Monday 26 September 2016

उद्योग-पर्व---कर्ण, भीष्म और द्रोण की सम्मति तथा संजय द्वारा पाण्डवपक्ष के वीरों का वर्णन

कर्ण, भीष्म और द्रोण की सम्मति तथा संजय द्वारा पाण्डवपक्ष के वीरों का वर्णन
भरतनन्दन ! उस समय कौरवों की सभा में सभी राजालोग एकत्रित थे। संजय का भाषण समाप्त होने पर शान्तनुनन्दन भीष्म ने दुर्योधन से कहा, "एक समय बृहस्पति, शुक्राचार्य तथा इन्द्रादि देवगण ब्रह्माजी के पास गये और उन्हें घेरकर बैठ गये। उसी समय दो प्राचीन ऋषि अपने तेज से सबके चित्त एवं तेज को हरते हुए सबको लाँघकर चले गये। बृहस्पतिजी ने ब्रह्माजी से पूछा कि 'ये दोनो कौन हैं, जो आपकी उपासना किये बिना ही चले जा रहे हैं ? तब ब्रह्माजी ने बतलाया कि 'ये प्रबल प्रतापी महाबली नर-नारायण ऋषि हैं, जो अपने तेज से पृथ्वी एवं स्वर्ग को प्रकाशित कर रहे हैं। इन्होंने अपने कर्म से संपूर्ण लोकों के आनन्द को बढ़ाया है। इन्होंने परस्पर अभिन्न होते हुए भी असुरं का विनाश करने के लिये दो शरीर धारण किये हैं। ये अत्यन्त बुद्धिमान् तथा शत्रुओं को संतप्त करनेवाले हैं। समस्त देवता एवं गन्धर्व इनकी पूजा करते हैं।' 'सुनते हैं---इस युद्ध में अर्जुन और श्रीकृष्ण एकत्र हैं, ये दोनो नर-नारायण नाम के प्राचीन देवता ही हैं। इन्हें इस संसार में इन्द्र के सहित देवता और असुर भी जीत सकते। इनमें श्रीकृष्ण नारायण और अर्जुन नर हैं। वस्तुतः नारायण और नर---ये दो रूपों में एक ही वस्तु हैं। भैया दुर्योधन ! जिस समय तुम शंख चक्र और गदा धारण किये तुम श्रीकृष्ण को और अनेकों अश्त्र-शस्त्र एवं भयंकर गाण्डीव धनुष लिये अर्जुन को एक ही रथ में बैठे देखोगे, उस समय तुम्हे मेरी बात याद आवेगी। यदि तुम मेरी बात पर ध्यान नहीं दोगे तो समझ लेना कि कौरवों का अन्त आ गया है तथा तुम्हारी बुद्धि अर्थ और धर्म से भ्रष्ट हो गयी है। तुम्हे तो तीनही की सलाह ठीक जान जान पड़ती है---एक तो अधम जाति सूतपुत्र कर्ण की, दूसरे सबलपुत्र शकुनि की और तीसरे अपने क्षुद्रबुद्धि पापात्मा भाई दुःशासन की। इसपर कर्ण बोल उठा---पितामह ! आप जैसी बात कह रहे हैं, वह आप जैसे बयोवृद्धों के मुख से अच्छी नहीं लगती। मैं क्षात्रधर्म में स्थित रहता हूँ और कभी अपने धर्म का परित्याग नहीं करता। मेरा ऐसा कौन सा दुराचार है, जिसके कारण आप मेरी निंदा कर रहे हैं ? मैने दुर्योधन का कभी कोई अनिष्ट नहीं किया और अकेला मैं ही युद्ध में सामने आने पर समस्त पाण्डवों को मार डालूँगा। कर्ण की बात सुनकर पितामह भीष्म ने राजा धृतराष्ट्र को सम्बोधन करके कहा----'कर्ण जो यह सदा ही कहता रहता है कि 'मैं पाण्डवों को मार डालूँगा' सो यह पाण्डवों के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं है। तुम्हारे दुष्ट पुत्रों को जो अनिष्ट फल मिलनेवाला है, वह सब इस दुष्टबुद्धि सूतपुत्र की ही करतूत है। तुम्हारे पुत्र मन्दमति दुर्योधन ने भी इसी का बल पाकर उनका तिरस्कार किया है। पाण्डवों ने मिलकर और अलग-अलग जैसे दुष्कर कर्म किये हैं, वैसा इस सूतपुत्र ने कौन सा पराक्रम किया है ? जब विराटनगर में अर्जुन ने इसके सामने ही इसके प्यारे भाई को मार डाला था तो इसने उसका क्या कर लिया था ?  जिस समय अर्जुन ने अकेले ही समस्त कौरवों पर आक्रमण किया और इन्हें परास्त करके इनके वस्त्र छीन लिये, उस समय क्या यह कहीं बाहर चला गया था ?  