Friday 27 November 2015

वनपर्व---तीन गुणों का स्वरूप तथा ब्रह्म साक्षात्कार के उपाय

तीन गुणों का स्वरूप तथा ब्रह्म साक्षात्कार के उपाय
इसके बाद कौशिक ने धर्मव्याध से कहा, 'अब मैं सत्व, रज, तम---इन तीनों गुणों का स्वरूप जानना चाहता हूँ। धर्मव्याध बोला---तीनों गुणों में जो तमोगुण है, वह मोह उपजानेवाला है; रजोगुण कर्मों में प्रवृत करनेवाला है। परन्तु सत्वगुण विशेष ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाला है, इसलिये वह सबसे उत्तम माना गया है। जिसमें अज्ञान अधिक है, जो मोहग्रस्त और अचेत होकर दि रात नींद लेता है, जिसकी इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं, जो अविवेकी, क्रोधी और आलसी है---ऐसे मनुष्य को तमोगुणी समझना चाहिये। जो प्रवृति की ही बात करनेवाला और विचारशील है, दूसरों के दोष नहीं देखता, सदा कोई-न-कोई काम करता रहता है, जिसमें विनय का अभाव और अभिमान की अधिकता है, उसको रजोगुणी समझो। जिसके भीतर प्रकाश ( ज्ञान ) अधिक है, जो धीर और निष्क्रिय है, दूसरों के दोष न देखनेवाला और जितेन्द्रिय है तथा जिसने क्रोध को त्याग दिया है, वह सात्विक है। मनुष्य को चाहिये कि हल्का भोजन करे और अन्तःकरण को शुद्ध रखे। रात के पहले और पिछले पहर में सदा अपना मन आत्मचिन्तन में लगावे। इस प्रकार जो सदा अपने हृदय में आत्माक्षात्कार का अभ्यास करता है, वह निराकार आत्मा का बोध करके मुक्त हो जाता है। सब तरह के उपायों से क्रोध और लोभ की वृतियों को दबाना चाहिये। संसार में यही तप हैऔर यही भवसागर से पार जानेवाला सेतु है। तप को क्रोध से, धर्म को द्वेष से, विद्या को मान-अपमान से और अपने को प्रमाद से बचाना चाहिये। क्रूरता का अभाव (दया) सबसे बड़ा धर्म है, क्षमा सबसे प्रधान बल है, सत्य ही सबसे उत्तम व्रत है और आत्मा का ज्ञान ही सबसे उत्तम ज्ञान है। सत्य बोलना सदा कल्याणकारी है, सत्य में ही ज्ञान की स्थिति है। जिससे प्राणियों का अत्यन्त कल्याण हो, वही सबसे बढ़कर सत्य माना गया है। जिसके कर्म कामनाओं से बँधे हुए नहीं होते, जिसने अपना सबकुछ त्याग की अग्नि में हवन कर दिया है, वही बुद्धिमान है और वही त्यागी है। कुछ भी संग्रह न रखना, सभी दशाओं में संतुष्ट रहना, कामना और लोलुपता का त्याग देना---यही सबसे उत्तम ज्ञान है और यही आत्मज्ञान का साधन है। सब प्रकार के संग्रह का त्याग कर परलोक और इहलोक के भोगों की ओर से सुदृढ़ वैराग्य धारण कर बुद्धि के द्वारा मन और इन्द्रियों का संयम करे। जो मनुष्य सुख और दुःख दोनो की इच्छा त्याग देता है, वही ब्रह्म को प्राप्त होता है।

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