Friday 31 March 2017

भीष्मपर्व________शिविरस्थापन तथा युद्ध के नियमों का निर्णय

नारायणं नमस्कृत्यं नरं चैव नरोत्तम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।।___ अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण, उनके नित्य सखा नरस्वरूप नररत्न अर्जुन, उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती और उसके वक्ता महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके आसुरी सम्पत्तियों पर विजयप्राप्तिपूर्वक अन्तःकरण को शुद्ध करनेवाले महाभारत ग्रंथ का पाठ करना चाहिये।
कौरव , पाण्डव और सोमवंशी वीरों ने कुरुक्षेत्र में जिस प्रकार युद्ध किया वह इस प्रकार है____ कुन्तीनन्दन राजा युधिष्ठिर ने वहाँ समन्तपंचक तीर्थ से बाहर के मैदान में हजारों खेमे खड़े करवाये। वहाँ इतनी सेना इकट्ठी हो गयी थी कि कुरुक्षेत्र के सिवा सारी पृथ्वी सूनी लगती थी। केवल बालक और बृद्ध ही बच गये थे, तरुण, पुरुष और घोड़ों का नाम नहीं था तथा रथ और हाथी भी कहीं नहीं बचे थे। पृथ्वी के सब देशों से कुरुक्षेत्र में सेना आयी थी। सभी वर्णों के लोग वहाँ एकत्रित हुए थे। सबने अनेकों योजन के मण्डल में घेरा डाल रखा था। उनके घेरे में देश, नदी, पर्वत और वन भी थे। राजा युधिष्ठिर ने सबके भोजन_पान का उत्तम प्रबन्ध किया था। जब युद्ध का समय उपस्थित हुआ तो उन्होंने इस पहचान के लिये कि यह पाण्डव_पक्ष का योद्धा है सबके नाम, आभूषण और संकेत निश्चित किये। दुर्योधन ने भी समस्त राजाओं को साथ लेकर पाण्डवों के मुकाबले में व्यूह_रचना की। युद्ध का अभिनन्दन करनेवाले पांचालदेशीय वीर दुर्योधन को देखकर हर्ष से भर गये और बड़े_बड़े शंख तथा रणभेरियाँ बजाने लगे। तदनन्तर एक ही रथ पर बैठे हुए भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी अपने_अपने दिव्य शंख बजाये। उन पांचजन्य और देवदत्त नामक शंखों की भयंकर आवाज सुनकर कौरव योद्धाओं के मल_मूत्र निकल पड़े।
इसके बाद कौरव, पाण्डव और सोमवंशी वीरों ने मिलकर युद्ध के कुछ नियम बनाये और उन युद्धसंबंधी धार्मिक नियमों का पालन सबके लिये अनिवार्य कर दिया। वे नियम इस प्रकार थे___'प्रतिदिन युद्ध समाप्त होने पर हमलोग पहले की भाँति आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार करें, कोई किसी के साथ छल_कपट न करे। जो वाग्युद्ध कर रहे हों, उनका मुकाबला वाग्युद्ध से ही किया जाय। जो सेना से बाहर निकल गये हों, उनके ऊपर प्रहार न किया जाय। रथी रथी के साथ, हाथी_सवार हाथी_सवार के साथ, घुड़सवार घुड़सवार के साथ और पैदल पैदल के साथ ही युद्ध करे। जो जिसके योग्य हो, जिसके साथ युद्ध करने की उसकी इच्छा हो, वह उसी के साथ युद्ध करे। जिसका जैसा उत्साह और बल हो, उसके अनुसार ही वह लड़े। विपक्षी को पुकारकर सावधान करके प्रहार किया जाय। जो प्रहार न होने का विश्वास करके बेखबर हो अथवा भयभीत हो, उस पर आघात न किया जाय। जो किसी एक के साथ युद्ध कर रहा हो, उस पर दूसरा कोई शस्त्र न छोड़े। जो शरण में आया हो या युद्ध छोड़कर भाग रहा हो, अथवा जिसके अस्त्र_शस्त्र और कवच नष्ट हो गये हों___ऐसे निहत्थों का वध न किया जाय। सूत, भार ढोनेवाले, शस्त्र पहुँचानेवाले तथा भेरी और शंख बजानेवालों पर किसी तरह का प्रहार न किया जाय। इस प्रकार के नियम बनाकर वे सभी राजालोग अपने सैनिकों के साथ बहुत प्रसन्न हुए।

No comments:

Post a Comment