Monday 13 March 2017

पाण्डव पक्ष के रथी और अतिरथियों की गणना

भाष्मजी ने कहा___ राजन् ! मैंने तुम्हारे पक्ष के रथी, अतिरथी और अर्धरथी तो सुना दिये; अब यदि पाण्डव पक्ष के रथी आदि सुनने की उत्सुकता है, तो वह भी सुनो। प्रथम तो राजा युधिष्ठिर ही बहुत अच्छे रथी हैं। भीमसेन तो आठ रथियों के बराबर हैं। बाण और गदा के युद्ध में उसके समान दूसरा कोई योद्धा नहीं है। उसमें दस हजार हाथियों का बल है और वह बड़ा ही मानी और तेजस्वी है। माद्री के पुत्र नकुल_सहदेव भी अच्छे रथी हैं। ये सब पाण्डव बाल्यालस्था में ही तुमलोगों की अपेक्षा तेजी से दौड़ने, लक्ष्य बेधने, मर्मस्थानों को पीड़ित करने और पृथ्वी पर डालकर घसीटने में बढे_चढ़े थे। ये लोग रणभूमि में हमारी सेना को नष्ट कर डालेंगे, तुम इनसे युद्ध मत ठानो। अर्जुन को तो साक्षात् श्रीनारायण की सहायता प्राप्त है। दोनों पक्ष की सेनाओं में अर्जुन जैसा रथी कोई नहीं है। इस समय ही नहीं, मैंने तो भूतकाल में भी ऐसा कोई रथी नहीं सुना। वह यदि क्रोध करेगा तो तुम्हारी सारी सेना का विध्वंस कर डालेगा। अर्जुन का सामना या तो मैं कर सकता हूँ या आचार्य द्रोण। हमारे सिवा दोनों सेनाओं में तीसरा कोई भी वीर उसके आगे नहीं टिक सकता। किन्तु हम दोनों भी अब बूढ़े हो गये हैं, अर्जुन तो युवा और सब प्रकार कार्यकुशल है। इनके सिवा द्रौपदी के पाँचों पुत्र महारथी हैं। विराट के पुत्र उत्तर को भी मैं अच्छा रथी मानता हूँ। महाबाहु अभिमन्यु तो रथयूथपों के थूथों का भी अध्यक्ष है। वह युद्ध करने में स्वयं अर्जुन और श्रीकृष्ण के समान है। वृष्णिवंशी वीरों में परम शूरवीर सात्यकि भी रथयूथपों का यूथप है। वह बड़ा ही असहनशील और निर्भय है। उत्तमौजा को भी मैं अच्छा रथी मानता हूँ तथा मेरे विचार से युधामन्यु भी उत्तम रथी है। विराट और द्रुपद बूढ़े होने पर भी युद्ध में अजेय हैं; मैं इन्हें बड़ा पराक्रमी और महारथी समझता हूँ। द्रुपद का पुत्र शिखण्डी भी उस सेना में एक प्रधान रथी है। द्रोणाचार्य का शिष्य धृष्टधुम्न तो उस सारी सेना का अध्यक्ष है। उसे भी मैं महारथी और अतिरथी मानता हूँ। धृष्टधुम्न का पुत्र क्षत्रधर्मा अर्धरथी है, क्योंकि बालक होने के कारण अभी उसने विशेष परिश्रम नहीं किया। शिशुपाल का पुत्र चेदिराज धृष्टकेतू बड़ा ही वीर और धनुर्धर है। वह पाण्डवों का सम्बन्धी और महारथी है। इनके सिवा क्षत्रदेव, जयन्त, अमितौजा, सत्यजित्, अज और भोज भी पाण्डवों के पक्ष में महान् पराक्रमी और महारथी हैं।
केकय देश के पाँच सहोदर राजकुमार बड़े ही दृढ़पराक्रमी, तरह_तरह के शस्त्रों से युद्ध करनेवाले और उच्च कोटि के रथी हैं। कौशिक, सुकुमार, नील, सूर्यदत्त, शंख और मदिराश्व___ये सभी बड़े अच्छे रथी और युद्धकाल में निष्णात हैं। महाराज वार्दध्क्षेमिको को भी मैं महारथी मानता हूँ। राजा चित्रायुध भी रथियों में श्रेष्ठ और अर्जुन का भक्त है। चेकितान, सत्यधृति, व्याघ्रदत्त और चन्द्रसेन___ये पाण्डवसेना में बड़े अच्छे रथी हैं। सेनाबिन्दु या क्रोधहन्ता नाम का जो वीर है, वह तो श्रीकृष्ण और अर्जुन के समान ही बलवान् है। उसे भी एक उत्तम रथी मानना चाहिये। काशिराज शस्त्र चलाने में बड़ा फुर्तीला और शत्रुओं का संहार करनेवाला है। वह भी एक रथी के बराबर है। द्रुपद का युवा पुत्र सत्यजित् तो आठ रथियों के बराबर है। उसे धृष्टधुम्न के समान अतिरथी कहा जा सकता है। राजा पाण्ड्य  भी पाण्डवसेना में एक महारथी है। वह बड़ा ही पराक्रमी और महान् धनुर्धर है। इसके सिवा श्रेणिमान् और राजा वसुदान को भी मैं अतिरथी मानता हूँ। पाण्डवों की ओर से रोचमान भी एक महारथी है। पुरुजित् कुन्तिभोज बड़ा ही धनुर्धर और महाबली है। वह भीमसेन का मामा है। मेरे विचार से वह अतिरथी है। भीमसेन का पुत्र राक्षसराज घतोत्कच बड़ा ही मायावी है। मैं उसे रथयूथपतियों का अधिपति समझता हूँ। राजन् !  मैंने तुम्हें ये पाण्डवसेना के प्रधान_प्रधान रथी, अतिरथी और अर्धरथी सुनाये। मुझे श्रीकृष्ण, अर्जुन सा दूसरे राजाओं में से जो कोई जहाँ भी मिलेगा उसे मैं वहीं रोकने का प्रयत्न करूँगा। परन्तु यदि द्रुपदपुत्र शिखण्डी मेरे सामने आकर युद्ध करेगा तो उसे मैं नहीं मारूँगा; क्योंकि मैंने सब राजाओं के सामने आजन्म ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा की है। अतः किसी स्त्री को अथवा जो पहले स्त्री रहा हो, उस पुरुष को मैं कभी नहीं मार सकता। शायद तुमने सुना हो, यह शिखण्डी पहले स्त्री था। यह कन्यारूप से उत्पन्न होकर पीछे पुरुष हो गया है। इसलिये इससे मैं युद्ध नहीं करूँगा। इसके सिवा रणभूमि में और जो_जो राजा मेरे सामने आवेंगे उन सबको मारूँगा, किन्तु कुन्तिपुत्रों के प्राण नहीं लूँगा।

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