Friday 31 March 2017

व्यासजी द्वारा संजय की नियुक्ति कथा अनिष्टसूचक उत्पातों का वर्णन


तदनन्तर पूर्व और पश्चिम दिशा में आमने_सामने खड़ी हुई दोनों ओर की सेनाओं को देखकर भूत, भविष्य और वर्तमान___तीनों कालों का ज्ञान रखनेवाले भगवान् व्यास ने एकान्त में बैठे हुए राजा धृतराष्ट्र के पास आकर कहा, ‘राजन् ! तुम्हारे पुत्रों तथा अन्य राजाओं का काल आ पहुँचा है; वे युद्ध में एक_दूसरे का संहार करने को तैयार हैं। बेटा ! यदि तुम इन्हें संग्राम में देखना चाहो तो तो मैं तुम्हें दिव्यदृष्टि प्रदान करूँ। इससे तुम वहाँ का युद्ध भलीभाँति देख सकेंगे।‘ धृतराष्ट्र ने कहा___ब्रह्मर्षिवर ! युद्ध में मैं अपने ही कुटुम्ब का वध नहीं देखना चाहता; किन्तु आपके प्रभाव से युद्ध का पूरा समाचार सुन सकूँ, ऐसी कृपा अवश्य कीजिये। धृतराष्ट्र युद्ध का समाचार सुनना चाहता है___ यह जानकर व्यासजी ने संजय को दिव्यदृष्टि दिया। वे धृतराष्ट्र से बोले___’राजन् ! यह संजय तुम्हें युद्ध का वृतांत सुनायेगा। संपूर्ण युद्धक्षेत्र में कोई भी ऐसी बात न होगी, जो इससे छिपी रहे। यह दिव्यदृष्टि से सम्पन्न और सर्वज्ञ हो जायगा। सामने हो या परोक्ष में, दिन में हो या रात में, अथवा मन में सोची हुई ही क्यों न हो, वह बात भी संजय को मालूम हो जायगी। इसे शस्त्र नहीं काट सकेंगे, परिश्रम कष्ट नहीं पहुँचा सकेगा तथा यह इस युद्ध में जीता_जागता निकल आयेगा। मैं इन कौरवों और पाण्डवों की कीर्ति का विस्तार करूँगा, तुम इनके लिये शोक न करना। यह दैव का विधान है, इसे टाला नहीं जा सकता। युद्ध में जिस ओर धर्म होगा, उसी पक्ष की जीत होगी।महाराज ! इस संग्राम में बड़ा भारी संहार होगा; क्योंकि ऐसे ही भयसूचक अपशकुन दिखायी देते हैं। दोनों संध्याओं की वेला में बिजली चमकती है और सूर्य की तरंगे बादल ढक देते हैं, ये ऊपर_नीचे सफेद और लाल तथा बीच में काले होते हैं। सूर्य, चन्द्रमा और तारे जलते हुए_से दीखते हैं। दिन रात में कोई अन्तर नहीं जान पड़ता; यह लक्षण भय उत्पन्न करनेवाला है। कार्तिक की पूर्णिमा को नीलकमल के समान रंगवाले आकाश में चन्द्रमा प्रभाहीन होने के कारण कम दीखता था, उसका रंग अग्नि के समान था। इससे यह सूचित होता था कि अनेकों शूरवीर राजा और राजकुमार युद्ध में प्राणत्याग कर पृथ्वी पर शयन करेंगे। प्रतिदिन सूअर और बिलाव लड़ते हैं और उनका भयंकर नाद सुनायी पड़ता है। देवमूर्तियाँ काँपती, हँसती और रक्त वमन करती हैं तथा अकस्मात् पसीने से तर हो जाती और गिर पड़ती हैं। जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध है, उस परम साध्वी अरुन्धती ने इस समय वशिष्ठ को आगे से पीछे कर लिया है। शनैश्चर रोहिणी को पीड़ा दे रहा है, चन्द्रमा का मृगचिह्न मिट सा गया है; इससे बड़ा भारी भय होनेवाला है। आजकल गौओं के पेट से गधे उत्पन्न होते हैं। घोड़ी से गौ के बछड़े की उत्पत्ति होती है और कुत्ते गीदड़ पैदा कर रहे हैं। चारों ओर बड़े जोर की आँधी चलती है, धूल का उड़ना बन्द ही नहीं होता। बारंबार भूकम्प होता है। राहू सूर्य पर आक्रमण करता है, केतू चित्रा पर स्थित है, धूमकेतु पुष्य नक्षत्र में स्थित है, यह महान् ग्रह दोनों सेनाओं का घोर अमंगल करेगा। मंगल वक्री होकर मघा_नक्षत्र पर स्थित है। बृहस्पति श्रवण_नक्षत्र पर है और शुक्र पूर्वाभाद्रपदापर स्थित है। पहले चौदह, पंद्रह और सोलह दिनों पर अमावस्या हो चुकी है; किन्तु कभी पक्ष के तेरहवें दिन ही अमावस्या हुई हो___यह मुझे स्मरण नहीं है। इस बार तो एक ही महीने के दोनों पक्षों में त्रयोदशी को ही सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण हो गये हैं। इस प्रकार बिना पर्व का ग्रहण होने से ये दोनों ग्रह अवश्य ही प्रजा का संहार करेंगे। पृथ्वी हजारों राजाओं का रक्तपान करेगी। कैलास, मंदराचल और हिमालय_जैसे पर्वतों से हजारों बार घोर शब्द होते हैं, उनके शिखर टूट_टूटकर गिर रहे हैं और चारों महासागर अलग_अलग उफनाते तथा पृथ्वी पर हलचल पैदा करते हुए बढ़कर मानो अपनी सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं।

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