घोषयात्रा के समय जब गन्धर्वलोग तुम्हारे पुत्र को कैद करके ले गये थे, उस समय यह कहाँ था ? अब तो बड़ा बैल की तरह गरज रहा है ! यहाँ भीमसेन, अर्जुन और नकुल-सहदेव ने मिलकर ही गन्धर्वों को परास्त किया था। भरतश्रेष्ठ ! यह बड़ा ही बकवादी है। इसकी सब बातें इसी तरह झूठी हैं। यह तो धर्म और अर्थ दोनो को ही चौपट कर देनेवाला है।' भीष्म की बात सुनकर महामना द्रोण ने उनकी प्रशंसा की और फिर राजा धृतराष्ट्र से कहा---'राजन् ! भरतश्रेष्ठ भीष्म जैसा कहते हैं, वैसा ही करो; जो लोग अर्थ और कामके गुलाम हैं, उनकी बात नहीं माननी चाहिये। मैं तो युद्ध के पहले पाण्डवों के साथ सन्धि करना ही अच्छा समझता हूँ। अर्जुन ने जो बात कही है और संजय ने ज संदेश आपको सुनाया है, मैं उन सबको समझता हूँ। अर्जुन अवश्य वैसा ही करेगा। उसके समान तीनों लोकों में कोई धनुर्धर नहीं है।' राजा धृतराष्ट्र ने भीष्म एवं द्रोण के कथन पर कोई ध्यान नहीं दिया और वे संजय से पाण्डवों का समाचार पूछने लगे। उन्होंने पूछा---'संजय ! हमारी विशाल सेना का समाचार पाकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर ने क्या कहा था ?  युद्ध के लिये वे क्या-क्या तैयारियाँ कर रहे हैं तथा उनके भाई और पुत्रों में से कौन-कौन आज्ञा पाने के लिये उनके मुख की ओर ताकते रहते हैं ? संजय ने कहा---'महाराज ! राजा युधिष्ठिर के मुख की ओर तो पाण्डव और पांचाल दोनो ही कुटुम्बों के लोग देखते रहते हैं और वे सभी को आज्ञा भी देते हैं। ग्वालियों और गड़रियों से लेकर केकय और मत्सय देशों के राजवंश तक सभी युधिष्ठिर का सम्मान करते हैं। धृतराष्ट्र ने पूछा---संजय ! यह तो बताओ, पाण्डवलोग किसकी सहायता पाकर हमारे ऊपर चढ़ाई कर रहे हैं। संजय ने कहा---राजन् ! पाण्डवों के पक्ष में जो-जो योद्धा सम्मिलित हुए हैं, उनके नाम सुनिये। आपके साथ युद्ध करने के लिये वीर धृष्टधुम्न उनसे मिल गया है। हिडिम्ब राक्षस भी उनके पक्ष में है। भीमसेन तो अपने बल के लिये प्रसिद्ध है ही। वारणावत नगर में उन्होने पाण्डवों को भ्रष्ट होने से बचाया था। उन्होंने गन्धमादन पर्वत पर क्रोधवश नाम के राक्षसों का नाश किया था। उनकी भुजाओं में दस हजार हाथियों का बल है। उन्हीं महाबली भीम के साथ पाण्डवलोग आप पर आक्रमण कर रहे हैं। अर्जुन के पराक्रम के विषय में तो कहना ही क्या है ? श्रीकृष्ण के साथ अकेले अर्जुन ने ही अग्नि की तृप्ति के लिये युद्ध में इन्द्र को परास्त कर दिया था। इन्होंने युद्ध करके साक्षात् देवाधिदेव त्रिशूलपाणि भगवन् शंकर को प्रसन्न किया था। यही नहीं, धनुर्धर अर्जुन ने ही समस्त लोकपालों को जीत लिया था। उन्हीं अर्जुन को साथ लेकर पाण्डव आप पर चढ़ाई कर रहे हैं। जिन्होंने म्लेच्छों से भरी हुई पश्चिम दिशा को अपने अधीन कर लिया था, वे तरह-तरह से युद्ध करनेवाले वीर नकुल भी उनके साथ हैं तथा जिन्होंने काशी, अंग, मगध और कलिंग देशों को युद्ध में जीत लिया था, वे सहदेव भी उनके साथ हैं तथा जिन्होंने आक्रमण करने में उनके सहायक हैं। पितामह   भीष्म के वध के लिये जिसे यक्ष ने पुरुष कर दिया था, वह शिखण्डी भी बड़ा भारी धनुष धारण किये पाण्डवों के साथ है। केकय देश के पाँच सहोदर राजकुमार बड़े धनुर्धर हैं। वे भी कवच धारण करके आपपर चढ़ाई कर रहे हैं। सात्यकि कितनी फुर्ती से शस्त्र चलानेवाला है। उसके साथ भी आपको संग्राम करना पड़ेगा। जो अज्ञातवास के समय पाण्डवों का आश्रय बने थे, उन राजा विराट से भी युद्ध-स्थल में आपलोगों की मुठभेड़ होगी। महारथी काशीराज भी उनकी सेना के योद्धा हैं; आपके ऊपर चढ़ाई करते समय वह भी उनके साथ रहेगा। जो वीरता में श्रीकृष्ण के समान और संयम में महाराज युधिष्ठिर के समान है, उस अभिमन्यु के सहि पाण्डवलोग आपपर आक्रमण करेंगे। शिशुपाल का पुत्र एक अक्षौहिणी सेना लेकर पाण्डवों के पक्ष में सम्मिलित हुआ है। जरासन्ध के पुत्र सहदेव और जयत्सेन---ये रथयुद्ध में बड़े ही पराक्रमी हैं, वे भी पाण्डवों की ओर से युद्ध करने को तैयार हैं। महातेजस्वी द्रुपद बड़ी भारी सेना के सहित पाण्डवों के लिये प्राणान्त युद्ध करने के लिये तैयार हैं। इसी प्रकार पूर्व और उत्तर दिशाओं के और भी सैकड़ों राजा पाण्डवों के पक्ष में हैं, जिनकी सहायता से धर्मराज युधिष्ठिर युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।

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