Wednesday, 29 March 2017

कौरव और पाण्डव_सेनाओं का युद्धभूमि के लिये प्रस्थान

थोड़ी ही देर में स्वच्छ प्रभात हुआ। तब दुर्योधन की आज्ञा से उसके पक्ष को राजालोग पाण्डवों पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगे। उन्होंने स्नान करके श्वेत वस्त्र और हार धारण किये, हवन किया और फिर अस्त्र_शस्त्र धारण कर स्वास्तिवाचन कराते हुए युद्ध करने के लिये चले। आरम्भ में अवन्तिदेश के राजा विन्द और अनुविन्द, केकय देश के राजा बाह्लीक___ये सब द्रोणाचार्यजी के नेतृत्व में चले। उसके बाद अश्त्थामा, भीष्म, जयद्रथ, गान्धारराज शकुनि, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर की ओर के राजा, पर्वतीय नृपतिगण तथा शक, किरात, यवन, शिबि और वसाति जाति को राजालोग अपनी_अपनी सेना के सहित दूसरा दल बनाकर चल दिये। उनके पीछे सेना के सहित कृतवर्मा, त्रिगर्तराज, भाइयों से घिरा हुआ दुर्योधन, शल, भूरिश्रवा, शल्य और कोसलराज बृहद्रथ___इन सबने कूच किया। महाबली धृतराष्ट्रपुत्र कवच धारण कर कुरुक्षेत्र के पिछले आधे भाग में ठीक_ठीक व्यवस्थापूर्वक खड़े हो गये दुर्योधन ने अपने शिविर को इस प्रकार सुसज्जित कराया था कि वह दूसरे हस्तिनापुर के समान ही जान पड़ता था। इसलिये बहुत चतुर नागरिकों को भी उसमें और नगर में कोई भेद नहीं जान पड़ता था। और सब राजाओं के लिये भी उसने वैसे ही सैकड़ों, हजारों डेरे डलवाये थे। उस पाँच योजन घेरे के रणांगण में उसने सैकड़ों छावनियाँ डाली थीं। उन छावनियों में राजालोग अपने_अपने बल और उत्साह के अनुसार ठहरे हुए थे। राजा दुर्योधन उन आये हुए राजाओं  को उनकी सेना के सहित सब प्रकार की उत्तम_उत्तम भक्ष्य और भोज्य सामग्री देने का प्रबंध किया गया था। वहाँ जो व्यापारी और दर्शकलोग आये थे, उन सबकी भी वह विधिवत् देखभाल करता था।
इसी प्रकार महाराज युधिष्ठिर ने भी धृष्टधुम्न आदि वीरों को रणभूमि में चलने की आज्ञा दी। उन्होंने  राजाओं के हाथी, घोड़े, पैदल और वाहनों के सेवक तथा शिल्पियों के लिये अच्छी_से_अच्छी भोजनसामग्री देने का आदेश दिया। फिर धृष्टधुम्न के नेतृत्व में अभिमन्यु, बृहत् और द्रौपदी के पाँचों पुत्रों को रणांगण में भेजा। इसके बाद भीमसेन, सात्यकि और अर्जुन को दूसरे सैन्यसमुदाय के साथ चलने को कहा। इन सबके पीछे विराट, द्रुपद तथा दूसरे राजाओं के साथ वे स्वयं चले। उस समय धृष्टधुम्न की अध्यक्षता में चलती हुई वह पाण्डवसेना भरी हुई गंगाजी के समान मन्दगति से चलती दिखायी देती थी। थोड़ी दूर जाकर राजा युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को भ्रम में डालने के लिये अपनी सेना का दुबारा संगठन किया। उन्होंने द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु, नकुल, सहदेव और समस्त प्रभद्रक वीरों को दस हजार घुड़सवार, दो हजार गजारोहीै, दस हजार पैदल और पाँच सौ रथियों के साथ भीमसेन के नेतृत्व में पहला दल बनाकर चलने की आज्ञा दी। बीच के दल में विराट, जयत्सेन तथा पांचालकुमार युधामन्यु और उत्तमौजा को रखा। इसके पीछे मध्यभाग में ही श्रीकृष्ण और अर्जुन चले। उनके आगे_पीछे सब ओर से बीस हजार घुड़सवार, पाँच हजार गजारोही तथा अनेकों रथी और पैदल धनुष, खड्ग, गदा एवं तरह_तरह के अस्त्र लिये चल रहे थे। जिस सैन्य समुद्र के बीच में स्वयं राजा युधिष्ठिर थे, उसमें अनेकों राजालोग उन्हें चारों ओर से घेरे हुए थे। महाबली सात्यकि भी लाखों रथियों के साथ सेना को आगे बढ़ाये ले जा रहा था। पुरुषश्रेष्ठ क्षत्रदेव और ब्रह्मदेव सेना के जघनस्थान की रक्षा करते हुए पिछले भाग में चल रहे थे। इसके सिवा और भी बहुत से छकड़े , दुकानें, सवारियों तथा हाथी_घोड़े आदि सेना के साथ थे। उस समय उस रणक्षेत्र में लाखों वीर बड़ी उमंग से भेरी और शंखों की ध्वनि कर रहे थे।

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