धृतराष्ट्र का पाण्डव पक्ष के वीरों की प्रशंसा करते हुए
युद्ध के लिये अनिच्छा प्रकट करना
राजा धृतराष्ट्र ने कहा---संजय
! यों तो तुमने जिन-जिनका उल्लेख किया है, वे सभी राजा बड़े उत्साही हैं। फिर भी एक
ओर उन सबको मिलाकर समझो और दूसरी ओर अकेले भीम को। जैसे अन्य जीव सिंह से डरते रहते
हैं, वैसे मैं भी भीम से डरकर रातभर गर्म-गर्म साँसे लेा हुआ जागता रहता हूँ। जैसे
अन्य जीव सिंह से डरते रहते हैं, वैसे मैं भी भीम से डरकर रातभर गर्म-गर्म साँसे लेता
हुआ जागता रहता हूँ। कुन्तीपुत्र भीम बड़ा ही असहनशील, कट्टर शत्रुता माननेवाला, सच्ची
हँसी करनेवाला, उन्मत्त, टेढ़ी निगाह से देखनेवाला, भारी गर्जना करनेवाला, महान् वेगवान्,
बड़ा ही उत्साही, विशालबाहु और बड़ा ही बली है।वह अवश्य युद्ध करके मेरे अल्पवीर्य पुत्रों
को मार डालेगा। उसकी याद आने पर मेरा दिल धड़कने लगता है। बाल्यावस्था में भी जब मेरे
पुत्र उसके साथ खेल में युद्ध करते थे तो वह उन्हें हाथी की तरह मसल डालता था। जिस
समय वह रणभूमि में क्रोधित होगा उस समय अपनी गदा से रथ, हाथी, मनुष्य और घोड़े---सभी
को कुचल डालेगा। वह मेरी सेना के बीच में होकर रास्ता निकाल लेगा, उसे इधर-उधर भगा
देगा और जिस समय हाथमें गदा लेकर रणांगण में नृत्य-सा करने लगेगा उस समय प्रलय सा मचा
देगा। देखो, मगधदेश के राजा महाबली जरासन्ध ने यह सारी पृथ्वी अपने वश में करके संतप्त
कर रखी थी; किन्तु भीमसेन ने श्रीकृष्ण के साथ उसके अन्तःपुर में जाकर उसे भी मार डाला।
भीमसेन के बल को मैं ही नहीं---ये भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य भी अच्छी तरह जानते हैं।
शोक तो मुझे उन लोगों के लिये है, जो पाण्डवों के साथ युद्ध करने पर ही तुले हुए हैं।
विदुर ने आरम्भ में ही जो रोना रोया था, आज वही सामने आ गया। इस
समय कौरवों पर जो महान् विपत्ति आनेवाली है, उसका प्रधान कारण जूआ ही जान पड़ता है।
मैं बड़ा मंदमति हूँ। 'हाय ! ऐश्वर्य के लोभ से मैने ही यह महापाप कर डाला था। संजय
! मैं क्या करूँ ? कैसे करूँ और कहाँ जाऊँ। ये मंदमति कौरव तो काल के अधीन होकर विनाश
की ओर ही जा रहे हैं। हाय ! सौ पुत्रों के मरने पर जब मुझे विवश होकर उनकी स्त्रियों
का करुणक्रन्दन सुनना पड़ेगा तो मौत भी मुझे कैसे स्पर्श करेगी ? जिस प्रकार वायु से
प्रज्जवलित हुआ अग्नि घास-फूस की ढ़ेरी को भष्म कर देता है, वैसे ही अर्जुन की सहायता
से गदाधारी भीम मेरे सब पुत्रों को मार डालेगा। देखो, आजतक युधिष्ठिर की मैने एक भी
झूठ बात नहीं सुनी; और अर्जुन जैसा वीर उसके पक्ष में है, इसलिये वह तो त्रिलोकी का
राज्य भी पा सकता है। रात-दिन विचार करने पर भी मुझे ऐसा कोई योद्धा दिखायी नहीं देता,
जो रथयुद्ध में अर्जुन का सामना कर सके। यदि किसी प्रकार वीरवर द्रोणाचार्य और कर्ण
उसका मुकाबला करने के लिये आगे बढ़ें भी, तो भी अर्जुन के जीतने के विषय में तो मुझे
