Monday 23 November 2015

वनपर्व---धुन्धुमार की कथा---उतंग मुनि की तपस्या और उन्हें विष्णु का वरदान

धुन्धुमार की कथा---उतंग मुनि की तपस्या और उन्हें विष्णु का वरदान
अब मार्कण्डेयजी ने युधिष्ठिर को राजा धुन्धुमार का कथा इस तरह सुनाया---पूर्वकाल में उतंग नाम से प्रसिद्ध एक महर्षि हो गये हैं। अब मार्कण्डेयजी ने युधिष्ठिर को राजा धुन्धुमार का कथा इस तरह सुनाया---पूर्वकाल में उतंग नाम से प्रसिद्ध एक महर्षि हो गये हैं। मरुदेश (मारवाड़) के सुन्दर परदेश में उनका आश्रम था। एक समय महर्षि उतंग ने भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिये बहुत वर्षों तक कठोर तपस्या की।भगवान् ने उन्हें प्रसन्न होकर उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया। उनके दर्शन से मुनि निहाल हो गये और बड़ी विनय के साथ नाना प्रकार के स्त्रोतपाठ करते हुए उनकी स्तुति करने लगे। उतंग बोले---भगवन् ! देवता, असुर और मनुष्य आपसे ही उत्पन्न हुए हैं। आपने ही चराचर प्राणियों को जन्म दिया है। वेदवेत्ता ब्रह्माजी, वेद तथा उसके द्वारा जानने योग्य जो कुछ भी वस्तुएँ हैं, उन सबकी सृष्टि आपसे ही हुई है। देवदेव ! आकाश आकाश आपका मस्तक है, सूर्य और चन्द्रमा नेत्र हैं, वायु साँस है और अग्नि आपका तेज है। सारी दिशाएँ आपकी साँस है और अग्नि आपका तेज है। सारी दिशाएँ आपकी भुजाएँ हैं, महासागर उदर है, पर्वत उरु है और अन्तरिक्ष जंघा है। पृथ्वी आपके चरण और औषधियाँ रोम हैं। इन्द्र, सोम, अग्नि, वरुण, देवता, असुर, नाग---ये सब आपके नतमस्तक हो नाना प्रकार की स्तुतियाँ करते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। उतंग की स्तुति   भगवान् बहुत प्रसन्न हुए और बोले, 'उतंग ! मैं तुमपर प्रसन्न हूँ, कोई वर माँगो। उतंग बोले---'हे कमललोचन ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं और मुझे वर देना ही चाहते हैं तो ऐसी कृपा कीजिये जिससे मेरी बुद्धि सदा शम-दम, सत्यभाषण तथा धर्म में ही लगी रहे और आपके भजन का अभ्यास कभी छूटने न पावे।भगवान् ने कहा---मुने ! तुमने जो कुछ माँगा है, सब पूर्ण होगा। धुन्धु नाम वाला एक महान् असुर तीनों लोकों का विनाश करने के लिये घोर तपस्या करेगा। उस असुर का वध जिसके हाथ से होनेवाला है, उसका नाम तुम्हें बताता हूँ ; सुनो। इक्ष्वासु वंश में एक बलवान् और विजयी राजा होगा---बृहद्रथ। उसके 'कुवलाश्व' नाम प्रसिद्ध एक पुत्र होगा। वह मेरे योगबल का आश्रय लेकर तुम्हारी आज्ञा से धुन्धु को मार डालेगा, उस समय से वह इस जगत् में 'धुन्धुमार' के नाम से विख्यात होगा। महर्षि उतंग से ऐसा कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये।

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