट की साठ हजार गौओं को सब ओर से रथों की पंक्ति से रोककर ले चले। उन्हें रोकने पर जब मारपीट होने लगी तो ग्वालिये उन महारथियों के सामने न ठहर सके और उनकी मार खाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे। तब ग्वालियों का सरदार रथ पर चढ़कर अत्यन्त दीन की तरह रोता-चिल्लाता नगर में आया। वह सीधा राजमहल के दरवाजे पर पहुँचा और रथ से उतरकर भीतर चला गया। वहाँ उसे विराट का पुत्र भूमिंजय ( उत्तर ) मिला। गोपराज ने उसी को सारा समाचार सुना दिया और कहा, "राजकुमार ! आपकी साठ हजार गौओं को कौरव लिये जा रहे हैं। आप राज्य के बड़े हितचिंतक हैं; इस समय अपनी अनुपस्थिति में महाराज आपको ही यहाँ का प्रबंध सौंप गये हैं और सभा में आपकी प्रशंसा करे हुए यह भी कहा करते हैं कि 'मेरा यह कुलदीपक पुत्र ही मेरे अनुरूप और बड़ा शूरवीर है।' अतः इस समय आप तुरंत ही गौओं को छुड़ाने के लिये जाइये और महाराज के कथन को सत्य करके दिखाइये।" राजकुमार अन्तःपुर में स्त्रियों के बीच बैठा था। जब उससे ग्वालिये ने ये बातें कहीं तो वह अपनी बड़ाई करते हुए कहने लगा, 'भाई ! आज मैं जिस ओर गौएँ गयी हैं, उधर अवश्य जाऊँगा। मेरा धनुष तो काफी मजबूत है; किन्तु किसी ऐसे सारथि की आवश्यकता है, जो घोड़े चलाने में बहुत निपुण हो। इस समय मेरी निगाह में कोई ऐसा आदमी नहीं है, जो मेरा सारथि बन सके। अतः तुम शीघ्र ही मेरे लिे कोई कुशल सारथि तलाश करो। फिर तो, इन्द्र जैसे दानवों को भयभीत कर देते हैं उसी प्रकार दुर्योधन, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, द्रोण और अश्त्थामा---इन सभी महान धनुर्धरों के छक्के छुड़ाकर एक क्षण में ही अपनी गौओं को लौटा लाऊँगा। जिस समय युद्ध में वे मेरा पराक्रम देखेंगे, उस समय उन्हें यही कहना पड़ेगा कि यह साक्षात् पृथापुत्र अर्जुन ही तो हमें तंग नहीं कर रहा है।' जब राजपुत्र ने स्त्रियों के बीच में बार-बार अर्जुन का नाम लिया तो द्रौपदी से रहा न गया। वह स्त्रियों में से उठकर उत्तर के पास आयी और उससे कहने लगी, 'यह जो हाथी के समान विशालकाय और दर्शनीय युवक वृहनल्ला नाम से विख्यात है, पहले अर्जुन का सारथि ही था। यदि यह आपका सारथि हो जाय तो आप निश्चय ही सब कौरवों को जीतकर अपनी गौएँ लौटा लायेंगे।' सैरन्ध्री के ऐसा कहने पर उसने अपनी बहिन उत्तरा से कहा, 'बहिन ! तू शीघ्र जाकर बृहनल्ला को लिवा ला।' भाई के कहने से उत्तरा तुरंत ही नृत्यशाला में पहुँची। बृहनल्ला ने अपनी सखी राजकुमारी उत्तरा को देखकर पूछा, 'कहो, राजकन्ये ! कैसे आना हुआ ?' तब राजकन्या ने बड़ी विनय दिखाते हुए कहा, 'बृहनल्ले ! कौरव लोग हमारे राष्ट्र की गौओं को लिये जा रहे हैं, उन्हे जीतने के लिेये मेरा भाई धनुष धारण करके जा रहा है। तुम मेरे भाई के सारथि बन जाओ और कौरवलोग गौओं को दूर लेकर जायँ, उससे पहले ही रथ उनके पास पहुँचा दो।' कुमारी उत्तरा के इस प्रकार कहने पर अर्जुन उठे और राजकुमार उत्तर के पास आये। बृहनल्ला को दूर ही से आते देखकर राजकुमार ने कहा, 'बृहनल्ले ! जिस समय मैं गौओं को बचाने के लिये कौरवों के साथ युद्ध करूँ, उस समय मेरे घोड़ों को उसी प्रकार काबू में रखना जिस प्रकार पहले से रखते आये हो। मैने सुना है पहले तुम अर्जुन के प्रिय सारथि थे और तुम्हारी सहायता से ही अर्जुन ने सारी पृथ्वी को जीता था।' इसे पशचात् उत्तर ने सूर्य के समान चमचमाता हुआ बढ़िया कवच धारण किया तथा अपने रथ पर सिंह की ध्वजा लगाकर बृहनल्ला को सारथि बनाया। फिर बहुमूल्य धनुष और बहुत से उत्तम वाण लेकर उसने युद्ध के लिये कूच किया। इस समय बृहनल्ला की सखी उत्तरा और दूसरी कन्याओं ने कहा, 'बृहनल्ले ! तुम संग्रामभूमि में आये हुए भीष्म, द्रोण आदि कौरवों को जीतकर हमारी