Tuesday 6 October 2015

वनपर्व---धौम्य का युधिष्ठिर को नाना स्थान दिखलाना और अर्जुन का गन्धमादन पर लौट कर आना

धौम्य का युधिष्ठिर को नाना स्थान दिखलाना और अर्जुन का गन्धमादन पर लौट कर आना
सूर्योदय होने पर मुनिवर धौम्य अपने नित्य-क्रिया से निवृत होकर राजर्षि अर्ष्टिषेण के साथ पाण्डवों की ओर चले। पाण्डवों ने उन दोनो के चरणों में प्रणाम किया और फिर हाथ जोड़कर अभिवादन किया। फिर धौम्य ने महाराज का हाथ पकड़कर पूर्व दिशा की ओर संकेत करके कहा, 'महाराज ! यह जो समुद्रपर्यन्त पृृथ्वी पर फैला हुआ महापर्वत दिखाई दे रहा है, इसका  नाम मन्दराचल है। देखिये, इसकी कैसी शोभा हो रही है ! अहा ! पर्वतमाला और हरी-भरी वनावली से यह दिशा और रमणीय जान पड़ती है। यह दिशा इन्द्र और का कुबेर का निवासस्थान कही जाती है। सर्वधर्मज्ञ मुनिजन,प्रजाजन, सिद्ध, साध्य और देवतालोग इसी दिशा में उदित होते हुए भी सूर्य का पूजन करते हैं।  समस्त प्राणियों के प्रभु परम धर्मज्ञ यमराज इस दक्षिण दिशा में रहते हैं जो मरनेवाले प्राणियों का गन्तव्य स्थान है। यह पवित्र और अद्भुत दिखाई देनेवाली संयमनीपुरी है। यही प्रेतराज यम का निवासस्थान है। इधर पश्चिम की ओर जो पर्वत दिखाई देता है उसे अस्ताचल कहते हैं। महाराज वरुण इस पर्वत और महासमुद्र में रहकर प्राणियों की रक्षा करते हैं। यह सामने उत्तर दिशा को आलोकित करता हुआ परम प्रतापी मेरु पर्वत खड़ा हुआ है। इसी के ऊपर ब्रह्माजी की सभा है और इसी पर वे स्थावर जंगम की स्थापना करते हुए निवास करते हैं। इसी पर्वत के ऊपर वशिष्ठादि सप्तर्षियों के उदय अस्त होते रहते हैं। तुम तनिक मेरु पर्वत के इस पवित्र शिखर का दर्शन करो। अनादिनिधन श्रीनारायण  का स्थान इससे भी परे चमक रहा है। यह सर्वतेजोमय एवं परम पवित्र है, देवता भी उसका दर्शन नहीं कर सकते। अग्नि और सूर्य उस स्थान को प्रकाशित नहीं कर सकते, वह तो स्वयं अपने प्रकाश से ही प्रकाशित है।  उसका दर्शन देवता और दानवों को भी दुर्लभ है। उस स्थान पर श्रीहरि विराजते हैं। यह परमेश्वर स्थान ध्रुव, अक्षय और अविनाशी है; तुम इसे प्रणाम करो। देखो ! सूर्य, चन्द्रमा और समस्त तारागण अपनी मर्यादा में रहकर सर्वदा इस पर्वतराज मेरु की ही प्रदक्षिणा करते हैं। इसकी प्रदक्षिणा करते हुए ही नक्षत्रों के सहित चन्द्रमा पर्वसन्धियों का समय आने पर महीनों का विभाग करते हैं। महातेजस्वी सूर्य वर्षा, वायु और तापरूप सुख के साधनों से प्राणियों का पोषण करते हैं। हे भारत ! भगवान् सूर्य ही सम्त जीव की आयु और कर्मों का विभाग करके दिन, रात, कला, काष्ठा आदि काल के अवयवों की रचना करते हैं।  पाण्डव उत्तम व्रतों का पालन करते हुए उस पर्वत पर ही निवास करने लगे। अर्जुन अस्त्रविद्या सीखने इन्द्र के पास गये थे। वे पाँच वर्ष तक वहाँ रहकर सभी विद्याएँ प्राप्त कर गन्धमादन पर्वत पर लौट आये।

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