Thursday 24 March 2016

विराटपर्व---विराटनगर में कौन क्या कार्य करे, इसके विषय में पाण्डवों का विचार

विराटनगर में कौन क्या कार्य करे, इसके विषय में पाण्डवों का विचार
यक्ष से वरदान पाने के अनन्तर एक दिन धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपने सब भाइयों को पास बुलाकर इस प्रकार कहा---'राज्य से बाहर होकर वन में रहते हुए हमलोगों के बारह वर्ष बीत गये; अब यह तेरहवाँ लग रहा है, इसमें बड़े कष्ट से कठिनाइयों का सामना करते हुए गुप्तरूप से रहना होगा। अर्जुन ! तुम अपनी रुचि के अनुसार कोई अच्छा सा निवासस्थान बताओ, जहाँ हम सब लोग चलकर एक वर्ष तक रहें और शत्रुओं को इसकी कानोंकान खबर न हो।' अर्जुन बोले---महाराज ! इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि धर्मराज के दिये हुए वर के प्रभाव से हमें कोई भी मनुष्य पहचान नहीं सकता; अतः हमलोग स्वच्छन्दतापूर्वक इस पृथ्वी पर विचरते रहेंगे। तो भी मैं आपसे निवास करने योग्य कुछ रमणीय एवं गुप्त राष्ट्रों का नाम बताता हूँ। कुरुक्षेत्र के आस-पास बहुत सुरम्य प्रदेश हैं, जहाँ बहुत अन्न होता है। उनके नाम हैं---पांचाल, चेदि, मत्स्य, शूरसेन, पटच्चर, दशार्ण, नवराष्ट्र, मल्ल, शाल्व, युगन्धर, कुन्तिराष्ट्र, सुराष्ट्र और अवन्ति। इनमें से किसी भी देश को आप निवास के लिये पसन्द कर लें, उसी में हम सब लोग इस वर्ष रहेंगे। युधिष्ठिर ने कहा---तुम्हारे बताये हुए देशों में से मत्स्य देश का राजा विराट बहुत बलवान् है और पाण्डुवंश पर प्रेम भी रखता है; साथ ही वह उदार, धर्मात्मा और वृद्ध भी है। इसलिये विराटनगर में ही हम एक वर्ष तक निवास करें और राजा का कुछ काम करते रहें। किन्तु तुमलोग अब यह बताओ कि मत्स्यदेश में रहते हुए हम राजा विराट के किन-किन कामों को कर सकते हैं। अर्जुन ने पूछा---नरदेव ! आप उनके राष्ट्र में कैसे रह सकेंगे ? अथवा कौन सा काम करने से विराटनगर में आपका मन लगेगा ? युधिष्ठिर बोले---मैं पासा खेलने की विद्या जानता हूँ और यह खेल मुझे पसंद भी है; इसलिये कंक नामक ब्राह्मण बनकर राजा के पास जाऊँगा और उनकी राजसभा का एक सभासद् बना रहूँगा। मेरा काम होगा---राजा, मंत्री तथा राजा के सम्बन्धियों को पासा खेलाकर प्रसन्न रखना। भीमसेन ! अब तुम बताओ, कौन सा काम करने से विराट के यहाँ प्रसन्नतापूर्वक रह सकोगे ? भीम ने कहा---मैं रसोई बनाने के काम में चतुर हूँ, अतः बल्लव नामक रसोइया बनकर राजा के दरबार में उपस्थित होऊँगा। युधिष्ठिर---अच्छा, अर्जुन क्या काम करेगा ? अर्जुन---मैं हाथों में शंख तथा हाथीदाँत की चूड़ियाँ पहनकर सिर पर चोटी गूँथ लूँगा और अपने को नपुंसक घोषित कर 'बृहनल्ला' नाम बताऊँगा। मेा काम होगा---राजा विराट के अंतःपुर की स्त्रियों को संगीत और नृत्यकला की शिक्षा देना। साथ ही उन्हें कई प्रकार के बाजे बजाना भी सिखाऊँगा। इस तरह नर्तकी के रूप में मैं अपने को छिपाये रहूँगा। युधिष्ठिर--- भैया नकुल ! अब तुम अपनी बात बताओ, राजा विराट के यहाँ तुम्हारे द्वारा कौन सा कार्य सम्पन्न हो सकेगा ? नकुल---मुझे अश्वविद्या की विशेष जानकारी है, घोड़ों को चाल सिखलाना, उनकी रक्षा और पालन करना तथा उनके रोगों की चिकित्सा करना---इन सब कार्यों में मैं विशेष कुशल हूँ, अतः राजा के यहाँ जाकर मैं अपना नाम ग्रन्थिक बताऊँगा और उनका अश्वपाल बनकर रहूँगा। अब युधिष्ठिर ने सहदेव से पूछा---भैया ! राजा के पास जाकर तुम किस प्रकार अपना परिचय दोगे और कौन -सा काम करके अपने स्वरूप को गुप्त रख सकोगे। सहदेव---मैं राजा विराट की गौओं की संभाल रखूँगा। कितनी ही उद्धत गौ क्यों न हो, मैं उसे काबू में कर लेता हूँ। गौओं के दुहने और परीक्षा करने में भी कुशल हूँ। गौओं के जो लक्षण या चरित्र मंगलमय होते हैं, उनका भी मुझे अच्छा ज्ञान है। मैं उन शुभ लक्षणों वाले बैलों को भी जानता हूँ, जिनके मूत्र को सूँघ लेने मात्र से बाँझ स्त्री भी गर्भ धारण कर सकती है। इसलिये मैं गौओं की सेवा करूँगा। मेरा नाम होगा 'तन्तिपाल'। मुझे कोई पहचान नहीं सकता; मैं राजा को प्रसन्न कर लूँगा। अब युधिष्ठिर द्रौपदी की ओर देखकर कहने लगे---यह द्रुपदकुमारी तो हमलोगों के प्राणों से भी अधिक प्यारी है; भला यह वहाँ जाकर कौन सा कार्य करेगी ? द्रौपदी बोली---महाराज ! आप मेरे लिये चिन्ता न करें। जो स्त्रियाँ दूसरों के घर सेवा का कार्य करती हैं, उन्हें सैरन्ध्री कहते हैं; अतः मैं सैरन्ध्री कहकर अपना परिचय दूँगी। केशों के श्रृंगार का कार्य मैं अच्छी तरह जानती हूँ। पूछने पर बताऊँगी कि मैं द्रौपदी की दासी थी। मैं स्वतः अपने को छिपाकर रखूँगी; इसके अलावा विराट की रानी सुदेष्णा भी मेरी रक्षा करेगी। अतः आप मेरी ओर से निश्चिन्त रहें।

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