बड़ा भारी संदेह ही है। इसलिये मेरी विजय होने
की कोई सूरत नहीं है। अर्जुन तो सारे देवताओं को भी जीत चुका है। वह कहीं हारा हो---यह
मैने आजतक नहीं सुना; क्योंकि जो स्वभाव और आचरण में उसी के समान है, वे श्रीकृष्ण
उसके सारथि हैं। जिस समय वह रणभूमि में रोषपूर्वक पैने-पैने वाणों की वर्षा करेगा,
उस समय विधाता के रचे हुए सर्वसंहारक काल के समान उसे काबू में करना असम्भव हो जायगा।
उस समय महलों में बैठा हुआ मैं भी निरंतर कौरवों के संहार और कौरवों के फूट आदि की
ही बातें सुनूँगा। वस्तुतः इस युद्ध में सब ओर से भरतवंश के विनाश का ही आक्रमण होगा।
संजय ! जैसे पाण्डवलोग विजय के लिये उत्सुक, वैसे ही उनके सब साथी भी विजय के लिये
कटिबद्ध और पाण्डवों के लिये अपने प्राण निछावर करने को तैयार है। तुमने मेरे सामने
शत्रुपक्ष के पंचाल, केकय, मत्स्य और पाण्डवों के नाम लिये हैं। किन्तु जगत्स्त्रष्टा
श्रीकृष्ण तो इच्छामात्र से इन्द्र के सहित इन लोकों को अपन वश में कर सकते हैं। वे
भी पाण्डवों की विजय का निश्चय किये हुए हैं।सात्यकि ने भी अर्जुन से सारी शस्त्रविद्या
सीख ली है; वह बीजों के समान वाणों की वर्षा करता हुआ युद्धक्षेत्र में डटा रहेगा।
महारथी धृष्टधुम्न भी बड़ा भारी शस्त्रज्ञ है, वह भी मेरे पक्ष के वीरों से युद्ध करेगा
ही। भैया ! मुझे तो हर समय युधिष्ठिर के क्रोध और अर्जुन के पराक्रम का तथा नकुल-सहदेव
और भीमसेन का भय लगा रहता है। युधिष्ठिर सर्वगुणसम्पन्न हैं और प्रज्जवलित अग्नि के
समान तेजस्वी हैं। ऐसा कौन मूढ़ है, जो पतंगे की तरह उसमें गिरना चाहेगा। इसलिये कौरवों
! मेरी बात सुनो। मैं तो उनके साथ युद्ध न ही करना अच्छा समझता हूँ। युद्ध करने पर
तो निश्चय ही इस सारे कुल का नाश हो जायगा। मेरा तो यही निश्चित विचार है और ऐसा करने
से ही मेरे मन को शान्ति मिल सकती है। यदि तुम सबको भी युद्ध न करना ही ठीक मालूम हो
तो हम सन्धि के लिये प्रयत्न करें। संजय ने कहा---महाराज ! आप जैसा कह रहे हैं वैसी
ही बात है। मुझे भी गाण्डीव धनुष से समस्त क्षत्रियों का नाश दिखायी दे रहा है। देखिये,
यह कुरुजांगल देश तो पैतृक राज्य है और शेष सब भूमि आपको पाण्डवों की ही जीती हुई मिली
है। पाण्डवों ने अपने बाहुबल से जीतकर यह भूमि आपको भेंट कर दी हैं; परन्तु आप इसे
अपनी ही विजय की हुई मानते हैं। जब गन्धर्वराज चित्रसेन ने आपके पुत्रों को कैद कर
लिया था, उस समय उसे भी अर्जुन ही छुड़ाकर लाया था। बाण छोड़नेवालों में अर्जुन श्रेष्ठ
है, समस्त प्राणियों में श्रीकृष्ण श्रेष्ठ हैं और ध्वजाओं मे वानर के चिह्नवाली ध्वजा
सबसे श्रेष्ठ है। अतः अर्जुन कालचक्र के समान हम सभी का नाश कर डालेगा। भरतश्रेष्ठ
! निश्चय मानिये--- जिसके सहायक भीम और अर्जुन हैं, यह सारी पृथ्वी आज उसी की है।
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