Sunday 8 November 2015

वनपर्व---इन्द्र और बक मुनि का संवाद

इन्द्र और बक मुनि का संवाद

इसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने निवदन किया---मुनिवर ! सुनने में आता है कि वक और दाल्भ्य---ये दोनो महात्मा चिरंजीवी हैं और देवराज इन्द्र से इनकी मित्रता है अतः मैं वक और इन्द्र के समागम का वृतांत सुनना चाहता हूँ। आप उसका यथावत् वर्णन कीजिये। मार्कण्डेयजी बोले---एक समय देवता और असुरों में बड़ा भारी संग्राम हुआ, उसमें इन्द्र विजयी हुए और  उन्हें तीनों लोकों का साम्राज्य प्राप्त हुआ। उस समय समयपर वर्षा होने के कारण खेती की उपज अधिक होती थी। प्रजा को कोई रोग नहीं होता था और सब लोग अपने धर्म में स्थित रहते थे। सबके दिन बड़े चैन से बीत रहे थे। एक दिन की बात है, देवराज इन्द्र अपनी प्रजा को देखने के लिये ऐरावत पर चढ़कर निकले। वे पूर्व दिशा में समुद्र के समीप एक सुन्दर और सुखद स्थान पर, जहाँ हरे-भरे वृक्षों की पंक्ति शोभा दे रही थी, आकाश से नीचे उतरे। वहाँ एक बहुत सुन्दर आश्रम था, जहाँ बहुत से पक्षी और मृग दिखायी पड़ते थे। उस रमणीक आश्रम में इन्द्र ने बक मुनि का दर्शन किया। बक भी देवराज इन्द्र को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उनका सत्कार किया। तत्पश्चात् इन्द्र ने बक मुनि से प्रश्न किया---'ब्रह्मण् ! आपकी उम्र एक लाख वर्ष की हो गयी। अपने अनुभव से बताइये, अधिककाल तक जीवित रहनेवालों को क्या-क्या  दुःख देखना पड़ता है। बक ने कहा---अप्रिय मनुष्यों के पास रहना पड़ता है, प्रिय व्यक्तियों के मर जाने से उनके वियोग का दुःख सहते हुए जीवन बिताना पड़ता है और कभी-कभी दुष्ट मनुष्यों का संग भी प्राप्त होता रहता है; चिरंजीवी मनुष्यों को इससे बढ़कर क्या दुःख होगा ? इन्द्र ने पूछा---मुने ! अब यह बताइये, चिरंजीवी मनुष्यों को सुख किस बात में है ? बक ने कहा---जो अपने परिश्रम से उपार्जन करके घर में केवल साग बनाकर खाता है, मगर दूसरे के अधीन नहीं है, उसे ही सुख है। दूसरों के सामने दीनता न दिखाकर अपने घर में फल और साग भोजन करना अच्छा है, परन्तु दूसरे के घर तिरस्कार सहकर प्रतिदिन मीठा पकवान भी खाना अच्छा नहीं है।यही सत्पुरुषों का विचार है। जो दूसरे का अन्न खाना चाहता है, वह कुत्ते की भाँति अपमान का टुकड़ा पाता है। इस प्रकार देवाज इन्द्र और बक मुनि में बहुत देर तक बातचीत तथा उत्तम कथा-वार्ता होती रही। इसके बाद मुनि से पूछकर इन्द्र अपने भवन स्वर्गलोक को चले गये।

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