Sunday 24 January 2016

वनपर्व---देवताओं का रीछ और वानर योनि में उत्पन्न होना

देवताओं  का  रीछ  और  वानर  योनि  में  उत्पन्न  होना
तदनन्तर रावण से कष्ट पाये हुए ब्रह्मर्षि, देवर्षि तथा सिद्धगण अग्निदेव को आगे कर ब्रह्माजी की शरण में गये। अग्नि ने कहा, 'भगवन् ! आपने जो पहले वरदान देकर विश्रवा के पुत्र महाबली रावण को अवध्य कर दिया है, वह अब संसार की समस्त प्रजा को सता रहा है; आप ही उसके भय से हमारी रक्षा कीजिये।' ब्र्माजीने कहा---'अग्ने ! देवता या असुर उसे युद्ध में नहीं जीत सकते। इसके लिये जो कार्य आवश्यक था, वह मैने कर दिया है; अब शीघ्र ही उसका दमन हो जायगा। मैने चतुर्भुज भगवान् विष्णु से अनुरोध किया था, वे मेरी प्रार्थना से संसार में अवतार ले चुके हैं। वे ही रावण दमन का कार्य करेंगे।' फिर इन्द्र को लक्ष्य करके कहा, 'इन्द्र ! तुम भी सब देवताओं के साथ पृथ्वी पर रीछ और वानरों के रूप में जन्म लो और इच्छानुसार धारण करनेवाले बलवान् पुत्र उत्पन्न करो।' फिर दुंदुभी नामवाली गन्धर्वी से कहा---'तुम भी देवकार्य सिद्धि के लिये पृथ्वी पर अवतार धारण करो।' ब्रह्माजी का आदेश सुनकर दुंदुभी मंथरा के नाम सो अवतीर्ण हुई। वह शरीर से कुबड़ी थी। इस प्रकार इन्द्र आदि देवताओं ने भी अवतीर्ण होकर रीछ और वानर की स्त्रियों में पुत्र उत्पन्न किये। वे सब वानर और रीछ यश तथा बल में अपने पिता देवताओं के समान ही हुए। वे पर्वों के शिखर तोड़ डालते थे।शाल और ताड़ के वृक्ष तथा पत्थर की चट्टानें ही उनके आयुध थे। उनका शरीर वज्र के समान अभेद्य और सुदृढ़ था। वे सभी इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले, बलवान् और युद्ध करने में निपुण थे। ब्रह्माजी ने यह सब व्यवस्था करके मन्थरा से जो काम लेना था, वह उसे समझा दिया।

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