गुड़ियों के लिये रंग-बिरंगे महीन और कोमल वस्त्र लाना।' इसपर अर्जुन ने हँसकर कहा, 'यदि ये राजकुमार उत्तर रणभूमि में उन महारथियों को परास्त कर देंगे तो मैं अवश्य उनके दिव्य और सुन्दर वस्त्र लाऊँगी।' अब राजकुमार उत्तर राजधानी से निकलकर  बाहर आया और अपने सारथि से बोला, 'तुम जिधर कौरवलोग गये हैं, उधर ही रथ ले चलो। यहाँ जो कौरवलोग विजय की आशा से आकर इकट्ठे हुए हैं, उन सब को जीतकर और उनसे गौएँ लेकर मैं बहुत जल्द लौट आऊँगा।' तब पाण्डुनन्दन अर्जुन ने उत्तर के उत्तम जाति के घोड़ों की लगाम ढ़ीली कर दी। अर्जुन के हाँकने से वे हवा से बात करने लगे और ऐसे दिखायी देने लगे मानो आकाश में उड़ रहे हों। थोड़ी ही दूर जाने पर उत्तर और अर्जुन को महाबली कौरवों की सेना दिखायी दी। वह विशाल वाहिनी हाथी, घोड़े और रथों से भरी हुई थी।  कर्ण, दुर्योधन, कृपाचार्य, भीष्म और अश्त्थामा के सहित महान् धनुर्धर द्रोण उसकी रक्षा कर रहे थे। उसे देखकर उत्तर के रोंगटे खड़े हो गये और उसने भय से व्याकुल होकर अर्जुन से कहा, 'मेरी ताब नहीं है कि मैं कौरवों के साथ लोहा ले सकूँ; देखते नहीं हो, मेरे सारे रोंगटे खड़े हो गये हैं ? इस सेना में तो अगणित वीर दिखायी दे रहे हैं। यह तो बड़ी ही विकट है, देवतालोग भी इसका सामना नहीं कर सकते। मैं तो अभी बालक ही हूँ, शस्त्रास्त्र का भी विशेष अभ्यास नहीं किया है; फिर मैं अकेला ही इन शस्त्रविद्या के पारगामी महावीरों में कैसे लड़ूँगा। इसलिये बृहनल्ले ! तुम लौट चलो।' बृहनल्ला ने कहा---राजकुमार ! तुमने स्त्री-पुरुषों के सामने अपने पुरुषार्थ की बड़ी प्रशंसा की थी और तुम शत्रु से लड़ने के लिये ही घर से निकले हो, फिर अब युद्ध क्यों नहीं करते ? यदि तुम इन्हें परास्त किये बिना घर लौट चलोग तो सब स्त्री-पुरुष आपस में मिलकर तुम्हारी हँसी करेंगे। मुझसे भी सैरन्ध्री ने तुम्हारा सारध्य करने को कहा था, इसलिये अब बिना गौएँ लिये नगर की ओर जाना मेरा काम नहीं है।  उत्तर बोला---बृहनल्ले ! कौरव लोग मत्स्यराज की बहुत-सी गौएँ लिये जाते हैं तो ले जायँ और स्त्री-पुरुष मेरी हँसी करते हैं तो करते रहें, किन्तु अब युद्ध करना मेरे वश की बात नहीं है। ऐसा कहकर राजकुमार उत्तर रथ से कूद पड़ा और सारी मान-मर्यादा को तिलांजली देकर धनुष-बाण फेंककर भागा। यह देखकर बृहनल्ला ने कहा, 'शूरवीरों की दृष्टि में युद्धस्थल से भागना क्षत्रियों का धर्म नहीं है। क्षत्रियों के लिये तो युद्ध में मरना ही अच्छा है, डरकर पीठ दिखाना अच्छा नहीं है।' ऐसा कहकर कुन्तीनन्दन अर्जुन भी रथ से कूद पड़े और भागते हुए राजकुमार के पीछे दौड़े और बड़ी तेजी से सौ ही कदम पर उसके बाल पकड़ लिये। अर्जुन द्वारा पकड़ लिये जाने पर उत्तर कायरों की तरह दीन होकर रोने लगा और बोला, 'कल्याणी बृहनल्ले ! सुनो, तुम जल्दी ही रथ लौटा ले चलो। देखो, जिंदगी रहेगी तो अच्छे दिन भी देखने को मिल जायंगे।' उत्तर इसी प्रकार घबराकर बहुत अनुनय-विनय करता रहा, किन्तु अर्जुन हँसते-हँसते उसे रथ के पास ले आये और कहने लगे, 'राजकुमार ! यदि शत्रुओं से युद्ध करने की तुम्हारी हिम्मत नहीं है तो लो, तुम घोड़ों की रास सभालो; मैं युद्ध करता हूँ। तुम इस रथियों की सेना में चले चलो, डरना मत, मैं अपने बाहुबल से तुम्हारी रक्षा करूँगा। और तुम डरते क्यों हो, आखिर हो तो क्षत्रिय के ही बालक। फिर शत्रुओं के सामने जाकर घबराना कैसा ? देखो, मैं इस दुर्जय सेना में घुसकर कौरवों से लड़ूँगा और तुम्हारी गौएँ छुड़ाकर लाऊँगा। तुम जरा मेरे सारथि का काम कर दो।' इस प्रकार महावीर अर्जुन ने युद्ध से डरकर भागते हुए उत्तर को समझाया और उसे फिर रथ पर चढ़ा लिया।

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