Wednesday 29 March 2017

दुर्योधन के प्रति भीष्मादि का और युधिष्ठिर के प्रति अर्जुन का बल_वर्णन

संजय ने कहा__महाराज ! वह रात हारने पर जब प्रातःकाल  हुआ तो आपके पुत्र दुर्योधन ने पितामह भीष्म से पूछा___दादाजी ! पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर की जो यह जो यह असंख्य पैदल, हाथी, घोड़े और महारथियों से पूर्ण प्रबल वाहिनी हमलोगों से युद्ध करने के लिये तैयार हो रही है, इसे आप कितने दिनों में नष्ट कर सकते हैं ? तथा आचार्य द्रोण, कृपया, कर्ण और अश्त्थामा को इसका नाश करने में कितना समय लगेगा ? मुझे बहुत दिनों से यह बात जानने की इच्छा है। कृपया बतलाइये।‘ भीष्म ने कहा___राजन् ! तुम जो शत्रुओं के बलाबल के विषय में पूछ रहे हो, सो उचित ही है। युद्ध में मेरा जो अधिक_से_अधिक पराक्रम, शस्त्रबल और भुजाओं का  सामर्थ्य है वह सुनो। धर्मयुद्ध के लिये ऐसा निश्चय है सरल योद्धा के साथ सरलतापूर्वक और मायायुद्ध करनेवाले के साथ मायापूर्वक युद्ध करना चाहिये। इस प्रकार युद्ध करके मैं प्रतिदिन पाण्डवसेना के दस हजार योद्धा और एक हजार रथियों का संहार कर सकता हूँ। अत: यदि मैं अपने महान् अस्त्र का प्रयोग करूँ तो एक महीने में समस्त पाण्डवसेना का संहार हो सकता है। द्रोणाचार्य ने कहा___'राजन् ! अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, तो भी भीष्मजी के समान मैं भी एक महीने में ही अपनी शास्त्राग्नि से पाण्डवसेना को भष्म कर सकता हूँ। कृपाचार्य ने दो महीने में और अश्त्थामा ने दस दिन में संपूर्ण पाण्डवदल का संहार करने की अपनी शक्ति बतायी। किंतु कर्ण ने कहा, ‘मैं पाँच दिन में ही सारी सेना का सफाया कर दूँगा।‘ कर्ण की यह बात सुनकर भीष्म खिलखिलाकर हँस पड़े और कहा, ‘राधापुत्र ! जब तक रणभूमि में तेरे सामने श्रीकृष्ण के सहित अर्जुन रथ में बैठकर नहीं आता, तभी तक तू इस तरह अभिमान में भरा हुआ है; उसका सामना होने पर तू क्या तू इस प्रकार मनमाना बकवाद कर सकेगा ?’जब कुन्तीनन्दन महाराज युधिष्ठिर ने यह समाचार सुना तो उन्होंने भी अपने भाइयों को बुलाकर कहा___भाइयों ! आज कौरवों की सभा में मेरे जो गुप्तचर हैं, उन्होंने वहाँ का सवेरे का ही समाचार भेजा है। दुर्योधन ने भीष्मजी से पूछा था कि ‘आप पाण्डवों की सेना का कितने दिनों में संहार कर सकते हैं ?’ इस पर उन्होंने कहा ‘एक महीने में।‘ द्रोणाचार्य ने उतने ही समय में नाश करने की अपनी शक्ति बताया।  कृपाचार्य ने अपने लिये इससे दूना समय बताया। अश्त्थामा ने कहा, ,’मैं दस दिन में यह काम कर सकता हूँ।‘ तथा जब कर्ण से पूछा गया तो उसने पाँच दिन में सारी सेना का संहार कर सकने की बात कही। अतः अर्जुन ! अब मैं भी इस विषय में तुम्हारी बात सुनना चाहता हूँ। तुम कितने समय में सब शत्रुओं का संहार कर सकते हो ? युधिष्ठिर के इस प्रकार पूछने पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण की ओर देखकर कहा___'मेरा ऐसा विचार है कि श्रीकृष्ण की सहायता से मैं अकेला ही एक रथ पर चढ़कर क्षणभर में देवताओं के सहित तीनों लोक और भूत, भविष्य, वर्तमान___सभी जीवों का नाश कर सकता हूँ। पहले किरातवेषधारी भगवान् शंकर के साथ युद्ध होते समय उन्होंने मुझे जो अत्यन्त प्रचण्ड पाशुपतास्त्र दिया था, वह मेरे पास है। भगवान् शंकर प्रलयकाल में संपूर्ण जीवों का संहार करने के लिये इसी अस्त्र का प्रयोग करते हैं। इसे मेरे सिवा न तो भीष्म जानते हैं और न द्रोण, कृप या अश्त्थामा को ही इसका ज्ञान है; फिर कर्ण की तो बात ही क्या है ? तथापि इन दिव्यास्त्रों से संग्रामभूमि में मनुष्यों को मारना उचित नहीं है; हम तो सीधे_सीधे युद्ध से ही शत्रुओं को जीत लेंगे। इसी प्रकार आपके सहायक ये अन्यान्य वीर भी पुरुषों में सिंह के समान हैं। ये सभी दिव्य अस्त्रों केि ज्ञाता और युद्ध के लिये उत्सुक हैं।  इन्हे कोई जीत नहीं सकता। ये रणांगण में देवताओं की सेना का भी संहार कर सकते हैं। शिखण्डी, युयुधान, धृष्टधुम्न, भीमसेन, नकुल, सहदेव, युधामन्यु, उत्तमौजा, विराट, द्रुपद, शंख, घतोत्कच, उसका पुत्र अच्चनपर्वा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँच पुत्र तथा स्वयं आप भी तीनों लोकों तो नष्ट करने में समर्थ हैं। इसमें संदेह नहीं कि यदि आप क्रोधपूर्वक किसी को भी देख लें तो वह तत्काल नष्ट हो जायगा।

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