दान, पवित्रता, तप और
मोक्ष युधिष्ठिर
कहने लगे---मुनिवर ! आप धर्म को जाननेवाले हैं इसलिये मैं बार-बार आपसे धर्म की बातें
सुनना चाहता हूँ। मार्कण्डेयजी
बोले---राजन् ! अब मैं तुम्हे धर्म सम्बन्धी दूसरी बात सुनाता हूँ। पवित्रता तीन प्रकार की है---वाणी की, कर्म
की और जल की। इन तीनों प्रकार की पवित्रता से युक्त है, वह स्वर्ग का अधिकारी है। जहाँ
कहीं भी बहुत से शास्त्रों का ज्ञान रखनेवाले लोग रहते हों, वह स्थान तीर्थ कहलाता
है। सज्जन लोग सत्संग से पवित्र हुई सुन्दर वाणी रूप जल से ही अपनी आत्मा को पवित्र
मानते हैं। जो मन, वाणी, कर्म और बुद्धि से कभी पाप नहीं करते, वे ही महात्मा तपस्वी
हैं;केवल शरीर सुखाना ही तपस्या नहीं हैं। जो व्रत-उपवास आदि करते हैं लेकिन अपने कुटुम्बीजनों
पर तनिक भी दया नहीं करते, वह कभी निष्पाप नहीं हो सकता। उसकी वह निर्दयता उस तप को
नाश करनेवाली है; कवल भोजन त्याग देने से तपस्या नहीं होती। जो निरन्तर घर पर भी रहकर
पवित्र भाव से रहता है और सब प्राणियों पर दया करता है, उसे मुनि ही समझना चाहिये;
वह संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। शास्त्रों में जिनका उल्लेख नहीं है, ऐसे कर्मों
को अपने मन से कल्पना करके लोग तपायी हुई शिला आदि पर बैठते हैं। यह सब होता है तपस्या
के नाम पर पापों को जलाने के लिये; परन्तु इससे केवल शरीर से पीड़ा होती है, और कोई
लाभ नहीं होता। जिसका हृदय श्रद्धा और भाव से शून्य है, उसके पापकर्मों को अग्नि भी
नहीं जला सकती। दया तथा मन वाणी और शरीर की शुद्धि से ही शुद्ध वैराग्य और मोक्ष प्राप्त
होते हैं। केवल फल खाने या हवा पीकर रहने से तथा सिर मुँडाने, घर छोड़ने, जटा बढ़ाने,
जल के भीतर खड़े रहने या जमीन पर शयन करने से ही मोक्ष नहीं मिलता। ज्ञान अथवा निष्काम
कर्म से ही जरा-मृत्यु आदि सांसारिक व्याधियों से पिण्ड छूटता और उत्तम पद की प्राप्ति
होती है। जिसके हृदय में संशय है, आत्मा के प्रति अविश्वास है, उसके लिये न लोक है,
न परलोक और न उसे कभी सुख ही मिलता है। श्रद्धा और विश्वासपूर्वक निश्चयात्मक बोध ही
मोक्ष का स्वरूप है। आत्मा अपनी उपलब्धि में स्वयं समर्थ नहीं है, उसका अनुभव सूक्ष्म
बुद्धि के द्वारा होता है। अतः मनुष्य को इन्द्रियों की निर्मलता के द्वारा विषय भोगों
को त्याग देना चाहिये। यह इन्द्रियों के निरोध से होनेवाला अनशन ( उपवास या विषयों
का अग्रहण ) दिव्य होता है। तप से स्वर्ग मिला है, दान से भोगों की प्राप्ति होती है,
तीर्थस्थान से पाप नष्ट होते हैं; परन्तु मोक्ष तो ज्ञान से ही होता है---ऐसा समझना
चाहिये।
No comments:
Post a Comment