Saturday 20 June 2015

आदिपर्व-ऋषिकुमार किन्दम के शाप से पाण्डु को वैराग्य

ऋषिकुमार किन्दम के शाप से पाण्डु को वैराग्य


  राजा पाण्डु एक वन में विचर रहे थे। घूमते-घूमते उन्होंने देखा कि एक मृग और मृगी एक साथ हैं। पाण्डु ने साधकर पाँच वाण मारे। वे दोनो घायल हो गये। तब मृग ने कहा, राजन्, अत्यंत कामी, क्रोधी, बुद्धिहीन और पापी मनुष्य भी ऐसा क्रूर कार्य नहीं करते। मुझ निरपराध को मारकर आपने क्या लाभ उठाया। मैं किन्दम नाम का तपस्वी हूँ। मनुष्य बनकर यह काम करने में मुझे लज्जा मालूम हुई, इसलिये मृग बनकर अपनी मृगी के साथ मैं विहार कर रहा था। मैं प्रायः इसी वेष में घूमता रहता हूँ। मुझे मारने से आपको ब्रह्महत्या तो नहीं लगेगी, क्योंकि आप यह बात जानते नहीं थे। परन्तु आपने मझे जैसी अवस्था में मारा है, वह सर्वथा मारने के अनुपयुक्त थी। इसलिये यदि कभी आप अपनी पत्नी के साथ सहवास करेंगे तो उसी अवस्था में आपकी मृत्यु होगी और वह पत्नी आपके साथ सती हो जायगी। यह कहकर किन्दम ने अपने प्राण छोड़ दिये। मृगरुपधारी किन्दम मुनि की मृत्यु से सपत्नीक पाण्डु को उतना ही दुःख हुआ, जैसे किसी सगे-सम्बन्धी की मृत्यु से होता है। पाण्डु आतुर होकर मन-ही-मन कहने लगे, बड़े-बड़े कुलीन भी अपने अन्तःकरण पर वश न होने के कारण काम के फंदे में फँस जाते हैं और अपने ही हाथों अपनी दुर्गति करते हैं। बहुत सोच-विचार के पश्चात् पाण्डु ने कुन्ती और माद्री से कहा, तुमलोग राजधानी में जाओ और सभी से कहना कि पाण्डु ने सन्यास ले लिया। कुन्ती और माद्री ने अपने पति की बात सुनकर और उनके वनवास का निश्चय जानकर कहा, आर्यपुत्र, सन्यास आश्रम के अतिरिक्त और भी तो ऐसे आश्रम हैं जिनमें आप हमलोगों के साथ महान् तपस्या कर सकते हैं। स्वर्ग में हम भी आपके साथ चलेंगी और वहाँभी आप ही हमारे पति होंगे। हम दोनों अपनी इन्द्रियों को वश में करके स्वर्ग में भी आपको प्राप्त करने के लिये आपके साथ महान् तपस्या करेंगी। महाराज, यदि आप हमें छोड़ जायेंगे तो हम अवश्य ही अपने प्राण त्याग देंगी। अपनी पत्नियों की दृढ निश्चय देखकर पाण्डु ने कहा, यदि तुम दोनों ने धर्म के अनुसार ऐसा ही करने का निश्चय किया है तो मैं सन्यास न लेकर वाणप्रस्थाश्रम में ही रहूँगा। पाण्डु ने अपने और अपनी पत्नियों के आभूषण उतारकर ब्राह्मणों को दे दिये और बोले,आपलोग हस्तिनापुर जाकर कह दें कि पाण्डु सभी सुखों कोछोड़कर अपनी पत्नियों के साथ वनवासी हो गये हैं। सेवक बड़े कष्ट से हस्तिनापुर आये और पाण्डु  की अनुपस्थिति में राज-काज करने वाले धृतराष्ट्र को सब समाचार सुनाया।अपने भाई का समाचार सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दुःख हुआ। उधर पाण्डु अपनी पत्नियों के साथ एक से दूसरे पर्वत पर होते हुए गन्धमादन पर पहुँचे। इन्द्रद्युम्न सरोवर के आगे हंसकूट शिखर का उल्लंघन करके वे सतऋृंग पर्वत पर पहुँचे और तपस्या करने लगे।

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