Wednesday 4 November 2015

वनपर्व---कलि-धर्म एवं कल्कि अवतार

कलि-धर्म एवं कल्कि अवतार
यधिष्ठिर ने मार्कण्डेयजी से कहा---मुझे कलियुग के विषय में जानने का कौतूहल हो रहा है। कलि में संपूर्ण धर्मों का उच्छेद हो जायगा, उसके बाद क्या होगा ? कलियुग में लोगों के आहार-विहार का स्वरूप क्या होगा ? उनके पराक्रम कैसे होंगे ? लोगों की आयु क्या होगी ? पहनावे कैसे होंगे ? इन सब बातों को आप विस्तार के साथ बताइए। युधिष्ठिर के इस प्रकार पूछने पर मार्कण्डेयजी श्रीकृष्ण और पाण्डवों से पुनः कहने लगे---राजन् ! सुनो, सतयुग में धर्म अपने संपूर्ण रूप में प्रतिष्ठित होता है। उसमें छल-कपट या दंभ नहीं होता। उस समय धर्म रुपी वृक्ष के चारों चरण मौजूद रहते हैं। त्रेता युग में एक अंश में अधर्म अपना पैर जमा लेता है; इससे धर्म का एक पैर क्षीण हो जाता है और तीन ही पैरों पर वह स्थित रहता है। द्वापर में धर्म आधा ही रह जाता है, आधे में अधर्म आकर मिल जाता है। फिर तमोमय कलियुग के आने पर तीन अंशों से जगत् पर अधर्म का आक्रमण होता है, चौथाई अंश में ही धर्म रह जाता है। सतयुग के बाद ज्यों-ज्यों दूसरा युग आता है त्यों-ही-त्यों मनुष्य की आयु, बुद्धि, बल और तेज कम होने लगता है। युधिष्ठिर ! कलियुग में सभी वर्ग के लोग भीतर कपट रखकर धर्म का आचरण करेंगे। मनुष्य धर्म का जाल रचकर लोगों को अधर्म में फसायेंगे। अपने को पण्डित मानने वाले लोग सत्य का गला घोटेंगे। सत्य की हानि होने से उनकी आयु थोड़ी हो जायगी। आयु की कम के कारण वे पूर्ण विद्या का उपार्जन नहीं कर सकेंगे। विद्याहीन होने से अज्ञानी मनुष्यों को लोभ दबा लेगा। लोभ और क्रोध के वशीभूत हुए मूढ़ मनुष्य कामनाओं में आसक्त होंगे। इससे उनमें आपस में बैर बढ़ेगा, फिर वे एक-दूसरे के प्राण लेने की घात में लगे रहेंगे। सभी वर्ग के लोग आपस में संतानोत्पादन करके वर्णसंकर हो जायेंगे; इनका विभागकरना कठिन हो जायेगा। ये सभी सत्य और तप का परित्याग करके नीच काम करेंगे। कलियुग के अन्त में संसार की ऐसी ही दशा होगी। वस्त्रों में सनके बने हुए वस्त्र अच्छे समझे जायेंगे। उस समय पुरुषों के केवल स्त्रियों से मित्रता होगी। लोग मछली-मांस खायेंगे और बकरी-भेंड़ का दूध पियेंगे। गौओं का तो दर्शन दुर्लभ हो जायगा। लोग एक-दूसरे को लूटेंगे, मारेंगे। भगवान का कोई नाम नहीं लेगा। सभी नास्तिक और चोर होंगे। पशुओं के अभाव में खेती-बारी चौपट हो जायगी। सारा जगत् म्लेच्छवत् व्यवहार करेगा, सत्कर्म और यज्ञ आदि का कोई नाम भी न लेगा। समस्त विश्व आनन्दहीन, उत्सवशून्य हो जायगा। लोग प्रायः दीनों, असहायों का धन हर लेंगे।  लोग मान एवं अहंकार में चूर रहेंगे। लोगों को दया नहीं आवेगी। न तो कोई किसी से कन्या की याचना करेगा और न कोई कन्यादान ही करेंगे। कलियुग के वर-कन्या अपने-आप ही स्वयंवर कर लेंगे।अपने सगे-संबंधी ही धनका हरण करनेवाले हो जायेंगे। सब एक जाति के हो जायेंगे। भक्ष्याभक्ष्य का विचार छोड़कर सब लोग एक सा ही आहार करेंगे। स्त्री और पुरुष---सब स्वेच्छाचारी होंगे; वे एक-दूसरे के कार्य और विार को सहन नहीं कर सकेंगे। न कोई किसी का उपदेश सुनेगा न कोई किसी का गुरु होगा। सब अज्ञान में डूबे रहेंगे। उस समय मनुष्य की अधिक-से-अधिक आयु सोलह वर्ष की होगी। अपने पति से स्त्री और और अपनी पत्नी से पुरुष संतुष्ट न होंगे। दोनो ही अतृप्त रहकर परपुरुष और परस्त्री का सेवन करेंगे।