उत्तम ब्राह्मणों का महत्व
युधिष्ठिर के पूछने पर मार्कण्डेयजी बोले---हैहयवंशी क्षत्रियों
का परपुरन्जय नामक एक राजकुमार, जो बड़ा ही सुन्दर और अपने वंश की मर्यादा बढ़ानेवाला
था, एक दिन वन में शिकार खेलने के लिये गया।तृण और लताओं से भरे हुए उस वन में घूमते-घूमते
उस राजकुमार की दृष्टि एक मुनि पर पड़ी। वे काला मृगचर्म ओढ़े थोड़ी ही दूर पर बैठे थे।
कुमार ने उन्हें काला मृग ही समझा और अपने तीर का निशाना बना दिया। मुनि की हत्या हो
गयी यह जानकर राजकुमार को बड़ा अनुताप हुआ, वह शोक से मूर्छित हो गया। फिर वह हैहयवंशी
क्षत्रियं के पास गया और उनसे इस दुर्घटना का समाचार कहा। यह सुनकर वे भी बहुत दुःखी
हुए और वे मुनि किसके पुत्र हैं, इसका पता लगाते हुए कश्यपनन्दन अरिष्टनेमी के आश्रम
पर पहुँचे। मुनि उनका स्वागत करने लगे तो वे कहने लगे कि हम आपसे सत्कार पाने योग्य
नहीं हैं, हमसे मुनि की हत्या हो गयी है। ब्रह्मर्षि अरिष्टनेमि ने कहा--'आपलोगों से
हत्या कैसे हो गयी ? और वह मृत शरीर कहाँ है ?' उनके पूछने पर क्षत्रियों ने मुनि के
वध का सारा समाचार ठीक-ठीक बता दिया और उन्हें साथ लेकर उस स्थान पर गये जहाँ मुनि
की हत्या हुई थी। किन्तु वहाँ उन्हे मरे हुए मुनि की लाश नहीं मिली। तब मुनिवर अरिष्टनेमि
ने उनसे कहा--इधर देखो, यही वह मुनि है जिसे तुमने मार डाला था। यह मेरा ही पुत्र है
और तपोबल से युक्त है। उस मुनिकुमार को जीवित देख वे लोग बड़े आश्चर्य में पड़े और कहने
लगे, 'यह बड़े आश्चर्य की बात है। यह मरा हुआ मुनि यहाँ कैसे आ गया ? इसे किस प्रकार
जीवन मिला ? ब्रह्मर्षि ने उनसे कहा---राजाओं ! मृत्यु हमलोगों पर अपना प्रभाव नहीं
डाल सकती। इसका कारण यह है कि हम सदा सत्य ही बोलते हैं और सर्वथा अपने धर्म का पालन
करते रहते हैं। इसलिये हमें मृत्यु का भय नहीं है।हम अतिथियों को अन्न और जल से तृप्त करते हैं; हमपर जिनके पालन
का भार है, उन्हें पूर्ण भोजन देते हैं और उनसे बचा हुआ अन्न स्वयं भोजन करते हैं।
हम सदा शम, दम, क्षमा और दान में तत्पर रहनेवाले हैं; पवित्र देश में निवास करते हैं।
इन सब कारणों से भी हमें मृत्यु का भय नहीं है। यह सुनकर उन हैहयवशी क्षत्रियों ने
'एवमस्तु' कहकर मुनिवर अरिष्टनेमि का सम्मान किया और प्रसन्न होकर अपने देश को चले
गये।
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