शिष्टाचार का वर्णन
मार्कण्डेयजी ने कहा---धर्मव्याध
का उपर्युक्त उपदेश सुनकर कौशिक ब्राह्मण ने उनसे पूछा, ' नरश्रेष्ठ ! मुझे शिष्ट पुरुषों
के आचार का ज्ञान कैसे हो ? तुम्ही मुझसे शिष्टों के व्यवहार यथार्थ रीति से वर्णन
करो। व्याध बोला---यज्ञ, तप, दान, स्वाध्याय और सत्यभाषण---ये पाँच बातें शिष्ट व्यक्तियों
के व्यवहार में सदा रहती हैं। जो काम, क्रोध, दम्भ और उद्दण्डता---इन दुर्गुणों को
जीत लेते हैं, कभी इनके वश में नहीं होते, वे ही शिष्ट कहलाते हैं और वे ही आदर के
पात्र होते हैं। सदाचार का निरंतर पालन करना---शिष्ट पुरुषों का दूसरा लक्षण है। शिष्टाचारी
व्यक्तियों में गुरु की सेवा, क्रोध का अभाव, सत्यभाषण और दान---ये चार सद्गुण अवश्य
होते हैं। वेद का सार है सत्य, सत्य का सार है इन्द्रियसंयम और इन्द्रियसंयम का सार
है त्याग। यह त्याग
शिष्ट पुरुषों में ज्यादा विद्यमान रहता है। जो शिष्ट हैं वे सदा ही नियमित जीवन व्यतीत
करते हैं। इसलिये तुम धर्म की मर्यादा भंग करनेवाले नास्तिक, पापी और निर्दयी पुरुषों
का संग छोड़ दो।सदा धार्मिक पुरुषों की सेवा में रहो। यह शरीर एक नदी है, पाँच इन्द्रियाँ
इमें जल हैं, काम और क्रोध रूपि मगर इसके भीतर भरे पड़े हैं। जन्म-मरण के दुर्गम प्रदेश
में यह नदी बह रही है। तुम धैर्य की नाव पर बैठो और इसके दुर्गम स्थानों--जन्मादि क्लेशों
को पार कर जाओ। वैसे कोई भी रंग सफेद कपड़े पर ही अच्छी तरह खिलता है, इसी प्रकार शिष्टाचार
के पालन करनेवाले व्यक्तियों में ही क्रमशः संचित किया हुआ कर्म और ज्ञानरूप महान्
धर्म भलीभाँति प्रकाशित होता है। अहिंसा और सत्य---इनसे ही संपूर्ण जीवों का कल्याण
होता है। अहिंसा सबसे महान् धर्म है, परन्तु इसकी प्रतिष्ठा है सत्य में। सत्य के आधार
पर ही श्रेष्ठ मनुष्यों के सभी कार्य आरंभ होते हैं। इसलिये सत्य ही गौरव की वस्तु
है। न्याययुक्त कर्मों का आधार धर्म कहा गया है।
इसके विपरीत जो अनाचार है उसे ही शिष्ट लोग अधर्म कहते हैं। जो क्रोध और निन्दा नहीं
करते, जिनमें अहंकार और इर्ष्या का भाव नहीं है, जो मन पर काबू रखनेवाले एवं सरल स्वभाव
के हैं, उन्हें शिष्टाचारी कहते हैं। उन्में सत्वगुण की वृद्धि होती है; जिनका पालन
दूसरों को कठिन प्रतीत होता है, ऐसे सदाचारों का भी वे सुगमतापूर्वक पालन करते हैं;
अपने सत्कर्मों के कारण ही उनका सर्वत्र आदर होता है। अहिंसा, सत्य, क्रूरता का अभाव,कोमलता, द्रोह और अहंकार का त्याग,
लज्जा, क्षमा, सम, दम और बुद्धि, धैर्य, जीवदया, कामना एवं द्वेष का अभाव---ये सब शिष्ट
व्यक्तियों के गुण हैं।
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