व्यापार में क्रय-विक्रय के समय लोभ के कारण सभी सबको ठगेंगे। क्रिया के तत्व को न जानकर भी उसे करने में प्रवृत होंगे। सभी स्वभावतः क्रूर और एक-दूसरे पर अभियोग लगानेवाले होंगे। लोग बगीचे और वृक्ष कटवा डालेंगे, इसके लिये उनके हृदय में तनिक भी पीड़ा न होगी। प्रत्येक मनुष्य के जीवन पर भी संदेह हो जायगा। प्रजा सर्वदा टैक्स के भारी भार से दबी रहेगी।समस्त लोक का व्यवहार विपरीत और उलट-पुलट हो जायगा। लोग हड्डी जुड़ी हुई दीवारों की पूजा करेंगे, देवमूर्तियों की नहीं। उस समय के द्विजातियों की सेवा नहीं करेंगे। महर्षियों के आश्रम, देवस्थान, धर्मसभा आदि सभी स्थानों की भूमि हड्डियों से जुड़ी हुई होगी। देवमन्दिर कहीं नहीं होंगे। यही सब युगान्त की पहचान है। जिस समय अधिकांश मनुष्य धर्महीन, माँसभोजी और शराब पीनेवाले होंगे, उसी समय इस युग का अन्त होगा। उस समय बिना समय के वर्षा होगी। शिष्य गुरुओं का अपमान करेंगे, सदा उनका अहित करेंगे। आचार्य धनहीन होंगे। उन्हें शिष्यों की फटकार सुननी होगी। धन के लालच से ही मित्र और सम्बन्धी अपने निकट रहेंगे। युगान्त आने पर समस्त प्राणियों का अभाव हो जायगा। सारी दिशाएँ प्रज्जवलित हो उठेंगी। तारों की चमक जाती रहेगी। नक्षत्र और ग्रहों की गति विपरीत हो जायगी। लोगों को व्याकुल करनेवाली प्रचण्ड आँधियाँ उठेंगी, महान् भय की सूचना देनेवाले उल्कापात अनेकों बार होंगे। एक सूर्य तो हैं ही, छः और उदय होंगे और सातों एक साथ तपेंगे। कड़कती हुई बिजली गिरेगी, सब दिशाओं में आग लगेगी। उदय और अस्त के समय सूर्य राहू से ग्रस्त दिखेगा। इन्द्र बिना समय की ही वर्षा करेगा। बोयी हुई खेती उगेगी ही नहीं। स्त्रियाँ कठोर स्वभाववाली और कटुभाषिणी होंगी। उन्हें रोना ही अधिक पसंद होगा। वे पति की आज्ञा में नहीं रहेंगी। पुत्र माता-पिता की हत्या करेगा। पत्नी अपने बेटे से मिलकर पति का वध कर डालेगी। अमावस्या के बिना ही सूर्यग्रहण लगेगा। पथिकों को माँगने पर भी कहीं अन्न, जल और ठहरने के लिये स्थान नहीं मिलेगा; वे सब ओर से कोरा जवाब पाकर निराश होकर रास्ते पर ही पड़े रहेंगे। कौए, हाथी, पशु-पक्षी और मृग आदि युगान्त के समय बड़ी कठोर वाणी बोलेंगे। मनुष्य मित्रों, सम्बन्धियों और अपने कुटुम्ब के लोगों को भी त्याग देंगे। स्वदेश त्यागकर परदेश का आश्रय लेंगे। सभी लोग 'हा तात !,  हा बेटा !' इस प्रकार दर्दभरी पुकार मचाते हुए भूमण्डल में भटकते फिरेंगे। युगान्त में संसार की यही अवस्था होगी। उस समय एक बार इस लोक का संहार होगा।इसके बाद कालान्तर में सत्ययुग का आरम्भ होगा, क्रमशः अच्छे कर्मों को करनेवाले शक्तिशाली होंगे। लोक के अभ्युदय के लिये पुनः दैव की अनुकूलता होगी। जब सूर्य, चन्द्रमा और वृहस्पति एक ही राशि मे---एक ही पुष्य नक्षत्र पर एकत्र होंगे, उस समय सत्ययुग का प्रारम्भ होगा।फिर तो मेघ समयपर पानी बरसायेंगे। नक्षत्रों में तेज आ जायगा। ग्रहों की गति अनुकूल हो जायगी। सबका मंगल होगा तथा सुभिक्ष और आरोग्य का विस्तार होगा। उस समय काल की प्ररणा से शम्भल नामक ग्राम के अन्तर्गत विष्णुयशा नामक गृहपति के घरमें एक बालक उत्पन्न होगा, उसका नाम होगा कल्कि विष्णुयशा। वह बालक बहुत ही बुद्धिमान, बलवान् और पराक्रमी होगा। मन के द्वारा चिन्तन करते ही इच्छानुसार उसके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जायेंगे। वह दुष्टों का नाश करके सतयुग का प्रवर्तक बनेगा। धर्म के अनुसार विजय प्राप्त कर वह चक्रवर्ती राजा होगा और इस संपूर्ण जगत् को आनन्द प्रदान करेगा।

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