Saturday 2 July 2016

उद्योगपर्व---शल्य की विदाई तथा कौरव और पाण्डवों के सैन्यसंग्रह का वर्णन

शल्य की विदाई तथा कौरव और पाण्डवों के सैन्यसंग्रह का वर्णन
महाराज शल्य कहते हैं---युधिष्ठिर ! इस प्रकार इन्द्र को अपनी भार्या के सहित महाराज शल्य कहते हैं---युधिष्ठिर ! इस प्रकार इन्द्र को अपनी भार्या के सहित कष्ट भोगना पड़ा था और अपने शत्रुओं के वध करने की इच्छा से अज्ञातवास भी करना पड़ा था। अतः तुम्हे द्रौपदी और अपने भाइयों सहित वन में रहकर कष्ट भोगने पड़े हैं तो उने लिये तुम रोष न करो। जैसे इन्द्र ने वृत्रासुर को मारकर राज्य प्राप्त किया था, उसी प्रकार तुम्हें भी अपना राज्य मिलेगा। तथा अगस्त्यजी के शाप से जैसे नहुष का पतन हुआ था, वैसे ही तुम्हारे शत्रु कर्ण और दुर्योधनादि का भी नाश हो जायगा। राजा शल्य के इस प्रकार ढ़ाढ़स बँधाने पर धर्मत्माओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने उनका विधिवत् सत्कार किया। इसके पश्चात् मद्रराज उनसे अनुमति लेकर अपनी सेना के सहित दुर्योधन के पास चले गये। इसके पश्चात् यादव महारथी सात्यकि बड़ी भारी चतुरंगिणी सेना लेकर राजा युधिष्ठिर के पास आये। उनकी सेना को भिन्न-भिन्न देशों से आये हुए वीर सुशोभित कर रहे थे। फरसा, शूर, तोमर, मुद्गर, परिघ, यष्टि ( लाठी ), पाश, तलवार, धनुष और तरह-तरह के चमचमाते हुए बाणों से उनकी सेना एकदम दीप उठी थी। यह सेना राजा युधिष्ठिर की छावनी में पहुँची। इसी तरह एक अक्षौहिणी सेना लेकर चेदिराज धृष्टकेतु आया, एक अक्षौहिणी सेना के साथ जरासंध का पुत्र मगधराज जय्सेन आया और समुद्रतीरवर्ती तरह-तरह के योद्धाओं के साथ पाण्ड्यराज भी युधिष्ठिर की सेवा में उपस्थित हुआ। इस प्रकार भिन्न-भिन्न देशों की सेना का समागम होने से पाण्डव पक्ष का सैन्य समुदाय बड़ा ही दरशनीय, भव्य और शक्तिसम्पन्न जान पड़ता था। महाराज द्रुपद की सेना भी उनके महारथी पुत्रों और देश-देश से आये हुए शूरवीर के कारण बड़ी भली जान पड़ती थी। मत्स्यदेशीय राजा विराट की सेना में अनेकों पर्वतीय राजा सम्मिलित थे। वह भी पाण्डवों के शिविर में पहुँच गयी। इस प्रकार जहाँ-तहाँ से आकर सात अक्षौहिणी सेना महात्मा पाण्डवों के पक्ष में एकत्रित हो गयी। कौरवो के साथ युद्ध करने के लिये उत्सुक इस विशाल वाहिणी को देखकर पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए। दूसरी ओर राजा भगदत्त ने एक अक्षौहिणी सेना देकर कौरवों का हर्ष बढ़ाया। उनकी सेना में चीन और किरात देशों के वीर थे। इसी प्रार दुर्योधन के पक्ष में और भी कई राजा एक-एक अक्षौहिणी सेना लेकर आये। हृदीक के पुत्र कृतवर्मा भोज, अंधक और कुकुरवंशीय यादव वीरों के सहित एक अक्षौहिणी सेना लेकर दुर्योधन के पास उपस्थित हुए। सिन्धुसौवीर देश के जयद्रथ आदि राजाओं के साथ भी कई अक्षौहिणी सेना आयी। काम्बोजनरेश सुदक्षिण शक और यवन वीरों के सहित आया। उसके साथ भी एक अक्षौहिणी सेना थी। इसी प्रकार महिष्मतिपुरी का राजा नील दक्षिण देश के महाबली वीरों के साथ आया। अवन्ति देश के राजा विन्द और अनुविन्द भी एक एक अक्षौहिणी सेना लेकर दुर्योधन की सेवा में उपस्थित हुए। केकय देश के राजा पाँच सहोदर भाई थे। उन्होंने भी एक अक्षौहिणी सेना के साथ उपस्थित होकर कुरुराज को प्रसन्न किया। इसके सिवा जहाँ-तहाँ से आये हुए अन्य राजाओं की तीन अक्षौहिणी सेना और भी हो गयी। इस प्रकार दुर्योधन के पक्ष में कुल ग्यारह अक्षौहिणी सेना एकत्रित हुई। वह तरह-तरह की ध्वजाओं से सुशोभित और पाण्डवों से भिड़ने के लिये उत्सुक थी। पंचनद, कुरुजांगल, रोहितवन, मारवाड़, अहिछत्र, कालकूट, गंगातट, वारण, वटधान और यमुनातट का पर्वतीय प्रदेश---यह सारा धन-धान्यपूर्ण विस्तृत क्षेत्र कौरवों की सेना से भरा हुआ था। महाराज द्रुपद ने अपने जिस पुरोहित को दूत बनाकर भेजा था, उसने इस प्रकार एकत्रित हुई वह कौरव-सेना देखी।

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